- ब्रह्मचारी प्रह्लादानान्द यम के अंतर्गत ब्रह्मचर्य अपने आपमें सब कुछ समाये हुए है | सबसे पहले इसको समझने की बात है | इसके सम्बन्ध में विश्व भर में कई प्रकार की भ्रांतियां फैली हुई हैं | सारे योग का आधार इसी एक चीज पर टिका है| इसलिए इसको बहुत सूक्ष्मता एवं गहनता से समझना होगा | क्यूंकि यह आत्म को ब्रह्म बना देता है | यानी सामान्य से सामान्य व्यक्ति को भी भगवान बना देता है | पुरुष को भी पुरुषोत्तम बना देता है | शरीर के स्वास्थ्य से लेकर कर और आत्म के चैतन्य तक इसी का बोलवाला है | यह शरीर एवं चेतना को एक रखता है | इसके अभाव में शारीर अलग और चेतना अलग से प्रतीत होने लगते हैं और चेतना को शारीर बोझ लगने लगता है | इसलिए योग के साधक की चर्या ब्रह्म के जैसे होनी चाहिए |
अपनी शक्ति को संभाल कर रखने के लिए जो भी विधि कार्य करते हैं उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं | अब वह चाहे ब्रह्मचर्य हो, सलेबेसी हो या और भी कोई नाम हो | बात है कि शरीर की जो शक्ति है वह किसी तरह संभल जाये | उसी शारीर की शक्ति को सँभालने के लिए यह सब ढेर सारी विधियाँ हैं | और सभी विधियों का एक ही ध्येय है कि जो शक्ति शारीर में हमने अर्जित की है उसको किस प्रकार से बचा कर रखें | क्यूंकि इस शक्ति के बिना हम अध्यात्म तो क्या किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते हैं | कोई भी क्षेत्र हो जीवन का हर क्षेत्र में मेहनत करनी होती है और मेहनत करने के लिए शक्ति चाहिए | पहले के समय में शक्ति अधिक थी तो लोग उस अनुसार मेहनत करते थे | अब शक्ति कम है तो मशीनों से मेहनत करवाते हैं | मशीन भी तो शक्ति से चलती है | इस शक्ति के बल पर वह निखर कर आता है | जैसे अगर प्रिंटर में इंक बराबर है तो प्रिंट ठीक आएगा नहीं तो धुंधला आएगा | उसी प्रकार यदि व्यक्ति में शक्ति है तो उसके हर काम नंबर १ के होंगे | अगर वह अध्यातम की साधना के लिए योग, ध्यान आदि करता है तो उसमे करने में उसे और आनंद मिलेगा | और अगर शक्ती कम है तो आलसी बन कर मेहनत से जी चुराएगा | मेहनत तो सब में करनी पड़ती हैं चाहे वह सांसारिक कार्यों के लिए या फिर आध्यत्मिक कार्यों के लिए |
क्या वाल्मीकि ने बिना ब्रह्मचर्य के ऋषि बने थे ? क्या भीष्म पितामह बिना ब्रह्मचर्य के इच्छा मृत्यु का वरदान पा गए ? हिटलर ने भी तो शादी नहीं की और एक अदना सा आदमी दुनिया को हिला गया | दारा सिंह क्या बिना ब्रह्मचर्य के इतने बड़े पहलवान बने ? स्वामी रामदेव जी एक छोटे से किसान के बेटे ब्रह्मचर्य के बल पर ही तो इतना आगे बड़े हैं | महऋषि महेश योगी भी तो ब्रह्मचर्य के बल पर ही आगे बड़े | जिसको भी सफलता चाहिए आध्यात्म में उसे ब्रह्मचर्य का पालन तो अति आवश्यक रूप से करना पड़ेगा | क्यूंकि योग सूत्र के यम में ब्रह्मचर्य पहले ही आ जाता है | यही तो आधार हैं आध्यात्मिक उन्नति का | ओशो रजनीश, स्वामी राम तीर्थ, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, तुलसीदास यह सब साधारण लोग थे किन्तु ब्रह्मचर्य के बल पर आध्यात्मिकता में कितने ऊपर गए यह सारा जगत जानता है | ब्रह्मचर्य के पालन की बात नहीं होती तो कितने ही इस आध्यात्म में सफल हो जाते | किन्तु केवल मात्र ब्रह्मचर्य के आभाव में वह सफलता से वंचित रह गए | आध्यात्मिकता में केवल एक बात चलती है वह है ब्रह्मचर्य | यहाँ पर अच्छे विचार-बुरे विचार इनका कोई महत्व नहीं है | महत्व केवल ब्रह्मचर्य का है | बिना ब्रह्मचर्य के कोई भी विचार या कोई भी काम चाहे वह कितना ही अच्छा हो उन्नति प्राप्त नहीं करता है | ब्रह्मचर्य वह है की इसका आनंद वही ले सकता है जो इसका पालन करता है | इसका आनंद दूसरा नहीं ले सकता है | इसलिए कोई भी आध्यात्मिक साधना हो उसमे ब्रह्मचर्य को प्रधानता है | साधू, योगी, संन्यासी, वैरागी, उदासी, पादरी, सूफी, दरवेश, लामा, भिक्षु, जैन मुनि, इसाई संन्यासी, तिब्बती लामा, शओलिन मोंक, और भी कोई भी आध्यामिकता वाले हैं वह सबसे पहले ब्रह्मचर्य के पालन पर बल देते हैं | और जहाँ पर ब्रह्मचर्य ख़त्म हो जाता है तो उसका बुरा पतन होता है चाहे वह कितन ही ऊँचा गया हो वह बुरी तरह नीचे गिरता है | जैसे विश्वामित्र का पतन हुआ | बिना ब्रह्मचर्य के आध्यामिकता में सफलता पाना तो कभी नहीं हो सकता है |
अपने आप आ जाता है ब्रह्मचर्य
मेरे अनुसार जिसको भी आध्यात्मिकता में जाना है, उसे ब्रह्मचर्य को अपनाना नहीं पड़ता है, वह ब्रह्मचर्य तो अपने आप आता है, जैसे आप गाडी में बैठो तो गाडी अपने आप आपको ले जाती है, जैसे आग पर कोई वस्तु रखो तो पक जाती है, जैसे दवाई अपना काम कर जाती है, आपको कुछ नहीं करना पड़ता है, तो ऐसी ही आध्यात्मिकता में जब कोई जाता है तो ब्रह्मचर्य अपने आप आ जाता है, क्यूंकि उसको आध्यात्मिकता के रास्ते में रौशनी करने के लिए ब्रह्मचर्य की जरूरत होती है, यह रौशनी कैसे आती है ? सवाल यह है ? यह ओज जो आध्यात्मिकता में आता है यह सवाल है ? तो इसका उत्तर आपको दूंगा | जो भी लोग एक बार आध्यात्मिकता में ब्रह्मचर्य का महत्त्व समझ जाते हैं, तो फिर वह यही करता है की इसको कैसे बचाया जाए | अब वह क्या है जो वह समझ जाता है ? तो वह यह है की, जिस प्राकृतिक प्रक्रिया में वह अपना खज़ाना लुटाता है, उस प्राकृतिक प्रक्रिया से वह दूर भागता है, यह है ब्रह्मचर्य, यानी ब्रह्म की चर्या |
अब यह खज़ाना क्या है ? तो इस छोटी-सी प्रक्रिया में जो अरबों आत्माएं हम बहा देते हैं, उन आत्माओं को अगर हम अपने में रखें तो हम कितना प्रकाशवान हो जायेंगे, यह ऐसे है की आत्मा ही प्रकशवान होती है, किन्तु उसका प्रकाश हमको पता नहीं चलता है, किन्तु जब वही आत्मा एक शरीर धारण करती है और अपने अन्दर की आत्माओं को बचाकर रखती है तो उससे उसे प्रकाश मिलता है, जैसे कैंसर का कीटाणु दीखता नहीं हैं, लेकिन उसमे भी तो आत्मा है, वह कितना बलवान है, की आपकी आत्मा को शरीर से हटाकर खुद उस शरीर पर कब्ज़ा कर लेता है, इसी तरह से जो आत्माएं हम शरीर से बाहर निकाल देते हैं, अगर उसको हम अपने शरीर में इकठ्ठा रखें तो वह जो प्रकाश करेंगे, जो ओज उनसे निकलेगा वही ओज तो आध्यात्मिकता है, जैसे एक जुगुनू के प्रकाश से कुछ नहीं होता है, किन्तु जब बहुत से जुगनुओं को एक जगह रख दो तो तो प्रकाश निकलता है, वह एक अलग का अहसास देता है, एक अलग सा अपना पन देता है, बस यही आध्यात्मिकता में ब्रह्मचर्य का उपयोग होता है, जैसे गाडी में पेट्रोल का उपयोग होता है, बिना पेट्रोल के गाडी नहीं चल सकती है, उसी तरह बिना ब्रह्मचर्य के आध्यात्मिकता सफल नहीं हो सकती है, आध्यात्मिकता में उस को पृथ्वी से जल से अग्नि से वायु से आकाश बनाया जाता है, जैसे मिटटी से आनाज से रोटी से भोजन से खून से रोशनी से प्राण से आत्मा से परमात्मा बनाया जाता है,
अब इसको आजकल के हिसाब से समझाता हूँ, आजकल की भाषा में इसे सेलेबेसी कहते हैं, जब शरीर में सेल बेसी यानी ज्यादा हो जाते हैं उसे सेले बेसी कहते हैं, Cell , जब हमारे शरीर में सेलों की मात्र ज्यादा हो जाती है तो उसे सेलेबेसी कहते हैं, अब सेल की मात्र कैसे होगी ज्यादा शरीर में और किसके होगी ? जो भी सेलेबेसी को अपनाएगा उसके शरीर में सेल की मात्र ज्यादा होगी, और जो सेल हैं उसके शरीर में वही तो उसकी फिर दूसरों से अलग करेंगे, उसको उन्नति दिलाएंगे, तो जो सेलेबेसी का पालन करने वाले ही तो फिर सेलेब्रेटी बनते हैं, और सेलेब्रेटी जो होते हैं, उन्होंने सेल को बढाने ब्रत लिया है, यानी जो अपने सेलों को बढाने के लिए ब्रत लेते हैं वही सेलेब्रेटी होते हैं, और दूसरा से समझाता हूँ जो सेल का उपयोग हम रेडिओ, घडी आदि चलाने में करते हैं तो उसे भी तो सेल ही कहते हैं, यानी उसमे भी उर्जा भरी है, अगर आप वह सेल तो तोड़कर उसकी उर्जा को समाप्त कर देंगे तो फिर कैसे टोर्च जलेगी, तो ऐसे ही इस शरीर की टोर्च को जलाने के लिए सेल की जरूरत होती है, और सेल को बेटरी भी कहा जाता है, जो की ब्रती का ही अपभ्रंश है, यानी जो सेल को सुरक्षित रखने और बढाने का ब्रत लेता है | तभी तो कोई भी व्रत को करने का संकल्प लेता है तो उसे सेलेब्रती कहते हैं, तो यह है ब्रह्मचर्य, सेलेबेसी |
यहाँ पर बात हो रही है आध्यात्मिकता में किस तरह से ब्रह्मचर्य मदद करता है, उसका सारा उल्लेख किया है मैंने, यानी जब किसी को आध्यात्मिकता में जाना है तो उसको और अधिक उर्जा की आवश्यकता होगी, तो उसको वह उर्जा ब्रह्मचर्य से ही प्राप्त होगी, जैसे एक नदी के पानी को रोककर डैम बनाया, फिर उस डैम का पानी नहर से खेतों में पहुँचाया, या फिर उस डैम के पानी से बिजली उत्पन्न की, तो उस बिजली को उत्पन्न करने के लिए, बहुत अधिक पानी की जरूरत होगी, और अगर पानी कम होगा तो फिर बिजली नहीं उत्पन्न हो सकती है, तो इसी तरह से जब कोई आध्यात्मिकता में जाता है, तो पतंजलि सूत्र के आष्टांग योग में पहला सोपान है यम उस यम में ब्रह्मचर्य भी है, मैं यहाँ पर प्रजजन के प्राकृतिक नियम के विरुद्ध नहीं बोल रहा हूँ, मैं यहाँ पर आध्यात्मिकता के पक्ष में बोल रहा हूँ, तो ऐसी ही एक डैम हमारे शरीर में है जिसे कुंडलिनी कहा जाता है, कुंडलिनी से तात्पर्य है कुण्ड लीनी यानी कुण्ड से लेना, अब जो कुण्ड हमारे अन्दर है, उस कुण्ड में कुछ होगा ही नहीं और हम उस कुण्ड को खली रखेंगे तो कैसे हम आध्यात्मिकता में सफल हो पायेगे, तो उस कुण्ड को भरने का काम तो करना पड़ेगा, और वह भराव कैसे होगा, उस भराव को करने के लिए, और उस भराव को रोकने के लिए ही आध्यात्मिकता में यह सारे रास्ते बने हैं, जैसे हम अपनी गृहस्थी को चलाने के लिए कुछ धन कमाते है, किन्तु हम बचत भी तो करते हैं, जो बचत हमारे आड़े वक्त काम आती है, उस बचत को सेव ( Save ) भी कहते हैं, तो इसी प्रकार से जो उर्जा हमने अपने शरीर में इक्कठी की है, कुण्ड में, उस उर्जा को बचाना भी तो है, नहीं तो वह किसी भी रास्ते से बह जायेगी, तो उस उर्जा को कैसे बचाया जाए उसको कैसे अपनी बचत यानी सेविंग बनाया जाए तो वह आध्यात्मिकता में होता है, और फिर उसी उर्जा के बल पर वह आध्यात्मिकता में प्रगति पाता है, जैसे की रोकेट को आसमान में उड़ने और धरती के गुरुत्व आकर्षण को तोड़ने के लिए बहुत उर्जा चाहिए, इसी प्रकार आध्यातिमिकता में भी साधना करने के लिए बहुत उर्जा चाहिए, वह उर्जा जब अग्नि के साथ मिलती है, तो जैसे अग्नि को सूखी लकड़ी या घास मिलने से रौशनी मिलती है, उसी तरह से इस उर्जा के साथ अग्नि लगने से यह और भी तेज़ी से जलती है, और उस जलती हुयी अग्नि का प्रकाश ही फिर उस साधक के चेहरे और आखों, वाणी और व्यवहार से झलकता है, इसलिए कहा है की संत के केवल दर्शन कर लो, सब जीवन सफल हो जाएगा, क्यूँ की उस संत से उस उर्जा को संभाला और उस उर्जा का उपयोग साधना करने में किया है, तो आध्यात्मिकता में यह बहुत जरूरी है, जहाँ ऋषि मुनि की बात है तो में उनकी बारे में टिप्पड़ी नहीं करूंगा, क्यूंकि वह ऋषि की उपाधि किसी को तभी मिलती थी जब वह हजारों वर्षों तक एक आशन में एक समाधी में बैठा रहता था, फिर जब वह ऋषि बन जाता था, उसके बाद विवाह करता था, उसके पहले विवाह नहीं करता था, किसी भी ऋषि का जीवन देख लो, तो मैं वही तो कह रहा हूँ की साधना करके ही तो कोई लायक बनता है, जब वह सिद्ध हो जाता है, तो फिर वह दूसरा काम करता है, भगवान् की दी हुई जिन्दगी है यह तो सब जानते है, किन्तु उसको हम कैसे उपयोग में लाते हैं, यह हमारे हाथ में है, की हम परिस्थिति से समझौता कर लेते हैं, की हम परिस्थिति को बदल देते हैं, परिस्थिति वह होती है की जब कोई साधक साधना में बैठता है और अपनी इस अमूल्य उर्जा को बचाने की फ़िक्र करता है, और जब वह उर्जावान होने लगता है, तो परियों की नज़र उस पर रहती है, तो वह परी ( अप्सरा) आसमान से आती है और उस साधक के सामने स्थित हो जाती है, और उसकी तपस्या भंग करती है, और उसकी कमाई को लूट कर ले जाती है, तो जो स्थिति परी के द्वारा निर्मित की जाए वह परिस्थिति होती है, कई उससे समझौता कर लेते हैं, कई उसे पार कर लेते हैं, जीवन में जिसके भी रूहानियत आती है उसमें सफानियत अपने आप आ जाती है, यानी जिसमें आध्यात्मिकता आती है, उसकी नियत अपने आप साफ हो जाती है, लोग थोडा उल्टा समझते हैं, वह यह समझते हैं की ब्रह्मचर्य जो है वह साधना होता है, आध्यात्मिकता में, बस इसी चक्कर में वो असफल हो जाते हैं, और जिन्दगी के चक्करों से हटकर सात चक्करों के चक्कर में पड़ जाते हैं, जबकि मामला थोडा उल्टा है, जो भी आध्यात्मिकता में उतरता है उसमे ब्रह्मचर्य अपने आप आ जाता है, उसे लाना नहीं पड़ता है, उसका तो जाना उस ओर होता ही नहीं है, यह तो अपने आप आता है, तो कुण्ड में पानी जमा करो, फिर उस पानी से बिजली बनाओ, फिर उस बिजली का उपयोग साधना में देखने के लिए करो, ओर आगे बदने के लिए करो, फिर देखो क्या आनंद आता है, बस बात यही अटक जाती है की वह जो कुण्ड है उससे यह पानी बाहर न जाए, ओर सीधा टरबाईंन पर जाए, यह उपाय कोई नहीं बताता है की यह जो हमने पानी रुपी शक्ति शरीर में इक्कठी की है या कैसे बिजली बनेगी, ओर वह इक्कठी तो हो जाती है पर जब उसको यह ज्ञान नहीं होता है तो फिर पानी का काम है की वह हमेशा नीचे रास्ते पर ही ओर बने बनाये रास्ते पर ही चलता है, तो फिर वह उसी रास्ते पर चला जाता है, किन्तु गर उस पानी को ऊपर चढ़ाना है तो फिर कोई-न-कोई तो विधि होगी, बस वह विधि कौन जानता है, यह ढूढना पड़ेगा, ओर जितने भी शास्त्र, नियम, जो भी साहित्य है वह उसके हित के लिए ही बना है, पर इतने विधियों में इतने शास्त्रों में असली विधि कहाँ खो गयी पता नहीं, जैसे कई नकली नोटों के साथ कुछ असली नोट डाल दो ओर फिर उसको कुछ दिन के बाद ढूँढो तो फिर असली ओर नकली में फर्क नहीं कर पाओगे, इसी को कहते हैं गडमड यानी जो ज्ञान है उसको मड यानी मिटटी में मिला देना, फिर एक बार गडमड होने से फिर मामला बिगड़ जाता है, ओर सही क्या है ओर गलत क्या है ? यह जानना मुस्किल हो जाता है, तो यह मेरा आध्यात्मिकता में जो आना चाहते हैं, उनके लिए है, ओर जो अभी संसार का आनंद लेना चाहते है, वह ख़ुशी-ख़ुशी संसार का आनंद लें |
(नवभारत टाइम्स से साभार)