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रविवार, 13 मई 2012




योग करें सहजता से
आज समूचे विश्व में आयुर्वेद और योग का डंका बज रहा है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि योग किस प्रकार किया जाए। आसन तो समझा दिए जाते हैं। लोग समझ भी जाते हैं लेकिन इसके साथ ही योग को ईश्वर और प्रकृति साथ एकरूपता प्रदान करने की भी आवश्यकता है।
ईश्वर ने इस प्रकृति, इस ब्रह्मांड की रचना की है। ईश्वर की कृति में हर जगह प्रकृति है। वह स्थूल हो या सूक्ष्म, प्रकृति की हर रचना में सहजता है, सरलता है। योग भारतीय संस्कृति की अनमोल देन है। कालांतर में अंग्रेजी सत्ता की गुलामी के बीच वैचारिक गुलामी ने हमें योग से अलग किया। वह आध्यात्मिक हो या शारीरिक... योग का स्थान नास्तिकता और एलोपैथ ने ले लिया। पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का जादू सिर चढ़कर बोला और भौतिकता ने समूची मानव सभ्यता को ही अपने आगोश में ले लिया।
आज एक बार फिर हमारी पौराणिक संस्कृति, सभ्यता, जीवन शैली हमें राह दिखा रही है।
बुद्धिजीवी हों या संभ्रांत वर्ग के लोग। इनके लिए तो भारतीय संस्कृति, धार्मिक आडम्बर, योग, आयुर्वेद आदि स्टेटस सिंबल बन गए हैं। जो प्राकृतिक हैं, जो ईश्वर प्रदत्त है, वह भी दिखावे का सबब बन गया है। यानी सहजता खत्म हो गई है।
सहज है प्रकृति
यदि आप ईश्वर को पाना चाहते हैं, प्रकृति का सामीप्य चाहते हैं। आपके लिए जरूरी है प्रकृति के साथ एकरूपता। प्रकृति के साथ एकाकार हो जाना। देखिए न कितनी सहज है प्रकृति। एक बीज धरती की कड़ी सतह के नीचे पोषित होता है। उसमें से मुलायम, नर्म पौधा जन्म लेता है। यह उतना ही कोमल होता है जितना किसी प्राणी का नवजात। धरती की मजबूत सतह या परत उस कोमल पौधे के लिए रास्ता बना देती है और पौधा दिखने लगता है। धीरे-धीरे उसका विकास होता है। उसे पानी, भोजन सब कुछ धरती ही प्रदान करती है। यह है प्रकृति। वह पौधा धरती पर आश्रित होता है। वह प्रकृति का अंश होता है।
मनुष्य भी है प्रकृति का अंश
मनुष्य भी प्रकृति का अंश होता है। इस ब्रह्माँड की हर प्रक्रिया, वस्तु प्रकृति का अंश है। जहां प्रकृति है, वहां सहजता है। कितना भी कठिन कार्य हो, अगर आप प्रकृति के समीप हैं, कभी मुश्किल नही लगेगा। सहजता क्या है, यह भी अपने आप में एक सवाल है सहजता का अर्थ है, सहजं" यानि जन्म सहित, यानि जन्म के साथ उत्पन्न कोई व्यवहार, प्रकृति या भावजैसे बतख का बच्चा जन्म से तैरना सीख कर पैदा होता है और बिल्ली का बच्चा दौड़ना, छलांग लगाना या वृक्षों पर चढ़नाऐसे कार्य और व्यवहारों में सुगमता होती है जिन्हें व्यक्ति अपने पूर्वजो से विरासत के रूप में जन्म के साथ लेकर पैदा होता हैयह शुद्ध वैज्ञानिक तर्क हैअतः श्री कृष्ण ने गीता में बताया है कि "सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न तज्येत:"अर्थात जन्म सहित उत्पन्न कर्म चाहे दोष युक्त हो उसे नहीं त्यागना चाहिएअतः जीवन में सहजता क अपनाने से कामनाये, मनावेग एवं इच्छाएं स्वतः ही संयमित हो जाती हैं।
धार्मिकता, आध्यात्मिकता, योग
आप कोई धार्मिक अनुष्ठान कर रहे हों, आध्यात्मिक प्रक्रिया में हों, मानसिक या शारीरिक योग कर रहे हों, हर जगह सहज होना जरूरी होता है। आप जितने सहज होते जाएंगे, समझिये आप उस कार्य में उतने ही निपुण हो रहे हैं। एक अच्छा गायक अपने गायन में सहज होता है। हर कुशल कलाकार अपनी कला में सहज होता है। जो अनाड़ी है कला के रचनात्मक कदमों के दौरान उसे मेहनत लगती है। यानी सरलता समाप्त हो जाती है।
इसी प्रकार योग भी है। योग का अर्थ ही है ईश्वर से जुड़ाव यानी उससे एकाकार होने का प्रयास, यानी प्रकृति को अंगीकार करना यानी सहजता, सरलता। शारीरिक योग के साथ आत्मा की शुद्धि भी जरूरी है। वैचारिक, मानसिक शुद्धता के लिए ही प्राणायाम, एकाग्रता, भजन, नाम स्मरण, सत्संग आदि का सहारा लिया जा सकता है। लेकिन कहीं भी असहज होना उचित नहीं है।
तो आइये अपने जीवन का हर कार्य सहज, सरल, प्रकृति से एकाकार होकर करें।

रविवार, 6 मई 2012

मुझे छू रही हैं तेरी गर्म सांसें


फिल्म स्वयंवर में गुलजार का लिखा यह गीत सच में सदाबहार है। आज उनकी याद आई तो ये गीत उन्हें भेंट कर रहा हूं।  
 
 
मुझे छू रही हैं तेरी गर्म सांसें
मेरे रात और दिन महकने लगे है...
तेरी नर्म सांसों ने ऐसे छुआ है
कि मेरे तो पांव बहकने लगे हैं... मुझे छू रही...
 
लबों से अगर तुम बुला ना सको तो
निगाहों से तुम नाम लेकर बुला लो 
तुम्हारी निगाहें बहुत बोलती हैं
जरा अपनी आंखों पर पलकें गिरा दो.. मुझे छू रही हैं...

पता चल गया है कि मंजिल कहां हे,
चलो दिल के लंबे सफर पे चलेंगे
सफर खत्म कर देंगे हम तो वहीं पर
जहां तक तुम्हारे कदम ले चलेंगे... 
मुझे छू रही हैं......