इस समय नागपुर का मौसम

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

27 से अपूर्व विज्ञान मेला- 2013, तैयारियां पूर्ण


विज्ञान मेला के पूर्व स्कूली विद्यार्थियों को इन प्रयोगों का प्रशिक्षण दिया गया।




नागपुर, 26 नवंबर, 2013

असोसिएशन फॉर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इन बेसिक साइंस एजुकेशन व नागपुर महानगर पालिका के संयुक्त तत्वावधान में 27 नवंबर से 1 दिसंबर तक अपूर्व विज्ञान मेला 2013 का आयोजन किया जा रहा है। उद्घाटन 27 नवंबर को दोपहर 12 बजे राष्ट्रभाषा भवन परिसर में होगा। उद्घाटन के लिए एनसीएसटीसी व विज्ञान प्रसार, भारत सरकार के पूर्व प्रमुख अनुज सिन्हा विशेष रूप से नई दिल्ली से आ रहे हैं। इस अवसर पर महापौर अनिल सोले, मनपा आयुक्त श्याम वर्धने, स्थायी समिति सभापति अविनाश ठाकरे उपस्थित रहेंगे। मेले का यह 16वां वर्ष है।

राष्ट्रभाषा भवन परिसर के निसर्गरम्य वातावरण में विज्ञान मेला की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। मेले में एसोसिएशन के विशेषज्ञों द्वारा विकसित 100 प्रयोगों का प्रदर्शन किया जाएगा। मेले का उद्देश्य छात्रों के मन से विज्ञान का डर दूर कर, खेल-खेल में विज्ञान सीखना है। इन प्रयोगों में इस बात का ध्यान रखा गया कि इन्हें समझते हुए बच्चों को आनन्द आए और उनकी सोच को बहुआयामी क्षितिज मिल सके। बेसिक साइंस का सिद्धांत ही यही है कि बच्चों में सोच की आदत विकसित हो। ये सभी प्रयोग कक्षा 6 से 10 तक के पाठ्यक्रमों पर आधारित हैं व विज्ञान के नियमों को समझने में मदद करते हैं। घरों में आसानी से उपलब्ध वस्तुओं से निर्मित, विज्ञान के सरल, रोचक और कम खर्चीले वस्तुओं से इन प्रयोगों को निर्मित किया गया है, जिसे प्रेक्षकों को समझाने के लिए मनपा शालाओं के 200 विद्यार्थियों को प्रशिक्षित किया गया है।

सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

नवरात्रि पर नारी शक्ति के सम्मान का संकल्प लें








श्री भय्यूजी महाराज




 हमारी संस्कृति नारी के अन्दर की संस्कृति है। पुरूषों के बराबर उसे आदर सम्मान दिया जाता है परंतु मध्यकाल में परिस्थितियों के कारण नारी के प्रति आदरभाव को लोग भूल गए और उस पर अत्याचार करने लगे। यह अत्याचार आज भी हमें दिखायी देते है। नारी के प्रति सम्मान रखने के लिए हमे अपने घर परिवार से शुरूवात करनी पड़ेगी।
मातृशक्ति की आराधना के लिए हमे वर्ष नौ दिन विशेष दिए हैं। यह नारी शक्ति के आदर और सम्मान का उत्सव है। यह उत्सव नारी को अपने स्वाभिमान अपनी शक्ति की स्मरण दिलाता है। साथ ही समाज के अन्य पुरोधाओं का भी नारी शक्ति का सम्मान करने क लिए प्रेरित करता हैं आज हम देखे तो पाते हैं कि नारी जितनी अधिक आगे बढ़ रही स्थान-स्थान पर उसे गुलाम बनाकर रखने का आकर्षण भी बढ़ रहा है। उसे बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। नारी के प्रति संवेदनाओं में विस्तार होना चाहिए। जिस तरह हम नवरात्रि में मातृशक्ति के अनेक स्वरूपों का पूजन करते है, उनका स्मरण करते है। उसी प्रकार नारी के गुणों का हम सम्मान करें। हमारे घर में रहने वाली माता, पत्नी, बेटी, बहन इन सब में हम गुण ढूंढे। एक नारी में जितनी इच्छाशक्ति दृढ़ता के साथ होती है, वह पुरूष में शायद ही होती है।
आज नारी जाति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही घर और बाहर ऑफिस हो या सामाजिक कार्य क्षेत्र में स्वयं को स्थापित कर रही है। दोहरी भूमिका लिये वह दोनों ही स्थितियों का बेहतर निर्वाह करती है। कन्या का विवाह के पश्चात् अहंकार भाव खत्म हो जाता है। पति के नाम से वह जानी जाती है। पति के कार्यों को पति के परिवार का ध्यान। पति के परिवार में यथोचित सम्मान देना। अपनी भावनाओं को एक तरफ रखकर त्याग, समर्पण से कार्य करना है। उसका उद्देश्य होता है स्त्री का जीवन परिवार के लिए एक तपस्या एक तप जो निष्काम भाव से किया जाता है।
प्रत्येक घर में संघर्षों अग्नि में तपने वाले को शीतलता प्रदान करने वाली नारी होती है। वह अपने ज्ञान संघर्ष और कर्म से परिवार के सदस्यों को कार्यों के लिए प्रेरित करती रहती है। विवाह का अवसर हो या घर में कोई कष्ट में हो। स्त्री जितनी भावुकता से उस समय को पहचानती है उतना पुरूष नहीं समझ पाता।
नारी का सबसे बड़ा जो गुण उसे भगवान ने प्रदान किया है वह मातृत्व। एक माँ अपने बच्चे के लालन-पालन और उसके अस्तित्व निर्माण में अपने पूरे जीवन की आहुति देती है। मातृत्व से ही वह अपनी संतानों में संस्कारों का बीजारोपण करती है। यह मातृत्व भाव ही व्यक्ति के अन्दर पहंुॅचाकर दया, करूणा, प्रेम आदि गुणों को जन्म देती है।
नारी के आभामण्डल से घर पवित्र होता है। आप जब बाहर से थककर आते है तो बेटी, पत्नी या माँ एक ग्लास पानी लेकर आपके सामने खड़ी होती है और आप से पूछती है आज ज्यादा थक गये हो क्या? इस एक प्रेम भरी दृष्टि से सारी थकान उतर जाती है। नारी की ऊर्जा से ही संपूर्ण परिवार ऊर्जावान होता हैं भाई, बहन के प्यार में ऊर्जा पति पत्नी के प्रेम में ऊर्जा एक पुत्र अपनी मांॅ के व्यवहार में ऊर्जा प्राप्त कर जीवन जीने का संकल्प करता है। घर के चाहर दीवारी में प्रकाश की तरंगे उसके कारण व्याप्त होती है जिस घर में नारी नहीं होती वह घर निस्तेज प्रतीत होता है।
घर की प्रत्येक वस्तु को यथावत रखने का कार्य नारी ही करती है। चाहे वह भोजन सामग्री से सम्बन्धित हो, चाहे वह घर आंगन में सजी रंगोली से लेकर घर की दीवारों की कलात्मक वस्तुओं का रखरखाव। साथ ही घर आंगन से लेकर स्वच्छता पवित्रता। वाणी में मधुरता सब नारी के गुण है जिससे संपूर्ण घर का वातावरण मधुर बनता है। खासकर बेटियों से लेकर घर की मर्यादा, मधुरता, प्रेम और बढ़ता है। घर में बेटियाँ जितना अधिक माता-पिता के मनोभावों को समझती है, जितना अधिक वह पिता के कार्यों में सहयोग करती है,  उतना पुत्र नहीं करता। बेटियां विवाह के बाद अपने पति के यहाँ जाती है तब भी उन्हें अधिक चिंता अपने  माता-पिता की लगी रहती है।
पुत्री के रूप में स्नेह प्रेम प्रदान करके। माता-पिता के हृदय में वह करूणा भाव को ही जागृत करती है।
भारतीय नारी पुरातन काल में ऋषियां हुआ करती थी। ऐसी अनेक नारियां है जिनके ज्ञान तपस्या से तीनों लोक प्रभावित होते थे। ऋषि पत्नियांॅ भी ऋषियों के साथ-साथ तप में लीन रहती थी। वह सतयुग था उसके पश्चात कलयुग में भी नारी शक्तियों ने संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी वीरता दिखाई। अनेक वीरांगनाएं इस देश की माटी पर जन्मी है। उनकी प्रेरणा और संकल्पों से परिवार और समाज को समय-समय पर ऊर्जा प्राप्त हुई है। अध्यात्मिक, सामाजिक राजनैतिक सभी स्तर पर नारी शक्ति द्वारा आज भी शंखनाद किया जा रहा हैं। बड़े-बड़े पदों पर नारियाँ अपनी विद्वता से देश को दिशा दे रही है। यह नवरात्रि पर्व उनके सम्मान का पर्व है। शक्ति ही हमें मुक्ति, भक्ति दोनों प्रदान करती है। हम उपासना के साथ नारियों के सम्मान का संकल्प लें।

शनिवार, 14 सितंबर 2013

माँ तुझे सलाम


हिन्दी दिवस पर मैं समस्त मातृशक्ति का वंदन करता हूं। क्योंकि हिन्दी हमारी भाषा है, हमारी माँ है। देश की सर्वस्वीकार्य भाषा है। एक विनती है कि हिन्दी के लिए राजभाषा शब्द का इस्तेमाल न करें. यह राष्ट्रभाषा थी, है और रहेगी। विदेशी मानसिकता के गुलामों ने इसे राजभाषा बनाकर हमारी मातृशक्ति के साथ खिलवाड़ किया है। राजभाषा शब्द में षड़यंत्र का जहर है। भारत विश्व का अकेला ऐसा राष्ट्र है जिसकी अपनी राष्ट्रभाषा नहीं है। उन्नत देशों की कतार में खड़ा भारत विश्व का अकेला ऐसा राष्ट्र है जिसे अंग्रेजी में ही समृद्धि दिखाई देती है। यह दुखद है कि हमें अपनी मां से अच्छी दूसरों की माताएं लगती हैं। अपने देश से बेहतर दूसरे देश लगते हैं। अपनी भाषा से अच्छी दूसरे देशों की भाषा लगती है। देश की अन्य भाषाएं मराठी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयाली, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, भोजपुरी, मारवाड़ी आदि-आदि हमें दोय्यम दर्जे की लगती हैं। हमें अपने देश की भाषाएं सीखने की अपेक्षा विदेशी भाषाएं सीखना ज्यादा जरूरी लगता है।
अंग्रेजी भाषा से नफरत नहीं है। क्योंकि वह भी कहीं की भाषा है और माता कभी कुमाता नहीं होती। हंसी आती है उन बुद्धिजीवियों पर जो अंग्रेजी या विदेशी मानसिकता से ग्रस्त हैं। ये न तो खुद स्वाभिमानी जीवन जी सकते हैं और न ही किसी को जीने देंगे। भारत को आर्थिक और मानसिक गुलामी के अंधेरे कुएं में ढकेलने का अमेरिकी षड़यंत्र अब तेज हो गया है। यूएन, आईएमएफ, डब्ल्यूएचओ के नाम पर भारत सहित समूचे एशिया महाद्वीप को अंग्रेजी का लती, गुलाम (नशा की तरह) बनाने का कुचक्र है। इसलिए अब हमें स्वाभिमान जगाना जरूरी है।
दोस्तो, छोटा सा दान
सभी को करना है
हिन्दी या अपनी मातृभाषा
को अपनाना है
हमें अपने देश का
स्वाभिमान जगाना है
गुलामों की गुलामी से
आजादी पाना है।
।जय हिन्द, जय भारत। वन्देमातरम्।

सोमवार, 22 जुलाई 2013

ईश्वरीय “करिश्मा” का अद्भुत संसार- एक शाम मूक प्राणियों के नाम



 
karishma Galani with dogs


अध्यात्म की ओर बढ़ चुके रूझान ने कहीं न कहीं प्रकृति से नजदीकी बढ़ा दी है। यही कारण है प्रकृति की हर लीला, हर रचना को समझने की स्वाभाविक सी प्रक्रिया शुरू हो गई है। ब्रह्मांड के आकर्षण का नियम ही यह है कि जब जो विचार बलवती होते हैं, ब्रह्मांड या ईश्वर की तमाम नियामतें उससे संबंधित वाकयातों को आपकी ओर आकर्षित होने लगते हैं। कारण जो भी हो परन्तु गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या प्रकृति के बेहद करीब पहुंच गया। लगभग पाँच घंटे कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला। हरियाली से ओत-प्रोत इस स्थान पर नागपुर शहर में घायल, बीमार, मरणासन्न अवस्था के पशु-पक्षियों की चिकित्सा, उनका पुनर्वसन होता है।
संयोग भी अजीब था। कुछ हफ्ते पहले पशुप्रेमी देश की जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती मेनका गांधी नागपुर आई थीं। मुझे भी इसकी जानकारी थी। उस समय मुझे पता चला कि नागपुर में भी प्राणियों के कल्याण के लिए काम हो रहा है। और नागपुर में इस काम का बीड़ा उठाया हुआ है करिश्मा गलानी जी ने। खैर, मेनका जी तो आकर चली गईं परन्तु मन में बात रह गई कि ये लोग क्या करते हैं, कैसे करते हैं, इसे देखने का मौका तो मिले। अदृश्य में ही परन्तु प्रकृति का काम तो जारी था। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनीं कि करिश्मा जी से सम्पर्क हुआ। लगा नहीं कि पहले कभी नहीं मिले। विचारों का आदान-प्रदान हुआ। उनके काफी फोटोग्राफ्स देखे। उनके अनुभव सुने तो ईश्वर, ब्रह्मांड, प्रकृति के प्रति शरणागति और बढ़ गई। एक बात और समझ में आ गई कि करिश्मा जी काफी व्यस्त हैं। इनसे वैचारिक आदान-प्रदान करने के लिए समय निकालना कठिन है। खैर, ईश्वर ने यह परेशानी भी हल कर दी जब मुझे पता चला कि करिश्मा जी हर शनिवार, रविवार को पशु-पक्षियों के लिए भांडेवाड़ी में बने शेल्टर में जाती हैं और कई घंटे वहीं बिताती हैं।
तय हुआ कि मैं उनके साथ ही शेल्टर पर जाउंगा। मैं उनके घर पहुंचा। वो आईं और गाड़ी में हमारा सफर शुरू हुआ। करिश्मा जी के लिए तो यह समर्पित सेवा का अंग था, मगर उस समय मेरे लिए किसी रोमांचकारी यात्रा का आगाज़ मात्र था। गाड़ी में बैठते ही उन्होंने पहले तो कहा कि सामने बेकरी है, वहाँ गाड़ी रोकियेगा। मैंने बेकरी के सामने गाड़ी रोकी। वो बेकरी में गईं तब तक मैंने चाय-पान का कार्यक्रम निपटा दिया। जब वो आईं तो मैंने देखा उनके हाथ में टोस्ट से भरी एक बड़ी सी थैली है। उन्होंने बताया कि वो जब भी शेल्टर में जाती हैं, टोस्ट लेकर जाती हैं। खैर, जैसे ही वहाँ से गाड़ी शुरू किया, उन्होंने कहा कि एक कोयल घायल है, बैद्यनाथ चौक चलिए। मैंने आज्ञाकारी चालक की तरह गाड़ी बैद्यनाथ चौक पर निर्धारित गंतव्य की ओर ले चला। वहाँ पहुंचे तो पता चला कोयल गायब है। अब मैडम का पारा चढ़ने लगा। जैसे वो कोयल उनकी अपनी हो। चाय दुकान में खड़े दो-तीन लोगों को उन्होने कोयल को खोजने के काम पर लगा दिया। उनकी बेचैनी देखकर मुझसे भी नहीं रहा गया और मैं भी वहाँ कोयल को खोजने लगा। कोयल तो नहीं मिली मगर उन पाँच मिनटों में मैंने गौर से उनके चेहरे पर कोयल के लिए बेचैनी के जो भाव देखे तो समझ में आ गया कि मूक पशु-पक्षियों के लिए उनका ममत्व किस तरह छलकता है। वहाँ से भांडेवाड़ी की यात्रा शुरू हुई। किसी का फोन आता रहा, शेल्टर का पता पूछने के लिए और वो बताती रहीं। मैंने सोच लिया था कि थोड़ा भी ज्ञान नहीं बाँटना है। बस, खामोशी से देखना, सुनना है। उस समय यह सब लिखने की भी कोई योजना नहीं थी। मैं तो सिर्फ प्रकृति की नियामतें देखना और उसके निरालेपन को हृदय की गहराइयों से महसूस करना चाहता था।
रास्ते में उन्होंने मुझे प्राणियों से संबंधित कानूनों की जानकारी दी। बाम्बे हाईकोर्ट के सराहनीय प्रयासों के संबंध में बताया। कुछ ही देर में हम भांडेवाड़ी स्थित शेल्टर में पहुंच गये। करिश्मा जी गाड़ी से उतर कर जैसे ही गेट से अंदर गईं, ८-१० श्वानों ने उन्हें घेर लिया और पूरे मटकते हुए, नाज-नखरों के साथ उनकी अगवानी की। वहाँ एक युवक-युवति पहले से मौजूद थे। केयर टेकर लता उनके पति राजेश भी उपस्थित थे। मैंने ध्यान दिया कि करिश्मा जी टोस्ट की थैली अपने हाथ में पकड़ी थीं, मगर किसी भी श्वान ने उस पर अपनी नीयत खराब नहीं की। ये श्वान ऐसे भी नहीं थे जिन्हें बचपन से ट्रेनिंग दी गई हो। ये तो गलियों में रहने वाले श्वान थे, जिन्हें घायल या बीमारी की अवस्था में यहाँ लाया गया था। मैंने करिश्मा जी के साथ पूरा शेल्टर घूमा। आईसीयू (गहन चिकित्सा कक्ष) भी देखा। मैं सिर्फ देखता रहा। और करिश्मा जी मुझे बताती भी रहीं और वहाँ सेवा कार्य भी करती रहीं। एक कोने में घोड़ा और खच्चर खड़े थे। मुर्गियाँ थीं। कुत्ते थे। करिश्मा जी हर प्राणी के पास जातीं, खासकर कुत्तों की तो जैसे पूरी कुंडली ही उनके पास थी। हर किसी को व्यक्तिगत नाम से पुकार कर उनसे बात करती थीं। इनमें चार ऐसे श्वान थे जो लगातार करिश्मा जी के साथ रहते थे। जैसे पेट्रोलिंग कर रहे हों। बीमार कुत्ते को लाये युवक-युवति भी साथ थे। बातें होती रहीं। करिश्मा जी उन्हें प्राणियों के लिए कुछ करने के लिए प्रोत्साहित करती रहीं।
इनके जाने के बाद एक ११वीं की छात्रा मुस्कान जैन अपनी माँ के साथ आ पहुंची। पता चला कि उसने एक बीमार पपी (शिशु श्वान) को रास्ते से उटाकर घर लाया था। डाक्टर से इलाज कराने के बाद इस शिशु को इस शेल्टर में छोड़ गए थे। वैसे डाक्टर ने बता दिया था कि यह शिशु नहीं बचेगा। बात सही साबित हुई, उस शिशु की मृत्यु हो गई थी। मुस्कान के चेहरे की मुस्कान गायब थी। आंखों से अविरल अश्रु धाराएं प्रवाहित थीं। मैंने भी इधर-उधर की बातें कर मुस्कान का ध्यान बंटाया। मैं तो आश्चर्यचकित था कि एक सड़क पर मिले पपी के लिए इतनी संवेदना? इतना प्यार? इतनी संवेदना तो हमें अपने बुजुर्ग माँ-बाप के लिए नहीं होती।
अब तक सूरज ढल चुका था। मुस्कान अपनी माँ के साथ चली गई। करिश्मा जी फिर से घायल श्वानों की मरहमपट्टी में व्यस्त हो गईं। कौन दुवला है, कौन कैसा दिख रहा है, कौन किस एरिया से लाया गया है.... सबका नाम लेकर करिश्मा जी केयरटेकर लता को आवश्यक निर्देश देती रहीं।
सूरज ढलते ही अवतरण हुआ केसरवानी जी का। एक बड़ा सा थैला लेकर आए थे। पता चला ये हर रविवार को जानवरों के लिए दूध लेकर आते हैं। मुझे लगा कि कमाई अच्छी होगी तो ले आते हैं। कौतुहलवश मैंने करिश्मा जी से पूछ ही लिया। उन्होंने बताया कि केशरवानी जी सुबह पोहे का ठेला लगाते हैं। अब मेरी उत्सुकता बढ़ी, तो मैंने केशरवानी जी से पूछा कि आप ये पैसे बचा लिया करिए, यहाँ क्यों खर्च करते हैं। केशरवानी जी का जवाब था, कि काफी दर्द होता है, इन श्वानों की हालत गलियों में देख कर। मुझे जो कमाई होती है, उसका आधा यहाँ खर्च करता हूं। आनंद मिलता है।
चौकस निगाहें- सूरज ढलने के समय हमलोग मेन गेट पर खड़े बातें कर रहे थे। करिश्मा जी भी थीं। कुछ समझा रही थीं। कुछ श्वान बाहर थे, कुछ अंदर थे। अचानक करिश्मा जी सड़क पर दौड़ कर गईं जहाँ तीन-चार श्वान थे। और जोर से आवाज देने लगीं- लता..., लता....। लता भागे-भागे आई। तब हमें समझ में आया कि ये श्वान बिल्ली के एक छोटे से शिशु को घेरे हुए थे। लता और उसके पति राजेश ने उस बिल्ली के बच्चे को बाहर निकाला और कार्यालय के एक प्यारे से पिंजड़े में डाल दिया। उस बच्चे को कोई नुकसान नहीं हुआ था। बाद में मैंने करिश्मा जी से पूछा कि क्या आपको मालूम है कि आप हमसे बात करते हुए अचानक बिल्ली के बच्चे के पास कैसे पहुंच गईं। उनका जवाब था नहीं मालूम। मैंने उन्हें बताया कि यही प्रकृति की नियामत है, यही छठी इंद्री है। इसे ही जागृत करने के लिए तपस्वी वर्षों साधना करते हैं। प्रकृति को बिल्ली के बच्चे को आश्रय देना था। चूकि आप प्रकृति के नजदीक हैं, इसलिए आप अनजाने में ही वहाँ पहुंच गईं।
रात ९ बजे हम शेल्टर से अपने गंतव्य की ओर चल पड़े। हां, मैं वहाँ सबको सेवा करते देखता रहा, परन्तु मैंने मदद के लिए एक तिनका भी नहीं उठाया। शायद मेरी आंखें हर लम्हे को स्मृति में कैद कर लेना चाहती थीं। एक विश्वास जरूर दृढ़ हो चला कि ईश्वर, प्रकृति की हर रचना, हर जीव का पोषण करता है। जिसका जैसा नजरिया, उसके वैसे विचार और उसका वैसा ही संसार।

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

लोहिया साहित्य के वर्तमान इन्साइक्लोपीडिया थे मस्तराम कपूर



विख्यात समाजवादी लेखक और चिंतक मस्तराम कपूर के निधन से ऐसा महसूस हो रहा है कि एक अभिभावक का साया सिर से उठ गया। लोहिया साहित्य को लेकर उनका रूझान इतना ज्यादा था कि वो मुझे इस कार्य के लिए हर मदद को तैयार थे। स्व. अध्यात्म त्रिपाठी, कृष्णनाथ जी जैसे दिग्गजों के बाद मस्तराम जी ही लोहिया साहित्य के इन्साइक्लोपीडिया के रूप में उभरे थे।
मस्तराम जी का मंगलवार अपराह्न नयी दिल्ली में निधन हो गया। वह 87 साल के थे। कपूर पिछले कुछ समय से गुर्दे के कैंसर से पीड़ित थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी, तीन बेटियां और एक बेटा हैं। उनका अंतिम संस्कार आज दोपहर नयी दिल्ली के विद्युत शवदाह गृह में किया गया। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, जदयू के अध्यक्ष शरद यादव, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, समाजवादी नेता महेश जी, अनामिका प्रकाशन के पंकज शर्मा, जेबीएस पब्लिकेशन के सुधीर यादव ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है।
समाजवादी चिंतन से संबंधित उन्होंने 100 से अधिक पुस्तकें लिखीं हैं। राम मनोहर लोहिया की जीवनी पर उनके सक्रिय सहयोग से अग्रेंजी में दस और हिंदी में नौ खंड प्रकाशित हुए। समाजवादी नेता मधु लिमये के वह काफी करीबी थे। डा. लोहिया के वैचारिक उत्तराधिकारी अध्यात्म त्रिपाठी के निधन के बाद अगर किसी ने लोहिया को पुस्तकों के माध्यम से प्रचारित करने का सच्चा प्रयास किया तो वे थे मस्तराम कपूर।
मृदुभाषी कपूर से मेरी मुलाकात पुस्तक समाजवादी अध्यात्म त्रिपाठी के सिलसिले में हुई। पहली ही मुलाकात में मैं उनका मुरीद हो गया था। राजनीतिक लागलपेट से परे कपूर साहब के साथ कई घंटे विचार-विमर्श करने का सौभाग्य मुझे मिला। साथ ही पुस्तक में लेख के रूप में उनका आशीर्वाद भी। अध्यात्म जी पर पुस्तक को लेकर कपूर साहब खासे उत्साहित थे। उन्हें सदा ही यह दर्द सालता रहा था कि लोहिया साहित्य की रचना के सिलसिले में उन्हें लोहिया के मूल साहित्य उपलब्ध नहीं हो पाये थे। जब उन्हें पता चला कि अध्यात्म जी की मूल रचनाएं मेरे पास हैं तो उन्होंने मुझसे कहा था कि उसे उसी रूप में पुस्तकों के माध्यम से लोगों के सामने लाएं। पुस्तक की रचना के दौरान मस्तराम जी का भरपूर मार्गदर्शन मिला।
अपने जीवन के अंतिम दिनों तक वह गैर कांग्रेस और गैर भाजपा तीसरी शक्ति के गठबंधन के लिए प्रयास करते रहे। मस्तराम कपूर का जन्म 1926 में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में हुआ था।
वरिष्ठ लेखक, पत्रकार मस्तराम कपूर नहीं रहे। तब के पंजाब और आज के हिमाचल प्रदेश में जन्मे मस्तराम कपूर ने जीवनभर समाजवादी विचारधारा और साहित्य के संकलन और लेखन का काम किया। मधु लिमये के अंतिम दिनों में वे उनके सबसे भरोसेमंद सहयोगी रहे थे।
स्व मधु लिमये के बहुत सारे लेखों हिंदी अनुवाद स्व कपूर साहेब ही करते थे। अभी पिछले दिनों उन्होंने नई दिल्ली में गैर कांग्रेस गैर बीजेपी पार्टियों के नेताओं और जनांदोलनों के नेताओं का सम्मलेन बुलाया था और तीसरे मोर्चे की बात को एक अमली जामा देने की कोशिश की थी।
समाजवादी परंपरा के हर पार्टी में मौजूद नेता मस्तराम कपूर की बहुत इज्ज़त करते थे। अभी पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया था। लोहिया साहित्य के सबसे बड़े लेखक के रूप में उनकी पहचान हमेशा होती रहेगी। उन्होंने लोहिया समग्र का संपादन भी किया था। उम्र के ८७ साल पार करने के बाद भी उन्होंने अभी कई किताबों के प्रकाशन की योजना बना रखी थी। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

बुधवार, 20 मार्च 2013

स्त्री अत्याचार के खिलाफ एक माँ का फैसला






मिलिए कविता ताई येलपुरे से. वैसे तो वह दादा धाम प्रणेता श्री नरेन्द्र दादा की अर्द्धांगिनी हैं. लेकिन इससे अधिक वह दादा धाम का मुस्कुराता हुआ चेहरा हैं. करुणा की प्रतिमूर्ति. शांत, विश्वास से भरी हुई, सुखदायक आश्वासन और अनुग्रह की एक तस्वीर हैं. यदि श्री नरेन्द्र दादा दादाधाम के प्रमुख हैं, मस्तिष्क हैं तो कविता ताई दिल हैं.
लगभग हमेशा, दादा धाम की हर नई गतिविधि प्रणेता से शुरू होती है (यानी श्री नरेन्द्र दादा से). लेकिन इस बार मातृरूपेण कविता ताई ने सभी भक्तों को महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार के खिलाफ एक अभियान शुरू करने को प्रेरित किया है. उन्होंने जब पहली बार स्कूल जाने वाली लड़कियों के अमानवीय यौन उत्पीड़न के बारे में पढ़ा, उनके दयालु हृदय में दर्द, क्रोध और चिंता का भूचाल आ गया. और उन्हें इस अभियान के लिए दृढ़ संकल्पित किया. आँसू और सहानुभूति के परे कुछ रचनात्मक करने का संकल्प.
उन्होंने सभी भक्तों की एक बैठक बुलायी और उन्हें अपनी योजना से अवगत कराया. उनके विचार और कार्य योजना दोनों ही प्रशंसनीय हैं. उनका विचार है कि अबोध कन्याओं सहित सामान्य जनता अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए सिर्फ पुलिस पर निर्भर नहीं रह सकती. लोगों को अपराध और हिंसा के खिलाफ एकजुट होना पड़ेगा. आवश्यकता सिर्फ जागरूकता की है. जब वे संभावित खतरे के प्रति जागरूक हो जाएंगे, वे सावधानी बरतने लगेंगे. वे अपराधों के खिलाफ लड़ने के लिए उपाय अपनाने लगेंगे.
कविता ताई की कार्य योजना का पहला भाग है- नागपुर शहर के प्रमुख चौराहों पर पथ नाट्य. पथ नाट्य उस स्थान से गुजरने वालों का ध्यान आकर्षित करेगा, साथ ही उन्होंने असामाजिक तत्वों के हमलों के खिलाफ तैयार होने का संदेश मिलेगा.
कुशल मार्गदर्शन के अंतर्गत पुरुष और महिला कलाकारों का दल पथ नाट्य के लिए गठित किया जा चुका है. यह दल शांति के संदेश वाहक रूप में कार्य करेगा. कविता ताई की आध्यात्मिक पृष्ठ भूमि ने उन्हें अमानवीय कृत्यों के कारणों के विश्लेषण के लिए सक्षम बनाता है. उनके अनुसार, मानसिक विकृति और आपराधिक मानसिकता मानसिक प्रदूषण को जन्म देती है. महिलाओं के खिलाफ अपराध पुरुषों के ऐसे ही मानसिक प्रदूषण का परिणाम है.
हालांकि, जागरूकता इसका उपचारात्मक उपाय है. उपचारात्मक भाग में पुरुषों के मानसिक कचरे को साफ करना भी शामिल है. उन्हें गंदे साहित्य, अश्लील फिल्मों और सेक्स को बढ़ावा देने वाली दवाओं के उत्तेजक विज्ञापन से बचना चाहिये. आचार-विचार, नैतिकता और सकारात्मक मूल्य की ओर रूझान उन्हें इनसे बचाएगा. आध्यात्मिकता भी पुरुषों के चरित्र निर्माण में भूमिका निबा सकता है. कविता ताई के प्रयास इसी दिशा में हैं.
कविता ताई ने सभी शांति प्रिय संगठनों, शैक्षणिक संस्थाओं, नागरी निकायों और सामान्य जनता से दादा धाम का पथनाट्य देखने और कलाकारों के इस दल को अपने क्षेत्र में आमंत्रित करने का आह्वान किया है. पथनाट्य निःशुल्क प्रस्तुत किये जाएंगे. यह जागरूकता के पहिये को गतिशील करने में मदद करेगा.

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

कुछ गलत नहीं है मुलायम राग में



मुलायम सिंह यादव देश के एक मात्र नेता हैं जिन्हें डाक्टर राममनोहर लोहिया का राजनीतिक उत्तराधिकारी कहा जा सकता है। कालांतर में कुछ समाजवादी पार्टी की कुछ नीतियां भले ही लोगों को खटके लेकिन डाक्टर लोहिया की मृत्यु और समाजवादी आंदोलन के बिखरने के बाद की स्थिति में इसे समय की मांग भी कहा जा सकता है। जब डाक्टर राममनोहर लोहिया जैसे दूरदृष्टि रखने वाले नेतृत्व का जिक्र आता है तो मन अनायास ही कृतज्ञता से भर जाता है।
मुलायम के लिए मन में कृतज्ञता इसलिए है क्योंकि उन्होंने डाक्टर लोहिया के प्रति अपनी कृतज्ञता को नहीं भुलाया है। १९७० के दशक में समाजवादी आंदोलन के तहस-नहस हो जाने के बाद जितने भी नेता थे, उन्होंने अपना अलग ठौर खोज लिया। ज्यादातर ने अपनी पार्टियां बना लीं। कुछ ने राज्यों में शासन भी किया। लेकिन उनके शासन में डाक्टर लोहिया की छाप दिखनी तो दूर उनका नाम भी नहीं लिया गया। कुछ नेता कांग्रेस में शामिल हो गये तो कुछ ने अपनी पार्टी बना कर बड़े दलों का हाथ थाम लिया। वर्तमान में समाजवाद के नाम पर बने दलों में से समाजवादी पार्टी, जनता दल (यू), राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल (बीजू) ही प्रमुख हैं। बाकी सभी दल अपनी मांद में ही सिमटी हुई हैं।
बीजू जनता दल का उड़ीसा जबकि जदयू का बिहार में शासन है। दोनों को लंबी पारियां मिली हैं खेलने के लिए। राजद के लालू यादव बिहार में लंबे समय तक शासन कर चुके हैं। मुलायम सिंह यादव की पार्टी का इस बार का उत्तर प्रदेश में जीतना कुछ अलग मायने रखता है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने डाक्टर लोहिया सहित समाजवादी नेताओं के नाम पर योजनाएं शुरू कर समाजवाद की मूल धारा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त कर दी है। जबकि उड़ीसा या बिहार में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता है। यहां तो सरकार डाक्टर लोहिया और समाजवाद का नाम लेने से इस कदर घबराती है जैसे कांग्रेस की सरकार घबराती है।
इन तीनों राज्यों में एक बात साफ है कि यहाँ जनता लगातार कांग्रेस के खिलाफ वोट देती आ रही है और इन राज्यों में कांग्रेस की हालत अब काफी कमजोर है। यही डाक्टर लोहिया चाहते थे। गैर कांग्रेसवाद का नारा उन्होंने स्वतंत्रता के समय ही बुलंद किया था जब उन्हें समझ में आ गया था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू की अमेरिका परस्ती इस देश को फिर से गुलामी की ओर ले जाएगी। लेकिन इसके साथ ही डाक्टर लोहिया राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और कम्युनिस्टों की मंशा पर भी भरोसा नहीं कर पाये। इसी कारण उन्होंने सभी के साथ समान दूरी बना कर कई सफल आंदोलनों को अंजाम दिया। 
लोकसभा में राष्‍ट्रपति अभिभाषण की चर्चा के दौरान सपा नेता मुलायम ने अपने भाषण में कहा कि हम भाजपा के सीमा, भाषा और देशभक्ति के मुद्दे से पूरी तरह सहमत हैं और अगर वह कश्‍मीर और मुस्लिम मुद्दे पर अपने विचार बदले तो हम दोनों एक साथ आ सकते हैं और हमारे बीच में बनी खाई पट सकती है। वहीं मुलायम की बातो को सुनकर राजनाथ सिंह खुद को रोक नहीं पाए और बोल पड़े कि हमारे बीच दूरियां हैं ही कहां, लगे हाथ सिंह ने यह भी कह डाला कि वह और मुलायम एक साथ आ सकते हैं। यूपीए सरकार से असंतुष्ट मुलायम का कहना है कि गरीबों और किसानों के मुद्दे पर भाजपा और सपा की नीतियां एक सी हैं।
निःसंदेह मुलायम सिंह की यह बाद अक्षरशः सत्य है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के छिपे एजेंडे को भी देखना जरूरी है। १९७५ की संपूर्ण क्रांति के बाद समाजवादी आंदोलन तो बिखर गया लेकिन संघ को सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि कांग्रेस से असंतुष्ट जन समुदाय उससे जुड़े गया। भले ही राम जन्म भूमि से भाजपा का जनाधारा विशाल होने की बात कही जाती है लेकिन इसका सूत्रपात तो १९७५ में ही हो गया था। इस सचाई से सतर्क रहना मुलायम के लिए जरूरी है। वैसे भी मुलायम अपने मुस्लिम वोट बैंक को भूल नहीं सकता।
दरअसल, कांग्रेस के किनारा करना समय की मांग है। आज देश में अराजकता की वही स्थिति है जो १९७० के शुरुआती दशक में थी। डाक्टर राममनोहर लोहिया के वैचारिक उत्तराधिकारी स्व. अध्यात्म त्रिपाठी ने १९७२ में एक पत्र में लिखा था कि देश हिटलरशाही के दौर से गुजर रहा है और इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर अगले १-२ वर्षों में देश में इमरजेंसी लगा दी जाएगी। तीन वर्षों बाद उनका आकलन सही निकला था और देश में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी। आज भी अराजकता की कमोबेश वैसी ही स्थिति से देश गुजर रहा है। हालांकि इमरजेंसी लगने के फिलहाल कोई संकेत नहीं हैं लेकिन जिस तरह सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर विरोधियों को दबाया जा रहा है और जिस तरह जनता में आक्रोश बढ़ता जा रहा है, उससे कहीं न कहीं १९७५ की विस्फोटक स्थिति ही बन रही है। ऐसे में समाजवादियों के दूसरे धड़ों को भी चाहिये कि अहं ब्रह्मस्मि का भाव छोड़ कर अपने जड़ की ओर देखें और कोई निर्णय लें।
cartoon: JNI News, Utter Pradesh

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

१६ मार्च को पुस्तक 'समाजवादी अध्यात्म' का विमोचन


पं. अध्यात्म त्रिपाठी स्मृति वर्षः साल भर होंगे विविध आयोजन

नागपुर। स्वतंत्रता के बाद सम्पूर्ण स्वतंत्रता का उद्घोष करने वाले डाक्टर राममनोहर लोहिया के विश्वस्त सहयोगी पं. अध्यात्म त्रिपाठी की १५ मार्च को २५वीं पुण्यतिथि है। समाजवाद के इस मौन साधक को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए सन २०१३-२०१४ को अध्यात्म त्रिपाठी स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा। सभी कार्यक्रम अध्यात्म त्रिपाठी स्मृति समारोह समिति और लोहिया अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में होंगे।
इन कार्यक्रमों की श्रृंखला में १५ मार्च को अमरावती में आटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए संचालित  अध्यात्म त्रिपाठी स्मृति समता ट्रस्ट (जीवाश्रय) स्कूल का भूमिपूजन, इसी दिन लोहिया अध्ययन केंद्र में श्री अध्यात्म के छायाचित्र का अनावरण होगा। १६ मार्च को शाम ४.३० बजे पं. अध्यात्म त्रिपाठी पर आधारित पुस्तक समाजवादी अध्यात्म का विमोचन धनवटे सभागृह, शंकर नगर में किया जाएगा। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष रघु ठाकुर उपस्थित रहेंगे। अध्यक्षता पूर्व विधायक गिरीश गांधी करेंगे। प्रमुख रूप से प्रखर शिक्षाविद् वेदप्रकाश मिश्रा उपस्थित रहेंगे। पुस्तक का लोकार्पण दादाधाम के प्रणेता नरेंद्र दादा करेंगे। पुस्तक में देश भर के ३५ लोगों से संस्मरण व आलेख शामिल किया गया है। साथ ही १९४७ से १९८८ तक के समाजवादी आंदोलन पर शोध कर श्री अध्यात्म के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। पुस्तक के मार्गदर्शक वरिष्ठ संपादक अच्युतानंद मिश्र, संपादक श्रीमती अर्चना तिवारी हैं। समाग्री संकलन व लेखन का कार्य पत्रकार अंजीव पांडेय ने किया है। पुस्तक का प्रकाशन नयी दिल्ली के अनामिका प्रकाशन और जेबीएस पब्लिकेशन द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है।
 इसके अतिरिक्त वर्ष भर साहित्यिक-सांस्कृतिक संध्या, विभिन्न क्षेत्रों पत्रकारिता, समाजसेवा, राजनीति, साहित्य, कला, संस्कृति के क्षेत्र में  आजीवन सेवाएं देने वाले मान्यवरों का सत्कार, महाप्रसाद जैसे अन्य कार्यक्रम भी नागपुर, दिल्ली व लखनऊ में आयोजित किये जाएंगे। लोहिया अध्ययन केंद्र के सचिव हरीश अड्यालकर ने कार्यक्रम में उपस्थिति की अपील आम जनता से की है।

--------------------------
स्व. अध्यात्म त्रिपाठी और पुस्तक के संबंध में
पंडित अध्यात्म त्रिपाठी 20 वर्षों तक डाक्टर राममनोहर लोहिया के विश्वस्त सहयोगी रहे। डाक्टर लोहिया के अंतरंग होने के कारण उस जमाने में के लोगों के लिये आदरणीय थे। अध्यात्म जी के लिए सम्मान इसलिए भी था, क्योंकि उनके व्यक्तित्व में वे सभी बातें मौजूद थीं, जो कमोबेश किसी गुरु से शिष्य को मिलती हैं। अर्थात गुरु तुल्य लोहिया जी का गहरा असर उनके व्यक्तित्व में था। अध्यात्म जी का सम्पूर्ण जीवन डाक्टर लोहिया के समाजवादी आन्दोलन को समर्पित रहा। यही कारण था- उनका व्यक्तित्व विपुल था, बहुआयामी था।

साहित्यकार हों, विचारक-चिंतक हों, या राजनीतिक और या फिर शोषित वर्ग का कोई व्यक्ति, अध्यात्म जी से उनके मधुर रिश्ते होना आश्चर्य की बात नहीं थी। सन् 1980 के बाद देश की वैचारिक पृष्ठभूमि में तेजी से बदलाव आया। सिद्धांतों की बात करने वालों से किनारा किया जाने लगा। राजनीति, पत्रकारिता में मिशनरी भावना का स्थान धनलोलुपता और स्वार्थ ने ले लिया। इसके बावजूद 15 मार्च 1988 को जीवन के अंतिम दिनों तक उन्होंने सार्वजनिक जीवन के उन सिद्धांतों को जीवित रखा जिनकी वकालत 1967 तक डाक्टर राममनोहर लोहिया करते रहे।

अध्यात्म जी का सम्पूर्ण जीवन चार प्रमुख वैचारिक खंडों में विभक्त रहा- डाक्टर लोहिया के जीवित रहते हुए उनके कार्यक्रमों, आन्दोलनों में सहभागिता, डाक्टर लोहिया की मृत्यु के उपरांत उनके कार्यक्रमों और आन्दोलनों का नेपथ्य में रहकर संचालन, डाक्टर राममनोहर लोहिया समता विद्यालय न्यास के कार्य (हैदराबाद के बदरीविशाल पित्ती जी के अभिभावकत्व में लोहिया साहित्य का संपादन, प्रकाशन व प्रचार-प्रसार) तथा कद्दावर नेता हेमवतीनंदन बहुगुणा जी के साथ सच्चे समाजवाद की स्थापना का आशावाद। लोहिया जी की सप्तक्रान्ति को भी अध्यात्म जी ने अपने चरित्र में पूर्णतः आत्मसात कर लिया था। प्रस्तुत पुस्तक ‘समाजवादी अध्यात्म’ में अध्यात्म जी के जीवन के विभिन्न रंगों को सामने लाने का प्रयास किया गया है। एक प्रयास है इस पुण्यात्मा को श्रद्धांजलि प्रदान करने का, वह सम्मान प्रदान करने का जिसके वे हकदार थे।