श्री भय्यूजी महाराज
हमारी संस्कृति नारी के अन्दर की संस्कृति है। पुरूषों के बराबर उसे आदर सम्मान दिया जाता है परंतु मध्यकाल में परिस्थितियों के कारण नारी के प्रति आदरभाव को लोग भूल गए और उस पर अत्याचार करने लगे। यह अत्याचार आज भी हमें दिखायी देते है। नारी के प्रति सम्मान रखने के लिए हमे अपने घर परिवार से शुरूवात करनी पड़ेगी।
मातृशक्ति की आराधना के लिए हमे वर्ष नौ दिन विशेष दिए हैं। यह नारी शक्ति के आदर और सम्मान का उत्सव है। यह उत्सव नारी को अपने स्वाभिमान अपनी शक्ति की स्मरण दिलाता है। साथ ही समाज के अन्य पुरोधाओं का भी नारी शक्ति का सम्मान करने क लिए प्रेरित करता हैं आज हम देखे तो पाते हैं कि नारी जितनी अधिक आगे बढ़ रही स्थान-स्थान पर उसे गुलाम बनाकर रखने का आकर्षण भी बढ़ रहा है। उसे बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। नारी के प्रति संवेदनाओं में विस्तार होना चाहिए। जिस तरह हम नवरात्रि में मातृशक्ति के अनेक स्वरूपों का पूजन करते है, उनका स्मरण करते है। उसी प्रकार नारी के गुणों का हम सम्मान करें। हमारे घर में रहने वाली माता, पत्नी, बेटी, बहन इन सब में हम गुण ढूंढे। एक नारी में जितनी इच्छाशक्ति दृढ़ता के साथ होती है, वह पुरूष में शायद ही होती है।
आज नारी जाति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही घर और बाहर ऑफिस हो या सामाजिक कार्य क्षेत्र में स्वयं को स्थापित कर रही है। दोहरी भूमिका लिये वह दोनों ही स्थितियों का बेहतर निर्वाह करती है। कन्या का विवाह के पश्चात् अहंकार भाव खत्म हो जाता है। पति के नाम से वह जानी जाती है। पति के कार्यों को पति के परिवार का ध्यान। पति के परिवार में यथोचित सम्मान देना। अपनी भावनाओं को एक तरफ रखकर त्याग, समर्पण से कार्य करना है। उसका उद्देश्य होता है स्त्री का जीवन परिवार के लिए एक तपस्या एक तप जो निष्काम भाव से किया जाता है।
प्रत्येक घर में संघर्षों अग्नि में तपने वाले को शीतलता प्रदान करने वाली नारी होती है। वह अपने ज्ञान संघर्ष और कर्म से परिवार के सदस्यों को कार्यों के लिए प्रेरित करती रहती है। विवाह का अवसर हो या घर में कोई कष्ट में हो। स्त्री जितनी भावुकता से उस समय को पहचानती है उतना पुरूष नहीं समझ पाता।
नारी का सबसे बड़ा जो गुण उसे भगवान ने प्रदान किया है वह मातृत्व। एक माँ अपने बच्चे के लालन-पालन और उसके अस्तित्व निर्माण में अपने पूरे जीवन की आहुति देती है। मातृत्व से ही वह अपनी संतानों में संस्कारों का बीजारोपण करती है। यह मातृत्व भाव ही व्यक्ति के अन्दर पहंुॅचाकर दया, करूणा, प्रेम आदि गुणों को जन्म देती है।
नारी के आभामण्डल से घर पवित्र होता है। आप जब बाहर से थककर आते है तो बेटी, पत्नी या माँ एक ग्लास पानी लेकर आपके सामने खड़ी होती है और आप से पूछती है आज ज्यादा थक गये हो क्या? इस एक प्रेम भरी दृष्टि से सारी थकान उतर जाती है। नारी की ऊर्जा से ही संपूर्ण परिवार ऊर्जावान होता हैं भाई, बहन के प्यार में ऊर्जा पति पत्नी के प्रेम में ऊर्जा एक पुत्र अपनी मांॅ के व्यवहार में ऊर्जा प्राप्त कर जीवन जीने का संकल्प करता है। घर के चाहर दीवारी में प्रकाश की तरंगे उसके कारण व्याप्त होती है जिस घर में नारी नहीं होती वह घर निस्तेज प्रतीत होता है।
घर की प्रत्येक वस्तु को यथावत रखने का कार्य नारी ही करती है। चाहे वह भोजन सामग्री से सम्बन्धित हो, चाहे वह घर आंगन में सजी रंगोली से लेकर घर की दीवारों की कलात्मक वस्तुओं का रखरखाव। साथ ही घर आंगन से लेकर स्वच्छता पवित्रता। वाणी में मधुरता सब नारी के गुण है जिससे संपूर्ण घर का वातावरण मधुर बनता है। खासकर बेटियों से लेकर घर की मर्यादा, मधुरता, प्रेम और बढ़ता है। घर में बेटियाँ जितना अधिक माता-पिता के मनोभावों को समझती है, जितना अधिक वह पिता के कार्यों में सहयोग करती है, उतना पुत्र नहीं करता। बेटियां विवाह के बाद अपने पति के यहाँ जाती है तब भी उन्हें अधिक चिंता अपने माता-पिता की लगी रहती है।
पुत्री के रूप में स्नेह प्रेम प्रदान करके। माता-पिता के हृदय में वह करूणा भाव को ही जागृत करती है।
भारतीय नारी पुरातन काल में ऋषियां हुआ करती थी। ऐसी अनेक नारियां है जिनके ज्ञान तपस्या से तीनों लोक प्रभावित होते थे। ऋषि पत्नियांॅ भी ऋषियों के साथ-साथ तप में लीन रहती थी। वह सतयुग था उसके पश्चात कलयुग में भी नारी शक्तियों ने संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी वीरता दिखाई। अनेक वीरांगनाएं इस देश की माटी पर जन्मी है। उनकी प्रेरणा और संकल्पों से परिवार और समाज को समय-समय पर ऊर्जा प्राप्त हुई है। अध्यात्मिक, सामाजिक राजनैतिक सभी स्तर पर नारी शक्ति द्वारा आज भी शंखनाद किया जा रहा हैं। बड़े-बड़े पदों पर नारियाँ अपनी विद्वता से देश को दिशा दे रही है। यह नवरात्रि पर्व उनके सम्मान का पर्व है। शक्ति ही हमें मुक्ति, भक्ति दोनों प्रदान करती है। हम उपासना के साथ नारियों के सम्मान का संकल्प लें।
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