- योगी गुलशन कुमार
मनुष्य चेतन और अचेतन दो मन की शक्तियों से कार्य करता है. चेतन मन की शक्ति सीमित हैं जबकि अचेतन मन की शक्तियां असीमित हैं. विश्व में आज हिंसा, डर, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, असुरक्षा और बदले की जो भावना दिखाई देती है. उसकी वजह अचेतन में छिपे नकारात्मक विचार हैं.
व्यक्ति जब इन नकारात्मक विचारों को अचेतन मन में ही दबाकर रखता है और उन्हें बाहर निकलने का रास्ता नहीं देता है तो शरीर की रासायनिक प्रक्रिया को विषाक्त करके तनाव, चिंता, हृदय रोग, अल्सर आदि रोगों के रूप में ये शरीर में प्रकट होने लगते हैं. आज प्रत्येक व्यक्ति नकारात्मक सोच से खुद को नुकसान पहुंचा रहा है. क्रोध के बाहर निकलते आवेग को न जाने कितने बार उसने दबाया है.
चेतन मन की शक्ति बारह प्रतिशत से ज्यादा नहीं है जबकि अचेतन मन 88 प्रतिशत शक्ति रखता है. मनुष्य केवल चेतन मन की शक्ति से काम लेता है. यदि वह योग गुरुओं से अचेतन मन की शक्ति का का प्रयोग करने की विधि सीख लेता है तो अनन्त उपलब्धियां उसके कदमों को चूम सकती हैं.
अचेतन मन न तो कभी सोता है और न ही आराम करता है. दिल की धड़कन, रक्त संचार, पाचन और उत्सर्जन क्रिया में उसी की भूमिका रहती है. अचेतन मन में ध्यान प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन की जो तस्वीर उतारता है, उसी तरह की घटनाएं हमारे जीवन में होने लगती हैं.
व्यक्ति को ध्यान साधना के जरिए जब चेतन से अचेतन की यात्रा कराई जाती है, तो योग गुरु उसे अचेतन मन में सदैव सकारात्मक सोच ले जाने का निर्देश देते हैं. जैसे- मेरा शरीर सदा निरोगी रहे, जीवन में समृद्धि आए... आदि. अचेतन मन को जो भी निर्देश दिए जाते हैं, उसे वह तुरन्त स्वीकार कर लेता है.
अचेतन मन में असीमित ज्ञान और बुद्धिमत्ता है. इस पर अच्छे या बुरे, जिस भी विचार की छाप व्यक्ति छोड़ता है, वह साकार होकर उसके जीवन में आने लगता है. इसलिए व्यक्ति को हमेशा सकारात्मक विचारों की छाप ही अचेतन मन पर छोड़नी चाहिए. चिंता, डर, तनाव और निराशा हृदय, फेफड़ों, आमाशय और आंतों की सामान्य कार्यप्रणाली की गति को बाधित करते हैं. तनाव पैदा करने वाले विचार अचेतन मन के सांमजस्यपूर्ण कार्य में बाधा डालते हैं.
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन उसके विचारों की प्रकृति के अनुरूप प्रवाहित होता है. सकारात्मक विचारों से अचेतन मन की नकारात्मकता के विचार मिट जाया करते हैं और उपचारक शक्ति स्वास्थ्य, सुख और शांति के रूप में व्यक्ति के शरीर में प्रवाहित होने लगती है. स्वास्थ्य के विचारों को अचेतन में प्रवाहित करके मनचाहा स्वास्थ्य अर्जित किया जा सकता है.
यदि कोई मनुष्य पूरे शरीर को शिथिल करके प्रतिदिन पांच से दस मिनट तक ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहे- हे ईश्वर, तुम्हारी पूर्ण शक्ति मुझमें समा रही है, यह ऊर्जा यानी शक्ति मेरे अचेतन मन में भरती जा रही है, तुमने जो स्वस्थ शरीर मुझे दिया था, वैसा ही रोगरहित शरीर मुझे फिर से प्राप्त हो. इस स्वस्थ विचार को ग्रहण करने से अचेतन मन की शक्ति अपना कार्य शुरू करके रोग को अच्छा करना शुर कर देती है. सबसे अच्छा तो यह है कि व्यक्ति आंखें बंद करके अपने स्वस्थ शरीर की तस्वीर या स्वयं के स्वस्थ शरीर को देखने का प्रतिदिन अभ्यास शुरू कर दे तो इसके परिणाम कुछ ही दिनों में व्यक्ति को दिखाई देने शुरू हो जाएंगे.
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