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सोमवार, 30 जनवरी 2012

अब भी कुछ कहना है क्या???

अक्टूबर २०१० में गुड़िया रानी श्रृंखला का आलेख 'बेटी से ज्यादा प्यारी है वो गुड़िया' अब तक सबसे ज्यादा पसंद किया गया पोस्ट है. इस पृष्ठ को २७३ बार देखा गया. मुझे नहीं मालूम कि इस पोस्ट में ऐसा क्या था कि यह सबसे अधिक पसंद किया गया. इसके बाद यह श्रृंखला रुक गई. ब्लाग की विषय वस्तु समसामयिक मुद्दों के विश्लेषण और प्यारी गुड़िया पर ही आधारित कविताओं तक सीमित रह गया.
 आज एक बार फिर इच्छा हो गई है इस श्रृंखला को आगे बढ़ाने का. वैसे इन सवा वर्षों में ऐसे कई मोड़ आए. 'इसलिए भाव खाती है नालायक', 'कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है', 'मुक्ति..', 'दोस्ती का सिला' जैसे शीर्षकों के माध्यम से भावनाएं अभिव्यक्त होती रहीं. इन १५ महीनों में 'एक मुलाकात'   जैसे क्षण भी आए और एक हवा के झोंके की तरह चले गए. फिर उलाहना कि वो मुलाकात खास नहीं बन पाई. मेरे ठंडे मिजाज ने गर्मजोशी पर पानी फेर दिया. हमारे बीच प्यार नहीं है, अन्यथा मुलाकात खास हो जाती. खैर, जो नहीं होना था, वो नहीं हुआ. मुलाकात औपचारिकता से कुछ ज्यादा और चर्मोत्कर्ष से कम यानी इन दोनों के बीच ही रह गई. लेकिन सच वो मुलाकात मेरे लिए भावनात्मक रूप में कुछ अधिक ही महत्वपूर्ण रही. अर्से के बाद भावनात्मक रूप से मैंने अपने आपको इतना शांत, निर्मोही, अनासक्त (दुनिया से) महसूस किया. यह वो लम्हा था जिसके बाद मैंने कुछ वैसा ही महसूस किया जैसा परमपूज्य संतशिरोमणि दादाजी धूनीवाले के भजन सुनने-गुनने या फिर दादाधाम में हर रविवार की शाम होने वाले सामूहिक नाम स्मरण के बाद महसूस किया करता था. यानी एक विशुद्ध सांसारिक, भौतिक क्षण आध्यात्मिक क्षण में तब्दील हो गया. इसके बाद भी बातचीत का सिलसिला तो जारी रहा लेकिन उनकी उलाहनाओं का मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था.
आज पता नहीं क्यों एक बार फिर उन दिनों की याद आ गई और मैंने उनकी उलाहनाओं का जवाब देने की ठान ली. पता नहीं कैसा प्यार है ये, कैसा आकर्षण है ये, टूटे न टूटता है, जोड़ते न जुड़ता है. सप्ताह के ५ दिन तो मनमुटाव, झगड़े में बीतता है. हमें सुनने को मिलता है कि तुमसे मेरा रिश्ता क्या है. इस रिश्ते ने सिर्फ दुःख ही दुःख दिए हैं. ईश्वर का न्याय देखिये प्यार करने वाले जोड़े प्रेम से बतियाते हैं. हमारी हालत यह है कि जब भी चैट किए या फिर बातचीत, झगड़ा पक्का है. फिर बातचीत बंद.... एक हफ्ता, दो हफ्ता नहीं जी पूरे तीन-तीन हफ्ते. झगड़े का एक सबसे बड़ा कारण होता है कि मैं उससे कहता हूं कि तुमने रात में मुझे याद क्यों किया. मेरी नींद खुल गई. मैं सो नहीं पाया. दूसरे दिन आफिस देरी से पहुंचा. और वो कभी कहती है क्या करुं याद आ गई और मूड खराब हुआ तो कहती है मैं क्यों तुम्हें याद करुंगी. मेरे पास दूसरे काम नहीं हैं क्या? मुझे ये काम है, वो काम है वगैरह-वगैरह.
वैसे ये पोस्ट लिख कर मैं अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहा हूं. वो इस पूरे पोस्ट में वही पढ़ेगी जिससे उसे तू-तू, मैं-मैं करने का मसाला मिले. बाकी बातें गई चूल्हे में. उनसे उन्हें क्या करना है. लेकिन सच कहूं वो गुड़िया है बहुत प्यारी. सच में प्यारी सी, छोटी सी गुड़िया है. जब ज्यादा ही भावुक हो जाती है तो कहती है कि आपने मुझे राधा बना दिया. मैं राधा हूं. मेरे तो किस्मत में आप हो नहीं. बस आपसे प्यार करते-करते मर जाना है. फिर उन्हें समझाना पड़ता है कि भगवान कृष्ण के साथ राधा की ही पूजा होती है. राधे कृष्ण का ही जाप किया जाता है. लेकिन कोई फायदा नहीं. क्योंकि मैं कृष्ण नहीं हूं न लेकिन वो राधा है. अब है तो है. कोई उनका क्या बिगाड़ सकता है.
लेकिन कुछ तो है. वो रिश्ता आध्यात्मिक हो या भौतिक. मगर कुछ खास है. जब उनकी तबीयत खराब होती है तो मेरी भी होती है. जब उन्हें चिड़िचड़ापन होता है तो मुझे भी होता है. जब वो नींद की गोली खाकर सोती हैं तो मुझे भी बहुत नींद आती है. जब वो जागती हैं तो मैं भी जागता हूं. कई बार तो रात २ बजे उलुक महाराज की भांति हालत हो जाती है. गनीमत है कि इंटरनेट है, फेस बुक है, किसी खास विषय पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, सूचनाओं के लिए गूगल देव का सर्च इंजन है. नहीं तो पूरी रात पागल बनाने के लिए काफी होती है. आप खुद ही सोचिये कि रात भर का जगा व्यक्ति दूसरे दिन आफिस में क्या काम करेगा. और फिर काम ऐसा है कि पूरे दिमाग का है. जरा सी चूक हुई नहीं कि राष्ट्रपति की राष्ट्रपिता लिखा जाता है. यानी गुड़ का गोबर हो जाता है. जब मैं अपनी ये मजबूरी उन्हें बताता हूं तो उन्हें असीम आनंद की प्राप्ति होती है और मैं उन पर बरस पड़ता हूं. बस यही सब चलता रहता है. कई बार तो आजमाने के लिए वो हमें रात १.३० बजे ईमेल भेज देती हैं. सच मानिये हमारी नींद खुल जाती है. हम झुंझला कर उठते हैं ये चेक करने के लिए कि कहीं उन्होंने तो नहीं जगाया? जब ईमेल खोलते हैं तो पहला मेल उन्हीं का सामने दिखता है. बस हमारा पारा तो छठे आसमान पर पहुंच जाता है. हम भी उन्हें जितना हो सके, उतना भला-बुरा कह डालते हैं. अब तो हमने उन्हें यह बताना ही छोड़ दिया है कि उनके कारण हम परेशान हुए. ऐसा करके हम चाहते हैं कि उनका ये घमंड चूर करना चाहते हैं कि देखिए, आपके याद करने से भी हम पर कुछ असर नहीं हुआ. लेकिन जब हम ऐसा करते हैं तो फिर ये उलाहना कि लगता है फलां सुंदरी से आजकल ज्यादा ही पट रही है. मुझसे अब तुम्हें प्यार न रहा. फिर एक गाना भेज दिया जाता है- मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं....,
अब हम क्या करें. ऐसे संवेदनशील गाने सुन कर हम भी भावनाओं के अथाह सागर में गोते लगाने लगते हैं. हमें भी लगने लगता है- ये कहां आ गए हम, यूं ही साथ-साथ चलते.... हम भी सोचने लगते हैं- ये रात है, ये तुम्हारी जुल्फें खुली हुई हैं...... ये चांद है या तुम्हारा कंगन..... जबकि मुझको भी ये खबर है कि तुम नहीं हो, कहीं नहीं हो इस जिंदगी. कैसा विचित्र सा सैलाब उमड़ पड़ता है दिल में. हम उनके सामने नतमस्तक हो जाते हैं. कहने लगते है- मजबूर ये हालात इधर भी हैं उधर भी...... तन्हाई की एक रात इधर भी है उधर भी है... क्यूं दिल में सुलगते रहें लोगों को बता दें कि हां, हमें मुहब्बत है, मुहब्बत है.
लेकिन दूसरे ही पल आ जाता है ख्याल सांसारिक रस्मोरिवाज का. अपने कर्तव्यबोध का. उनके साथ हम भी गुनगुनाने लगते हैं-  'इस जमाने में. इस मोहब्बत में. कितने दिल तोड़े कितने दिल टूटे.... जाने क्यों लोग मुहब्बत किया करते हैं.तन्हाई मिलती है, महफिल नहीं मिलती...... दिल टूट जाता है..... नाकाम होता है... उल्फत में लोगों का यही अंजाम होता है'
तो मित्रों, इस महागाथा की यह श्रृंखला यहीं समाप्त करते हैं. क्योंकि अब नींद आ रही है. थोड़ा सो लेते हैं. क्योंकि ये पोस्ट पढ़ते ही उनकी छठी इंद्रीय जागृत हो जाएगी और हमारी नींद खुल जाएगी. फिर पूरी रात बर्बाद. लेकिन आज अगर नींद खुली तो कुछ और लिखेंगे. वैसे अब हमें मालूम है कि उनका ईमेल आ चुका है. .... रुकिये चेक करता हूं..... ये रहा उनका दो मेल है पड़ा है... इसमें एक मेल मेरा ही २० मई २०११ को भेजा हुआ है- उसे बिना काट-छांट के मूल स्वरूप में प्रस्तुत कर रहा हूं-
अजीब रिश्ता ---!  
बड़ा अजीब सा रिश्ता हमने तुमसे बनाया है , छुपाकर सभी से तुमको दिल के करीब रखा है !   है शुक्रगुजार तुम्हारा की दोस्ती की तुमने हमसे, मानने लगे खुदा को जिसने मिला दिया हमको तुमसे ! ये दोस्ती क़ा मीठापन यूँ  ही बढ़ता रहे उम्र भर , न चाहूँगा किसी को,  डोर डाले कितने भी मुझ पर !  न जाना छोड़कर मझधार में मुझे ए दोस्त, अकेला जी ना पाउँगा तुम्हारे बिना मै ए दोस्त ...!!
अब भी कुछ कहना है क्या???????? नहीं न........ मैं तो खामोश हूं मुंह पर टेप लगाकर.... 
रचनात्मक विश्व ब्लाग का हेडर 


रचनात्मक विश्व ब्लाग के सभी सुधि पाठकों का हार्दिक अभिनंदन. ब्लाग की दृश्य संख्या ४००० का आंकड़ा पार कर गई है. ब्लाग को लगातार अपडेट करने का प्रयास जारी रहेगा. ब्लाग के पाठकों से अनुरोध है कि कृपया कमेंट भी कर दिया करें. आप सभी का आभार.
- अंजीव पांडेय

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

रचनात्मक विश्व: गणतंत्र दिवस परेडः पहली बार वायु सेना की मार्चिंग ...

रचनात्मक विश्व: गणतंत्र दिवस परेडः पहली बार वायु सेना की मार्चिंग ...: ६३वें गणतंत्र दिवस पर देश ने दिखाया दम ६३वें गणतंत्र दिवस पर आयोजित समारोह में जहां राजपथ पर अग्नि - ४ व हरक्‍यूल्‍स मिसाइल जैसी सशक...

गणतंत्र दिवस परेडः पहली बार वायु सेना की मार्चिंग टुकड़ी का नेतृत्व महिला ने किया



६३वें गणतंत्र दिवस पर देश ने दिखाया दम

६३वें गणतंत्र दिवस पर आयोजित समारोह में जहां राजपथ पर अग्नि- ४ व हरक्‍यूल्‍स मिसाइल जैसी सशक्त मारक क्षमता वाली मिसाइलों का पहली बार प्रदर्शन किया गया वहीं दूसरी ओर यह पहला गौरवांवित पल था जब भारतीय वायुसेना की मार्चिंग टुकड़ी का नेतृत्व एक महिला स्‍नेह शेखावटी ने किया। इस बार परेड का मुख्य आकर्षण विभिन्‍न क्षेत्रों में देश की उपलब्धियां, सैनिक वीरता, वायु शक्ति के शानदार प्रदर्शन के साथ-साथ देश की समृद्ध और विविध सांस्‍कृतिक धरोहर रहा।
अग्नि मिसाइल
इस वर्ष की परेड का प्रमुख आकर्षण 3000 किलोमीटर की मारक क्षमता वाला अग्नि मिसाइल रहा। मध्‍यम दूरी तक जमीन से जमीन पर मार करने वाले बैलेस्टिक मिसाइल को रोड मोबाइल लान्‍चर पर लगाया गया था और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने इसे प्रदर्शित किया। इस मिसाइल का पिछले वर्ष नवम्‍बर में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था। डीआडीओ ने पहली बार 150 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली प्रहार टैक्‍टीकल बैटलफील्‍ड सपोर्ट मिसाइल और रूस्‍तम-1 मानवरहित विमान को भी पहली बार प्रदर्शित किया।
भारतीय सेना ने परेड में जिन अस्‍त्र-शस्‍त्रों को शामिल किया है उनमें टी-72 टैंक, कैरियर मोर्टार ट्रैक्‍ड, एसएमईआरसीएच मल्‍टीपल लान्‍च रॉकेट प्रणाली, पिनाका मल्‍टी बैरल रॉकेट प्रणाली, पूर्ण चौड़ाई के साथ खान खोदने वाला, एनबीसी जल शुद्धिकरण प्रणाली और जैमर स्‍टेशन वीएचएफ/यूएचएफ शामिल है इन सभी का प्रदर्शन कर भारतीय सेना की ताकत दुनिया के सामने आई। सेना के मैकेनाइज्‍ड कॉलम अत्‍याधुनिक हल्‍के हेलीकॉप्‍टर ध्रुव के फ्लाईपास्‍ट के साथ समापन हुआ। भारतीय वायुसेना ने किसी विमान का स्थिर प्रदर्शन नहीं किया, लेकिन उसके द्वारा हाल ही में हासिल किए गए सी-130जे सुपर हरक्‍यूल्‍स टेक्‍टीकल विमान को पहली बार गणतंत्र दिवस परेड में शामिल किया गया । फ्लाईपास्‍ट में अमेरिका से हासिल किए गए छह विमानों में से तीन ने भाग लिया
''हर व्‍यक्ति के प्रभाव का एक समय होता है'' यह कहावत परेड में शामिल सूंघ कर अपराधी का पता लगाने वाले कुत्‍तों पर लागू होती है। परेड में शामिल दिल्‍ली पुलिस के बम निष्क्रिय दस्‍ते और एनएसजी के जवान राजपथ पर  मनुष्‍य के सबसे अच्‍छे दोस्‍त के साथ दिखाई दिए। इस बार परेड में उन्‍हें भी उचित स्‍थान दिया गया। उन्होंने कमल के फूल के आकार में अपनी क्षमता दिखा

परेड समारोह इंडिया गेट पर अमर जवान ड्यूटी से शुरू हुआ जहां प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने राष्‍ट्र की ओर से शहीदों को श्रद्धाजंलि अर्पित किया। देश की सेवा में अपने प्राणों की आहूति देने वाले सशस्‍त्र सेना के जवानों के अद्भूत साहस की स्‍मृति में अमर ज्‍वान ज्‍योति हमेशा जलती रहती है। एक उल्‍टी राइफल पर रखा हुआ हेलमेट अमर जवान का प्रतीक है।

राष्‍ट्रपति ने परेड की सलामी ली। इस बार गण्‍तंत्र दिवस परेड की मुख्‍य अतिथि थाईलैंड की प्रधानमंत्री सुश्री यिंगलकशिनवात्रा थी। परेड की अगुवाई दिल्‍ली एरिया के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल विजय कुमार पिल्‍लै ने किया
परमवीर चक्र विजेता नायब सूबेदार योगेन्‍द्र सिंह यादव, 18 गैनेडियर और हवलदार संजय कुमार, 13 जेएके राइफल्‍स और अशोक चक्र विजेता ब्रिगेडियर सीए पीठावाला, बीजीएस(टीआरजी), मुख्‍यालय दक्षिणी कमान, लेफ्टिनेंट कर्नल जसराम सिंह (सेवानिवृत), मेजर डी श्रीराम कुमार, इन्‍सट्रक्‍टर, आईएमए देहरादून, नायब सुबेदार, चेरिंग मुतुप (सेवानिवृत), श्री हुकुम सिंह और श्री गोविंद सिंह, दोनों मध्‍यप्रदेश में जिला छतरपुर से और गुना जिले श्री भुरे लाल जीपों में उप परेड कमांडर के पीछे शामिल थे
सेना की मार्चिंग टुकड़ी में 61वीं कैवेलरी के घोड़ों पर सवार सेन्‍य दल, पैराशूट रेजीमेंट, बंगाल इंजीनियर ग्रुप और सेंटर, गार्डों की ब्रिगेड, कुमाऊं रेजीमेंट, असम रेजीमेंट, महार रेजीमेंट, गोरखा राइफल रेजीमेंट और सेना पुलिस शामिल थे। नौसेना की मार्चिंग टुकड़ी का नेतृत्‍व लेफ्टिनेंट कमांडर मणिकंदन कें और वायुसेना की टुकड़ी का नेतृत्‍व फ्लार्इट लेफ्टिनेंट स्‍नेह शेखावटी ने किया। वह परेड में भारतीय वायुसेना की टुकड़ी का नेतृत्‍व करने वाली पहली महिला है। अर्धसैनिक और अन्‍य सैनिक बलों की मार्चिंग करने वाली टुकडि़यों में सीमा सुरक्षा बल, असम राइफल्‍स, तटरक्षक, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत तिब्‍बत सीमा पुलिस, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, सशस्‍त्र सीमा बल, रेलवे सुरक्षा बल, दिल्‍ली पुलिस, नेशनल कैडेट कोर, राष्‍ट्रीय सेवा योजना शामिल थे। ऊंट पर सवार सीमा सुरक्षा बल का बैंड और भूतपूर्व सैनिकों की मार्चिंग टुकड़ी परेड का अन्‍य प्रमुख आकर्षण थे


मंगलवार, 24 जनवरी 2012

गणतंत्र दिवस के पूर्व एक आह्वान

 
प्रिय भारतवासियों
गणतंत्र दिवस एक बार फिर आ गया है. स्वतंत्रता दिवस की अपनी महत्ता है और गणतंत्र दिवस की अपनी. गणतंत्र दिवस हमें संस्कारों में बांधने का दिन है. हमें अपने कर्तव्य, अधिकारों का बोध कराने का दिन है. 
हालिया हुई घटनाएं.. साफ-साफ कहें तो २६ जनवरी २०११ से अब तक हमने स्वतंत्रता का उपयोग तो भरपूर कर लिया किन्तु देश को, खुद को संस्कारों में नहीं बांध पाए. पिछला एक साल भष्टाचार और उसके खिलाफ खड़े जनमत के लिए जाना जाएगा. राजनीति की निकृष्टतम नैतिकता इस साल दिखी. सरकारी तंत्र का खुल कर दुरुपयोग इस साल दिखा. दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे जिस तरह से बाबा रामदेव के निहत्थे समर्थकों को आधी रात पीटा गया, उसने जालियांवाला बाग के सूक्ष्म संस्करण की याद दिला दी.
आए दिन किसी न किसी घोटाले का खुलासा होता रहा. पक्ष और विपक्ष दोनों ही आरोप-प्रत्यारोप के अलवा और कुछ भी नहीं कर पाए. राजनीतिक दलों की हरकतों ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या यही लोकतंत्र है. 
 जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद अगर कोई वर्ष राजनीतिक संघर्ष, जनजागृति और बाबा रामदेव के समर्थकों पर लाठीचार्ज के बाद अन्ना हजारे के आह्वान पर उठे देश व्यापी आंदोलन के लिए यह वर्ष याद किया जाएगा.केंद्र सरकार अब भी यह नहीं समझ रही है कि देश में उठा यह तूफान किसी अन्ना हजारे या रामदेव बाबा के कारण नहीं था, वस्तुतः यह देश की जनता केंद्र या राज्य सरकारों की कार्यप्रणाली के खिलाफ स्वस्फूर्त विरोध था. इस वर्ष को स्वस्फूर्त राष्ट्रीय संघर्ष के रूप में याद किया जाएगा. सूचना के अधिकार ने भी इस क्रांति में आग में घी का काम किया. इसके तहत ऐसे-ऐसे तथ्य देश की जनता के समक्ष आए जिन्हें देख कर सभी भौंचक रह गए. यह सूचना के अधिकार का कमाल था. 
दूसरी ओर देश भ्रष्टाचार से त्रस्त रहा. सीबीआई ने देश की जनता को यह दिखा दिया कि वो चाहे तो कुछ भी कर सकती है. जनता कुछ नहीं कर सकती. इतना ही नहीं देश की जनता को उसकी औकात समझाने का प्रयास भी राजनेताओं ने किया. संसद को सर्वोच्च बताया गया. लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि संसद की बुनियाद क्या है. संसद की बुनियाद में हैं सांसद और सांसदों की बुनियाद में है जनता. यानी संसद की दशा व दिशा तय करने का काम जनता करती है. फिर किस अधिकार से यह कह दिया गया कि कानून बनाने का काम सांसदों का है ब्लडी सीवीलियन्स का नहीं... अफसोस होता है कि इन राजनेताओं को यही नहीं मालूम है कि हमारा लोकतंत्र जनता के द्वारा, जनता के लिए है. ऐसा नहीं है कि इन्हें मालूम नहीं है. इन्हें सबकुछ मालूम है. तभी तो ६० साल से जनता को बेवकूफ बनाए जा रहे हैं. 
आजादी के बाद ये पहला मौका था जब जनता ने भ्रष्टाचार से निजात पाने के लिए जन लोकपाल बिल का मसौदा पेश किया. बदले में मसौदा तैयार करने वालों को कानूनी तरीके से या ये कहें कि सरकारी तरीके से तंग किया जाने लगा. खैर, इसे व्यापक समर्थन मिलने के बाद सरकार ने अपना लोकपाल बिल संसद में पेश कर दिया. उसे मालूम था कि राज्यसभा में इसे पारित कराना मुश्किल है इसलिए मतदान से इतर शर्मनाक तरीके से आधी रात को राज्यसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दी गई. कितने ही मामलों में सरकार बेनकाब हुई परन्तु बेशर्मी का दौर चलता रहा.
गणतंत्र दिवस पर यह सब बातें इसलिए प्रासंगिक हो जाती है क्योंकि राजनीति अब बेलगाम हो चुकी है. देश के नेता स्वयंभू आका की स्थिति में दिखाई देते हैं. दिग्विजय सिंह को कोई भी बयान देने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन जब फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इनका मजाक उड़ाया जाता है तो ये पुलिस रिपोर्ट, साइट ब्लाक करने जैसी धमकी देते हैं. माना कि इसके कुछ कन्टेंट गलत होते हैं लेकिन समूची साइट को ही बंद करने की धमकी यानी जनता की आवाज का गला घोंटना है.
मीडिया तंत्र ने कम से कम जनता की इन भावनाओं को पहचाना और उसे अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता से परे हट कर कर सही रूप में पेश किया. भ्रष्टाचार में जांच के मामलों ने तो कुछ ऐसा किया जिससे जांच एजेंसियों के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिया. न्यायालय को यहां तक कहना पड़ा कि जांच की दिशा इस तरह होनी चाहिए. फिर इन एजेंसियों पर जनता का इतना भारी भरकम पैसा क्यों खर्च किया जा रहा है?
कुछ अवसरों में विपक्ष के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने अच्छा काम किया. बेल्लारी का मामला हो या अन्ना हजारे को खुल कर समर्थन देने का, नितिन ग़ड़करी ने वह सब किया जो उनसे अपेक्षित था. फिर भी अभी जरूरत है और सक्रियता की. अगर विपक्ष सरकार को चैन से जीने देगा तो जनता हलाकान होती रहेगी. सरकार की मस्ती चलती रहेगी. भले ही वो केंद्र हो या राज्य. हर जगह विपक्ष को जागना होगा, तभी लोकतंत्र की रक्षा हो सकेगी.
चूंकि गणतंत्र दिवस हमें सिखाता है कि हम एक संवैधानिक ढांचे से बंधे हुए हैं. और इस ढांचे की कद्र करना हम सभी का कर्तव्य है. इसलिए गणतंत्र दिवस के पूर्व इन विचारों की आवश्यकता आ प़ड़ी. महाभारत में कहा गया है- 
यदा-यदा ही धर्मस्य:,ग्लानिर्भवतिभारत:। अभ्युत्थानमअधर्मस्य,तदात्मानमसृजाम्यहम:।।
यानी जब-जब देश में अराजकता, द्वेष फैलता है, तब-तब मैं जन्म लेता हूं.... भाई नेता लोग समझ लो.. अगर भगवान ने फिर से जन्म ले लिया तो आप लोगो की तो मिट्टी पलीत हो जाएगी. इसलिए जाग जाइए और एक हमारे संवैधानिक ढांचे को क्षतिग्रस्त मत कीजिए....
जय हिन्द....... जय भारत....