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गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

दोस्ती का सिला

आज मेरा मजाक उड़ा ले जीभर
मगर मेरी गुफ्तगूं रुक नहीं सकती

गिला नहीं गर तू गैर से इश्क कर ले
हिकयते खूंचका मिटा नहीं सकती

तू मुझे ख्वाब समझ भुला दे मगर
ख्वाबों से रिश्ता तोड नहीं सकती

हुस्न पे नाज तुझे जरूर है मगर
उसे ताउम्र कायम रख नहीं सकती

खौफ आता है मुझे तकसीर पे 'अंजुम'
मेरी आह सिला-ए-गौश मांग नहीं सकती।

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