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मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

फेसबुक यानी पुरानी बोतल में नई शराब


 फेसबुक अब काफी लोकप्रिय हो चला है. यहां तक कि कुछ लोगों को तो इसकी लत लगने की बात चिकित्सक करने लगे हैं. इसे सिंड्रोम की संज्ञा दी जाने लगी है. मजे की बात तो यह है कि इसकी लोकप्रियता से घबरा कर केंद्र सरकार भी इस पर लगाम लगाने की बात कह रही है. अब भई कुछ भी करो.... मगर फेस बुक ने एक बार उसी भारतीय संस्कृति का कम्प्यूटरीकरण कर दिया है जिसके लिए सरकारी दफ्तरों के बाबू, बेरोजगार लोग और काफी हाउस संस्कृति में घंटों समय बिताने वाले लोग बदनाम किए जाते थे.
आज से लगभग १५ साल पहले का माहौल याद कीजिए. हर मोहल्ले, नुक्कड़ों में एक पान की टपरी हुआ करती थी. एक चाय की टपरी हुआ करती थी. बड़े शहरों में काफी हाउस हुआ करते थे. ये अभी भी हैं. इनकी बिक्री भी अच्छी है मगर बदलाव भी आया है. पहले लोग इन जगहों पर जमा हुआ करते थे. यहां कई मुद्दों पर चर्चा हुआ करती थी. यहां अखबार होते थे. उन्हें पढ़ कर लोग आपस में अपने विचार व्यक्त किया करते थे. जबलपुर, बिलासपुर (छत्तीसगढ़), नागपुर जैसे कई शहरों में उन दिनों मैंने देखा था कि लोग समूहों में इन स्थानों पर इकट्ठे होते थे. स्कूल के दोस्त अपनी बातें करते थे. राजनीति वाले राजनीति की बातें करते थे. काफी हाउस में ज्यादातर साहित्यिक या गंभीर विषयों की चर्चाएं होती थीं. लोगों का जमावड़ा इन जगहों पर होता था. काफी हाउस में घंटों बैठकर बुद्धिजीवी सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए चर्चाएं करते थे. सरकारी दफ्तरों के बाबू हाजिरी लगाने के बाद पान की टपरी पर घंटों बतियाया करते थे.
फिर दौर आया बदलाव का. देश में राजनितिक परिवर्तन के साथ ही ग्लोबलाइजेशन और स्वतंत्र अर्थ व्यवस्था शुरू हुई. कम्प्यूटर आ गया. लोगों की जिंदगी में भी बदलाव आया. वैश्वीकरण के दौर ने तो सभी को व्यस्त कर दिया. भौतिक सुख-सुविधाओं की अंधी दौड़ में लोग शामिल हो गए. विद्यार्थियों को अच्छी नौकरी की चाह में प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए कड़ी मेहनत शुरू करनी पड़ी. घर में टीवी आ गया. साहित्य का स्थान पत्रकारिता ने लेना शुरू कर दिया. यहां भी प्रतिस्पर्धा ऐसी हुई कि लोगों को कहीं बैठकर सामूहिक चर्चाएं करने के लिए समय ही नहीं बचा. इन सबने नुक्कड़ों में सुबह शाम होने वाले जमावड़े को खत्म कर दिया. हां, इस बीच विदेशी शराब की बार संस्कृति ने भी अपना स्थान बनाना शुरू कर दिया और यह फलता-फूलता गया. मैखाने के शौकीन अब भी घंटों अपना समय बियर बार में व्यतीत करते हैं.
इस बीच आया आर्कुट. आर्कुट के माध्यम से लोग जुड़ने लगे. यह भी लोकप्रिय होने लगा था लेकिन इसी बीच में फेसबुक और ट्विटर ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी. ट्विटर भी ठीक है लेकिन फेसबुक ने अपनी संरचनात्मक खूबियों के कारण आम लोगों के बीच अपना स्थान बना लिया. अब फेसबुक ने उसी पुरानी नुक्कड़ वाली संस्कृति को एक बार फिर जीवित कर दिया है. फेसबुक पर भी अलग-अलग शौक रखने वालों ने अलग-अलग समूह बना लिये हैं. इन समूहों में विषयानुरूप चर्चाएं, नोक-झोंक होती रहती है. दफ्तरों के कर्मचारी भी अपने कार्य के समय पर फेसबुक पर उसी अंदाज में समय व्यतीत करते हैं जैसे पहले सरकारी दफ्तरों के बाबू पान टपरी पर व्यतीत किया करते थे. यही कारण है कि कई निजी कंपनियों के कार्यालयों में फेसबुक, ट्वीटर, आर्कुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. सर्वर से ही उसे ब्लाक कर दिया गया है. हमारे जैसे कुछ अतिउत्साहियों ने तो उसका भी हल खोज निकाला है. कंपनी के सर्वर का कनेक्शन हटाकर अपना रिलायंस या टाटा का डोंगल लगा लिया और फिर शुरू हो गया फेस बुक...
खैर बात यहां फेस बुक की हो रही थी. फेसबुक ने एक और महत्वपूर्ण काम किया है. सामाजिक-आर्थिक रूप से सक्षम एक वर्ग विशेष को इससे जोड़ा है. यानी जो गरीब हैं, उन्हें मालूम है कि वे गरीब हैं. जो अमीर हैं, उन्हें मालूम है कि वे अमीर हैं. मगर मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के लोगों को ये नहीं मालूम कि वे क्या हैं. यानी गरीब हैं कि अमीर हैं. वैश्वीकरण की भेड़चाल में यह वर्ग अपनी खुद की पहचान भूलता जा रहा है. यह वर्ग सीमित साधनों के साथ अति महत्वाकांक्षी है. यही कारण है कि यह वर्ग काफी तनावयुक्त है. कहीं न कहीं इस वर्ग में भौतिक सुख-सुविधाओं की तरफ भागने के अरमान हैं. रातोंरात करोड़पति बनना चाहता है यह वर्ग. देश के करोड़ों लोग इस वर्ग से जुड़े हुए हैं. यह वर्ग फेसबुक पर सबसे ज्यादा सक्रिय है. यही कारण है कि अन्ना हजारे के आंदोलन को समर्थन के लिए रातोंरात करोड़ों लोग तैयार हो जाते हैं. और इसीलिये अब सरकार अरब देशों में सोशल नेटवर्किगं साइट्स जैसे फेसबुक और ब्लॉग आदि के ज़रिये हुयी बग़ावत से डरकर इस पर रोक लगाने को आमादा है. फेसबुक का आलम यह है कि लोग सरकार के खिलाफ भड़ास निकालने के लिए कई तरह की तकनीक का सहारा लेकर कार्टून जैसे चित्र बना डालते हैं. सुपर पीएम सोनिया गांधी के साथ ही आज कल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह, अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, राजा, नीरा राडिया, सुरेश कलमाड़ी, पी चिदंबरम, लालूप्रसाद यादव, प्रणव मुखर्जी आदि आज कल सोशल नेटवर्किंग साइट्स के पसंदीदा कार्टून किरदार बने हुए हैं. दिग्गी राजा के बाद अब तो केंद्र सरकार भी खुलेआम इन साइट्स को प्रतिबंधित करने या फिर फिरकाकसी पर पुलिस केस दर्ज करने की धमकी देने लगी है.
पिछले दिनों दिग्विजय सिंह के खिलाफ जब इंटरनेट पर अन्ना हज़ारे पर कीचड़ उछालने के कारण जमकर टिप्पणियां होने लगी तो उन्होंने लोगों को डराने के लिये दिल्ली के एक थाने में साइबर क्राइम का मामला दर्ज करा दिया था।

वैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स के अपने खतरे भी हैं.... (साभार)


कुछ साइबर विशेषज्ञ फेसबुक से उत्पन्न खतरों के बारे में आगाह करते रहते हैं. चीफ सैक्यूरिटी ऑफिसर ऑनलाइन के वरिष्ठ सम्पादक जॉन गूडचाइल्ड का मानना है कि कम्पनियाँ अपने प्रचार के लिए फेसबुक जैसी साइट का उपयोग करना चाहती है परंतु ये कम्पनियाँ ध्यान नहीं देती कि उनकी गोपनीयता खतरे में है.


सीबीसी न्यूज़ के 'द अर्ली शॉ ऑन सटरडे मोर्निंग' कार्यक्रम के दौरान गूडचाइल्ड ने फेसबुक के 5 ऐसे खतरों के बारे में जानकारी प्रदान की जिससे निजी और गोपनीय जानकारियों की गुप्तता खतरे में पड़ सकती है.

१. डेटा शेयरिंग - पहली बात तो यह कि आपकी जानकारी केवल आप और आपके मित्रों तक ही सीमित नहीं रहती है. वह जानकारी थर्ड पार्टी अप्लिकेशन डेवलपरों तक पहुँच रही है. इसका दुरुपयोग कभी भी ये डेवलपर कर सकते हैं.

२. पॉलिसी बदलाव - फेसबुक की हर रिडिजाइन के बाद उसकी प्राइवेसी सेटिंग बदल जाती है और वह स्वत: डिफाल्ट पर आ जाती है. प्रयोक्ता उसमें बदलाव कर सकते हैं परंतु काफी कम प्रयोक्ता इस ओर ध्यान देते हैं. इससे आपकी प्राइवेसी समाप्त हो जाती है.

३. मॉलवेयर - फेसबुक पर प्रदर्शित विज्ञापन मॉलवेयर हो सकते हैं. उन पर क्लिक करने से पहले विवेक से काम लें.

४. पहचान का गलत उपयोग - आपके मित्र जाने अनजाने आपकी पहचान और आपकी कोई गोपनीय जानकारी दूसरों से साझा कर सकते हैं. इसका फायदा चार सौ बीसी का धंधा करने वाले लोग उठा सकते हैं.

५. फर्जी एकाउंट्स - फेसबुक पर सेलिब्रिटियों को मित्र बनाने से पहले अच्छी तरह से जाँच जरूर कर लें. स्पैमरों द्वारा जाली प्रोफाइल बनाकर लोगों तक पहुँच बनाना काफी सरल है. इसलिए किसी भी फ्रेंड रिक्वेस्ट की भलीभांति जांच कर लें.

६. हैकिंग - कई बार आपका एकाउंट हैक कर लिया जाता है और आपके एकाउंट से अश्लील वीडियो या अन्य सामग्रियां आपके दोस्तों को पोस्ट कर दी जाती हैं.

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

इसलिए भाव खाती है नालायक


हम कहीं नहीं हैं उनकी जिन्दगी में 
हमें तो फुर्सत ही नहीं अपनी जिन्दगी में 
वो हमें तहजीब सिखाती हैं सरे जिन्दगी में
लेकिन वो हैं क्या हमारी जिन्दगी में
हमारी हर सांस है उनकी हमारी जिन्दगी में  
हमारी हर आस है उनकी हमारी जिन्दगी में
वो नहीं कुछ भी नहीं हमारी जिन्दगी में 
उनकी वो मुलाकात है हमारी जिन्दगी में 
वही हैं जिन्दगी हमारी जिन्दगी में 
वो नहीं तो कुछ भी नहीं हमारी जिन्दगी में..... 


इसलिए भाव खाती है नालायाक........

बुधवार, 30 नवंबर 2011

एफडीआईः किसानों के हितों की रक्षा हो



रिटेल के क्षेत्र में एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मुद्दे पर इन दिनों माहौल खासा गर्म है. कारण भी साफ है. विपक्ष अब ऐसा कोई भी मुद्दा हाथ से जाने नहीं देना चाहता है जिससे कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया जा सके. हालांकि केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस प्रणित सरकार के सहयोगी दल भी खुदरा कारोबार के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का विरोध कर रहे हैं. सबकी अपनी-अपनी मजबूरियां हैं.
उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों के विधानसभा चुनाव सर पर हैं. अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और बाबा रामदेव के काला धन विरोधी आंदोलन के मुद्दे पर सरकार पहले से ही परेशान है. जनलोकपाल के नए तैयार मसौदे पर अन्ना हजारे ने आंदोलन की चेतावनी दे दी है. इसके बावजूद कांग्रेस सांसदों की सभा में सोनिया गांधी की उपस्थिति में रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी गई. आखिर कांग्रेस केंद्र में इतनी मजबूत कैसे हो गई कि पूरी दबंगई से बिना किसी की परवाह किए वह इस बिल को पारित करने पर आमादा है? यह ऐसा सवाल है जिस पर आश्चर्य होना लाजमी है. बसपा और समाजवादी पार्टी ने भी इसका विरोध करने का निर्णय लिया है. भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने जब यह कहा कि इस मुद्दे पर सदन में सरकार के पास बहुमत नहीं है तो पूरी दबंगई से कांग्रेस का जवाब मिला कि जिस गणित की बात सुषमा कर रही हैं, वह गणित हमें भी आता है. यानी यहां दाल में काला वाली बात ही नहीं है. यहां तो पूरी दाल ही काली नजर आ रही है. औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग (डीआईपीपी) ने एफडीआई से जुड़े व्यापक मुद्दों पर चर्चा पत्र पेश किया है. इसके जरिये विभाग ने सभी अंशधारकों का पक्ष जानने की कोशिश की है. एक बात तो पक्की है कि एफडीआई से जहां उपभोक्ताओं को तो फायदा होता ही ह, वहीं बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिलता है. देश में दूरसंचार, वाहन और बीमा क्षेत्र में एफडीआई की वजह से आई कामयाबी को हम देख ही चुके हैं. इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हुए निवेश की वजह से ग्राहकों को बेहतर सेवाएं और उत्पाद नसीब हुए हैं. बढ़ी प्रतिस्पर्धा ने भी कंपनियों को खुद को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित किया है.
भारतीय खुदरा कारोबार के अलग ही रंग-ढंग हैं. पुराने जमाने में या आज भी गांव में एक परचून की दुकान हुआ करती थी. छोटे शहरों में कुछेक राशन की दुकानें, सब्जी की दुकानें, जूते, कपड़े की दुकानें होती हैं. 1990 के दशक के आखिर में खुदरा कारोबार तेजी से फैलने लगा. आज हालात यह हैं कि हर गली मोहल्ले में कई दुकानें खुल गई हैं. बड़े शहरों में सुपर बाजारों ने भी अपनी जड़ें जमा ली हैं. सब्जी-भाजी से लेकर पेस्ट-ब्रश तक और किराने का हर सामान यहां मौजूद रहता है. देश भर में लगभग 1.5 करोड़ खुदरा कारोबारी हैं और यह तकरीबन 350 अरब डॉलर से भी बड़ा बाजार है. भारतीय खुदरा बाजार में असंगठित क्षेत्र का दबदबा है और कुल बिक्री का 94 फीसदी इनके जरिये ही होता है. बिचौलियों के माध्यम से बाजार का कामकाज चलता है. 
 वर्तमान में अर्थव्यवस्था की मंदी असर भले ही सीमेंट, स्टील जैसे उद्योगों पर पड़ा हो लेकिन खुदरा कारोबार पर इसका असर ज्यादा नहीं पड़ा है. जैसे जैसे अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी खुदरा कारोबार का आकार भी बढ़ेगा. सामान्य सा गणित है कि बेहतर अर्थव्यस्था से लोगों की क्रय शक्ति भी बढ़ती है. विदर्भ जैसे क्षेत्र में यह चौंकाने वाला तथ्य गत दिनों सामने आया कि यहां दो पहिया वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है. शराब का सेवन कई गुना बढ़ा है. वो भी ऐसे समय में जब धनाभाव में किसान आत्महत्या कर रहे हों. जाहिर है जैसे-जैसे अर्थ व्यवस्था में सुधार होगा लोगों की क्रय शक्ति भी बढ़ेगी. क्रय शक्ति बढ़ने पर मांग बढ़ेगी और एक अच्छे खासे निवेश की आवश्यकता होगी. इसके लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एक अच्छा माध्यम साबित होगा. एक समय था विक्को टरमरिक आयुर्वेदिक क्रीम लगाए बिना श्रृंगार नहीं होता था. आज कई अन्य क्रीम मल्टी नेशनल कंपनियों के बाजार में उपलब्ध हैं.
अब सवाल फिर एक बार सरकार की मंशा का है. हर मामलों की तरह इस मामले में भी सरकार की मंशा संदिग्ध है. अगर नहीं है तो उसे लोगों को विश्वास में लेना होगा. बिचौलियों को जरूर नुकसान होगा लेकिन कृषि क्षेत्र में असली उत्पादन करने वाला किसान जरूर लाभान्वित होगा. पूरे विश्व के लिए भारत एक बड़े उपभोक्ता बाजार के रूप में विकसित भी होगा. लेकिन सरकार की मंशा गलत रही तो लेने का देना भी पड़ सकता है. कृषि क्षेत्र में अभी माइक्रो फाइनेंस कंपनियों ने प्रवेश कर लिया है. जो किसान बैंकों का कर्ज अदा नहीं कर पा रहे हैं वो इन माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का कर्ज कहां चुका पाएंगे. इनकी ब्याज दर भी तो भारीभरकम है. अगर विदेशी निवेशक छलकपट के जरिये किसान की जमीन या कृषि उत्पादन पर ही कब्जा कर लेता है तो बेचारा किसान तो बेमौत मारा जाएगा और अपनी ही जमीन पर मजदूर बन जाएगा. खैर, ये तो भविष्य की अटकलें हैं. इसीलिये सरकार की मंशा की बात हो रही है. जिस तरह से केंद्र सरकार अफलातून निर्णय ले रही है, उसे तो यही लगता है कि वह अब किसानों को पूरी तरह बर्बाद करने पर तुली हुई है. आशंका जताई जा रही है कि इससे



छोटे कारोबारियों को नुकसान होगा और उनकी आजीविका संकट में पड़ जाएगी. लेकिन रिलायंस के खुदरा कारोबार के क्षेत्र में आने के बाद क्या ऐसा हुआ. नहीं. कोई छोटा कारोबारी बर्बाद नहीं हुआ. 
खुली अर्थव्यवस्था का दौर शुरू हुए करीब 30 साल हो गए. इस बीच भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी लेकिन किसी ने वैश्वीकरण के दौर को रोकने का प्रयास नहीं किया. देश धीरे-धीरे ही सही लेकिन पूरी तरह पूंजीवाद की ओर बढ़ता जा रहा है. अब इसमें तेजी आ गई है. समाजवाद नहीं चला. साम्यवाद नहीं चला. पूंजीवाद का हश्र अमेरिका में दिख रहा है. भारत में लोकतंत्र की आड़ में पूंजीवाद को स्थापित कर दिया गया है. अब एफडीआई से आम जनता को फायदा ही होगा. लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से अर्थव्यस्था पर विदेशी कंपनियों का शिकंजा कसता जाएगा. भ्रष्ट राजनेता बिकेंगे और जनता को बेच डालेंगे. बस यही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में सबसे बड़ा रोड़ा है. वैसे अगर मंशा साफ हो तो मीडिया के क्षेत्र में भी शतप्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी जानी चाहिए. 
वैसे कृषि उत्पादों के मामले में तो बिचौलियों ने अति कर दी है. हर जगह बिचौलिये शिकंजा कसे हुए हैं. किसान को तो कीमत ही नहीं है. वो फटेहाल है. इसलिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को स्वीकृति देते समय किसानों के हितों का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए. वैश्वीकरण, खुली अर्थव्यस्था के साथ ही गांवों को आत्मनिर्भर बनाने जैसे कम उठाने जरूरी हैं. तभी देश खुशहाल हो पाएगा. अन्यथा अब जो असंतोष भड़केगा वो अन्ना हजारे या बाबा रामदेव को मिल रहे जन समर्थन से कई गुना अधिक होगा.

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

एक खत 'युवराज' के नाम



राहुल जी,. ये आपने क्या कह दिया. सब ठीकठाक तो है न. कहीं आप भी उत्तर प्रदेश के चुनावी दंगल में अभी से हताशा तो नहीं देख रहे हैं. राहुलजी, आप तो देश की सबसे शक्तिशाली महिला आदरणीय सोनिया जी के पुत्र हैं. आप तो देश की सबसे शक्तिशाली पार्टी कांग्रेस के युवराज हैं. समझ में ये नहीं आया कि आपको किसने ये बता दिया कि महाराष्ट्र में काम करने वाले यूपी के लोग भिखमंगे हैं. 
ओह, क्षमा कीजिएगा, आपके एन एंग्री यंग मैन से भरपूर तेवर वाले पोस्टरदेखकर हम तो भूल ही गए थे कि आप खुद का लिखा भाषण नहीं पढ़ते. आप तो सिर्फ भाषण पढ़ते हैं. उसे लिखने वाला दिमाग अलग होता है. अब जो कोई भी लिखे, किसी को इससे क्या? जनता तो यही समझती है कि आपके मुखारबिंद से निकले शब्द आपके ही हैं. जनता आपको अत्यंत विद्वान, युवा और सर्वशक्तिमान समझती है. इसी कारण तो वह आपके बोलने के मतलब भी यही निकालती है कि जो आपने कहा वो आपके विचार हैं.
किसी ब्रांड मैनेजर टाइप के व्यक्ति का लिखा भाषण अक्षरशः पढ़ने के पहले आपको एक बार उस पर विचार भी कर लेना चाहिए था. क्या आपको लगता है कि महाराष्ट्र में आकर बसे हुए यूपी-बिहार के लोग भिखारी हैं. तब तो आपकी कांग्रेस पार्टी को दुनिया की सबसे लोकतांत्रिक पार्टी मानने में कोई दिक्कत नहीं होगी. क्योंकि आपकी पार्टी ने कृपाशंकर सिंह के रूप में एक भिखमंगे को मुंबई प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना रखा है. आपने संजय निरूपम के रूप में एक भिखमंगे को पार्टी का प्रवक्ता बना रखा है. ये दो नाम आपकी पार्टी के इसलिए आपके सामने रखा क्योंकि अन्य उद्योगपतियों, फिल्मी कलाकारों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समाजसेवियों, अधिकारियों की चर्चा मैं इस समय नहीं कर इन समस्य कर्मयोगियों की भावनाएं आहत नहीं करना चाहता.  अगर ऐसा है तो कांग्रेस और आप सभी साधुवाद के पात्र हैं. भिखारियों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाना आज के समय में कम हिम्मत की बात नहीं है. लेकिन राहुल जी, आपसे एक शिकायत करनी है. आपके इन भिखमंगे नेताओं ने कभी भी उत्तर भारतीयों की वकालत सार्वजनिक रूप से नहीं की है. जिस समय शिवसेना की सहयोगी पार्टी भारतीय जनता पार्टी भी उत्तर भारतीयों के पक्ष में आ गई थी, उस समय भी महाराष्ट्र में आपकी पार्टी के भिखारियों ने मुंह बंद रखा था. हां, अभी हाल में संजय निरूपम ने नागपुर में जरूर यह कह कर थोड़ी हलचल पैदा की थी कि अगर उत्तर भारतीय बैठ गए तो मुंबई ठप होजाएगी. इस पर शिवसेना ने मुखर होकर उन्हें उनकी जगह भी दिखा दी थी.रहा सवाल भिखारियों की आपके पार्टी में ताजपोशी की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का, तो आपकी पार्टी कितनी लोकतांत्रिक है, इसका प्रत्यक्ष मिसाल दिल्ली के रामलीला मैदान पर आधी रात शांति से सोये बच्चों, महिलाओं, पुरुषों पर कराये गए सशस्त्र हमले से मिल जाता है. राहुल जी, वह हमला किसी कानून-व्यवस्था का हिस्सा नहीं था, वह हमला किसी रामदेव बाबा तक सीमित नहीं था.वह हमला था, अपने आपको लोकतंत्र से अधिक शक्तिशाली समझने का दंभ. वह हमला था हमारे उन स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग को मटियामेट करने के लिए जिन्होंने लोकतंत्र की परिकल्पना की थी.
खैर राहुल जी, आपकी पार्टी कांग्रेस क्या वाकई वैचारिक रूप से दिवालिया हो गई है? क्या अपनी लाचारी, अपनी कमजोरी छिपाने के लिए देश के एक बड़े तबके को भिखारी जैसे अलंकरण से सम्मानित किया जा सकता है? माना कि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम देश का राजनीति पर दूरगामी परिणाम डालेंगे. माना कि अन्य प्रधानमंत्रियों की तरह उत्तर प्रदेश का राजा बना कर आपकी ताजपोशी की योजना हो. लेकिन राहुलजी, क्या है न कि आपके इस प्रकार के बयान पूरे किए कराए पर पानी फेर देते हैं.  
अब यूपी के युवाओं को महाराष्ट्र जाकर भीख मांगने का बयान आपने क्यों दिया, ये हम आपको बताते हैं. आपकी पार्टी के लोग अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर जी आदि के प्रभाव से खासे आतंकित हैं. आपकी पार्टी के नेताओं को यह समझ में आ गया है कि गांधी-नेहरू परिवार के समान ही चमत्कारिक आकर्षण रखने वाले अन्य लोग भी हो सकते हैं. खास कर अन्ना हजारे के आंदोलन से तो आपकी पार्टी को मुंह छिपाने के लिए भी जगह नहीं मिल रही है. इसीलिए आपके नेता मीडिया के माध्यम से लगातार यह प्रयास कर रहे हैं कि किसी तरह भाषाई या क्षेत्रीय आधार पर फूट डाल कर अन्ना को उत्तर प्रदेश में बौना साबित कर दिया जाए. 
राहुलजी, आपकी पार्टी के लोग फिर गलती कर रहे हैं. आप लोग ये क्यों नहीं समझ रहे हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को मिला समर्थन व्यक्तिगत रूप से अन्ना हजारे को नहीं बल्कि यह सरकार के खिलाफ उमड़ा था. आप जानते हैं न कि जब चार लोगों का दुश्मन एक हो जाता है तो चारों आपस में दोस्त हो जाते हैं. इसका ये मतलब नहीं होता कि चारों के बीच अच्छा तालमेल है. आपके भाषण लिखने वाले ने उत्तर प्रदेश की जनता में महाराष्ट्र के खिलाफ जहर घोलने की कोशिश की, उसे उकसाने की कोशिश की ताकि जब अन्ना यहां चुनाव प्रचार के लिए आएं तो उन्हें यहां की जनता नकार दे. अन्ना मराठी हैं न. वाह क्या दिमाग लगाया आपके लोगों ने. उन लोगों ने ये नहीं सोचा कि उत्तर प्रदेश का एक बड़ा तबका देश के अन्य राज्यों में रहता है. उस तबके से जुड़े लाखों लोग उत्तर प्रदेश में रहते हैं. किसी को भिखमंगा होने का उलाहना देने से तो बेहतर रहता कि आप संविधान के मजबूत धागे से बंधे भारत में क्षेत्रवाद का मामला उठाने वालों की खिलाफत करते. 
इन्हीं उत्तर भारतीय भिखारियों को वो दिन भी याद है जब आपने शिवसेना को चुनौती देते हुए मुंबई की यात्रा की थी. सभी ने आपको हाथोंहाथ लिया था. किसी मराठीभाषी ने भी आपका विरोध नहीं किया था. ऐसा में आपको क्यों कर इस बात की जरूरत आ पड़ी कि आप विखंडन के खतरनाक बीज बोएं. अपसोस, मगर यह हकीकत है राहुल जी कि आपके इस बयान से न सिर्फ उत्तर भारतीयों का सिर नीचा हुआ है बल्कि उन ताकतों का हौसला भी बुलंद हुआ है जो क्षेत्रीयता की समर्थक हैं और इसी के बल पर अपनी राजनीति चला रही हैं.

शनिवार, 12 नवंबर 2011

शनि का राशि परिवर्तन- महासंयोग और परिवर्तन

दत्त गुरु ओम-दादा गुरु ओम।। ......  ओम् शं शनिश्चराय नमः ।।....

शनि साठ वर्षों में तीसरी बार अपनी उच्च राशि तुला में प्रवेश कर रहा है और इस सदी में तो पहली बार। 15 नवंबर 2011 से करीब तीन वर्ष तक शनि अपनी उच्च राशि तुला में रहेंगे। यह राशि परिर्वतन ज्योतिष जगत और उस आधार पर अपने भविष्य और कार्यक्रमों की योजना बनाने वालों के लिए हमेशा विचारणीय रहा है। इनका परिर्वतन चराचर जगत के सभी प्राणियों को प्रभावित करता है।

9 सितंबर 2009 को शनि ने कन्या राशि में प्रवेश किया था। उससे पहले 6 अक्टूबर 1982 को शनि ने तुला राशि में प्रवेश किया था। अब आने वाले सालों में 2041 में शनि देव फिर से तुला राशि में आएंगे।  सौ सालों बाद शनि देव का दुर्लभ महासंयोग बन रहा है। अब सबकुछ बदलने वाला है क्योंकि शनि देव का स्वभाव बदलाव करना होता है। इसी महीने 15 नवंबर को सुबह 10 बजकर 10 मिनट पर शनि देव राशि बदलेंगे और कन्या से तुला राशि में प्रवेश करेंगे और 2 नवंबर 2014 तक इसी राशि में रहेंगे। 

दुर्लभ महासंयोगः इस साल की शुरुआत शनिवार से हुई थी और इस साल का आखिरी दिन भी शनिवार ही है। हिन्दु पंचांगो के अनुसार अभी क्रोधी नाम का संवत्सर चल रहा है इसके  स्वामी शनि देव है। कई विद्वानों के अनुसार डेढ़ सौ साल पहले ऐसा हुआ था कि शनि अपने ही संवत्सर में अपनी उच्च राशि में आया था । तुला राशि शनि की उच्च राशि है ये शनिदेव का प्रिय स्थान होता है। इस राशि में होने से शनि देव शुभ फल देने वाला रहेगा। शनि देव के बदलने से लोगों की सोच में सकारात्मक बदलाव आएंगे। " क्रोधी " संवत्सर में शनि के उच्च राशि में आने से हर काम का तेजी से असर होगा। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग रूक कर शांति से निर्णय लेंगे। शनिदेव न्यायप्रिय है इसलिए न्यायपालिका की व्यवस्था बदलेगी। सुखद बदलाव देखने को मिलेंगे। भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। गरीब देशों की अर्थव्यवस्था सुधरेगी। शनिदेव भारत को बदल देंगे।
 
शनि की यात्राः खगोलविज्ञान की दृष्टि से शनि 1 लाख, 20 हजार, 500 किमी व्यास वाला दूसरा बड़ा ग्रह है। दस किमी प्रति सेकंड की गति से यह ग्रह सूर्य से करीब डेढ़ अरब किमी दूर रहते हुए 29 वर्ष में एक चक्कर लगाता है। फलित ज्योतिष के अनुसार यह पृथ्वी पर और सौरमंडल में आने वाले सभी जड़चेतन पदार्थों को इस तरह प्रभावित करता है कि वह साफ दिखाई दे शास्त्रों के अनुसार शनि भगवान सूर्य और माता छाया के पुत्र हैं। इनके भाई यम देव ने शिव की दस हजार वर्षों तक तपस्या कर पितृलोक का राज्य और मरणोपंरात दंड देने का अधिकार प्राप्त किया था।

शनि को इसी लोक में प्राणियों को जीते जी उनके कर्मों का दंड पुरस्कार देने का अधिकार पहले से प्राप्त था। क्योंकि न्याय के मामले में शनि देव को बहुत कठोर दंड देने वाला न्यायाधीश माना गया है।

फलित ज्योतिष में शनि का शरीर लंबा, आंखें लाल और भूरे रंग की, दांत बड़े बड़े, केश कड़े, और आकृति डरावनी बताई गई है। ये मकर पृथ्वी तत्व और कुंभ वायु तत्व राशि के स्वामी होते हैं। मेष राशि में नीच और तुला राशि में उच्च होते हैं। शुक्र और बुध से शनि मित्रवत भाव रखते हैं। सूर्य, मंगल और चंद्रमा को अपने शत्रु मानते हैं। और गुरु के प्रति उदासीन रहते हैं। इनके दस वाहन बताए गए हैं। जिनमें अश्व, गज, हिरन कुकुर, सियार, सिंह कौआ, और गिद्ध हैं। इनमें गिद्ध को प्रधान वाहन माना है।

आध्यात्म ज्योतष में गिद्ध शब्द ता अर्थ अत्यधिक लोलुपता, वासना तृप्ति की व्यग्रता, ऐंद्रिय भोग की आतुरता और इन सबमें अतृप्ति का अनुभव हो। गिद्ध को शनि का वाहन माना है। अध्यात्म ज्योतिष में गिद्ध शब्द का अर्थ अत्यधिक लोलुपता, वासना तृप्ति की व्यग्रता, भोग की आतुरता और इन सबमें अतृप्ति का अनुभव है। गिद्ध को शनि का वाहन बनाने का उद्देश्य अतृप्त वासनाओं द्वारा शनि के मूल लक्ष्य की प्राप्ति और आध्यात्मिक दायित्व की सिद्धि है। शनि के प्रभाव से श्मशान वैराग्य होता है।

जिस किसी भी राशि पर शनि देव विचरण करते हैं, उस राशि सहित पिछली और अगली राशि पर इनकी साढ़ेसाती का प्रभाव रहता है। इस तरह एक राशि पर साढ़े सात वर्ष तक शनि का अच्छा बुरा प्रभाव होता है। वैसे सामान्य दिनों में भी शनि सभी जातकों को उनके जन्म नक्षत्रों के अनुसार दंडित और पुरस्कृत करता रहता है। लेकिन इस चक्र में लगभग तीस वर्ष के अंतर से बड़ा बदलाव आता है। 15 नवंबर से आ रहा परिर्वतन का दौर उसी तरह का है।

अपनी साढ़ेसात वर्ष की इस यात्रा के दौरान शनि ये जातक को दो हजार दिनों तक प्रभावित करते हैं। इस अवधि में 700 दिन तक कष्टकारी, इतने ही दिन दारुण दुख देने वाले और बाकी दिन अनुकूल समझे जाते हैं। जातकों से अपेक्षा की जाती है कि वे ग्रहों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपने आचार विचार को संतुलित और संयमित रखें पिछले कर्मों के दंड विधान में तो कोई कोताही नहीं है। लेकिन अपने आचार विचार को शुद्ध सात्विक रखकर दंड की कठोरता को कुछ नरम किया जा सकता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आरंभ में 100 दिन तक साढ़ेसाती प्राणी के मुख रहती है। इन दिनों वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए। मुख और गले से संबधित विकार से बचें। बाद में शनि का प्रभाव दाहिनी भुजा, सीना, पेट और बाईं भुजा पर होते हुए मस्तक तक जाता है। वहां से एकदम शरीर के निचले हिस्सों पर साढ़े साती का प्रभाव होता है। यह प्रभाव जातक के अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार दंड का विधान करता है। दंड का विधान इसलिए कि भूल चूक तो सभी से होती है।

अनजाने हुई हो तो भी उसका दंड तो मिलेगा ही, कांटे पर जानबूझकर पैर रखें या अनजाने में चुभेगा तो सही। सत्कर्म का पुरस्कार यह है कि बुरे कर्मों का दंड मिलते समय विधि का विधान उपचार और पथ्य की व्यवस्था भी करता चलता है। इसलिए शनि का प्रभाव परेशान करने के बजाय पुरस्कृत करता प्रतीत होता है।

राशियों पर प्रभाव
15 नंवबर के बाद शनि की स्थिति के अनुसार विभिन्न राशियों (जन्म के अनुसार) का हाल

मेष - सातवें शनि जीवन साथी से और ज्यादा प्रेमपूर्ण होने की प्रेरणा देते हैं। दोनों एक दूसरे के लिए भाग्यवर्धक रहेंगे। धर्म कार्यों में रुचि बढ़ेगी।
वृषभ - पर्याप्त आमदनी की संभावना है, लेकिन खर्च में सावधानी बरतें। मुकदमों और प्रशासनिक कामों में सफलता मिलेगी। संपर्क क्षेत्र बढ़ेगा।

मिथुन - कठिन परिश्रम के लिए तैयार रहें। बाधाओं को पार कर सकेंगे। आपसी व्यवहार में सद्भावपूर्ण रहें। जरूरतमंदों की मदद करते रहें।

कर्क - शनि की ढय्या भी होगी। अपने कार्य को ईमानदारी से करेंगे तो वांछित सफलता मिलेगी। शनिस्तोत्त्र अथवा शनि कवच का पाठ करें।

सिंह -जातक शनि की साढ़ेसाती से मुक्त हो रहे हैं। सभी रुकावटें दूर होंगी। संभावनाओं के नए क्षितिज खुलेंगे। अवसर का सदुपयोग करें।

कन्या - आकस्मिक धनलाभ का योग बन रहा है। अप्रत्याशित परिणाम सामने आएंगे। धर्म पर अडिग रहें। सफलता का मार्ग प्रशस्त होगा।

तुला - आपके जीवन में नई भूमिका की शुरुआत होगी। मकान, वाहन और और भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। मान प्रतिष्ठा की भारी वृद्धि होगी।

वृश्चिक - खर्च बढ़ेगा। इसी वर्ष साढ़ेसाती का आरंभ भी होगा। स्वास्थ्य पर ध्यान दें। शनिवार को पीपल की आराधना से ऊर्जा मिलेगी।

धनु- कामयाबी के मार्ग में आने वाली रुकावटें दूर होंगी। बड़े भाइयों संतान के प्रति आदर सत्कार का भाव रखें। पद और गरिमा बढेगी।

मकर - अच्छे परिर्वतन और फेरबदल की संभावना है। सफलताओं का सिलसिला शुरू होगा। माता पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

कुंभ - धर्म और आध्यात्म की तरफ रुझान बढ़ेगा। जिम्मेदारियां बढ़ेंगी। परिवार में सामंजस्य बनाएं। परेशानियां आएंगी तो आसानी से चली जाएंगी।

मीन - शनि की ढैय्या आरंभ हो रही है। चुनौतिपूर्ण जिम्मेदारियों के लिए तैयार रहें। उन्नति के नए अवसर मिलने की संभावना है।

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

नहीं थमेगा अब ये आंदोलन

नहीं थमेगा अब ये आंदोलन


टीम अन्ना के सदस्य अब यह आरोप लगा रहे हैं कि सरकार टीम अन्ना को तोड़ने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है. केजरीवाल के इस आरोप में कितनी सत्यता है, ये तो वही जानें पर मीडिया को पेड न्यूज दिए जाने की बात पर तो इतना ही कहा जा सकता है कि अब सरकार से संबंधित मीडिया की पूरी न्यूज ही कम या अधिक मगर पेड होती है. नहीं तो सूचना मंत्रालय, पब्लिसिटी बाले गाहेबगाहे मीडिया की ओर आंखे नहीं तरेरते. और मीडिया खासकर समाचार पत्रों को सूचना व जनसंपर्क अधिकारियों के साथ गलबहियां करते नहीं देखा जाता. खैर, सबके अपने स्वार्थ हैं. ये बहस लंबी है.
आज सवाल अन्ना हजारे के आंदोलन का है जिसने जनता में सरकार के विरोध की स्वस्फूर्त चिंगारी पैदा कर दी थी. एक बात पक्की है कि अन्ना हजारे द्वारा शुरू किया गया आंदोलन अब थमने वाला नहीं है. यह चिंगारी जो जनता में सुलगी है, वो जलती रहेगी. आज रात करीब ८.१५ बजे की बात है. मैं रात्रि भोजन के पश्चात टहलने निकला था. कुछ दवाओं की जरूरत थी तो एक दवा दुकान पर रुक गया. ग्राहकों के कारण मेरा नंबर आने में विलंब था. इस बीच दुकान के बगल में रहने वाली कुछ महिलाओं को आपस में बात करते देखा. बार-बार अन्ना हजारे का नाम आने पर स्वाभाविक रूप से उधर ध्यान गया. उनकी बातों का कोई सार नहीं था लेकिन बात हो तो रही थी अन्ना हजारे के आंदोलन की. बात हो रही थी सरकार कहां गलत है. मेरा चौंकना लाजमी था. जिस स्थान की बात मैं कर रहा हूं, वहां एक वृद्धा और दो अन्य लगभग ५५ साल की महिलाओं का इस तरह देश की राजनीति पर विचार-विमर्श करना वाकई चौंकाने वाला था. जिन महिलाओं को आज तक महानगर पालिका के चुनाव के समय भी चर्चा करते नहीं देखा, उन्हें आज देश की राजनीति पर चर्चा करते देख रहा हूं. ऐसा ही आश्चर्य तब होता है जब घर में अपनी माताजी को इन दिनों काला धन, भ्रष्टाचार, रामदेव बाबा, अन्ना हजारे जैसे मुद्दों पर चर्चा करते देखता हूं.  तो भी आश्चर्य होता है.  पहले जो लोग मिलते थे, वो देश का हाल-चाल पूछ लिया करते थे, क्योंकि वे एक पत्रकार से यही अपेक्षा रखते थे. आज जब वही लोग मिलते हैं तो न सिर्फ इस आंदोलन की गहराई जानने को इच्छुक रहते हैं, बल्कि ये लोग अपने विचार से भी अवगत कराते हैं. मानो वे देश की मीडिया को अपना विचार बता रहे हों.
इसलिए अब इस शंका की कोई संभावना नहीं है कि यह आंदोलन चलेगा या नहीं. आंदोलन तो चलेगा. भले ही लोग सड़क पर न उतरें मगर नदी के प्रवाह का अंडर करंट कोई नहीं रोक सकता. मीडिया में भी इस तरह खबरें तब तक छाई रहेंगी, जब तक मामला शांत नहीं दिखेगा. यह बात अलग है कि अब इस आंदोलन में अन्ना हजारे या उनकी टीम की क्या भूमिका रहती है. सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का सबसे पसंदीदा विषय आज भी आंदोलन और उससे जुड़े मुद्दों पर. जितने कमेंट्स पर होते हैं, उतने अन्य में नहीं. इसमें उन कमेंट्स को शरीक नहीं किया जा सकता, जो वाह-वाह, क्या खूब, बहुत खूबसूरत जैसे शब्दों से सजे होते हैं और मात्र संबंधों की प्रगाढ़ता के लिए किए जाते हैं. मैंने बार-बार यह महसूस किया है कि अन्ना हजारे को मिला समर्थन अन्ना का नहीं था बल्कि यह सरकार की हिटलशाही, अलोकतांत्रित कार्यप्रणाली, राजनेताओं की मनमानी, भ्रष्टाचार की अति जैसी मुद्दों के खिलाफ था. इसे भी कुछ लोगों ने संविधान को बदलने की साजिश करार देकर बदनाम करने का कुचक्र रचा था. अपने समर्थकों तक तो उनका प्रयास सफल रहा था लेकिन वृहद पैमाने पर वो कुछ नहीं कर पाए थे.
दरअसल इस आंदोलन को अन्ना हजारे का आंदोलन मानने की भूल करना ही गलत है. सरकार एक ही भूल बार-बार किए जा रही है. वो अन्ना हजारे की टीम पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. सरकार अब भी दिल से यह मानने को तैयार नहीं है कि यह आंदोलन आम आदमी का है. यह देश की प्रताड़ित जनता का है. आजादी के बाद यह पहला आंदोलन है जिसमें समाज के सभी वर्ग, उम्र, जाति, संप्रदाय के लोगों ने भाग लिया. इस आंदोलन ने उन लोगों में भी एक बार फिर चैतन्य पैदा किया है जो गत एक दशक से जनांदोलनों से विमुख हो गए थे. वे सभी लामबंद हो रहे हैं. जिस युवा वर्ग को हम राजनीति से पूरी तरह विमुख मान चुके थे, उसने इसमें अपना विस्मयकारी योगदान दिया. जिस विपक्ष को सोया हुआ मान लिया गया था, वो अब मुखर है. भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी कहीं भी हमला बोलने से परहेज नहीं कर रहे हैं. मीडिया इससे संबंधित समाचारों को प्रमुखता से प्रकाशित कर रहा है. स्वामी अग्निवेश बिग बास में शामिल हो रहे हैं. यह सब उसी जनता को इनकैश करने के लिए हो रहा है जो अन्ना के आंदोलन का समर्थन कर रही है.

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

Shri Ram Dhun

Shri Ram Dhun

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
के ज़िन्दगी तेरी जुल्फों
की नरम छांव में गुजर न पाती
तो शादाब हो भी सकती थी
ये तीरगी जो मेरे जीस्त का मुकद्दर है
तेरी नजर की शुआओं में खो भी सकती थी

अजब न था के मैं बेगान-इ-आलम हो कर
तेरे ज़माल की रानाइओ मे खो रहा था
तेरा गुदाज़ बदन तेरे नीम बार आँखे
इन्ही फसानो में मैं खो रहा था

पुकारती मुझे जब तल्खायीं ज़माने की
तेरे लबो से हालावत के घूंट पी लेता
हयात चीखती फिरती बारहना सर, और मैं
घनेरी जुल्फों के साए मे जी लेता

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
के तू नहीं, तेरा गम ,तेरी जुस्तुजू भी नहीं
गुजर रही है कुछ इस तरह ज़िन्दगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं

न कोई राह, न मंजिल ,न रौशनी का सुराग
भटक रही है अंधेरो में ज़िन्दगी मेरी
इन्ही अंधेरो में रह जाऊंगा कभी खोकर
मै जानता हूँ मेरी हम नफस, मगर युहीं
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है,,,,,,,

- साहिर लुधियानवी

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

कहकहे




कहकहे लगाते हैं
ठठा के हंसते हैं
मुझे मेरी मजबूरी
याद दिलाते हैं

फिर भी नहीं कर पाते
मजबूर मुझे
झकझोर भी नहीं पाते
हैं मुझे

कहीं कहीं फौलाद
का कवच चढ़ा है
क्योंकि मारने वाले से
बचाने वाला बड़ा है

अपनी शानोशौकत का
दिखावा करते हैं
अपनी बुद्धिमत्ता का
ढिंढोरा पीटते हैं

हम करें सो कायदा
पर यकीन है उन्हें
अपनी औकात पर
झूठा घमंड है उन्हें

हम भी अपनी सोच को
जिंदा रखते हैं
वो जिन्हें बदलने को
मजबूर करते हैं

काश उन्हें कायदे से
कायदे का भान हो जाए
झूठा घमंड हमेशा
के लिए टूट जाए......

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

अन्ना इफेक्टः देशमुख फिर मुख्यमंत्री, चव्हाण की पीएमओ वापसी जल्द

राजधानी दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को शीघ्र ही वापस दिल्ली बुलाकर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया जाएगा. इनकी जगह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख को फिर से राज्य के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी.

मालूम हो कि आदर्श सोसाइटी घोटाले में कथित लिप्तता के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को हटा कर दिल्ली से पृथ्वीराज चव्हाण को मुख्यमंत्री पद पर बैठाया गया था. हमेशा केंद्र की राजनीति में सक्रिय पृथ्वीराज चव्हाण अभी तक महाराष्ट्र की राजनीति में स्वयं को असहज ही महसूस करते रहे हैं. उनके निकटवर्ती इस बात की पुष्टि करेंगे कि पृथ्वीराज चव्हाण मुंबई में रम नहीं पा रहे हैं. दूसरी ओर हाल के दिनों में बड़े घोटालों से घिरी केंद्र सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री कार्यालय ऐसे मामलों से निपटने में विफल होता रहा है. पृथ्वीराज चव्हाण महाराष्ट्र जाने के पूर्व केंद्रीय मंत्री के रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े थे. सभी जानते हैं कि चव्हाण न केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के भी विश्वस्त रहे हैं. हालिया घोटालों के कारण प्रधानमंत्री को चव्हाण की कमी खलती रही है. प्रधानमंत्री कार्यालय ऐसे मामलों से निपटने में पूरी तरह विफल रहा है. यह चर्चा अब आम है कि अगर पृथ्वीराज चव्हाण रहते तब प्रधानमंत्री कार्यालय को ऐसी शर्मनाक स्थिति से नहीं गुजरना पड़ता. यही नहीं चव्हाण के मुंबई जाने के बाद प्रधानोमंत्री कार्यालय और १० जनपथ के बीच संबंध भी काफी बिगड़ गए. संवादहीनता की स्थिति ऐसी पैदा हुई कि सत्ता के दोनों केंद्र कभी-कभी परस्पर उल्टी दिशा में चलते दिखे. प्रधानोमंत्त्री मनमोहन सिंह की तरह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी पृथ्वीराज चव्हाण की कमी खलने लगी. हालांकि पृथ्वीराज चव्हाण की दिल्ली वापसी का विरोध करने वालों की भी कमी नहीं है. किन्तु दिल्ली में चव्हाण की प्रमाणित उपयोगिता के मद्दे नजर प्रधानमंत्री और कांग्रेस आध्यक्ष दोनों की इस बात पर सहमति बन गई है कि पृथ्वीराज चव्हाण को दिल्ली वापस प्रधानमंत्री कार्यालय में बुला लिया जाए. दूसरी ओर नए मुख्यमंत्री के लिए विलासराव देशमुख के नाम पर भी सहमति बन गई है. देशमुख भी मुंबई से दिल्ली आकर कभी सहज नहीं हो पाए. महाराष्ट्र की राजनीति में वापसी के लिए वे हमेशा प्रयत्नशील रहे. भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के आंदोलन ने उनके लिए रास्ता खोल दिया. अन्ना हजारे की लोकप्रियता और कांग्रेस विरोधी तेवर से परेशान कांग्रेस नेतृत्व ने विलासराव देशमुख को पुनः मुख्यमंत्री पद सौंपने का निर्णय लिया तो इसलिए कि वे अन्ना हजारे के काफी निकट रहे हैं. रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के अनशन को समाप्त करवाने में विलासराव देशमुख ने केंद्र सरकार की ओर से निर्णायक भूमिका अदा की थी. कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख को वापस भेजे जाने से वे अन्ना हजारे को कांग्रेस विरोधी रवैये से हटाने में सफल हो पाएंगे. अन्ना हजारे ने पूर्व में भी हमेशा विलासराव देशमुख की बातों को वरीयता दी है. कांग्रेस नेतृत्व नहीं चाहता कि अन्ना हजारे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस विरोधी अभियान चलाएं. अगले वर्ष उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस नेतृत्व काफी चिंतित है. चूंकि उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर होगी, कांग्रेस आलाकमान हर संभव कोशिश करेगा कि अन्ना हजारे वहां कांग्रेस के खिलाफ चुनाव प्रचार न करें. इस काम के लिए विलासराव देशमुख से अधिक योग्य व कुशल फिलहाल कांग्रेस में अन्य कोई नहीं है. इसी कारण कांग्रेस नेतृत्व ने महाराष्ट्र की गद्दी पुनः विलासराव देशमुख को सौंपने का फैसला किया है.

शहरी निकायों के चुनाव

इसी के साथ महाराष्ट्र में सात म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के चुनाव भी सर पर हैं. इन्हें देखते हुए भी अन्ना के विरोधी तेवरों को शांत करना कांग्रेस नेतृत्व की मजबूरी है. इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महाराष्ट्र में विपक्ष की महत्वपूर्ण घटक शिवसेना के साथ पहले से ही अन्ना का छत्तीस का आंकड़ा रहा है. हाल के दिनों में शिवसेना जिस तरह से अन्ना के विरोध में मुखरित हुई है, उससे अब प्रदेश में कांग्रेस को लगता है कि वह किसी तरह इस मुखालफत को भुना ले. इससे कम से कम महाराष्ट्र में किसी भी प्रकार की किरकिरी होने से बच जाएगी. वैसे भी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नितिन गड़करी का गृहनगर नागपुर की महानगर पालिका में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं. नागपुर में इस समय भाजपा का शासन है. और अगले लोकसभा चुनाव में गडकरी के यहां से चुनाव लड़ने की पूरी संभावना है. ऐसे में कांग्रेस चाहेगी कि कुछ ऐसा हो जाए जिससे गड़करी का ध्यान देश की राजनीति से भंग हो और वो राज्य में सीमित हो जाएं. वैसे भी अगर नागपुर में भाजपा हार गई तो कांग्रेस को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर हमला बोलने का मौका जरूर मिल जाएगा.

कभी-कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है....



कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
के ज़िन्दगी तेरी जुल्फों
की नरम छांव में गुजर न पाती
तो शादाब हो भी सकती थी
ये तीरगी जो मेरे जीस्त का मुकद्दर है
तेरी नजर की शुआओं में खो भी सकती थी

अजब न था के मैं बेगान-इ-आलम हो कर
तेरे ज़माल की रानाइओ मे खो रहा था
तेरा गुदाज़ बदन तेरे नीम बार आँखे
इन्ही फसानो में मैं खो रहा था

पुकारती मुझे जब तल्खायीं ज़माने की
तेरे लबो से हालावत के घूंट पी लेता
हयात चीखती फिरती बारहना सर, और मैं
घनेरी जुल्फों के साए मे जी लेता

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
के तू नहीं, तेरा गम ,तेरी जुस्तुजू भी नहीं
गुजर रही है कुछ इस तरह ज़िन्दगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं

न कोई राह, न मंजिल ,न रौशनी का सुराग
भटक रही है अंधेरो में ज़िन्दगी मेरी
इन्ही अंधेरो में रह जाऊंगा कभी खोकर
मै जानता हूँ मेरी हम नफस, मगर युहीं
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है,,,,,,,

- साहिर लुधियानवी

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

मुक्ति..




क्यूं है ये मंजर कि एक इंसान
जिंदा लाश बन गया
उसे तो ये भी ना पता कि
किसकी सजा पा गया


उसने जब अपने अंतः को
टटोला, उसे खंगाला
विचित्र सी आवाजें आने लगीं
तब भी न समझ पाया वो
कि कैसी खता हो गई
ऐसी कोई गलती न की थी
जिससे मिले इतना दर्द
सुकूने जिंदगी का वो मर्म
किस गर्भ में खो गया


कब तक खोजता रहे वो
अपने सपने की मंजिल
कब तक चलता रहे सुदूर
और दूर, बहुत दूर
कब तक मिलता रहे उसे
धोखा, अपमान, दिखावा
क्यों कोई अमर्यादित होकर
सीने पर सवार, करे अट्टहास
झेलते गया वो हर वार
हर होनी पर तर्क देता
अब टूट गया उसका स्व
जमीर उसका बिखर गया

है वो हौसले का पक्का इंसान
अब भी थामे है दामन
सच का, इंसानियत का
मगर कब तक, कब तक
सोचता है वो हर वक्त
एक न एक दिन उसकी
आत्मा ही मार दी जाएगी

अच्छा है, वह जन्म-मरण के
खेल से ही मुक्त हो जाएगी....

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

दोस्ती का सिला

आज मेरा मजाक उड़ा ले जीभर
मगर मेरी गुफ्तगूं रुक नहीं सकती

गिला नहीं गर तू गैर से इश्क कर ले
हिकयते खूंचका मिटा नहीं सकती

तू मुझे ख्वाब समझ भुला दे मगर
ख्वाबों से रिश्ता तोड नहीं सकती

हुस्न पे नाज तुझे जरूर है मगर
उसे ताउम्र कायम रख नहीं सकती

खौफ आता है मुझे तकसीर पे 'अंजुम'
मेरी आह सिला-ए-गौश मांग नहीं सकती।

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

प्रेम ज्ञान जरूरी है...

1987 में लिखी कविता.. अब जमाना हाईटेक हो गया है...
मगर प्रेम ज्ञान की जड़ें गहराती जा रही हैं.

प्रेम ज्ञान जरूरी है...

एक शाम कुछ ऐसी गुजरी
मित्र मिलन की इच्छा पनपी
तैयार हो झट पहुंचा घर उसके
वो बैठा था घर की छत पे
कुछ गंभीर कुछ भावविभोर सा
निगाह बिछाए अगले घर पे

मैंने कहा- जनाब, शाम के वक्त
सब टहल रहे हैं
मगर आप घर की छत पर
क्या कर रहे हैं

तभी मुझे सामने मकान से
कर्कश संगीतयुक्त गीत सुनाई दिए

मैंने कहा- कितने निर्लज्ज लोग हैं
अपने संगीत प्रेम का परिचय
कितनी निर्भिकता से दे रहे हैं

मित्र ने कहा- आपके विचार गलत हैं
दरअसल हमारी अबोध नाबालिग प्रेमिका
द्वारा हमें प्रेम संदेश भेजे जा रहे हैं

मैंने कहा- ये आदान-प्रदान
कब से चल रहे हैं

उसने कहा-
जब से फलां फिल्म थियेटर में आई है
हमारी सूरत उसके दिल में उतर आई है
मैंने कहा- क्या शादी का इरादा है

उसने कहा-
क्या वाहियात प्रश्न कर दिया
शाम का मजा ही किरकिरा कर दिया
अगर ऐसा होता तो तुझे
अभी क्यों बताता
सीधे शादी का निमंत्रण
ही न भिजवाता

शायद तुझमें प्रेम ज्ञान की कमी है
खैर मैं तुझे प्रेम ज्ञान का अर्थ
समझाता हूं
तेरे जीवन को यथार्थ में
तब्दील करता हूं

"कि मनुष्य जब युवा होता है
उसे जिंदगी से जूझना होता है
अतः उसका सर्वांगीण विकास होना चाहिए
उसे जिंदगी के हर पक्ष का ज्ञान होना चाहिए

वैसे तो प्रेम रस के कवियों और शायरों ने
इस पर काफी रिसर्च किए हैं
फिर भी प्रैक्टिकलविहीन उनके
रिसर्च अब तक अधूरे हैं
मैं प्रेम ज्ञान का नया अध्याय
शुरू कर रहा हूं
इसे प्रैक्टिकलयुक्त कर नई दिशा
दे रहा हूं

ये घर की छत मेरी प्रयोगशाला है
सामने बैठी कन्या मेरी प्रयोगबाला है
उसने कहा-
तू भी यंग नालेज पर रिसर्च शुरू कर दे
अपनी जिंदगी को संपूर्ण ज्ञान से भर ले
वरना समय बीत गया तो पछताएगा
शादी के बाद बीवी को क्या मुंह दिखाएगा
तेरी बीवी तुझे प्रेम ज्ञान का अर्थ समझाएगी
क्योंकि वो भी कभी किसी की प्रयोगबाला रही होगी"

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

एक मुलाकात


याद गए आज मुझे फिर वो
बीते लम्हे प्यार के
वो यादें, वो शरारतें , किस्से
उनके इंतजार के
मिलने की कसक के साथ
हमारा मीलों दूर जाना
फिर मोबाइल पर हमारी
पल-पल की खबर लेना
हमें भी मिलने की चाहत
ऐसी कि खुद को भूल जाना
फिर मुलाकात के उन क्षणों में
ऐसे खो जाना ऐसे
बिन मौसम बरसात कर
प्रकृति भी रजामंद हो जैसे
फिर कुछ गिलेशिकवों की सौगातें
साथ में कुछ पल फुर्सत के
ऐसे कट जाते हैं मानो
मुलाकात ही ना हुई हो
विदाई का बोझ लिए हो जाना विदा
दोनों के रास्ते एक दूसरे से जुदा
मगर मुलाकात का वो ठहराव
अब भी है वो सुखद एहसास
इसे ही संजोये रखना है
अब उम्र भर हमें
अब रास्ते हो गए जुदा मानो
मुलाकात ही ना हुई हो.....



मां दुर्गा का नवां स्वरूप मां सिद्धिदात्री

।। दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

मां दुर्गा का नवां स्वरूप सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है और वे अपने भक्तों को आठों प्रकार की सिद्धियां देने में सक्षम हैं। देवी प्राण में ऎसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शंकर ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी चार भुजाएं हैं, दाई ओर की दो भुजाओं मे गदा और चक्र और बाई ओर की दो भुजाओं में पद्म और शंख सुशोभित हैं। इनके सिर पर सोने का मुकुट और गले में सफेद फूलों की माला है। ये कमल पर आसीन हैं और केवल मानव ही नहीं बल्कि सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर सभी इनकी आराधना करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्रा के नवें दिन इनकी पूजा की जानी चाहिए।
सिद्ध गन्धर्व यज्ञद्यैर सुरैर मरैरपि |
सेव्यमाना सदा भूयात्‌ सिद्धिदा सिद्धि दायिनी ||
नवरात्र के अंतिम दिन माता सिद्धिदात्री की आराधना इस मंत्र से करना चाहिए। नवरात्र के अंतिम दिन देवी दुर्गा की नवीं शक्ति और भक्तों को सब प्रकार की सिद्धियां प्रदान करनेवाली मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार माता अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ प्रकार की सिद्धियां प्रदान करनेवाली हैं, जिस कारण इनका नाम सिद्धदात्री पड़ा। अपने लौकिक रूप में मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल के पुष्प पर आसीन हैं। आस्थावान भक्तों की मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ माता की उपासना करने से उपासक को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था और इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था, जिस कारण भोलेनाथ अर्द्धनारीश्वर नाम से विख्यात हुए।
अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

मां दुर्गा का आठवां स्वरूप

।। दत्त गुरु ओम, दादा गुरु ओम्।।


या देवी सर्वभूतेषु,
शांति रूपेण संस्थिता:,
नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः॥


नवरात्रि के आठवें दिन माँ के आठवें स्वरूप “महागौरी” की पूजा की जाती है, अर्थात “महागौरीति च अष्टमं” .
माँ का वर्ण पूर्णतः गौरवर्ण है.इनके समस्त वस्त्र और आभूषण श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं है। माँ के ऊपर का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाले दाहिने हाथ मी त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू है तथा नीचे का हाथ वरमुद्रा में है। माँ की मुद्रा अत्यंत शांत है और ये वृषभ पर आरूढ़ हैं।

माँ महागौरी की कृपा से साधक को अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सैट की और प्रेरित कर असत का विनाश करती हैं। माँ का ध्यान स्मरण ,पूजन -आराधन भक्तों के लिए सर्वाधिक कल्याणकारी है।

ग्रहस्थों के विशेष मंगलकारी माँ महागौरी की उपासना।

नवरात्र के आठवें दिन मां के आठवें स्वरूप महागौरी की उपासना की जाती है। यही देवी शताक्षी हैं, शकुंभरी हैं, त्रिनेत्री हैं, दुर्गा हैं, मंशा हैं और चंडी हैं। इस दिन साधक विशेष तौर पर साधना में मूलाधर से लेकर सहस्रार चक्र तक विधि पूर्वक सफल हो गये होते हैं। उनकी कुंडलिनी जाग्रत हो चुकी होती हैं तथा अष्टम् दिवस महागौरी की उपासना एवं आराधना उनकी साधना शक्ति को और भी बल प्रदान करती है। मां की चार भुजाएं हैं तथा वे अपने एक हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए हैं, दूसरे हाथ से अभय मुद्रा में हैं, तीसरे हाथ में डमरू सुशोभित है तथा चौथा हाथ वर मुद्रा में है। मां का वाहन वृष है। अपने पूर्व जन्म में मां ने पार्वती रूप में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी तथा शिव जी को पति स्वरूप प्राप्त किया था। मां की उपासना से मन पसंद जीवन साथी एवं शीघ्र विवाह संपन्न होगा। मां कुंवारी कन्याओं से शीघ्र प्रसन्न होकर उन्हें मन चाहा जीवन साथी प्राप्त होने का वरदान देती हैं। इसमें मेरा निजी अनुभव है मैंने अनेक कुंवारी कन्याओं को जिनकी वैवाहिक समस्याएं थी उनसे भगवती गौरी की पूजा-अर्चना करवाकर विवाह संपन्न करवाया है। यदि किसी के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो वह भगवती महागौरी की साधना करें, मनोरथ पूर्ण होगा।

साधना विधान- सर्वप्रथम लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित करें तदुपरांत चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें तथा यंत्र की स्थापना करें। मां सौंदर्य प्रदान करने वाली हैं। हाथ में श्वेत पुष्प लेकर मां का ध्यान करें।

ध्यान मंत्र -

श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभम् दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

ध्यान के बाद मां के श्री चरणों में पुष्प अर्पित करें तथा यंत्र सहित मां भगवती का पंचोपचार विधि से अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें तथा दूध से बने नैवेद्य का भोग लगाएं। तत्पश्चात् ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। मंत्र की तथा साथ में ॐ महा गौरी देव्यै नम: मंत्र की इक्कीस माला जाप करें तथा मनोकामना पूर्ति के लिए मां से प्रार्थना करें। अंत में मां की आरती और कीर्तन करें।

मां दुर्गा का सातवां स्वरूप कालरात्रि

।। दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।।

मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को 'कालरात्रि' कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक होता है, लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं, इसलिए इन्हें 'शुभंकरी' भी कहा जाता है।

ये अपने महाविनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करती हैं। विनाशिका होने के कारण इनका नाम कालरात्रि पड़ा। आकृति और सांसारिक स्वरूप में यह कालिका का अवतार यानि काले रंग-रूप वाली, अपने विशाल केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नज़र आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर और दूसरे हाथ में खड्ग-तलवार से युद्ध स्थल में उनका नाश करने वाली कालरात्रि सचमुच अपने विकट रूप में नज़र आती हैं।

कालरात्रि की सवारी गधर्व यानि गधा है, जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है। वह निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। भक्तों पर कालरात्रि की असीम कृपा रहती है और उन्हें वह हर तरफ से रक्षा प्रदान करती हैं। भक्तों को कालरात्रि से भय नहीं लगना चाहिए। यह रात तो ऐसे दुष्टों और पापियों के लिए है, जिसने अधर्म को ही अपना धर्म बना रखा है।

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहसार' चक्र में स्थित रहता है। इनके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: मां कालरात्रि के रूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं, इससे साधक भयमुक्त हो जाता है।

उपासना मंत्र

एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।

वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

कांग्रेसी मायाजाल में दफ़न शास्त्री की मौत


साप्ताहिक विज्ञापन की दुनिया, नागपुर के १० अप्रैल के अंक में प्रकाशित

पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य हमेशा से भारत की जनता के लिए रहस्य ही रहा है। अब यह रहस्य और गहरा गया है। भारत सरकार सुभाषचंद्र बोस और लालबहादुर शास्त्री जैसे महापुरुषों के जीवन को इतना रहस्यमय क्यों मानती है? क्या इसकी वजह यह है कि अगर रहस्य उजागर कर दिए गए तो देश का इतिहास फिर से लिखना प‹डेगा और शास्त्रीजी और नेताजी उसमें जवाहरलाल नेहरू से भी ब‹डे नायक बन कर उभरेंगे? कांग्रेस को गांधी-नेहरू वंश के बाहर का नायक पसंद नहीं है। वह तो फिरोज गांधी को भी भूल गई है जिनकी पत्नी प्रधानमंत्री बनीं, बेटा प्रधानमंत्री बना और बहू सोनिया गांधी आज की तारीख में देश की सबसे ब‹डी नेताओं में से एक हैें। कांग्रेस ने सदैव अपने आभामंडल के अनुसार ही इतिहास को तो‹डामरो‹डा है। अब लालबहादुर शास्त्री के परिवार के सदस्यों खासकर शास्त्री की बेटी सुमन qसह के बेटे सिद्धार्थ qसह ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत भारत सरकार से मांगी गई जानकारी को यह कहकर नहीं दिए जाने को गंभीरता से लिया है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जु‹डी जानकारी को सार्वजनिक किया जाएगा, तो इसके कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान और देश में ग‹डब‹डी हो सकती है।

१० जनवरी १९६६ ! अहम दिन और ऐतिहासिक तारीख ! पाकिस्तान के नापाक इरादों को हिमालय की बर्फ और थार के रेगिस्तान में दफनाने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने सोवियत संघ की पहल पर एक ऐतिहासिक कारनामे पर अपनी मुहर लगा दी। इसकी चर्चा पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। सच मानें तो दुनियाभर के देश अचम्भित नजरों से देख रहे थे। इस अजीम शख्सियत-भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को! इस सामान्य कद-काठी और दुबली काया वाली शख्सियत में साहस का अटूट माद्दा किस कदर भरा था। इन्होंने देश की बागडोर संभालने में जिस समझदारी और दूरंदेशी वाली सूझ-बूझ का परिचय दिया, वह ऐतिहासिक है। शास्त्रीजी ने अपने जिन फौलादी इरादों से पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी वह पाकिस्तान के लिए कभी न भूलने वाला एक सबक है।शास्त्रीजी की मौत के संबंध में आधिकारिक तौर पर जो जानकारी जनता तक पहुंची है, उसके अनुसार ११ जनवरी, १९६६ को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत दिल का दौरा प‹डने से उस समय हुई थी, जब वह ताशकंद समझौते के लिए रूस गये थे। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है। ताशकंद में भारत-पाक समझौता करने के लिए लगभग बाध्य किए गए भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की वहां के एक होटल में आधी रात को दिल का दौरा प‹डने से हुई मौत को भारत सरकार एक राजकीय रहस्य मान कर चल रही है।दिवंगत प्रधानमंत्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने कहा कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री उनके पिता ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकप्रिय नेता थे। आज भी वह या उनके परिवार के सदस्य कहीं जाते हैं, तो हमसे उनकी मौत के बारे में सवाल पूछे जाते हैं। लोगों के दिमाग में उनकी रहस्यमय मौत के बारे में संदेह है, जिसे स्पष्ट कर दिया जाए तो अच्छा ही होगा।दिवंगत शास्त्री के पोते सिद्धार्थनाथ qसह ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने देश में ग‹डब‹डी की आशंका जताकर, जिस तरह से सूचना देने से इंकार किया है, उससे यह मामला और गंभीर हो गया है। उन्होंने कहा कि हम ही नहीं, बल्कि देश की जनता जानना चाहती है कि आखिर उनकी मौत का सच क्या है। उन्होंने कहा कि यह भी हैरानी की बात है कि जिस ताशकंद समझौते के लिए पूर्व प्रधानमंत्री गए थे, उसकी चर्चा तक क्यों नहीं होती है। उल्लेखनीय है कि सीआईएज आई ऑन साउथ एशिया के लेखक अनुज धर ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत सरकार से स्व. शास्त्री की मौत से जु‹डी जानकारी मांगी थी। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर सूचना सार्वजनिक करने से छूट देने की दलील दी है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जु‹डे दस्तावेज सार्वजनिक किए गए, तो इस कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान, देश में ग‹डब‹डी और संसदीय विशेषाधिकार का हनन हो सकता है। सरकार ने यह स्वीकार किया है कि सोवियत संघ में दिवंगत नेता का कोई पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था, लेकिन उसके पास पूर्व प्रधानमंत्री के निजी डॉक्टर आरएन चुग और रूस के कुछ डॉक्टरों द्वारा की गई चिकित्सकीय जांच की एक रिपोर्ट है।धर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के तहत यह सूचना भी मांगी है कि क्या दिवंगत शास्त्री की मौत के बारे में भारत को सोवियत संघ से कोई सूचना मिली थी। उनको गृह मंत्रालय से भी मांगी गई ये सूचनाएं अभी तक नहीं मिली हैं कि क्या भारत ने दिवंगत शास्त्री का पोस्टमार्टम कराया था और क्या सरकार ने ग‹डब‹डी के आरापों की जांच कराई थी। सूचना के अधिकार के तहत भी इस मौत के कारणों और स्थितियों की जानकारी नहीं दी जा रही। यह नहीं बताया जा रहा कि भारत के प्रधानमंत्री के होटल के कमरे में फोन या घंटी तक क्यों नहीं थी? उनके शरीर पर नीले दाग किस चीज के थे? इस अचानक हुई मौत के बाद शव का पोस्टमार्टम तक क्यों नहीं करवाया गया? क्या समझौते के बाद देश को जय जवान का नारा देने वाले शास्त्री जी ने अपने चश्मे के कवर में एक लाइन का नोट लिख कर रखा था जिसमें लिखा था कि आज का दिन मेरे देश के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है? १९६५ की ल‹डाई में भारत ने पाकिस्तान को निर्णायक रूप से पराजित किया था और बहुत सारी ऐसी जमीन भी छीन ली थी जिस देश पर १९४७ में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि qसह के अनिर्णय का लाभ उठा कर कब्जा कर लिया था। इसमें करगिल भी था। शास्त्री जी को तत्कालीन सोवियत संघ के नेताओं ने लगभग बाध्य किया कि वे यह जमीन वापस कर दें। शास्त्रीजी करगिल कस्बे को जैसे तैसे बचा पाए थे। अपने दस्तखत से शहीद हुए सैनिकों का बलिदान निरस्त करने का दुख उनकी मृत्यु का कारण बना। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है।नेताजी सुभाष चंद बोस के मामले में भी भारत सरकार का रवैया लचर रहा है। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फरार मुजरिम घोषित किया था। कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके और महात्मा गांधी की जिद का आदर करते हुए इस्तीफा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का विश्वास इस बात से खत्म हो गया था कि अqहसा के जरिए अंग्रेजों को भगाया जा सकता है। उन्हें जबलपुर में जहां आज मध्य प्रदेश पर्यटन निगम का होटल कलचुरी है, के पास एक मकान में नजरबंद करके रखा गया था जहां से वे निकल भागे थे और रेलों, बसों और पैदल यात्रा करते हुए अफगानिस्तान के रास्ते रूस जा पहुंचे थे। और जर्मनी में अडोल्फ हिटलर से मुलाकात करने में सफल हुए थे। यह सच है कि हिटलर ने दुश्मन के दुश्मन को दोस्त मानते हुए सुभाष चंद्र बोस को आजाद वृहद् फौज बनाने में मदद की थी और इस फौज के प्रारंभिक सैनिक वे थे जो विश्व युद्ध में चीन के कब्जे में आ गए थे। चीन ने उन्हें रिहा कर आजाद qहद फौज का सिपाही बना दिया। इसके अलावा नेताजी की अपनी एक विश्वासपात्र कमान भी थी। नेताजी एक दिन जापान के ताईपेई हवाई अड्डे से उड़े और उसके बाद क्या हुआ इसके बारे में निर्णायक रूप से किसी को कुछ पता नहीं हैं? दस्तावेज मौजूद है लेकिन वे भारत सरकार के ताले में बंद हैं। सूचना के अधिकार के तहत भी उनकी जानकारी नहीं दी जा सकी। नेताजी के गायब होने के बारे में पहले शाहनवाज कमीशन और फिर हीरेन मुखर्जी कमीशन बिठाया गया मगर उन्हें भी यह दस्तावेज नहीं सौपे गए। सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर दस्तावेज नहीं देने थे तो फिर यह आयोग बिठाए ही क्यों गए थे? लालबहादुर शास्त्री के मामले में भी भारत सरकार का रवैया कुछ अलग सा है। चूंकि शास्त्रीजी के अस्तित्व को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता, भारत-पाक के निर्णायक युद्ध को खारिज नहीं किया जा सकता, इसलिए इतिहास में उनका जिक्र है। बच्चों को स्कूल में प‹ढाया जाता है कि जय जवान, जय किसान का नारा किसने दिया किन्तु स्वतंत्र भारत के निर्माण में उनकी भूमिका नेहरू के मुकाबले गौण ही मानी जाती है।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी
धर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के तहत यह सूचना भी मांगी है कि क्या उनकी मौत के बारे में भारत को तत्कालीन सोवियत संघ से कोई सूचना मिली थी? उनको गृह मंत्रालय से भी मांगी गई ये सूचनाएं अभी तक नहीं मिली हैं कि क्या भारत ने दिवंगत नेता का पोस्टमार्टम कराया था और क्या सरकार ने ग‹डब‹डी के आरापों की जांच कराई थी?

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

मां दुर्गा का छठवां स्वरूप मां कात्यायिनी

।।दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।।

चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायिनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी

नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

इस देवी को नवरात्रि में छठे दिन पूजा जाता है। कात्य गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो।

मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायिनी कहलाईं। इनका गुण शोध कार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायिनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं।

ये वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं। मां कात्यायिनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।

इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।

मां दुर्गा का पंचम स्वरूप मां स्कंदमाता

।। दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।।



सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।

पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है।

कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं।

इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।
शास्त्रों में इसका पुष्कल महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है।
सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है।

यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।

शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

मां दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप कूष्माण्डा


।। दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।।


मां दुर्गा अपने चतुर्थ स्वरूप में कूष्माण्डा के नाम से जानी जाती हैं. नवरात्र के चौथे दिन आयु, यश, बल व ऐश्वर्य को प्रदान करने वाली भगवती कूष्माण्डा की उपासना-आराधना का विधान है.

अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है. जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी. अत: यही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति मानी जाती हैं. इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं. इनकी आठ भुजाएं हैं. अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से विख्यात हैं. इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है. इनका वाहन सिंह है.


अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है. संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं. बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है. इस कारण से भी मां कूष्माण्डा कहलाती हैं.


सर्वप्रथम मां कूष्मांडा की मूर्ति अथवा तस्वीर को चौकी पर दुर्गा यंत्र के साथ स्थापित करें इस यंत्र के नीचे चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं. अपने मनोरथ के लिए मनोकामना गुटिका यंत्र के साथ रखें. दीप प्रज्ज्वलित करें तथा हाथ में पीले पुष्प लेकर मां कूष्मांडा का ध्यान करें.


ध्यान मंत्र


वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्.

सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्.

कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्.

मंजीर हार केयूर किंकिण रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्.

प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्.

कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥


स्त्रोत मंत्र


दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्.

जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्.

चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्.

परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥


कवच मंत्र


हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्.

हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥

कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा.

पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम.

दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥


भगवती कूष्माण्डा का ध्यान, स्त्रोत, कवच का पाठ करने से अनाहत चक्र जाग्रत हो जाता है, जिससे समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं तथा आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है.