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शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

नहीं थमेगा अब ये आंदोलन

नहीं थमेगा अब ये आंदोलन


टीम अन्ना के सदस्य अब यह आरोप लगा रहे हैं कि सरकार टीम अन्ना को तोड़ने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है. केजरीवाल के इस आरोप में कितनी सत्यता है, ये तो वही जानें पर मीडिया को पेड न्यूज दिए जाने की बात पर तो इतना ही कहा जा सकता है कि अब सरकार से संबंधित मीडिया की पूरी न्यूज ही कम या अधिक मगर पेड होती है. नहीं तो सूचना मंत्रालय, पब्लिसिटी बाले गाहेबगाहे मीडिया की ओर आंखे नहीं तरेरते. और मीडिया खासकर समाचार पत्रों को सूचना व जनसंपर्क अधिकारियों के साथ गलबहियां करते नहीं देखा जाता. खैर, सबके अपने स्वार्थ हैं. ये बहस लंबी है.
आज सवाल अन्ना हजारे के आंदोलन का है जिसने जनता में सरकार के विरोध की स्वस्फूर्त चिंगारी पैदा कर दी थी. एक बात पक्की है कि अन्ना हजारे द्वारा शुरू किया गया आंदोलन अब थमने वाला नहीं है. यह चिंगारी जो जनता में सुलगी है, वो जलती रहेगी. आज रात करीब ८.१५ बजे की बात है. मैं रात्रि भोजन के पश्चात टहलने निकला था. कुछ दवाओं की जरूरत थी तो एक दवा दुकान पर रुक गया. ग्राहकों के कारण मेरा नंबर आने में विलंब था. इस बीच दुकान के बगल में रहने वाली कुछ महिलाओं को आपस में बात करते देखा. बार-बार अन्ना हजारे का नाम आने पर स्वाभाविक रूप से उधर ध्यान गया. उनकी बातों का कोई सार नहीं था लेकिन बात हो तो रही थी अन्ना हजारे के आंदोलन की. बात हो रही थी सरकार कहां गलत है. मेरा चौंकना लाजमी था. जिस स्थान की बात मैं कर रहा हूं, वहां एक वृद्धा और दो अन्य लगभग ५५ साल की महिलाओं का इस तरह देश की राजनीति पर विचार-विमर्श करना वाकई चौंकाने वाला था. जिन महिलाओं को आज तक महानगर पालिका के चुनाव के समय भी चर्चा करते नहीं देखा, उन्हें आज देश की राजनीति पर चर्चा करते देख रहा हूं. ऐसा ही आश्चर्य तब होता है जब घर में अपनी माताजी को इन दिनों काला धन, भ्रष्टाचार, रामदेव बाबा, अन्ना हजारे जैसे मुद्दों पर चर्चा करते देखता हूं.  तो भी आश्चर्य होता है.  पहले जो लोग मिलते थे, वो देश का हाल-चाल पूछ लिया करते थे, क्योंकि वे एक पत्रकार से यही अपेक्षा रखते थे. आज जब वही लोग मिलते हैं तो न सिर्फ इस आंदोलन की गहराई जानने को इच्छुक रहते हैं, बल्कि ये लोग अपने विचार से भी अवगत कराते हैं. मानो वे देश की मीडिया को अपना विचार बता रहे हों.
इसलिए अब इस शंका की कोई संभावना नहीं है कि यह आंदोलन चलेगा या नहीं. आंदोलन तो चलेगा. भले ही लोग सड़क पर न उतरें मगर नदी के प्रवाह का अंडर करंट कोई नहीं रोक सकता. मीडिया में भी इस तरह खबरें तब तक छाई रहेंगी, जब तक मामला शांत नहीं दिखेगा. यह बात अलग है कि अब इस आंदोलन में अन्ना हजारे या उनकी टीम की क्या भूमिका रहती है. सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का सबसे पसंदीदा विषय आज भी आंदोलन और उससे जुड़े मुद्दों पर. जितने कमेंट्स पर होते हैं, उतने अन्य में नहीं. इसमें उन कमेंट्स को शरीक नहीं किया जा सकता, जो वाह-वाह, क्या खूब, बहुत खूबसूरत जैसे शब्दों से सजे होते हैं और मात्र संबंधों की प्रगाढ़ता के लिए किए जाते हैं. मैंने बार-बार यह महसूस किया है कि अन्ना हजारे को मिला समर्थन अन्ना का नहीं था बल्कि यह सरकार की हिटलशाही, अलोकतांत्रित कार्यप्रणाली, राजनेताओं की मनमानी, भ्रष्टाचार की अति जैसी मुद्दों के खिलाफ था. इसे भी कुछ लोगों ने संविधान को बदलने की साजिश करार देकर बदनाम करने का कुचक्र रचा था. अपने समर्थकों तक तो उनका प्रयास सफल रहा था लेकिन वृहद पैमाने पर वो कुछ नहीं कर पाए थे.
दरअसल इस आंदोलन को अन्ना हजारे का आंदोलन मानने की भूल करना ही गलत है. सरकार एक ही भूल बार-बार किए जा रही है. वो अन्ना हजारे की टीम पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. सरकार अब भी दिल से यह मानने को तैयार नहीं है कि यह आंदोलन आम आदमी का है. यह देश की प्रताड़ित जनता का है. आजादी के बाद यह पहला आंदोलन है जिसमें समाज के सभी वर्ग, उम्र, जाति, संप्रदाय के लोगों ने भाग लिया. इस आंदोलन ने उन लोगों में भी एक बार फिर चैतन्य पैदा किया है जो गत एक दशक से जनांदोलनों से विमुख हो गए थे. वे सभी लामबंद हो रहे हैं. जिस युवा वर्ग को हम राजनीति से पूरी तरह विमुख मान चुके थे, उसने इसमें अपना विस्मयकारी योगदान दिया. जिस विपक्ष को सोया हुआ मान लिया गया था, वो अब मुखर है. भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी कहीं भी हमला बोलने से परहेज नहीं कर रहे हैं. मीडिया इससे संबंधित समाचारों को प्रमुखता से प्रकाशित कर रहा है. स्वामी अग्निवेश बिग बास में शामिल हो रहे हैं. यह सब उसी जनता को इनकैश करने के लिए हो रहा है जो अन्ना के आंदोलन का समर्थन कर रही है.

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