कहकहे लगाते हैं
ठठा के हंसते हैं
मुझे मेरी मजबूरी
याद दिलाते हैं
फिर भी नहीं कर पाते
मजबूर मुझे
झकझोर भी नहीं पाते
हैं मुझे
कहीं न कहीं फौलाद
का कवच चढ़ा है
क्योंकि मारने वाले से
बचाने वाला बड़ा है
अपनी शानोशौकत का
दिखावा करते हैं
अपनी बुद्धिमत्ता का
ढिंढोरा पीटते हैं
हम करें सो कायदा
पर यकीन है उन्हें
अपनी औकात पर
झूठा घमंड है उन्हें
हम भी अपनी सोच को
जिंदा रखते हैं
वो जिन्हें बदलने को
मजबूर करते हैं
काश उन्हें कायदे से
कायदे का भान हो जाए
झूठा घमंड हमेशा
के लिए टूट जाए......
ठठा के हंसते हैं
मुझे मेरी मजबूरी
याद दिलाते हैं
फिर भी नहीं कर पाते
मजबूर मुझे
झकझोर भी नहीं पाते
हैं मुझे
कहीं न कहीं फौलाद
का कवच चढ़ा है
क्योंकि मारने वाले से
बचाने वाला बड़ा है
अपनी शानोशौकत का
दिखावा करते हैं
अपनी बुद्धिमत्ता का
ढिंढोरा पीटते हैं
हम करें सो कायदा
पर यकीन है उन्हें
अपनी औकात पर
झूठा घमंड है उन्हें
हम भी अपनी सोच को
जिंदा रखते हैं
वो जिन्हें बदलने को
मजबूर करते हैं
काश उन्हें कायदे से
कायदे का भान हो जाए
झूठा घमंड हमेशा
के लिए टूट जाए......
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