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शनिवार, 3 मई 2014

पुस्तक सृष्टि का रहस्य संतुलन का अंश



हमारा शरीर वह तंत्र है जिसके माध्यम से संतुलन का नियम आसानी से समझा जा सकता है। समूचे ब्रह्मांड के संतुलन की प्रक्रिया हमारे शरीर में विद्यमान है। इसलिए तो किसी ने शरीर की कार्यप्रणाली का अध्ययन कर ब्रह्मांड के संबंध में सटीक अनुमान लगाये तो किसी ने समूची सृष्टि का अध्ययन कर शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध कराईं।

मन आत्मा की विक्षुब्ध अवस्था है और आत्मा मन की शांत अवस्था। कितनी आसानी से ओशो ने मन और आत्मा को एक अस्तित्व की दो विभिन्न अवस्थाओं के रूप में समझा दिया।

चेतन, अचेतन, अवचेतन का खेलः मन, चेतना, आत्मा, भौतिकता का मसला सदियों से अनसुलझा है। मनुष्य चेतन और अचेतन नामक मन की दो शक्तियों से कार्य करता है। इसके बीच में किसी ने अवचेतन की अवधारणा रख दी है। मन को उसकी समग्रता से समझने की बजाए हम अवचेतन, चेतन के बीच में ही भटक रहे हैं। कहते हैं कि चेतन मन की शक्ति सीमित है और अचेतन मन की असीमित। अचेतन मन की शक्ति के पीछे एकमात्र कारण यही है कि यही मन की वो अवस्था है जो हमें स्वाभाविक रूप से समूची सृष्टि के साथ जोड़ती है और यही जोड़ योग है, यही योग ईश्वर या समूचे ब्रह्मांड के अस्तित्व के साथ एकाकार कर देता है। चेतन अचेतन अवचेतन के खेल में उलझ कर अब जीवन को और भी असहज बनाया जा रहा है।





मन का संतुलनः मन के संतुलन के लिए सकारात्मक और नकारात्मक सोच या ऊर्जा के बीच संतुलन का तरीका सीखना जरूरी है।
संतुलन का नियम कहता है कि सकारात्मक और नकारात्मकता दोनों सिक्के के दो पहलू हैं। यानी सकारात्मकता भी जरूरी है और नकारात्मकता भी जरूरी है। इस कारण कर लो दुनिया मुट्ठी में, जैसा चाहो वैसा बनो, रहस्य, सकारात्मकता के चमत्कार जैसे सिद्धांतों की अपनी सीमा है।


अच्छाई-बुराई दोनों जरूरी हैः ऐसे ढेर सारे तथ्य हैं, ढेर सारी सचाइयां हैं, जहां अच्छाई व बुराई को परिभाषित करना ही गलत है। दरअसल, अच्छाई व बुराई को परिभाषित करने का आधार हमारी अवधारणाएं होती हैं जो हमें परंपरागत रूप से या फिर किसी अनुभव विशेष या फिर किसी सिद्धांत पर विश्वास करने के कारण जन्म लेती हैं। इसीलिए अच्छाई या बुराई की अपेक्षा सत्य को जानने पर अधिक जोर दिया जाता है। (क्रमशः)

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