इस समय नागपुर का मौसम

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

मेरी भांजी के जन्म दिन पर शुभकामना

नया सफर हो रचनात्मक

जीवन के वृहद सफर का
एक पूरा हुआ कालखंड
जिसमें था निहित
संपूर्णता का आधार स्तंभ
अभिभावकों के सक्षम
अनुभवों के संग
अब करनी है फतह
इस जिंदगी की जंग
जीवन के पुष्पित, पल्लवित
होते हैं कई रंग
उन्हें करना है आत्मसात
समृद्ध प्रकृति के मानिंद
एक कुम्हार की मृदा
अब आकार ले चुकी है
ॐ साईंनाथ की सुरभि
साकार हो चली है।
तुम्हें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
पूरी हो हर कामना, यही हैं दुआएं।।
- अंजू मामा

गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

मौनी गुड़िया का धमाल

मौनी गुड़िया का धमाल
एक प्यारी सी बच्ची है। उसका नाम तो गुड़िया है लेकिन कुछ दिनों से वो इतनी गुपचुप रहने लगी है कि लोग (खासकर मैं) उसे मौनी गुड़िया के नाम से पुकारने लगा हूं। अब मेरी तो उम्र हो गई है। यानी कि उम्र काफी हो गई है। वृद्धाश्रम की ओर कदम तो नहीं बढ़े हैं लेकिन इतना जरूर है कि उस आश्रम की आहट मिलने लगी है। इसलिए तो उस गुड़िया को मैं गुड़िया कहता हूं। तो बात उसके मौनी स्वभाव की हो रही थी। वैसे स्वभाव से वो मौनी नहीं है। खूब बोलती है। इतना बोलती है कि बस पूछो मत। हर बात पर क्यों, क्या, कैसे की रट। मानो गुड़िया न हो कोई पत्रकार हो जिसे समाचार लिखते समय इन बातों का ख्याल रखना पड़ता है कि कोई घटना कब हुई, क्यों हुई और कैसे हुई। एक महीने से वो बकबकी गुड़िया मौन हो गई है। इसका कारण यह है कि मैं उसे छोड़कर दूसरे शहर कुछ दिनों के लिए चला गया था। बस हो गई आफत.....। इतना नाराज हुई कि अब पूछो मत। लगता है उसे सदमा लगा। वो सदमा पिक्चर की तरह। इसलिए उसका बोलना बंद हो गया। फिर उसे मनाने के लिए अपनी एक आर्ट फोटो भेजी लेकिन देखिए तो उसके सदमे की गहराई उसने कुछ नहीं बोला। अब भी वो मौन है। हमने कहा डाक्टर को दिखा देते हैं लेकिन कोई फायदा नहीं। अब हम उस फोटो की तरह शून्य में निहारने के अलावा कर ही क्या सकते हैं। तो निहार रहे हैं। वो फोटो मैं आपके लिए भी लोड कर रहा हूं। देख लीजिए भरी दोपहरी। तापमान ४५ पर और एक अच्छा-खासा इन्सान आसमान को घूर रहा है किसी के इंतजार में कि कुछ तो बोलेगी मौनी गुड़िया। चलो बाकी बातें बाद में।

शनिवार, 31 जनवरी 2009

निःशब्द हो गया
आज मैं निःशब्द हो गया हूं। क्या कहूं, दो दिनों से फिर पुरानी कहानी जारी है। जैसे मैं सड़क पर बैठी नहीं हूं अपने आपको ठीक करो, मेरा क्या हर समय प्यार में धोखा ही हो रहा है, मि. अंजीव और ब्रैकेट में (जी) बाकी आप समझ जाओ। अब आपको बताता हूं कि क्या हुआ। मैंने उनको एक अच्छे और सच्चे हमराज के रूप में राज की वो बातें बता दीं जो शायद एक अच्छे दोस्त को भी नहीं बताई जाती है। हुआ ये कि मैं मम्मी को देखने अस्पताल पहुंचा। बाद में कुछ और बातें हुईं ज्यादा नहीं पर थोड़ी सी जो कभी भी होनी थी। मैंने ज्यादा कुछ नहीं होने दिया। मेरी जिन्दगी का पुराना अध्याय खुद को दोहराने की कोशिश कर रहा था। तो वो बातें मैंने नए अध्याय से शेयर कर लीं। बस फिर क्या था। मेरी हमराज ने तो पूरी दुनिया ही सर पे उठा ली। अब वो क्या करें उनकी मर्जी। लेकिन ये जरूर है कि बात आगे तब बढ़ी जब बर्थ डे के एक दिन पहले रात में उनका फोन आने का था। सच में फोन आया ही नहीं। कसम खा रहा हूं मेरे भाई फोन नहीं आया। नहीं तो झूठ बोल कर क्या फायदा। वो बहुत नाराज हुईं। आपने अगर मनोचिकित्सा के विषय में कुछ पढ़ा होगा तो इतना तो जानते ही होंगे कि आरईबीटी एक थ्योरी है। रैशनल इमोशनल बिहेवियरल थेरेपी। इस थेरेपी में मैंने यह सीखा कि किस प्रकार ए-एक्टिंग इवेंट, बी, सी-कन्सीक्वेंसेस, डी और ई-इमोशनल गोल का फंडा है। यानी मैंने ये सीखा कि किसी भी घटना के होने पर उस पर तुरंत विश्वास नहीं करना चाहिए। इसलिए नहीं करता हूं। लेकिन उनके लिए तो सभी इवेंट एकदूसरे से जुड़ गए जैसे मेरा घर पर आना। अपना राज बताना। फिर दूसरे दिन फोन नहीं उठाना (उनके अनुसार) और कल फोन उठा लेना। मैं तीन रात से नींद की गोली खाकर सो रहा हूं। अब ये बात किसे बताऊं। अगर मैं खुश रहता तो क्या ऐसा करता? गोली का नाम भी बता रहा हूं- लोनाजेप .२५। तो दोस्तों आज मैंने अपने पुराने अध्याय को भी कह दिया कि ज्यादा आशा में मत रहो। मैं पुरानी बातें अभी भूल नहीं सकता। बच्चा पैदा करना तो दूर की बात है। इसलिए कोई बच्चा गोद ले लो। या किसी और से पैदा कर लो या फिर वीर्य इन्जेक्ट करा लो। मैं कोई आपत्ति नहीं करुंगा। लिख कर दे देता हूं। अब देखते हैं दोस्तों आगे क्या होता है। मगर इतना तो है कि मन की भड़ास तो निकल ही जाती है। अभी करियर पर ध्यान देना है। बाद में देखता हूं। शायद ६ माह बाद मुझे इनमें से किसी की जरूरत नहीं रहेगी। तब की तब देखेंगे। अभी तो वन डे एट ए टाइम पर हूं।
शुभ रात्रि

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

to dosto kahani mei phir ek naya mod aa gaya hai. aaj mere b'day hai. usne 28 ki night mei mujhe phone karne ko kaha tha. sab kuchh thik tha. lekin sham ko pata nahi kya hua. usne mujhe sms bheja. phone kiya. kuchh nahi mila. sach mei ab tak nahi mila. maine raat 11.20 tak wait kiya aur phir maine use bewfa ka mai apne mobile se kar diya. ab to aafat thi. subah jab maine messenger shuru kiya to ham dono mei khoob jhagda hua. vo baad mei bataunga.
lekin bataiye kya ye pyar hai ya flirt. kuchh samajh mei nahi haa raha hai.
chalo detail baad mei. abhi to sab derail hai.

गुरुवार, 22 जनवरी 2009

जब फूट पड़ा जज्बातों का सैलाब
अगला एपिसोड - कल रात को तो गजब ही हो गया । उनका फ़ोन आ गया। पहले के ५ मिनट तो दोनों तरफ़ से आंसू बहते रहे। आंसू भी ऐसे की थमने का नाम नहीं ले रहे थे। मैं तो हेलो कह भी गया लेकिन उधर से जब पता चला कि फोन पर मैं ही हूं कोई जवाब नहीं आया। अजीब स्थिति थी। अजीब परिस्थिति थी। न बोला गया हमसे, न सुना गया उनसे। अब आप ही बताइये ऐसी स्थिति में क्या किया जाए। तो बात हो रही थी आंसुओं के सैलाब की। ज्यादा बात नहीं हुई। मैं तो कहता रहा कि रोना मत और खुद ही अपने आंसुओं को नहीं रोक पा रहा था। दूसरी तरफ़ से सिर्फ़ एक ही पंक्ति सुनायी दी की मुझे गले लगा लो। अचानक छत पर जाने की इच्छा हुई तो चला गया। छत पे ठंड थी तो थोड़ी राहत मिली और आंसू रुक गए। होश संभालने के बाद मैं ये तीसरी बार फूट-फूट कर रोया हूं। पहली बार तब रोया था जब मेरी बहन शादी के बाद ससुराल के लिए विदा हो रही थी। उसके कार में बैठते ही मैं एकांत में चला गया था और फिर फूट-फूट के रोया था। दुबारा तब रोया था जब मेरी मां नागपुर से बिलासपुर रहने के चली गई। इस बार का रोना जरा लंबा रहा था। पूरे दो दिन और दो रातों तक रोता रहा था। इसके बाद कल रात को रोया। ज्यादा तो नहीं रो पाया क्योंकि मैं नींद की दवा खा चुका था और फोन पर बात करने के बाद मेरा मन काफी हलका हो गया था। लगा जैसे उनकी जुल्फों की घनी छांव का आसरा मिल गया है। उनका ममतामय स्पर्श हो रहा हो। इसी तनाव रहित मुद्रा में मुझ कब निद्रादेवी ने उनके आगोश से निकाल कर अपने आगोश में ले लिया, पता ही नहीं चला। अरे हां, आप तो मेरी उस कसम के बारे में भी जानना चाहते होंगे जो मैंने पिछले ब्लाग में लिखा था। थोडा सस्पेंस और रखूं या राजफाश कर दूं। अच्छा अब कर ही देते हैं हमने अपनी कसम तोड़ दी। यानी उन्हें एक प्यारा सा किन्तु संक्षिप्त ईमेल भेज दिया। अब कहानी का सुखद अंत नहीं हुआ। अब कहानी ने एक नया मोड़ ले लिया है और शुरुआत हुई है एक नई सुखद यात्रा.....
किस्से अभी और भी होंगे, तो पढ़ते रहिए हमारा ब्लाग, पूरा मौलिक है और यह हमारे निजी अनुभवों पर आधारित है..........

रविवार, 18 जनवरी 2009

भावनाओं को देनी होगी तिलांजलि
आज का दिन अच्छा गया क्योंकि सुबह मैंने अपने ब्लाग में कई बातें कन्फेस कर ली थीं. अभी-अभी उसकी एक और बात याद आ गई। उसने मुझे एक कविता किसी की ईमेल की थी. मुझे ईर्ष्या हुई तो उसने उलाहना दिया कि ऐसा लिखना सीखो. अब मैं उसे क्या समझाता कि साहित्य या लेखन की सबकी अपनी स्टाइल होती है. सबसे जरूरी बात यह है कि रचना मौलिक होनी चाहिए, किसी की नकल नहीं होनी चाहिए. चलो, कोई बात नहीं. मैंने उसे समझाया नहीं बल्कि और चिढ़ गया. अब आप ही बताइये मुझे ईर्ष्या क्यों होने लगी. वैसे भी नमक हलाल फिल्म में अमिताभ बच्चन ने कहा था, पराया धन और पराई नार पे नजर मत डालो. मगर मुझे तो सनक सवार हुआ था न. (अपने भारत की गावरानी बोली में कहूं तो ) पटाने चला था एक पराई नार को. अपने पर भी गुस्सा आता है कि क्यों बार-बार गलती करता हूं. जब एक बात मालूम है कि मेरे करियर की सबसे बड़ी रुकावट स्त्रियां ही हैं तो क्यों कर मैं बार-बार गलती करता हूं. और पता नहीं मुझमें क्या है. एक फक्कड़ आदमी से ये औरतें भी आकर्षित हो जाती हैं. कुछ तो बात होगी ही. अब आप यह मत सोचिए कि मैं ये जली-कटी बातें उनके लिए कह रहा हूं. ये बातें तो दुनिया की तमाम औरतों पर लागू हो सकती हैं लेकिन उन पर नहीं. क्योंकि मैंने उन्हें एक औरत के रूप में कभी देखा ही नहीं है. जैसा मेरा एक पुरुष दोस्त होता है, वैसे ही वो भी हैं. पुरुष से तो कई बातें छिपानी पड़ती हैं परन्तु उनसे तो मैंने कभी कुछ नहीं छिपाया. क्या यही मेरी गलती है. अच्छा आप ही बताइये अगर आपको यह बता दिया जाए कि अमुक गलती नहीं करोगे तो बहुत आगे बढ़ोगे. इसके बाद भी आप वो गलती करें तो इसे क्या कहा जाएगा. सिवाए बेवकूफी के और कुछ नहीं है. मुझे भी कहा गया कि दिल कठोर करो, ज्यादा भावुक मत होना. लेकिन हम हैं कि मानते ही नहीं. सबको छोड़ दिया. घर, परिवार कुछ भी नहीं रखा साथ में. सबके लिए भावनाओं को तिलांजलि दे दी लेकिन क्या करें भाइयों उस समय इनको नहीं छोड़ पाया. अब उनको तो मेरी भावुकता का अंदाज नहीं है न. इसलिए उनकी भी गलती नहीं है. गाहेबगाहे हमें तकलीफ देती रहती हैं. देखें क्या होता है. दो में से एक ही हल निकलेगा. या तो हम हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत हो जाएंगे, या फिर हमेशा के लिए कठोर हो जाएंगे. इतना कठोर कि हमें अपने पर भी दया नहीं आएगी. जैसे अब हमें अपने परिवार पर दया नहीं आती है. बेटी के फर्ज अदायगी जुड़ा है इसलिए ठीक है. अब देखते हैं क्या होता है?तो आज के लिए इतना ही. अभी आफिस में हूं भाई..........

उन्हें खुश करने का प्रयास

घृणा और प्यार के बीच आपबीती के बाद अब लगता है ईगो यानी अभिमान की लड़ाई यानी प्रतिष्ठा की लड़ाई शुरू हो गई है। स्वाभिमान और घमंड के बीच फासला काफी कम है। एक पतले धागे से भी कम का। इसलिए पता ही नहीं चलता कब स्वाभिमान घमंड में तब्दील हो जाता है। इसी पतली रेखा के आर या पार खुशी का वास होता है। रेखा के अंदर होती हैं खुशियां और पार होते ही मिलते हैं ढेरों गम । ढेरों नकारात्मकता जिनसे कई नई समस्याएं उत्पन्न होती हैं। तो बात हो रही थी आप बीती की। आज जब लगभग १० दिन हो चुके हैं उनसे नाराज हुए तो अब लगता है कि क्यों न उनकी इच्छा पूरी कर दूं। क्या आप जानते हैं उनकी इच्छा क्या है? उनकी छोटी से इच्छा है कि जब तक मैं सारी लिखा ईमेल नहीं करुंगा तब तक वो मुझे ईमेल नहीं करेंगी। हां, ये बात अलग है कि इस छोटी सी इच्छा के साथ उन्होंने मुझे ढेर सारी उलाहनाएं दे दी थीं। ऐसा नहीं है कि वह बुरी हैं। किसी मायने में वह बुरी नहीं हैं। वो तो एक ऐसे मोम की गुड़िया हैं जो मेरे जज्बातों की थोड़ी से आंच से ही पिघल जाती हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है। इस बार बात बंद करने की पहल हमने ही की थी। हमीं ने उन्हें लिखा था कि हमको दादाजी की कसम है अगर हमने कभी आपको मेल किया। अब आप ही बताइये हम अपने अराध्य के नाम की कसम कैसे तोड़ सकते हैं। वैसे हमने पिछले दिनों में कई बार ऐसी कसमें तोड़ी हैं। अपने घर में। मां-पिता के सामने लेकिन उस समय हम काफी नकारात्मक रहा करते थे. अब तो हम नकारात्मक नहीं है. फिर क्यों हमने यह कसम खा ली है. हमारी ही समझ से परे है.इसलिए कहते हैं कि जोश में कभी होश नहीं खोना चाहिए. जोश किसी का भी हो, जवानी का हो या क्रोध का. जोश से मेरा मतलब आवेग का है. हम हमेशा अपने प्यार को लेकर भाग्य को कोसते हैं. अभी दो दिन पहले ही एक लेख पढ़ा जो सेक्स एडिक्शन पर था. थोड़ा सा झटका लगा कि कहीं वाकई हम सेक्स एडिक्ट तो नहीं होते जा रहे हैं. इसी कारण तो प्यार में भी एडिक्ट जैसा व्यवहार करते हैं. परिष्कृत प्यार का नाम तो हमें मालूम ही नहीं रहता है. हमारा एडिक्शन हमसे जो कराता है हम करते जाते हैं. जिस प्रकार शराब का एडिक्ट मनुष्य समझ ही नहीं पाता कब वो मयखाने में पहुंच जाता है. तो आज इतनी भाषणबाजी का मकसद यह है कि अब हमें बहुत खराब लग रहा है क्योंकि हमने बिना भविष्य की सोचे ही खुद को कसम दे डाली.अच्छा एक बात और आप सोच रहे होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं. तो आपको बता दें कि हमें खुद नहीं मालूम कि उनसे हमारा क्या रिश्ता है. मगर एक बात जरूर है वो रिश्ता एक पत्नी के रिश्ते से बढ़कर है, मेरा अपनी मां के साथ जितना गहरा भावनात्म लगाव है शायद वो रिश्ता उससे भी गहरा है, हमारा अपनी बेटी से जो लगाव है उससे भी गहरा वो रिश्ता है. यानी हमें तो ऐसा लगता है कि वो हमारे लिए ही बनीं थीं मगर किसी दुष्ट ज्योतिष ने हमारी और उनकी कुंडली गलत बनाकर हमारे बीच सात समंदर का फासला पैदा कर दिया. देखिए न हमें उनसे किसी प्रकार की शारीरिक सुख की भी अपेक्षा नहीं है. हमें उनसे किसी प्रकार की मदद की आशा नहीं है. उन्हें भी हमसे किसी प्रकार की आशा नहीं है लेकिन हम दोनों एक हैं. आप बताइये क्या इसी को प्यार कहते हैं? धत् तेरे की.... अब हमारी कोई प्यार करने की उम्र बची है?अरे हां, चलते चलते हम एक बात और बता दें. मजेदार बात है. जब हमने उन्हें आखिरी (?) मेल किया तो अपनी कलमनवीसी उसमें भी झाड़ दी. हमने लिख दिया कि अगर ईश्वर ने चाहा तो अगल जन्म में जरूर मिलेंगे. मालूम है उनका क्या जवाब था. भाड़ में जाओ मुझे सात जन्म तक नहीं मिलना है. सोचो मेरे सुधि मित्रों कि अगर हम दोनों पति-पत्नी होते तो क्या होता? और अब जब नहीं हैं तो आगे क्या होगा? क्या मैं एक दिन शराब पीकर अपनी जिन्दगी समाप्त कर लूंगा या फिर अनेक तूफानों की तरह इसे भी झेल जाउंगा? और या फिर सारी वाला ईमेल भेज कर अपनी कसम तोड़ दूंगा? आप गेस करें कि आगे क्या होगा? वैसे कहानी का अंत अगर करुण न हुआ यानी कि मैं सलामत रहा तो समय समय पर ब्लाग पर लिखता रहुंगा और आप सबको आगे की कहानी से अवगत कराता रहुंगा. वैसे उनके साथ बिताए हर लम्हे बहुत याद आ रहे हैं. इतना पढ़कर भी अगर आपकी आखें नम न हुईं हों तो इन्तजार करिये अगले एपीसोड का.

मंगलवार, 13 जनवरी 2009

घृणा और प्यार


घृणा और प्यार
कुछ लोगों को आदत होती है बात-बात में हेट यू और लव यू कहने की। वैसे लव यू बोलना तो मुंबई की बोलचाली भाषा में ही शामिल है। अब देखिए न जिसे खुश करना हो लव यू बोल दिया। लेकिन घृणा और प्यार का गहन अर्थ भी तो समझना होगा ना। किसी ने कभी मुझसे कह दिया कि लव यू और दूसरे दिन ही कह दिया हेट यू। क्या इतना कह देने से क्या वाकई मैं प्यार करने लायक या घृणा करने योग्य व्यक्ति बन गया। प्यार और घृणा दोनों हृदय की गहराइयों से किए जाते हैं। इन दोनों में ही गहराई होती है। इन्हें बोलचाली भाषा का अंग नहीं बनाया जा सकता। फिर भी पता नहीं क्यों कुछ लोग ऐसा करने की बार-बार गलती करते हैं। तो इन दो शब्दों ने मेरे जीवन के एक और अध्याय का खात्मा कर दिया। पता नहीं कितने और अध्याय शुरू होंगे और खत्म होंगे। भगवान सबको क्षमा करे।१३-१-०९