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रविवार, 2 अक्टूबर 2011

मां दुर्गा का आठवां स्वरूप

।। दत्त गुरु ओम, दादा गुरु ओम्।।


या देवी सर्वभूतेषु,
शांति रूपेण संस्थिता:,
नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः॥


नवरात्रि के आठवें दिन माँ के आठवें स्वरूप “महागौरी” की पूजा की जाती है, अर्थात “महागौरीति च अष्टमं” .
माँ का वर्ण पूर्णतः गौरवर्ण है.इनके समस्त वस्त्र और आभूषण श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं है। माँ के ऊपर का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाले दाहिने हाथ मी त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू है तथा नीचे का हाथ वरमुद्रा में है। माँ की मुद्रा अत्यंत शांत है और ये वृषभ पर आरूढ़ हैं।

माँ महागौरी की कृपा से साधक को अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सैट की और प्रेरित कर असत का विनाश करती हैं। माँ का ध्यान स्मरण ,पूजन -आराधन भक्तों के लिए सर्वाधिक कल्याणकारी है।

ग्रहस्थों के विशेष मंगलकारी माँ महागौरी की उपासना।

नवरात्र के आठवें दिन मां के आठवें स्वरूप महागौरी की उपासना की जाती है। यही देवी शताक्षी हैं, शकुंभरी हैं, त्रिनेत्री हैं, दुर्गा हैं, मंशा हैं और चंडी हैं। इस दिन साधक विशेष तौर पर साधना में मूलाधर से लेकर सहस्रार चक्र तक विधि पूर्वक सफल हो गये होते हैं। उनकी कुंडलिनी जाग्रत हो चुकी होती हैं तथा अष्टम् दिवस महागौरी की उपासना एवं आराधना उनकी साधना शक्ति को और भी बल प्रदान करती है। मां की चार भुजाएं हैं तथा वे अपने एक हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए हैं, दूसरे हाथ से अभय मुद्रा में हैं, तीसरे हाथ में डमरू सुशोभित है तथा चौथा हाथ वर मुद्रा में है। मां का वाहन वृष है। अपने पूर्व जन्म में मां ने पार्वती रूप में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी तथा शिव जी को पति स्वरूप प्राप्त किया था। मां की उपासना से मन पसंद जीवन साथी एवं शीघ्र विवाह संपन्न होगा। मां कुंवारी कन्याओं से शीघ्र प्रसन्न होकर उन्हें मन चाहा जीवन साथी प्राप्त होने का वरदान देती हैं। इसमें मेरा निजी अनुभव है मैंने अनेक कुंवारी कन्याओं को जिनकी वैवाहिक समस्याएं थी उनसे भगवती गौरी की पूजा-अर्चना करवाकर विवाह संपन्न करवाया है। यदि किसी के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो वह भगवती महागौरी की साधना करें, मनोरथ पूर्ण होगा।

साधना विधान- सर्वप्रथम लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित करें तदुपरांत चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें तथा यंत्र की स्थापना करें। मां सौंदर्य प्रदान करने वाली हैं। हाथ में श्वेत पुष्प लेकर मां का ध्यान करें।

ध्यान मंत्र -

श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभम् दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

ध्यान के बाद मां के श्री चरणों में पुष्प अर्पित करें तथा यंत्र सहित मां भगवती का पंचोपचार विधि से अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें तथा दूध से बने नैवेद्य का भोग लगाएं। तत्पश्चात् ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। मंत्र की तथा साथ में ॐ महा गौरी देव्यै नम: मंत्र की इक्कीस माला जाप करें तथा मनोकामना पूर्ति के लिए मां से प्रार्थना करें। अंत में मां की आरती और कीर्तन करें।

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