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रविवार, 2 अक्तूबर 2011

मां दुर्गा का सातवां स्वरूप कालरात्रि

।। दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।।

मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को 'कालरात्रि' कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक होता है, लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं, इसलिए इन्हें 'शुभंकरी' भी कहा जाता है।

ये अपने महाविनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करती हैं। विनाशिका होने के कारण इनका नाम कालरात्रि पड़ा। आकृति और सांसारिक स्वरूप में यह कालिका का अवतार यानि काले रंग-रूप वाली, अपने विशाल केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नज़र आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर और दूसरे हाथ में खड्ग-तलवार से युद्ध स्थल में उनका नाश करने वाली कालरात्रि सचमुच अपने विकट रूप में नज़र आती हैं।

कालरात्रि की सवारी गधर्व यानि गधा है, जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है। वह निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। भक्तों पर कालरात्रि की असीम कृपा रहती है और उन्हें वह हर तरफ से रक्षा प्रदान करती हैं। भक्तों को कालरात्रि से भय नहीं लगना चाहिए। यह रात तो ऐसे दुष्टों और पापियों के लिए है, जिसने अधर्म को ही अपना धर्म बना रखा है।

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहसार' चक्र में स्थित रहता है। इनके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: मां कालरात्रि के रूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं, इससे साधक भयमुक्त हो जाता है।

उपासना मंत्र

एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।

वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

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