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शनिवार, 14 सितंबर 2013

माँ तुझे सलाम


हिन्दी दिवस पर मैं समस्त मातृशक्ति का वंदन करता हूं। क्योंकि हिन्दी हमारी भाषा है, हमारी माँ है। देश की सर्वस्वीकार्य भाषा है। एक विनती है कि हिन्दी के लिए राजभाषा शब्द का इस्तेमाल न करें. यह राष्ट्रभाषा थी, है और रहेगी। विदेशी मानसिकता के गुलामों ने इसे राजभाषा बनाकर हमारी मातृशक्ति के साथ खिलवाड़ किया है। राजभाषा शब्द में षड़यंत्र का जहर है। भारत विश्व का अकेला ऐसा राष्ट्र है जिसकी अपनी राष्ट्रभाषा नहीं है। उन्नत देशों की कतार में खड़ा भारत विश्व का अकेला ऐसा राष्ट्र है जिसे अंग्रेजी में ही समृद्धि दिखाई देती है। यह दुखद है कि हमें अपनी मां से अच्छी दूसरों की माताएं लगती हैं। अपने देश से बेहतर दूसरे देश लगते हैं। अपनी भाषा से अच्छी दूसरे देशों की भाषा लगती है। देश की अन्य भाषाएं मराठी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयाली, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, भोजपुरी, मारवाड़ी आदि-आदि हमें दोय्यम दर्जे की लगती हैं। हमें अपने देश की भाषाएं सीखने की अपेक्षा विदेशी भाषाएं सीखना ज्यादा जरूरी लगता है।
अंग्रेजी भाषा से नफरत नहीं है। क्योंकि वह भी कहीं की भाषा है और माता कभी कुमाता नहीं होती। हंसी आती है उन बुद्धिजीवियों पर जो अंग्रेजी या विदेशी मानसिकता से ग्रस्त हैं। ये न तो खुद स्वाभिमानी जीवन जी सकते हैं और न ही किसी को जीने देंगे। भारत को आर्थिक और मानसिक गुलामी के अंधेरे कुएं में ढकेलने का अमेरिकी षड़यंत्र अब तेज हो गया है। यूएन, आईएमएफ, डब्ल्यूएचओ के नाम पर भारत सहित समूचे एशिया महाद्वीप को अंग्रेजी का लती, गुलाम (नशा की तरह) बनाने का कुचक्र है। इसलिए अब हमें स्वाभिमान जगाना जरूरी है।
दोस्तो, छोटा सा दान
सभी को करना है
हिन्दी या अपनी मातृभाषा
को अपनाना है
हमें अपने देश का
स्वाभिमान जगाना है
गुलामों की गुलामी से
आजादी पाना है।
।जय हिन्द, जय भारत। वन्देमातरम्।

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