पंडित अध्यात्म त्रिपाठी 20 वर्षों तक डाक्टर राममनोहर लोहिया के विश्वस्त सहयोगी रहे। डाक्टर लोहिया के अंतरंग होने के कारण उस जमाने में के लोगों के लिये आदरणीय थे। अध्यात्म जी के लिए सम्मान इसलिए भी था, क्योंकि उनके व्यक्तित्व में वे सभी बातें मौजूद थीं, जो कमोबेश किसी गुरु से शिष्य को मिलती हैं। अर्थात गुरु तुल्य लोहिया जी का गहरा असर उनके व्यक्तित्व में था। अध्यात्म जी का सम्पूर्ण जीवन डाक्टर लोहिया के समाजवादी आन्दोलन को समर्पित रहा। यही कारण था- उनका व्यक्तित्व विपुल था, बहुआयामी था।
साहित्यकार हों, विचारक-चिंतक हों, या राजनीतिक और या फिर शोषित वर्ग का कोई व्यक्ति, अध्यात्म जी से उनके मधुर रिश्ते होना आश्चर्य की बात नहीं थी। सन् 1980 के बाद देश की वैचारिक पृष्ठभूमि में तेजी से बदलाव आया। सिद्धांतों की बात करने वालों से किनारा किया जाने लगा। राजनीति, पत्रकारिता में मिशनरी भावना का स्थान धनलोलुपता और स्वार्थ ने ले लिया। इसके बावजूद 15 मार्च 1988 को जीवन के अंतिम दिनों तक उन्होंने सार्वजनिक जीवन के उन सिद्धांतों को जीवित रखा जिनकी वकालत 1967 तक डाक्टर राममनोहर लोहिया करते रहे।
अध्यात्म जी का सम्पूर्ण जीवन चार प्रमुख वैचारिक खंडों में विभक्त रहा- डाक्टर लोहिया के जीवित रहते हुए उनके कार्यक्रमों, आन्दोलनों में सहभागिता, डाक्टर लोहिया की मृत्यु के उपरांत उनके कार्यक्रमों और आन्दोलनों का नेपथ्य में रहकर संचालन, डाक्टर राममनोहर लोहिया समता विद्यालय न्यास के कार्य (हैदराबाद के बदरीविशाल पित्ती जी के अभिभावकत्व में लोहिया साहित्य का संपादन, प्रकाशन व प्रचार-प्रसार) तथा कद्दावर नेता हेमवतीनंदन बहुगुणा जी के साथ सच्चे समाजवाद की स्थापना का आशावाद। लोहिया जी की सप्तक्रान्ति को भी अध्यात्म जी ने अपने चरित्र में पूर्णतः आत्मसात कर लिया था। प्रस्तुत पुस्तक ‘समाजवादी अध्यात्म’ में अध्यात्म जी के जीवन के विभिन्न रंगों को सामने लाने का प्रयास किया गया है। एक प्रयास है इस पुण्यात्मा को श्रद्धांजलि प्रदान करने का, वह सम्मान प्रदान करने का जिसके वे हकदार थे।
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