दशहरा
आता है। हर साल आता है। कुछ वाहन तो कुछ शस्त्र की पूजा करते हैं। नागपुर
में सोने (शमी वृक्ष के पत्ते) का आदान-प्रदान होता है और अंधेरा होते ही
रावण का पुतला दहन होता है। शहर के नामी-गिरामी व्यक्ति के हाथ से यह शुभ
कार्य होता है। फिर सब अपने-अपने घर जाकर सो जाते हैं।
साल दर साल चलने
वाले इन कार्यक्रमों के बीच इस बार का दशहरा लगता है कुछ खासियत लिए आया
है। खास इसलिए कि इस बार देश की जनता में एक नहीं कई रावणों के एक साथ शहीद
हो जाने की आशा जागी है। बात घूम-फिर के अन्ना आंदोलन पर ही आ टिकती है।
वैसे इन दिनों अन्ना चाणक्य की भूमिका में हैं और प्रायोगिक तौर पर अरविंद
केजरीवाल को मौर्य बना दिया गया है। बाकी सब राजनीति के हमाम में नंगे हैं।
तो इस बार रावण
जलाने का अलग ही आनंद रहेगा। जिसे अन्ना विलेन लगें, वो अन्ना का पुतला
जला ले, जिसे कांग्रेस वो कांग्रेस का..... वगैरह-वगैरह।
जिसके जो मन में आए वो करे, मगर इस सवाल का जवाब कौन देगा कि आखिर रावण का पुतला क्यों जलाया जाता है। यानी रावण को बुराइयों का सगुण रूप क्यों माना जाता है। सिर्फ इसलिए कि उसने एक ऐसे महान महिला का अपहरण किया था जो उस समय के राजा के उत्तराधिकारी श्री राम चंद्र जी की अर्द्धांगिनी थीं। रावण ने अपहरण किया लेकिन उनसे अशिष्टता नहीं की। रावण तो प्रकांड विद्वान था। भोलेनाथ शिव का परम भक्त था। अगर रामायण को सही मानें तो रावण को मारने के लिए ही भगवान विष्णु को राम के रूप में अवतार लेना पड़ा।
अब जरा वर्तमान हालात पे आते हैं। जब एक महिला के अपहरण के कारण रावण जैसे तेजस्वी साधक का पुतला सदियों से जलाया जा रहा है तो फिर आज तो राजनीति के कई रावणों का पुतला रोज जलाना चाहिए। यानी रोज ही दशहरा मनाना चाहिए। तब भी शायद वर्तमान रावणों के विनाश के लिए ५-७ साल कम पड़ेंगे। और अगर रावण को जलाना बुराई को जलाने का प्रतिकात्मक रूप है तो फिर रावण के सगुण रूप को क्यों जलाया जाता है। प्रतीक के रूप में आखिर किसी और सगुण रूप का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता। और अगर रावण के रूप में किसी व्यक्ति का पुतला जलाने का नाम ही दशहरा है तब तो कई पुतले जल जाने चाहिए। इससे तो अच्छे हमारे नागपुर में पोला के दिन निकलने वाले मार्बत होते हैं। इसमें जनता के आक्रोश का सगुण रूप देखने को मिलता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मुख्यालय नागपुर में है और उसका देशव्यापी संगठन है। उसे मार्बत की परंपरा से पूरे देश को अवगत कराना चाहिए। खैर, फिलहाल देखना यह है, कल दशहरे की शाम किन-किनकी आकृति के पुतलों का दहन होता है।
जिसके जो मन में आए वो करे, मगर इस सवाल का जवाब कौन देगा कि आखिर रावण का पुतला क्यों जलाया जाता है। यानी रावण को बुराइयों का सगुण रूप क्यों माना जाता है। सिर्फ इसलिए कि उसने एक ऐसे महान महिला का अपहरण किया था जो उस समय के राजा के उत्तराधिकारी श्री राम चंद्र जी की अर्द्धांगिनी थीं। रावण ने अपहरण किया लेकिन उनसे अशिष्टता नहीं की। रावण तो प्रकांड विद्वान था। भोलेनाथ शिव का परम भक्त था। अगर रामायण को सही मानें तो रावण को मारने के लिए ही भगवान विष्णु को राम के रूप में अवतार लेना पड़ा।
अब जरा वर्तमान हालात पे आते हैं। जब एक महिला के अपहरण के कारण रावण जैसे तेजस्वी साधक का पुतला सदियों से जलाया जा रहा है तो फिर आज तो राजनीति के कई रावणों का पुतला रोज जलाना चाहिए। यानी रोज ही दशहरा मनाना चाहिए। तब भी शायद वर्तमान रावणों के विनाश के लिए ५-७ साल कम पड़ेंगे। और अगर रावण को जलाना बुराई को जलाने का प्रतिकात्मक रूप है तो फिर रावण के सगुण रूप को क्यों जलाया जाता है। प्रतीक के रूप में आखिर किसी और सगुण रूप का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता। और अगर रावण के रूप में किसी व्यक्ति का पुतला जलाने का नाम ही दशहरा है तब तो कई पुतले जल जाने चाहिए। इससे तो अच्छे हमारे नागपुर में पोला के दिन निकलने वाले मार्बत होते हैं। इसमें जनता के आक्रोश का सगुण रूप देखने को मिलता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मुख्यालय नागपुर में है और उसका देशव्यापी संगठन है। उसे मार्बत की परंपरा से पूरे देश को अवगत कराना चाहिए। खैर, फिलहाल देखना यह है, कल दशहरे की शाम किन-किनकी आकृति के पुतलों का दहन होता है।
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