इस समय नागपुर का मौसम

रविवार, 18 मई 2014

और भी मायने हैं चुनाव परिणामों के... रुको... देखो.... आगे बढ़ो....



2014 के चुनाव परिणाम न सिर्फ राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं वरन् इन्हें वृहद सामाजिक बदलाव के रूप में भी देखना होगा। साथ ही इस बदलाव में शामिल लोगों का खुले दिल से स्वागत करना होगा। नागपुर का चुनाव परिणाम हमने नजदीक से देखा। यह हुआ है।

देश के बुद्धिजीवी अब भी राजनीति में आए परिवर्तन को नहीं समझ पा रहे हैं। वो इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि परिवर्तन एक प्रक्रिया होती है जिसका कालखंड पूरी तरह उस प्रक्रिया के आकार-प्रकार पर निर्भर करता है।

आज भी इन लोगों को इस बात की अधिक चिंता है कि कांग्रेस क्यों हारी। हमारा समाज, देश विश्व का वर्तमान रूझान, उसका हम पर प्रभाव, जनता की मूल भावना, युवाओं की अपेक्षाएं, युवाओं की सोच जैसे मूलभूत मामलों पर विचार करने की इच्छा शायद किसी को नहीं है। यही कारण है कि देश का मीडिया करोड़ों रूपए खर्च करने के बाद भी युवाओं को अब तक अपना नहीं बना पाया। जब तक प्रिंट मीडिया ने समझना शुरू किया, इलेक्ट्रानिक मीडिया आ गया। जब इलेक्ट्रानिक मीडिया ने समझना शुरू किया, सोशल मीडिया आ गया। जब तक इन लोगों ने फेसबुक को समझा, वाट्स ऐप का ट्रेंड आ गया। अभी तो उम्र का सफल पड़ाव पार कर चुके बुद्धिजीवियों को लैपटाप का मतलब ही नहीं समझा कि युवा वर्ग मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगा।

युवा वर्ग का यह परिवर्तन सिर्फ हिन्दू धर्मावलंबियों में ही हुआ, ऐसा नहीं है। मुस्लिम धर्म के युवाओं में भी वही जोश-खरोश और परिवर्तन की मानसिकता देखने को मिली। आज भी बुद्धिजीविोयं को यह समझ में नहीं आ रहा है कि आम आदमी पार्टी ने देशव्यापी असंतोष को उभारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। असंतोष का यह उफान युवा वर्ग के कारण ही था। लेकिन आम आदमी पार्टी ने भी अतिउत्साह में जिस प्रकार पुरानी सोच के उम्मीदवार उतारे। पुरानी सोच के आधार पर चुनाव लड़ना चाहा, उसे युवा वर्ग ने पूरी तरह नकार दिया। मुस्लिम ही नहीं वरन, हर जाति-सम्प्रदाय के युवाओं ने नई सोच के आधार पर वोट दिया। इसे लहर कहा जाए या एक वृहद समाज की संरचना की आतुरता। देश के युवा वर्ग के इस मर्म को समझना ही होगा। जो नहीं समझेगा, वो इस व्यवस्था के लिए अनुपयोगी हो जाएगा।

अंततः, एक बात दुखद रही है कि मुस्लिम समाज के लोकसभा पहुंचने वाले नुमाइंदों की संख्या इस बार अब तक की न्यूनतम होगी (लगभग 20 य 21)। ऐसे में समाज के प्रबुद्ध वर्ग को इस ओर पहल करना होगा जिससे धर्म आधारित राजनीति को ठुकरा चुके मुस्लिम समुदाय के लोग स्वयं को असुरक्षित या नेग्लेक्टेड महसूस न करें। 

शनिवार, 17 मई 2014

परिवर्तन की शीतल बयार नितिन गडकरी का स्वागत है



आखिरकार जैसा कि पहले से ही अनुमान था, श्री नितिन गडकरी नागपुर से चुनाव जीत गये। सिर्फ जीते ही नहीं वरन अच्छे खासे २.८४ लाख वोटों से जीते। धर्म जाति के आधार पर चुनावों का विश्लेषण करने के आदी लोगों की अकल अब तो कुछ अलग सोचने को मजबूर होगी। मैं पहले ही कहा था नागपुर में दो ही विकल्प है, या तो गडकरी जीतेंगे या फिर भारी बहुमतों से जीतेंगे।

http://anjeevpandey.blogspot.in/2014/03/blog-post.html

१४ मार्च को ही मुझे गडकरी की जीत का अनुमान हो गया था। इस दिन अरविंद केजरीवाल की नागपुर के कस्तूरचंद मैदान पर आम सभा हुई थी। इस सभा को मैंने जनता के स्वस्फूर्त प्रतिसाद के लिए ऐतिहासिक करार दिया था। मगर इसी के साथ यह संभावना जता दी थी कि केजरीवाल की यह सभा कहीं गडकरी की ऐतिहासिक जीत का प्रतीक तो नहीं है।

http://anjeevpandey.blogspot.in/2014/03/blog-post_14.html

गडकरी की जीत इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि देशभर में नागपुर लोकसभा का ही हाईप्रोफाइल चुनाव ऐसा रहा जहां व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप नहीं हुए। आम आदमी पार्टी की अंजलि दमानिया ने जरूर कुछ आरोप लगाने का प्रयास किया लेकिन कांग्रेस के श्री विलास मुत्तेमवार और भाजपा के श्री नितिन गडकरी दोनों ही प्रत्याशियों ने संयमित भाषा के प्रयोग के साथ ही चुनाव प्रचार को अंजाम दिया। टिकट वितरण के पहले ही मुझे इस बात का अनुमान था कि इस चुनाव में कांग्रेस के श्री मुत्तेमवार को ज्यादा वोट मिलें या न मिलें, मगर वो अपना पुराना वोट बैंक कायम रखेंगे। उन्हें मिले ३ लाख वोट इसे साबित करते हैं। मुत्तेमवार जी ने कांग्रेस का वोट बैंक बचाये रखा। ये बात अलग है कि मतदाताओं की संख्या बढ़ने के साथ ही और गडकरी के कार्यों ने उन्हें ५.५ लाख से ज्यादा वोट दिला दिये। बसपा ने भी अपना १.२५ लाख वोटों का बैंक बचाए रखा। आम आदमी पार्टी की अंजलि दमानिया ने जरूर ७० हजार वोट लेकर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। वै मैंने आम आदमी पार्टी को ८० वोट मिलने का अनुमान व्यक्त किया था।
गडकरी की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मतदान के अंतिम दिनों में यह फैलाया गया कि फलानी जाति के इतने वोट हैं, फलाने धर्म के इतने वोट हैं। मगर जो संयमित आचरण श्री गडकरी और श्री मुत्तेमवार ने व्यक्त किया, वही आचरण जनता ने भी व्यक्त किया। धर्म और जाति के नाम पर वोट नहीं पड़े।

http://anjeevpandey.blogspot.in/2014/04/blog-post_8.html


आपको बता दें कि गडकरी सिर्फ लोकसभा जीत के प्रत्याशी ही नहीं हैं, कई और भी मायने हैं गडकरी के। इस संबंध में मेरे पुराने ब्लाग पोस्ट

विजनरी परफार्मर नितिन गडकरी


http://anjeevpandey.blogspot.in/2014/04/1.html

और

गडकरी हैं परिवर्तन की सुहानी बयार

http://anjeevpandey.blogspot.in/2014/04/blog-post.html

जरूर पढ़ें। और भविष्य के नेता को समझें। गडकरी जी को हार्दिक शुभकामनाएँ। बधाई।


बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए को बहुमत के रुझान पर व्यापारी प्रसन्न

देश भर के व्यापारियों के शीर्ष संगठन कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को तेजी सेमिल रहे बहुमत को देश के लिए एक सकारात्मक परिवर्तन बताते हुए देश की अर्थव्यवस्था और भविष्य के लिए एक नए अध्यायकी शुरुआत बताया है !

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खण्डेलवाल ने एन डी  की विजय पर बेहद ख़ुशी जाहिरकरते हुए कहा की इस जीत में देश भर के व्यापारियों का भी बड़ा योगदान है जो इस बात से साफ़ जाहिर होता है की आसाम,पश्चिम बंगाल, अंधत्र प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में भी बीजेपी और एन डी  को जहाँ सीटें भी मिली हैं वहीँ वोटों का शेयर भी बहुतबड़ा है ! देश के व्यापारियिों ने इस चुनाव में खुल कर भाजपा और एन डी  का साथ दिया है !

श्री भरतिया एवं श्री खण्डेलवाल ने आशा व्यक्त की है की श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार  रिटेल ट्रेड को अपनी प्राथमिकतामें रखेगी और बहुप्रतीक्षित सुधारों को गति देगी !



शनिवार, 3 मई 2014

पुस्तक सृष्टि का रहस्य संतुलन का अंश



हमारा शरीर वह तंत्र है जिसके माध्यम से संतुलन का नियम आसानी से समझा जा सकता है। समूचे ब्रह्मांड के संतुलन की प्रक्रिया हमारे शरीर में विद्यमान है। इसलिए तो किसी ने शरीर की कार्यप्रणाली का अध्ययन कर ब्रह्मांड के संबंध में सटीक अनुमान लगाये तो किसी ने समूची सृष्टि का अध्ययन कर शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध कराईं।

मन आत्मा की विक्षुब्ध अवस्था है और आत्मा मन की शांत अवस्था। कितनी आसानी से ओशो ने मन और आत्मा को एक अस्तित्व की दो विभिन्न अवस्थाओं के रूप में समझा दिया।

चेतन, अचेतन, अवचेतन का खेलः मन, चेतना, आत्मा, भौतिकता का मसला सदियों से अनसुलझा है। मनुष्य चेतन और अचेतन नामक मन की दो शक्तियों से कार्य करता है। इसके बीच में किसी ने अवचेतन की अवधारणा रख दी है। मन को उसकी समग्रता से समझने की बजाए हम अवचेतन, चेतन के बीच में ही भटक रहे हैं। कहते हैं कि चेतन मन की शक्ति सीमित है और अचेतन मन की असीमित। अचेतन मन की शक्ति के पीछे एकमात्र कारण यही है कि यही मन की वो अवस्था है जो हमें स्वाभाविक रूप से समूची सृष्टि के साथ जोड़ती है और यही जोड़ योग है, यही योग ईश्वर या समूचे ब्रह्मांड के अस्तित्व के साथ एकाकार कर देता है। चेतन अचेतन अवचेतन के खेल में उलझ कर अब जीवन को और भी असहज बनाया जा रहा है।





मन का संतुलनः मन के संतुलन के लिए सकारात्मक और नकारात्मक सोच या ऊर्जा के बीच संतुलन का तरीका सीखना जरूरी है।
संतुलन का नियम कहता है कि सकारात्मक और नकारात्मकता दोनों सिक्के के दो पहलू हैं। यानी सकारात्मकता भी जरूरी है और नकारात्मकता भी जरूरी है। इस कारण कर लो दुनिया मुट्ठी में, जैसा चाहो वैसा बनो, रहस्य, सकारात्मकता के चमत्कार जैसे सिद्धांतों की अपनी सीमा है।


अच्छाई-बुराई दोनों जरूरी हैः ऐसे ढेर सारे तथ्य हैं, ढेर सारी सचाइयां हैं, जहां अच्छाई व बुराई को परिभाषित करना ही गलत है। दरअसल, अच्छाई व बुराई को परिभाषित करने का आधार हमारी अवधारणाएं होती हैं जो हमें परंपरागत रूप से या फिर किसी अनुभव विशेष या फिर किसी सिद्धांत पर विश्वास करने के कारण जन्म लेती हैं। इसीलिए अच्छाई या बुराई की अपेक्षा सत्य को जानने पर अधिक जोर दिया जाता है। (क्रमशः)

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

फरियाद कुंभकर्ण से- एक माह सुला दो!



हे महामानव कुंभकर्ण
बस जाओ मेरे
तन में, मन में
मेरी आत्मा में 
मुझे फिलहाल चाहिये
सहारा तुम्हारा
निद्रा और जागरण
का मंत्र तुम्हारा...

काफी थक गया हूं
बेगानी शादी में दीवाना बन कर
भीड़तंत्र की आवाज में
लोकतंत्र का पहरुआ बन कर

मतदान तक तो
फिर भी काम था
इस भीड़ को
अब तो है करना
सिर्फ दावे प्रतिदावे
इस भीड़ को

इसलिए अब
मतगणना तक
मुझे सोने का मंत्र दे दो
पूरा नहीं चाहिए
अपने छः माह का
सिर्फ छठवां भाग दे दो
और एक माह मुझे
अच्छी नींद का 
साक्षात्कार करा दो

ताकी जब नींद खुले
तो ऊर्जा से भरपूर रहूं
और इन थके-हारे
रोज-रोज चिल्लाने वालों को
शिद्दत से आइना दिखाऊं
भीड़तंत्र को लोकतंत्र 
का हिस्सा बनाऊं...

हे महामानव कुंभकर्ण
कृपा कर प्रभु।।

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

कांग्रेस का आखिरी हथियार, छोड़ा गया धर्म, जाति का जहरीला रासायनिक बम

 अंततः वही हुआ जो नहीं होना था। नागपुर मे तो कदापि नहीं होना था। विकास और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बुरी तरह विफल कांग्रेस ने आखिर अपना 60 साल पुराना जाना-पहचाना-आजमाया हथियार धर्म और जाति का विषैला बम चला ही दिया। इस चुनाव में कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली। कांग्रेस के नेताओं की खामोशी से ऐसा लगने लगा था कि उन्होंने हथियार डाल दिये हैं लेकिन कल यानी 8 अप्रैल को जब सभी लोग राम नवमी बनाने में व्यस्त थे, कांग्रेस के नेता मुस्लिम, दलित, कुणबी और तेली समाज के वोटर्स को जाति-धर्म की घुट्टी पिला रहे थे। कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि धर्म के नाम पर और जाति के नाम का जहर घोल कर एक बार फिर नागपुर में कांग्रेस काबिज हो जाएगी। 
वैसे आजादी के बाद से आज तक लगातार कांग्रेस की यही स्थिति रही है। इस बार कांग्रेस ने मुस्लिम धर्मावलंबियों के साथ ही सिंधी समाज को भी नितिन गडकरी के खिलाफ खासी घुट्टी पिलाई है। ये सब प्रक्रियाएं चार-पांच दिन पहले से ही जारी थीं। इस चुनाव में खामोश संघ को एक बार फिर मुद्दा बनाने की कोशिश की गई है। लेकिन आम आदमी पार्टी और अजलि दमानिया के कार्यकर्ता इसका तोड़ भी निकालते जा रहे हैं। 
इन तमाम प्रयासों के बीच विभिन्न समाज के लोगों से मेरी व्यक्तिगत चर्चा का यही निष्कर्ष है कि ये 2004 का नहीं, 2014 का चुनाव है। इसमें युवाओ का एक बड़ा तबका तैयार हो चुका है। बुजुर्ग हो चुके लोगों की दकियानूसी सोच से यह तबका प्रभावित नहीं है। यही कारण है कि कांग्रेस की प्रचार रैलियों में युवाओ की उपस्थिति नगण्य रही है। बावजूद तमाम प्रयासों के पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार कांग्रेस को कम वोट मिलने की बात कायम है। क्योकि परिवर्तन की लहर आती ही इसलिए है कि उसे पुरानी मान्यता, परंपरा को समाप्त करना होता है। इस नैचरल नियम को झुठलाना यानी अपने अस्तित्व को ही चुनौती देना है।

रविवार, 6 अप्रैल 2014

विजनरी परफार्मर नितिन गडकरी - 1





राजनीति की दहकती भट्टी मे शीतल मंद बयार

नागपुर से लोकसभा के प्रत्याशी और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी को विकास पुरुष के नाम से जाना जाता है. इसका कारण है कि उन्होंने विकास को लोकतांत्रिक बनाया है. विकास को आम जनता तक पहुंचाया है.
विकास पुरुष की उनकी इमेज में उनका विजनरी परफार्मर होना काफी सहायक रहा है. गडकरी विजनरी परफार्मर हैं. मैंने फेसबुक के एक कमेंट में लिखा था कि आम आदमी पार्टी के लोग एक्टिविस्ट हैं. यानी ये लोग बुराई के खिलाफ आवाज उठाते हैं. जबकि नितिन गडकरी विजनरी परफार्मर हैं. विजनरी इसलिए क्योंकि इनके पास विजन है (यही कारण है इन्हें भाजपा की राष्ट्रीय विजन समिति का अध्यक्ष बनाया गया है). विजन है, सोच है और सिर्फ सोच ही नहीं है बल्कि इस सोच को कार्यरूप में परिणित करने का माद्दा भी है.

समस्या का समाधान खोजते हैं

नितिन गडकरी कभी समस्या पर अधिक चर्चा नहीं करते. जब उन्हें कोई अपनी समस्या बताता है तो उनका ध्यान तुरंत समस्या के समाधान की ओर चला जाता है. जैसे किसी को हार्ट के ऑपरेशन के लिए पैसे चाहिए. गडकरी तुरंत किसी डॉक्टर को फोन कर देंगे और सामने वाली की समस्या का हल हो जाएगा. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के निकट रहते और इसे स्वीकार करते हुए गडकरी ने नागपुर शहर में जाति-धर्म की दीवार तोड़ी. हजारों मुसलमानों, गरीबों के हार्ट का ऑपरेशन, आंखों का ऑपरेशन अलग-अलग योजनाएँ बना कर कराया.

दूर की सोच और उसका क्रियान्वयन

पूर्ति उद्योग समूह, जिस कारण गडकरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, सोच को कार्यरूप में परिणित करने का सबसे बड़ा उदाहरण है. गडकरी खामोशी से कई बड़ी क्रांतियों के जनक रहे हैं. जब वे महाराष्ट्र के पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर थे, उस समय सिविल इंजीनियरों की बेरोजगारी को दूर करने के लिए हजारों युवाओं को ठेकेदार बना दिया. सिर्फ मार्गदर्शन ही नहीं किया बल्कि उन्हें काम भी दिलाया और काम करने के लिए धन दिलाने में भी मदद की. यही सिलसिला पूर्ति उद्योग समूह में चला. एक बंद पड़ा शक्कर कारखाना लिया. किसानों को उसमें शेयर होल्डर बनाया. उनसे गन्ने की खेती कराई, गन्ना लगाने के धन उपलब्ध कराया, पूरा गन्ना खरीदा. आज हजारों किसानों की माली हालत इस कारण सुधर गई है. शक्कर कारखाने के वेस्ट से अल्कोहल बनाना और गन्ने की रद्दी से गत्ते बनाना. यानी हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा-चोखा.

मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

गडकरी है परिवर्तन की सुहानी बयार


बात भले ही गले के नीचे उतरने में समय लगे, परन्तु ये सच है कि गडकरी के रूप में देश ऐसे परिवर्तन की ओर कदम रख चुका है जिसका आक्रामक रूप हाल ही में दिल्ली में दिखा है। हमारे देश में गत दो वर्षों से तेजी से बदल रहे घटनाक्रम को कोई एक-दो वर्षों के उन्माद के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। अन्ना हजारे के आंदोलन से परिपर्तन के चाह की जो जीजीविषा दिखने लगी, उसकी शुरुआत तो काफी पहले से हो गयी थी। इस परिवर्तन की छाप हमारे जीवन के हर अंगों में दिखाई दे रहा है। फिर क्यों कर राजनीतिक परिदृश्य इससे अलग होने लगा। राजनीति भी हमारे जीवन का एक अंग है और यह हमें प्रभावित भी करती है।
दिल्ली में एक तूफान सभी ने देखा। इस तूफान ने कांग्रेस का बिस्तर ही गोल कर दिया। अनपेक्षित था ऐसा होना। मगर इसके पहले ही परिवर्तन की एक मंद बयार भी दिल्ली पहुंची थी जिसे किसी ने अधिक नोटिस नहीं किया क्योंकि यह बयार हमें सुकून देने वाली थी। यह सुकून देने वाली बयार थीNitin Gadkari नितिन गडकरी की भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी। जिन लोगों ने परिवर्तन की बयार को नोटिस किया, उन्होंने खामोश रहना ही उचित समझा और पीठ पीछे इसे बेअसर करने की राजनीति करते रहे।
दरअसल, हमारी जीवन शैली व सोच इतनी असहज और कृत्रिम हो चुकी है कि हमें सहज बातें दिखती ही नहीं हैं। इसी कारण हम हवा की पहचान तभी करते हैं, यह आंधी या तूफान बन जाए। यानी जब तक किसी से डर न लगे, वह बड़ा आदमी नहीं लगता है। खैर, बात उस खामोश क्रांति की हो रही थी जो भारत का भविष्य है। जिस समय गडकरी को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया, उस समय हम लोगों के गले के नीचे यह बात नहीं उतरी थी। मगर इसके बाद हमने शुरू किया, गडकरी के व्यक्तित्व का सिलसिलेवार अध्ययन। गडकरी का व्यक्तित्व आडवाणी और मोदी के हिन्दुत्व से मेल नहीं खाता। यही कारण है कि कॉलेज के जमाने से ही गडकरी संघ की शाखा मे तो जाते ही थे लेकिन उनके कई घंटे समाजवादी आंदोलन से जुड़े लोगों के साथ भी गुजरता था। अपने उस आधार को गडकरी ने सदा ही बनाए रखा है।
आज सुबह ही गडकरी ने राम के संबंध में जो बयान दिया, उसने इस धारणा को पुख्ता किया है कि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब हिन्दुत्व को नये और सही स्वरूप में परिभाषित करना चाहता है। गडकरी की ताजपोशी इसी क्रम में किया गया एक फैसला था। मजे की बात यह है कि इस चुनाव में संघ, मंदिर जैसे मुद्दे कहीं पिक्चर में ही नहीं हैं। गडकरी की टिप्पणी थी कि राम को गलत तरीके से न लिया जाए। उन्होंने राम राज्य की बात की जहां सुशासन था, विकास था। धर्मांधता फैलाने वाली बात नहीं की।
नागपुर में गडकरी के चुनाव प्रचार को देखते हुए अब बदलाव के बयार की अवधारणा स्थापित हो रही है। इस चुनाव में गडकरी भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी हैं। तो स्वाभाविक रूप से पार्टी के लोग उनका प्रचार का कार्य कर रहे हैं। मगर इसके साथ ही गैर भाजपायी लोगों का एक बहुत बड़ा तबका भी इसमें जुटा हुआ है। इसे मैंने अपने ब्लाग पोस्ट गडकरी जीतेंगे या भारी बहुमत से जीतेंगेhttp://anjeevpandey.blogspot.in/2014/03/blog-post.html में गडकरी ब्रिगेड के नाम से संबोधित किया है। तो इंतजार करते हैं और देखते हैं, बदलाव आक्रामक तरीके से होता है या सुकून से। मगर बदलाव तो अवश्यंभावी है। आक्रामक तरीका अभी जोरों पर है। सुकून से बदलाव की बात तब समझ में आएगी जब बदलाव दिखने लगेगा।
अंततः- हर प्रक्रिया के पूरा होने में निर्धारित समय लगना ही है। समझदारी इसी में है कि प्रक्रिया को उसके समय पर ही पूरा होने दें, अन्यथा प्रकृति के संतुलन की प्रक्रिया में इसका असर पड़ता है और फिर प्रकृति के अपने तय नियम काम करते हैं। जैसे बच्चा अगर 7 माह में पैदा हो जाए तो जानते हैं कितनी परेशानी होती है। इसी प्रकार अब बदलाव की यह प्रक्रिया भी अपने समय में पूरी होगी। हम तो भाई भजन करते हुए इस प्रक्रिया के पूरे होने के तरीके देख कर प्रकृति के तौरतरीके सीख रहे हैं।