2014 के चुनाव परिणाम न सिर्फ राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं वरन् इन्हें वृहद सामाजिक बदलाव के रूप में भी देखना होगा। साथ ही इस बदलाव में शामिल लोगों का खुले दिल से स्वागत करना होगा। नागपुर का चुनाव परिणाम हमने नजदीक से देखा। यह हुआ है।
देश के बुद्धिजीवी अब भी राजनीति में आए परिवर्तन को नहीं समझ पा रहे हैं। वो इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि परिवर्तन एक प्रक्रिया होती है जिसका कालखंड पूरी तरह उस प्रक्रिया के आकार-प्रकार पर निर्भर करता है।
आज भी इन लोगों को इस बात की अधिक चिंता है कि कांग्रेस क्यों हारी। हमारा समाज, देश विश्व का वर्तमान रूझान, उसका हम पर प्रभाव, जनता की मूल भावना, युवाओं की अपेक्षाएं, युवाओं की सोच जैसे मूलभूत मामलों पर विचार करने की इच्छा शायद किसी को नहीं है। यही कारण है कि देश का मीडिया करोड़ों रूपए खर्च करने के बाद भी युवाओं को अब तक अपना नहीं बना पाया। जब तक प्रिंट मीडिया ने समझना शुरू किया, इलेक्ट्रानिक मीडिया आ गया। जब इलेक्ट्रानिक मीडिया ने समझना शुरू किया, सोशल मीडिया आ गया। जब तक इन लोगों ने फेसबुक को समझा, वाट्स ऐप का ट्रेंड आ गया। अभी तो उम्र का सफल पड़ाव पार कर चुके बुद्धिजीवियों को लैपटाप का मतलब ही नहीं समझा कि युवा वर्ग मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगा।
युवा वर्ग का यह परिवर्तन सिर्फ हिन्दू धर्मावलंबियों में ही हुआ, ऐसा नहीं है। मुस्लिम धर्म के युवाओं में भी वही जोश-खरोश और परिवर्तन की मानसिकता देखने को मिली। आज भी बुद्धिजीविोयं को यह समझ में नहीं आ रहा है कि आम आदमी पार्टी ने देशव्यापी असंतोष को उभारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। असंतोष का यह उफान युवा वर्ग के कारण ही था। लेकिन आम आदमी पार्टी ने भी अतिउत्साह में जिस प्रकार पुरानी सोच के उम्मीदवार उतारे। पुरानी सोच के आधार पर चुनाव लड़ना चाहा, उसे युवा वर्ग ने पूरी तरह नकार दिया। मुस्लिम ही नहीं वरन, हर जाति-सम्प्रदाय के युवाओं ने नई सोच के आधार पर वोट दिया। इसे लहर कहा जाए या एक वृहद समाज की संरचना की आतुरता। देश के युवा वर्ग के इस मर्म को समझना ही होगा। जो नहीं समझेगा, वो इस व्यवस्था के लिए अनुपयोगी हो जाएगा।
अंततः, एक बात दुखद रही है कि मुस्लिम समाज के लोकसभा पहुंचने वाले नुमाइंदों की संख्या इस बार अब तक की न्यूनतम होगी (लगभग 20 य 21)। ऐसे में समाज के प्रबुद्ध वर्ग को इस ओर पहल करना होगा जिससे धर्म आधारित राजनीति को ठुकरा चुके मुस्लिम समुदाय के लोग स्वयं को असुरक्षित या नेग्लेक्टेड महसूस न करें।
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