हे महामानव कुंभकर्ण
बस जाओ मेरे
तन में, मन में
मेरी आत्मा में
मुझे फिलहाल चाहिये
सहारा तुम्हारा
निद्रा और जागरण
का मंत्र तुम्हारा...
काफी थक गया हूं
बेगानी शादी में दीवाना बन कर
भीड़तंत्र की आवाज में
लोकतंत्र का पहरुआ बन कर
मतदान तक तो
फिर भी काम था
इस भीड़ को
अब तो है करना
सिर्फ दावे प्रतिदावे
इस भीड़ को
इसलिए अब
मतगणना तक
मुझे सोने का मंत्र दे दो
पूरा नहीं चाहिए
अपने छः माह का
सिर्फ छठवां भाग दे दो
और एक माह मुझे
अच्छी नींद का
साक्षात्कार करा दो
ताकी जब नींद खुले
तो ऊर्जा से भरपूर रहूं
और इन थके-हारे
रोज-रोज चिल्लाने वालों को
शिद्दत से आइना दिखाऊं
भीड़तंत्र को लोकतंत्र
का हिस्सा बनाऊं...
हे महामानव कुंभकर्ण
कृपा कर प्रभु।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें