मल्टीप्लेक्स सिनेमा के आने के बाद अर्थशास्त्र बदल रहा है
भारत का मीडिया और मनोरंजन जगत नई ऊँचाइयाँ छू रहा है और ऐसा माना जा रहा है कि साल 2011 तक इस क्षेत्र का कारोबार दस हजार करोड़ रूपए का आंकड़ा छू सकता है.
पिछले ही साल मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में 20 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है.
बॉलीवुड के दिग्गज डायरेक्टर और यशराज फिल्म्स के कर्ताधर्ता यश चोपड़ा कहते हैं, '' फिल्म इंडस्ट्री का कार्पोरेटाइजेशन होने की वजह से इसके काम करने के तरीके में काफी बदलाव आया है."
वे कहते हैं, "पहले हम जहाँ किसी फिल्म के 100-50 प्रिंट निकालकर खुश होकर अपनी पीठ थपथपाने लगते थे, आज समय बदल चुका है, अब हम उससे कहीं कम समय में ज्यादा प्रिंट निकाल रहे हैं. डिजिटल सिनेमा के आने से इस क्षेत्र का बहुत तेजी से विकास हो रहा है.''
यश चोपड़ा इंडस्ट्री में कई कार्पोरेट घरानों के आने से भी खुश दिखाई देते हैं. उनका कहना है कि फिल्म इंडस्ट्री में तेजी से कार्पोरेटाइजेशन हो रहा है, जिसकी वजह से यहाँ काम में पारदर्शिता आ रही है और गुणवत्ता भी सुधरी है. साल 2006 में रीलिज हुईं आधी से ज्यादा फिल्में, कार्पोरेट्स ने बनाईं.
फिल्म इंडस्ट्री का कार्पोरेटाइजेशन होने की वजह से इसके काम करने के तरीके में काफी बदलाव आया है
यश चोपड़ा
पिछले कुछ सालों से जिस तरह से कार्पोरेट सेक्टर ने मीडिया और मनोरंजन जगत में तेजी से अपने हाथ आजमाने शुरु किए हैं उससे काफी हद तक तस्वीर बदली है. हाल ही में यूटीवी और मशहूर निर्देशक ओमप्रकाश मेहरा ने एक साथ छह फिल्में बनाने का करार किया है.
यूटीवी के उपाध्यक्ष सिद्धार्थ कपूर भी मानते हैं कि कारपोरेट जगत के इस क्षेत्र में दिलचस्पी की वजह से काफी बदलाव आया है.
वे कहते हैं कि ''ऐसा होने से इंडस्ट्री को काफी फायदा मिल रहा है. कम समय में फिल्मे बन रही हैं, सब कुछ नियमित ढंग से हो रहा है. फिल्म मेकिंग अब एक सीरियस बिजनेस बन चुका है और अब इसमें भी कारपोरेट जगत की ही तरह काम होना शुरु हो गया है जिससे इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की सोच में परिवर्तन हो रहा है.''
इसके अलावा महानगरों में मल्टीप्लेक्स सिनेमा के आने से इस इंडस्ट्री की कमाई पर काफी असर पड़ा है. साथ ही डीजिटल सिनेमा अब लोगों की खास पसंद के तौर पर उभर रहा है. मल्टीप्लेक्स का दायरा बी ग्रेड शहरों से होता हुआ अब कस्बों तक धीरे-धीरे पहुँच रहा है.
फ़िल्म कारोबार पर नज़र रखने वालीं इन्दु मिरानी का कहना है कि '' आज लोगों की पसंद बदल रही है, उन्हें ज्यादा और ज्यादा की चाह है. दर्शक अब अलग-अलग तरह का मनोरंजन पसंद करता है. ऐसे में इस सेक्टर का तेजी से विकास हो रहा है और ये आने वाले समय में और बढ़ेगा. ''
तेजी से विकास
मीडिया में भी तेजी का रुख देखा जा रहा है, बात चाहे टेलीविजन की हो या रेडियो या फिर प्रिंट की तीनों ही क्षेत्रों में तेजी से विकास हो रहा है.
टीवी चैनलों का कारोबार तेज़ी से बढ़ा है
टेलीविजन इंडस्ट्री ने पिछले तीन सालों में नई सफलताएँ हासिल की हैं. टीवी चैनलों की कमाई 2011 तक लगभग दो हज़ार करोड़ रु होने की संभावना है. इस क्षेत्र में अगले पाँच सालों तक 22 फीसदी की बढ़त होने की उम्मीद की जा रही है.
मुंबई में हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक समर हलंकर भी मानते हैं कि ''पिछले दिनों तेजी से आए टीवी चैनलों की वजह से मीडिया में तेजी से बदलाव आया है. अब लोगों के पास ज्यादा मात्रा में चुनने की स्वतंत्रता उपलब्ध है. लोगों के पास समय कम है और लोग अलग-अलग तरह का मनोरंजन चाहते हैं. साथ ही भारत की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था भी एक बड़ी वजह है जिससे कि मीडिया सेक्टर में तेजी से विकास हो रहा है.''
एफ़एम-2 पॉलिसी के आने के बाद रेडियो के क्षेत्र में भी तेजी से विकास हो रहा है. अगले पाँच सालों में इसमें 28 फीसदी की विकास दर रहने की उम्मीद की जा रही है. रेडियो आज भी इस देश में मनोरंजन का सबसे बड़ा और सस्ता साधन है.
साल 2005 में सरकार के विदेशी निवेश के रास्ते खोलने के बाद और एफ़एम-2 रेडियो पॉलिसी के तहत कई बड़ी विदेशी कंपनियों के आने से भी इसमें तेजी का रुख देखने को मिल रहा है.
पिछले तीन सालों में घरेलू मीडिया और मनोरंजन उद्योग में 40 करोड़ रूपए का विदेशी निवेश हुआ है, जिसके भविष्य में और बढ़ने की संभावना है। पिछले साल सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने इस क्षेत्र में 13 नए विदेशी निवेश के प्रस्तावों को मंजूरी दी, जबकि लगभग 22 ऐसे मामलों पर मंजूरी मिलना अभी बाक़ी है.
साभार : बीबीसी हिंदी
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