पारिवारिक संबंधों की मीमांसा (?) करता भारतीय मीडिया
काफी अंतराल बीत चुका है देश के इलेक्ट्रानिक चैनलों पर पटना के प्रो. मटुकनाथ और उनकी प्रेमिका जूली के प्रेम प्रसंग को महिमामंडित किए हुए, लेकिन जनता के जहन में अब भी उस प्रसंग की याद ताजा है और जब भी सब कुछ भूलने के कगार पर पहुंचता है, किसी न किसी मुद्दे पर फिर से इन दोनों को स्क्रीन पर लाकर उन भूलीबिसरी यादों को ताजा कर दिया जाता है. तमाम टीवी शोज के माध्यम से कहीं न कहीं इस संबंध पर आम सहमति बनाने का प्रयास किया गया और कुछ हद तक मीडिया इसमें सफल भी हुई. मिश्रित प्रतिक्रियाओं का दौर चलता रहा. न तो समाज के रहनुमा ही अपनी बात ठीक से रख पाए और न ही प्रो. मटुकनाथ और जूली को सही तरीके से पेश किया जा सका. शायद यही कारण रहा कि समय बीतने के साथ ही मटुकनाथ लवगुरू के रूप में चचिॆत हो गये.
अब नया मामला
इस विवादित प्रेम प्रसंग का अभी खात्मा भी नहीं हुआ था कि २ मई को इंडिया टीवी और जी-न्यूज चैनल ने एक बार फिर पंजाब के एक ५५ वषीॆय व्यक्ति की उसके बीवी और बहुओं द्वारा की गई पिटाई का लाइव कवरेज परोस दिया। इस लाइव कवरेज के फुटेज में इस व्यक्ति और इसकी कथित प्रेमिका की बेददीॆ से पिटाई की गई और कथित प्रेमिका के कपड़े फाड़ दिये गए. इतना ही नहीं उस कथित प्रेमिका के अंतवॆस्त्रों के दशॆन भी फुटेज में कराए गए. इस विसंगतिपूणॆ कवरेज के बाद भी जब मीडिया का मन नहीं भरा तो मारपीट करने वाली उस व्यक्ति की बीवी और दोनों बहुओं से लाइव साक्षात्कार का सिलसिला शुरू हुआ. इसमें इन औरतों ने जायदाद का आलाप शुरू कर दिया. न तो वह व्यक्ति कहीं दिखाई दिया और न ही उसकी कथित प्रेमिका.
परिवार सलाह केंद्र बना मीडिया
उक्त दोनों घटनाओं के बाद अब लगता है कि हमारे देश का मीडिया एक परिवार सलाह केंद्र की भूमिका भी अदा करने लगा है और वो भी ब्रेकिंग न्यूज के माध्यम से. ऐसा लगता है किसी परिवार के अंतकॆलह को उजागर करना ही अब इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए ब्रेकिंग न्यूज बन गया है. अगर परिवार सलाह केंद्र की भूमिका ही अदा करनी है तो मीडिया को इसके लिए अलग से एक कायॆक्रम बना लेना चाहिए जिसमें विशेषग्यों को शामिल करना चाहिये. मीडिया को यह अधिकार किसने दिया कि वह किसी व्यक्ति को अपराधी करार दे. आरोपी को अपराधी नहीं बनाया जा सकता. लोकतंत्र में यह अधिकार न्यायालय को है कि वह किसी व्यक्ति को अपराधी करार दे. जी न्यूज में इस व्यक्ति को बाकायदा अय्याश, रंगीनमिजाजी बता दिया गया.यह सब क्या इंगित करता है. शायद अपने कुछेक स्ट्रिंग आपरेशन की सफलता ने इलेक्ट्रानिक मीडिया को अहंकार का शिकार बना दिया है. यह ऐसा अहंकार है जो टूटते देर नहीं लगेगी अगर लोकतंत्र के तीन स्तंभ मजबूत बन जाएं. कम से कम अगर ऐसे मामलों पर विधायिका एक हो गई तो इस प्रकार का दुस्साहस करना इनके लिए मुश्किल हो जाएगा.
पत्रकारिता की आत्मा के साथ खिलवाड़
भारत देश विविध संस्कृति, सभ्यता, गौरवपूणॆ इतिहास के साथ ही संवेदनशील पत्रकारिता के लिए भी जाना जाता है. संवेदनशीलता इसकी आत्मा है. हालांकि, बाजारवाद के इस दौर में कई बार हम पत्रकारों को अपने उसूलों से समझौता करना पड़ता है परन्तु यह सच है कि संवेदना प्रदशिॆत करते समय हम किसी भी मिथ्यापन से समझौता नहीं करते. किसी घटना को सामने रखते समय सिफॆ उसके तथ्यों को सामने लाया जाता है. उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने का अलग मंच होता है. मटुकनाथ और अब २ मई के प्रकरण ने तो ऐसा साबित कर दिया कि किसी पुरुष का अपमान करना ही मीडिया का काम है. कहीं न कहीं मीडिया उन ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट की तरह हो गई है जो सिफॆ सनसनी पर विश्वास रखते हैं. क्या सनसनी फैलाना ही एक मात्र उद्देश्य बचा है. इसका समाज पर क्या असर हो रहा है, उस व्यक्ति के मानवाधिकार का किस प्रकार उल्लंघन हो रहा है, यह देखना क्या मीडिया का धमॆ नहीं? क्या सनसनी की आड़ में मीडिया संवेदनहीन हो गई है.
विवाहित जीवन का स्याह पक्ष
बड़े भारी मन से यह कहना पड़ रहा है कि अब तक शोषित, पीड़ित समझी जा रही महिला के पक्ष में ही तमाम कायदेकानून हैं। कुछ दिनों पूवॆ सुप्रीम कोटॆ ने एक निणॆय दिया था जिसमें शारीरिक संबंधों न बनाने को मानसिक प्रताड़ना का अंग माना गया। यह निणॆय क्या हुआ, महिलाओं के कथित ठेकेदारों के तेवर तल्ख हो गए. किसी ने भी इस बात की वकालत नहीं की कि उपेक्षित सेक्स संबंधों के समय पुरुष क्या करे. इन मामलों में मनोचिकित्सक की राय क्यों नहीं ली जाती. सेक्स संबंधों की उपेक्षा का असर किस प्रकार शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, यह इस लेख का मुद्दा नहीं है परन्तु है जगजाहिर. देश में दहेज प्रताड़ना, स्त्री प्रताड़ना से जुड़े कई कानून हैं परन्तु इनका गलत इस्तेमाल करने के लिए कोई कानून नहीं है. स्त्री-पुरुष एकता की बात करते हुए दूसरे पक्ष को क्यों भूला जा रहा है. धारा ४९८ ए का उपयोग कोई भी स्त्री कर सकती है. कई बार पति-पत्नी के अहं का टकराव भी इन धाराओं के इस्तेमाल का कारण बन जाता है.
अंत में
इस प्रकार के प्रसंगों को भविष्य में प्रसारित करते समय मीडिया को दोनों पक्षों का गंभीरता से विचार करना चाहिए. वेस्टनॆ देशों की तजॆ पर मीडिया को सनसनी फैलाने से बचना चाहिए. अन्यथा जनता का जो विश्वास इतने सालों से मीडिया पर बना है, उसे टूटते देर नहीं लगेगी.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें