गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात पर ब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवै नमः।।
गुरु को साक्षात परब्रह्म बताया गया है. हिन्दू मान्यता में गुरु का स्थान जन्मदाता ब्रह्मा, पालनकर्ता विष्णु और संहारक महेश से भी ऊपर है. इसीलिए कबीर दास ने लिखा है-
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाये
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताए
मतलब साफ है- गुरु ही है जो हमें ईश्वरीय सत्ता का मार्ग और रहस्य बताता है. आध्यात्मिक अर्थों में गुरु का स्थान सर्वोच्च है. गुरु शब्द गु और रु से बना हुआ है. गु का अर्थ है अज्ञानता का अंधकार और रु का अर्थ है ज्ञान के प्रकाश में लाने वाला. अर्थात गुरु वही है जो हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश में लाए। गुरु का मतलब लोग सामान्यतः शिक्षक भी समझ लेते हैं लेकिन आध्यात्मिकता और धार्मिक मान्यताओं में फर्क के अनुसार ही गुरु, पुजारी और शिक्षक के बीच का फर्क समझना जरूरी है।
सद्गुरु श्रीयुत नरेंद्र दादा
विज्ञान के इस युग में कपोलकल्पित धारणाओं से परे यदि यथार्थ की बात की जाए तो गुरु की उक्त अवधारणा मेरे भी जीवन में चरितार्थ हुई. रविनगर स्थित दादाधाम के प्रणेता श्रीयुत नरेंद्रदादा एलपुरे इन्हीं आध्यात्मिक क्षमताओं से भरे हैं. आध्यात्मिकता और सांसारिकता का सुंदर समन्वय स्थापित करते हुए नरेंद्र दादा ने दादाधाम जैसे पवित्र और जागृत धाम की स्थापना की स्थापना की है.
२० वर्षों से अडिग है आस्था
श्रीयुत नरेंद्र दादा से २० वर्षों पूर्व जब मैं मिला था, तब से लेकर आज तक आस्था अडिग है. एक गुरु के अलावा मैंने उन्हें समय-समय पर माता-पिता, भाई-बहन, सच्चे मित्र व मार्गदर्शक और इससे भी बढ़कर धार्मिक, सामाजिक परंपराओं के कुशल निर्वाहक के साथ ही आध्यात्मिक शिखर पुरुष के रूप में पाया है. मैं यह सब दावे के साथ इसलिए कहने की जरूरत कर रहा हूं क्योंकि किसी अधपके या परिस्थितिजन्य विश्वास को वास्तविकता की कसौटी पर कसने के लिए २० वर्षों का समय कम नहीं होता. वो भी जिन्दगी का वह अंतराल जब व्यक्ति युवावस्था में प्रवेश कर परिपक्व मनुष्य बनता है.
जब पहली बार मिला
जीवन के १९वें वर्ष में प्रवेश किया एक युवक. उस समय किसी अनजाने लक्ष्य की तलाश में मैं किंचित विचलित सा रहता था. एक दिन भावनात्मक आवेगों के कारण मन काफी व्यथित था. विचार शून्य से आते और शून्य में विलीन हो जाते. मैंने उस दिन शहर के पूर्व से पश्चिम तक सभी मंदिरों में भगवान के दर्शन किए लेकिन व्यथा कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. मेरे एक शुभचिंतक ने मुझे नरेंद्र दादा से मिलने की सलाह दी. मैं उनके साथ दादा के डी-५-२, रविनगर स्थित निवास पर गया. वह दौर था जब दादा सबसे नहीं मिलते थे. खैर, वहां पहुंचते ही मुझे अजीब सी शांति का अहसास हुआ. थोड़ी देर इंतजार के बाद दादा बाहर आए और मुझसे औपचारिक बात की. उन्होंने मुझे शिवस्वरूप दादाजी धूनीवाले की पूजा का मार्ग बताया. उस दौर में मेरा मन काफी चंचल रहता था. विकारों का प्रभाव अपना काम करता रहता था. हालांकि यह आज भी है लेकिन उस समय पता नहीं किस प्रकार का आकर्षण या ये कहें नाता दादा से जुड़ गया जो समय बीतने के साथ ही हर पल मजबूत होता गया.
चमत्कार को नमस्कार नहीं
अध्यात्म अनुभूति का विज्ञान है. इस लिहाज से मेरे जीवन में दादा से जुड़ी कई अनुभूतियां रहीं. इनमें से कुछ को आम भाषा में चमत्कार की संज्ञा भी दी जाती है. साक्ष्य या प्रमाण नहीं होने के कारण मैं इस समय उन अनुभूतियों का जिक्र नहीं करना चाहता क्योंकि श्रीयुत नरेंद्र दादा ने सदैव ही चमत्कार को नमस्कार करने से मना किया है. सही भी है, किसी चमत्कार की आशा में नमस्कार करने का एक अर्थ यह भी है कि चुंकि हम शीश झुका कर ईश्वर पर उपकार कर रहे हैं इसलिए ईश्वर को भी तत्काल चमत्कार दिखाना चाहिए और हमारी मांग पूरी करनी चाहिए.
सदैव दिखा गुरु का बड़प्पन
श्रीयुत नरेंद्र दादा को हम भक्तगण प्यार से दादा कहते हैं. दादाधाम की नींव पड़ने के बाद से अब जबकि यह वट वृक्ष का रूप ग्रहण कर चुका है, मैंने लाखों लोगों को दादा से मिलते देखा. हजारों की संख्या में भक्तों को नजदीक जाते देखा. जिनकी आस्था पक्की थी, वो सतत उनके साथ हैं और जिनका प्रारब्ध उन्हें खींच लाया था वो कुछ दूर हो गये. मुझे आज इस बात का फक्र है कि मैं उन चंद खुशनसीबों में हूं जिन्हें दादा ने नजदीकी प्रदान की. मलाल तो इस बात का है कि मैंने हर सम्पन्न समय में इस नजदीकी से मिली खुशनसीबी का दुरुपयोग किया. यह दादा का बड़प्पन ही रहा कि उन्होंने सदैव नसीहत के साथ मुझे क्षमा कर दिया. सिर्फ मेरे साथ ही नहीं अपितु उन्होंने हर भक्त को क्षमा किया. कई लोगों को मैंने भस्मासुर भी बनते देखा लेकिन दादा ने सदैव गुरु का बड़प्पन दिखा कर क्षमा कर दिया. मेरा क्रांतिकारी मन कई बार दादा की इस क्रिया को लेकर विद्रोह कर देता था. लेकिन दादा ने सदैव सौम्यता से गेंद ईश्वर दादाजी धूनीवाले के पाले में डाल दी.
गृहस्थ जीवन बनाम आध्यात्मिक शिखर
गृहस्थ जीवन में रहते हुए आध्यात्मिक और सांसारिकता के समन्वय का बेहतरीन उदाहरण हैं मेरे गुरुवर. जहां तक आध्यात्मिकता का प्रश्न है- मैंने व्यक्तिगत तौर पर पाया है कि लौकिक, परालौकिक किसी भी समस्या का जिक्र उनके सामने नहीं करना पड़ता है. कल भी वही होता था, आज भी वही होता है. जब भी किसी झंझावत में मैं उनके सामने गया, उन्होंने सदैव ही स्वस्फूर्त मेरे हर प्रश्न का उत्तर दे दिया. कभी कोई समस्या बताने की जरूरत नहीं पड़ी. प्रारब्ध को धैर्य के साथ स्वीकार करना मैंने उन्हीं से सीखा. जिंदगी में मैंने कई उतार-चढ़ाव देखे. आज भी देख रहा हूं. यह मेरी अपरिपक्वता ही है कि दादा की याद तभी आती है जब कोई गंभीर संकट आता है.
वात्सल्यप्रिय दादा
दादा को आम तौर पर गंभीरता से लोगों की समस्या पर चर्चा करते हुए या फिर भजन में लीन देखा है. मगर इस गंभीर व्यक्तित्व में वात्सल्य भाव भी कूट-कूट कर भरा है. बच्चों के साथ उछलकूद करते देखना भी मेरे जीवन का अविस्मरणीय पल रहा. दादा की कटाक्ष और डांटफटकार सुनकर जितना गुस्सा आता है, उतनी ही गुदगुदी तब होती है जब वो अचानक मित्रवत् व्यवहार करने लगते हैं.
समानताप्रियता
दादाधाम के निर्माण के शुरुआती दिनों में सक्रिय भक्त समूह में आर्थिक, शारीरिक असमानता साफ दिखती थी. वो दिन मुझे याद है जब विधानसभा चुनाव के परिणाम के लिए यूनिवर्सिटी मैदान में शामियाना तना था. कुछ भक्तों ने बाहुबली होने जैसा कृत्य किया था. उस समय दादा ने मुझे कहा था कि वो दिन भी आएगा जब शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पियेंगे. आज वो समानता दादाधाम में दिखने लगी है. दंभी भक्त रणछोड़दास बन चुके हैं.
वायुमंडल की भी चिंता
दादा को अपने शिष्यों की तो चिंता है, उनका ध्यान पर्यावरण संरक्षण पर भी है. तुलसी लगाओ, प्रदूषण हटाओ अभियान के दौरान मैंने पाया कि दादा ने तुलसी के धार्मिक महत्व से अधिक महत्व उसके वैग्यानिक गुणों को दिया. तुलसी का पौधा २४ घंटे आक्सीजन देता है. यह वायुमंडल की ओजोन सतह को अधिक सघन करने में सहायक है.
नतमस्तक
गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर मैं दादा के सामने एक बार फिर नतमस्तक हूं जिन्होंने न सिर्फ मेरा जीवन संवारा बल्कि जरूरत के समय अपना घर-परिवार छोड़कर उन असंख्य भक्तों के साथ खड़े नजर आए जिनके लिए दादा ही सबकुछ हैं. मेरे अराध्य भोले शंकर दादाजीधूनी वाले के चरणों में प्रार्थना है कि समूचे मानव कल्याण के लिए उन्हें दीर्घायु तथा साधन संपन्नता प्रदान करें.
दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।