इस समय नागपुर का मौसम

मंगलवार, 26 जून 2007

आध्यात्मिकता और सांसारिकता का अद्भुत समन्वय हैं नरेंद्र दादा


गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात पर ब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवै नमः।।

गुरु को साक्षात परब्रह्म बताया गया है. हिन्दू मान्यता में गुरु का स्थान जन्मदाता ब्रह्मा, पालनकर्ता विष्णु और संहारक महेश से भी ऊपर है. इसीलिए कबीर दास ने लिखा है-
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाये
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताए
मतलब साफ है- गुरु ही है जो हमें ईश्वरीय सत्ता का मार्ग और रहस्य बताता है. आध्यात्मिक अर्थों में गुरु का स्थान सर्वोच्च है. गुरु शब्द गु और रु से बना हुआ है. गु का अर्थ है अज्ञानता का अंधकार और रु का अर्थ है ज्ञान के प्रकाश में लाने वाला. अर्थात गुरु वही है जो हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश में लाए। गुरु का मतलब लोग सामान्यतः शिक्षक भी समझ लेते हैं लेकिन आध्यात्मिकता और धार्मिक मान्यताओं में फर्क के अनुसार ही गुरु, पुजारी और शिक्षक के बीच का फर्क समझना जरूरी है।

सद्गुरु श्रीयुत नरेंद्र दादा

विज्ञान के इस युग में कपोलकल्पित धारणाओं से परे यदि यथार्थ की बात की जाए तो गुरु की उक्त अवधारणा मेरे भी जीवन में चरितार्थ हुई. रविनगर स्थित दादाधाम के प्रणेता श्रीयुत नरेंद्रदादा एलपुरे इन्हीं आध्यात्मिक क्षमताओं से भरे हैं. आध्यात्मिकता और सांसारिकता का सुंदर समन्वय स्थापित करते हुए नरेंद्र दादा ने दादाधाम जैसे पवित्र और जागृत धाम की स्थापना की स्थापना की है.

२० वर्षों से अडिग है आस्था

श्रीयुत नरेंद्र दादा से २० वर्षों पूर्व जब मैं मिला था, तब से लेकर आज तक आस्था अडिग है. एक गुरु के अलावा मैंने उन्हें समय-समय पर माता-पिता, भाई-बहन, सच्चे मित्र व मार्गदर्शक और इससे भी बढ़कर धार्मिक, सामाजिक परंपराओं के कुशल निर्वाहक के साथ ही आध्यात्मिक शिखर पुरुष के रूप में पाया है. मैं यह सब दावे के साथ इसलिए कहने की जरूरत कर रहा हूं क्योंकि किसी अधपके या परिस्थितिजन्य विश्वास को वास्तविकता की कसौटी पर कसने के लिए २० वर्षों का समय कम नहीं होता. वो भी जिन्दगी का वह अंतराल जब व्यक्ति युवावस्था में प्रवेश कर परिपक्व मनुष्य बनता है.

जब पहली बार मिला

जीवन के १९वें वर्ष में प्रवेश किया एक युवक. उस समय किसी अनजाने लक्ष्य की तलाश में मैं किंचित विचलित सा रहता था. एक दिन भावनात्मक आवेगों के कारण मन काफी व्यथित था. विचार शून्य से आते और शून्य में विलीन हो जाते. मैंने उस दिन शहर के पूर्व से पश्चिम तक सभी मंदिरों में भगवान के दर्शन किए लेकिन व्यथा कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. मेरे एक शुभचिंतक ने मुझे नरेंद्र दादा से मिलने की सलाह दी. मैं उनके साथ दादा के डी-५-२, रविनगर स्थित निवास पर गया. वह दौर था जब दादा सबसे नहीं मिलते थे. खैर, वहां पहुंचते ही मुझे अजीब सी शांति का अहसास हुआ. थोड़ी देर इंतजार के बाद दादा बाहर आए और मुझसे औपचारिक बात की. उन्होंने मुझे शिवस्वरूप दादाजी धूनीवाले की पूजा का मार्ग बताया. उस दौर में मेरा मन काफी चंचल रहता था. विकारों का प्रभाव अपना काम करता रहता था. हालांकि यह आज भी है लेकिन उस समय पता नहीं किस प्रकार का आकर्षण या ये कहें नाता दादा से जुड़ गया जो समय बीतने के साथ ही हर पल मजबूत होता गया.

चमत्कार को नमस्कार नहीं

अध्यात्म अनुभूति का विज्ञान है. इस लिहाज से मेरे जीवन में दादा से जुड़ी कई अनुभूतियां रहीं. इनमें से कुछ को आम भाषा में चमत्कार की संज्ञा भी दी जाती है. साक्ष्य या प्रमाण नहीं होने के कारण मैं इस समय उन अनुभूतियों का जिक्र नहीं करना चाहता क्योंकि श्रीयुत नरेंद्र दादा ने सदैव ही चमत्कार को नमस्कार करने से मना किया है. सही भी है, किसी चमत्कार की आशा में नमस्कार करने का एक अर्थ यह भी है कि चुंकि हम शीश झुका कर ईश्वर पर उपकार कर रहे हैं इसलिए ईश्वर को भी तत्काल चमत्कार दिखाना चाहिए और हमारी मांग पूरी करनी चाहिए.

सदैव दिखा गुरु का बड़प्पन

श्रीयुत नरेंद्र दादा को हम भक्तगण प्यार से दादा कहते हैं. दादाधाम की नींव पड़ने के बाद से अब जबकि यह वट वृक्ष का रूप ग्रहण कर चुका है, मैंने लाखों लोगों को दादा से मिलते देखा. हजारों की संख्या में भक्तों को नजदीक जाते देखा. जिनकी आस्था पक्की थी, वो सतत उनके साथ हैं और जिनका प्रारब्ध उन्हें खींच लाया था वो कुछ दूर हो गये. मुझे आज इस बात का फक्र है कि मैं उन चंद खुशनसीबों में हूं जिन्हें दादा ने नजदीकी प्रदान की. मलाल तो इस बात का है कि मैंने हर सम्पन्न समय में इस नजदीकी से मिली खुशनसीबी का दुरुपयोग किया. यह दादा का बड़प्पन ही रहा कि उन्होंने सदैव नसीहत के साथ मुझे क्षमा कर दिया. सिर्फ मेरे साथ ही नहीं अपितु उन्होंने हर भक्त को क्षमा किया. कई लोगों को मैंने भस्मासुर भी बनते देखा लेकिन दादा ने सदैव गुरु का बड़प्पन दिखा कर क्षमा कर दिया. मेरा क्रांतिकारी मन कई बार दादा की इस क्रिया को लेकर विद्रोह कर देता था. लेकिन दादा ने सदैव सौम्यता से गेंद ईश्वर दादाजी धूनीवाले के पाले में डाल दी.

गृहस्थ जीवन बनाम आध्यात्मिक शिखर

गृहस्थ जीवन में रहते हुए आध्यात्मिक और सांसारिकता के समन्वय का बेहतरीन उदाहरण हैं मेरे गुरुवर. जहां तक आध्यात्मिकता का प्रश्न है- मैंने व्यक्तिगत तौर पर पाया है कि लौकिक, परालौकिक किसी भी समस्या का जिक्र उनके सामने नहीं करना पड़ता है. कल भी वही होता था, आज भी वही होता है. जब भी किसी झंझावत में मैं उनके सामने गया, उन्होंने सदैव ही स्वस्फूर्त मेरे हर प्रश्न का उत्तर दे दिया. कभी कोई समस्या बताने की जरूरत नहीं पड़ी. प्रारब्ध को धैर्य के साथ स्वीकार करना मैंने उन्हीं से सीखा. जिंदगी में मैंने कई उतार-चढ़ाव देखे. आज भी देख रहा हूं. यह मेरी अपरिपक्वता ही है कि दादा की याद तभी आती है जब कोई गंभीर संकट आता है.

वात्सल्यप्रिय दादा

दादा को आम तौर पर गंभीरता से लोगों की समस्या पर चर्चा करते हुए या फिर भजन में लीन देखा है. मगर इस गंभीर व्यक्तित्व में वात्सल्य भाव भी कूट-कूट कर भरा है. बच्चों के साथ उछलकूद करते देखना भी मेरे जीवन का अविस्मरणीय पल रहा. दादा की कटाक्ष और डांटफटकार सुनकर जितना गुस्सा आता है, उतनी ही गुदगुदी तब होती है जब वो अचानक मित्रवत् व्यवहार करने लगते हैं.

समानताप्रियता

दादाधाम के निर्माण के शुरुआती दिनों में सक्रिय भक्त समूह में आर्थिक, शारीरिक असमानता साफ दिखती थी. वो दिन मुझे याद है जब विधानसभा चुनाव के परिणाम के लिए यूनिवर्सिटी मैदान में शामियाना तना था. कुछ भक्तों ने बाहुबली होने जैसा कृत्य किया था. उस समय दादा ने मुझे कहा था कि वो दिन भी आएगा जब शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पियेंगे. आज वो समानता दादाधाम में दिखने लगी है. दंभी भक्त रणछोड़दास बन चुके हैं.

वायुमंडल की भी चिंता

दादा को अपने शिष्यों की तो चिंता है, उनका ध्यान पर्यावरण संरक्षण पर भी है. तुलसी लगाओ, प्रदूषण हटाओ अभियान के दौरान मैंने पाया कि दादा ने तुलसी के धार्मिक महत्व से अधिक महत्व उसके वैग्यानिक गुणों को दिया. तुलसी का पौधा २४ घंटे आक्सीजन देता है. यह वायुमंडल की ओजोन सतह को अधिक सघन करने में सहायक है.

नतमस्तक

गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर मैं दादा के सामने एक बार फिर नतमस्तक हूं जिन्होंने न सिर्फ मेरा जीवन संवारा बल्कि जरूरत के समय अपना घर-परिवार छोड़कर उन असंख्य भक्तों के साथ खड़े नजर आए जिनके लिए दादा ही सबकुछ हैं. मेरे अराध्य भोले शंकर दादाजीधूनी वाले के चरणों में प्रार्थना है कि समूचे मानव कल्याण के लिए उन्हें दीर्घायु तथा साधन संपन्नता प्रदान करें.
दत्त गुरु ओम्,  दादा गुरु ओम्।

शनिवार, 9 जून 2007

Exercise by Sign



An astrological guide to fitness you'll enjoy!



Have you had trouble in the past keeping your New Year's Resolutions? This year, use a secret weapon to make your goals realities, your Sun sign and Ascendant. Understanding their influence over you can help you discover what will keep you motivated. Here's a list of what to do to get yourself toned, disciplined and stronger by year's end. Just keep in mind as you check your Sun Sign that for things involving the body and energy, it's just as important to consider your Ascendant.

Aries

You're world famous for your energy, because you're ruled by active, enterprising Mars - the warrior planet. That means you're wonderful at initiating activity, like joining a new gym, but less good at continuing to show up. Work with your prodigious physical energy to keep yourself interested. Lifting weights in the same circuit will soon bore you silly. Yet something like a class in Judo or kickboxing will hold your attention. You need challenge and change - even better, a sparring partner.
Taurus

Practical Taurus, you know you need exercise but you are loath to get up from your reading. No matter, making a steadfast commitment will keep you going to the gym as long as you see measurable gains. To insure progress, invest in a monthly visit with a trainer or if you're very self-disciplined, use a training program with weekly log books and progress charts. You gain momentum through seeing concrete evidence of a return on your efforts. Also consider going outside -- a hike somewhere scenic may be inspirational enough to keep you coming back for more.
Gemini

Glib, fun, spirited Gemini - you're often having too much fun to go to the gym. To motivate yourself you need a social component to your workout, toiling alone on the StairMaster quickly disheartens you. Try dancing or volleyball, or investigate local co-ed softball or soccer leagues. If you're having fun, you won't mind the workout. Consider it social hour -- with a little sweat!
Cancer

Sweet Cancer, if your emotions burned calories, you'd be the most svelte on the block. Use your powerful emotional need for connection to empower your workout routine. Form a pact with someone you like and you'll show up every time to the gym. This can work equally well if you make an agreement with a running partner. Anything that activates your devotion and ability to commit with the help of others will get you going this year.
Leo

Everyone knows the Leo in their midst, your generosity, sense of fun and warmth radiate around you. Sometimes, like the lion you're given to finding a place in the sun and catching a nap. You need to channel your desires for warmth and attention into your workout plans to meet with success. Wherever you have a chance to physically excel, to shine, to gather adoring eyes, this will keep you coming back time and again. Try ballroom dancing or even hot yoga where you get to stare at your reflection in the mirror while sweating yourself slim. You'll be one shapely cat by December.
Virgo

Dutiful, loyal Virgo, you can be so weighed down with obligations that you need something that gives you release, lets you fly free from your cares. You're perfectionistic tendencies will make it bit hard to get going, but keep showing up and you'll be in much better balance with more to give. Try riding your bike and coasting down hills, or dancing alone in your room where you won't judge yourself. Set yourself free and a stronger you will be the welcome result.
Libra

You beautiful being, you carry the weight of balancing relationships on your capable shoulders. Your standards are high so you may need to honor your need for aesthetics and beauty in your workout routine. Try something precise like Kendo or Tai Chi, this way your spirit will get as much exercise as your body. Then you'll keep coming back for the stimulation and the challenge.
Scorpio

Dear, dramatic darling Scorpio, in order to stay committed to a new workout routine you need something with either a competitive intensity, something that develops your physical power, or if you're life is too demanding, something that allows you to escape all that intensity. No matter where you fit in the spectrum, Vinyasa yoga, Power Yoga, or even rock climbing, will keep you intrigued and energized.
Sagittarius

Your adventurous nature sometimes gets ignored when you decide on a workout routine. You can be so intent on doing what you know gets results: 30 minutes of cardio, 30 minutes of weights, 20 minutes of stretching that you fail to notice how quickly this routine loses your interest. You need to find something fun and physically challenging to remain committed. It doesn't matter if it's a team sport, a jazz dance class that continually adds steps each week… whatever it is, adventure has got to be part of the package.
Capricorn

Admirable goat, by day you're all ambition, measured activity and caution. You, more than any other sign, have no doubt about the rewards and benefits of an exercise program. Yet, you need to take equally careful measure of the realities of your life right now. If you're in life/love/work balance, then go with a careful total program, with nutrition, cardio, weights, and activities to develop balance. If you're feeling a little oppressed by your responsiblities, try something a bit riskier, like sport climbing to give you a sense of freedom, of stretching your boundaries. Respecting your current situation will keep you interested and showing up until you get results.
Aquarius

You're a tough one, seemingly light and unconcerned yet willfully stubborn underneath. If you've had trouble sticking to a workout routine, you probably need something that allows you independence yet connects you to a larger goal. Try training for a charity run, or a team sport, either will give you that sense of a more significant social goal being achieved through your sweat. Mesh your needs and you'll end the year with a power you've never known you could have.
Pisces

You can be so idealistic and ethereal that you let your body's needs fall to the wayside. Yet, you love the sensuality of warm water, of floating and gliding through currents. Water sports of all kinds are the best way for you to reconnect to your body and to have an active physical mediation. Follow your heart, and your year will end swimmingly.

सोमवार, 28 मई 2007

BHAIRAVI GOSWAMI BIOGRAPHY


BHAIRAVI GOSWAMI

Theatre 2004
LIAR LIAR – Hinglish play by Dinyar Contractor (125 shows worlwidw)
MADHOUSE – Hinglish play by Dinyar Contractor (110 shows worldwide)
P DIALOGUES – English play by Alyque Padamsee
Calenders - 2002
Palio
Bharat Petroleum
Contests – 2002 - 2003
Gladrags Megamodel 2002
Finalist and Subtitle of Best Hair
Model Quest by Times of India Group and Pantaloon 2003
Winner
AXN Hot n Wild Contest 2003
Top Three
Music Videos – 2003
Samundar Mein Nahake Remix directed by Samir Malkan
Raaghav directed by Indrajit Nattoji for HMV
AD Films - 2002 – 2004
Dabur Chavanprash
TVC Teleshoppe
MTv Plugged Perfumes and Deos
Channel V Cool Stop
Universe Spa
Star News Promo
Channel V Promo
Etc Promo
Mayur Suiting with Virendra Sehwag
Press Ads - 2002 - 2004
Videocon Washing Machines
Ria Sarees
Jaipan Cellulite Slimming Health drink
Pantaloon
.Amul Milk
Citibank
Shoppers Stop
Anita Dongre
VLCC
Television Serials - 2004
JBC with Javed Jaffery
Fashion Features & Covers - 2002 – 2004
Savvy
Meri Saheli
Gladrags
Elan
Health
Occasions
New Woman
Mans World
Gurlz
L’officiele
Society
GT – Guything
Femina Girl
Femina
La Mode
Elle
Fashion Shows - 2002 – 2004
Femina Bridal Show
Shane & Falguni Peacock
Provogue
Deepal Mehta
Rohit Verma
Anshu Modi
Gani Shetty
Amber & Shirin
Utsav Dholakia
Subiya
Aseem Merchant
Anjana Bhargav
Ritu Kumar
Satya Paul
Sabyasachi Mukherjee
Prasad Bidapa
Ragini Singhania
Marc Robinson
Archana Kochhar Libas Jewellery Arabia Rehan Shah Enigma
Athena's Fashion Fridays Azeem Khan Schwarzkorf Shakir Khan Page 3 Achla Sachdev


ACTIVITIES
Activist - Animal Welfare
Compere – Corporate and Film Shows
Journalist – Free-lance for fashion and travel Magazines
Contributing Editor Elan
Languages – English, Hindi, French, German, Sanskrit, Tamil, Kannada.
Dancer – Ballet, Flamenco, Bharatnatyam.

Interview with Ashish Kulkarni



भारत में एनीमेशन कि दुनिया तेजी से फलफूल रही है। इसे बुलंदियों पर ले जाने वालों में एक नाम आशीष कुलकर्णी का भी है। प्रस्तुत है आपका साक्षात्कार।



Ashish Kulkarni

"There will evolve more mature ways of relationships between studios and talent "
Half a glass full, or half a glass empty, the difference is in how you see things. An hour spent with Ashish Kulkarni, one of the prime movers and shakers in the Indian Animation Industry and one cannot avoid getting affected by his optimism and conviction.The debacle of several studios (big & small) in the last few months is a big and important question. Commenting on the issue, Kulkarni shares that "Life for the last few months has not been easy. I still wake up in the middle of night thinking about how to put all the hard working artists back in the creative environment. It's a different challenge to train the talent pool and make them production ready, its another challenge to keep the highly experienced & productive talent engaged all the time" Convinced that the Indian animation scene has matured, Kulkarni who foresees a great future points out, "I feel greatly relieved and satisfied that the maturity amongst the talent pool in India has evolved over the years. I have a great regard for all those animation artists who stick around and complete the projects. The artists have matured and become more responsible, the production pipelines have evolved, Indian studios have delivered quality projects and on time. I foresee a great future for the Indian animation industry" Animation 'xpress' Anand Gurnani met up with Ashish Kulkarni while he was in Mumbai adjudging for an animation awards function.Here are excerpts from the conversation
Jadooworks was one of the top 4 animation studios in the country. What went wrong?I wish to refrain from commenting on it.What about the artists that you had been working with for so many years?Some of them have taken up jobs elsewhere, many of them are utilizing the time to create their own short films.
Well then what about your future plans?
I am in the midst of making a business plan; I have spoken to most of the prospective clients and plan to set up a high-end digital animation studio that will cater to the animation long form and feature film market. Given an opportunity, I would like to help all the artists who worked with me in the past and those who aspire to work on high quality long form animation and feature films. I would like to really see that they are constantly working so that they keep up with their production tempos. My plan is to set up a fully animated feature film facility and also create original content from India. I am also involved in raising fund for creating and acquiring original animation content.You have been actively involved with the industry for the past 6-7 years. What has been your experience?I feel all the animation players in India have put in their best efforts by constantly marketing their services and delivering in the last 6-7 years, against all odds. All the existing studios have been able to create and establish the brand called India on the international animation front. It was not easy at all. 6 years ago we faced a lot of hurdles in pushing the industry, we had to create a brand for India in the global market and on the home turf we also had to spread across the message to parents & artists that animation was a great career. Only now, that we are able to understand the nature & challenges of animation industry. We have got used to the ups and downs of the production cycles. My experience, particularly in establishing the state of the art production pipeline, process automation for efficient working and production tracking was very good. The capability of developing the proprietary tools & plug-ins is a big achievement. This unique combination of creative & technical teams to ease out the pressures on the artist will take the Indian studios far ahead of its competition.
"I feel all the animation players in India have put in their best efforts by constantly marketing their services and delivering in the last 6-7 years, against all odds"
What do you foresee for the future?We are at a threshold in India right now when the artists have consistently delivered great quality work, it is time now to nurture most of the experienced artists to get into feature film production and get the new talent from various schools to do television and DTH production। We all have started with 2D, moved to 3D and Flash productions for broadcast quality. Worked on stabilizing the deliveries and progressively are moving on to DTH & feature film productions. What I really foresee is that there would emerge a few big studios that would get into feature film production by end of 2006 and early 2007. I foresee that as a bright future for the Indian animation industry & the beginning of a new era।The launch of the new TV networks and a deeper penetration of animation content in APAC regions is of a significant importance to the animation industry in this part of the world. Most of the stakeholders and the networks would soon look for original content from ASIAN region. This is the time that most of the creative talent can start creating original ideas and take the help of the studios to take these ideas for international production.
"What I really foresee is that there would emerge a few big studios that would get into feature film production by end of 2006 and early 2007"
How will this happen?I would like to say that the core teams would get attached to the bigger studios & most of them would constantly work on project basis। But long-term contracts cannot be ruled out. Great artists will always find long-term contracts/ relationships with studios. There would evolve more mature ways of relationships between studios and talent where both of them would be contractually bound and would ensure the well being of the talent as well as ensure the completion of the productions.I foresee in the next few years a lot more expatriates from the western world and experienced producers and directors moving to India to work on several projects and the Indian animation talent will have a first hand experience of working with most of the producers and directors not through the internet but on the studio in India. I also see placement of a high-end creative Indian talent in the pre production teams in Europe and the US. I feel it is a significant step for India to be a part of the pre production process.Indians are capable of becoming producers also rather than doing just the BPO kind of operations consistently. I understand that there would emerge a co-existence of service work and IP creation with most of the studios in the years to come. The positive side is that many studios and experienced professionals in animation are looking at a niche of IP creation alone as a business model and what India really needs is few serious joint ventures with the entertainment giants from the west and few Indian corporations to look at diversifying or logically expanding into animation as a serious business.
While talking about the future, I would also like to emphasize on the need to focus on quality.
"If content is King, then quality is queen. Timely delivery is the prince and communication is the princess"
What about it?

I sincerely believe that, "If content is King, then quality is queen. Timely delivery is the prince and communication is the princess".Nothing in the creative world would be really respected or successful if we don't look into the quality aspect. Two other important factors are communication with the artists and directors, and production teams ensuring timely delivery.
What about the talent base? What about training?I have been spending good amount of my time visiting various cities and small towns to address the students and their parents on making careers in animation. It's been a very encouraging time for the industry to really see a great support from the media and especially the effort by all animation educational academies trying to spread the message on careers in animation and reaching out to the smaller centers.
"We still need to establisha proper university recognizedlong term degree course after 12thfor animation art and filmmaking"
The biggest hurdle had been convincing the parents that their child by drawing painting, sculpting and acting could make a serious and successful career. By virtue of being in animation, the work created by these young artists sitting in India will be watched and appreciated by global audiences for years to come.Over the past 3 years we have established a good amount of penetration of animation training schools all over India and built an ecosystem for the industry. Secondly we have done timely analysis and course correction in the curriculums to cater to the industry needs, we anticipate that the existing effort in training will not only bring in a fresh and production ready talent pool but also add 1000 to 1500 artists every year for the next 3 years and the number is bound to grow beyond 2008.A positive thing about India is that the industry is growing in several cities. The first few studios had started in Mumbai, Hyderabad and Chennai and then into Trivandrum, New Delhi and Bangalore and now Kolkata, Pune and Nagpur are getting added as production destinations, this way the talent pool is getting to know about animation as a career and having an opportunity to work closer to the hometowns. Of course the high-end creative talent will associate themselves with the bigger studios doing high-end work and would be willing to relocate.In contrast the trend has been very different in many countries where the concentration has been mostly in & around one major city in the country.
Having said all that, I also wish to point out that we still require establishing a proper university recognized long term degree course after 12th for animation art and filmmaking. We also need to train the trainers. The biggest weakness that we had was the quality of trainers. While most of the good and experienced talent was always busy with production deadlines. The nurturing of the new talent is generally not done full-heartedly. We need to define a rotation programme amongst the high end & specialized industry-experienced artists to visit training institutes in the region and share knowledge regularly. This I believe is of outmost importance especially in the areas of animation, lighting, rigging, texturing, story boarding, character design, styling etc.
"We need to define a rotation programme amongst the high end & specialized industry-experienced artists to visit training institutes in the region and share knowledge regularly"
What message would you have for aspiring animators and artists?We have mostly seen that the sense of timing and acting in new animators is hard to find. Nobody tells them how the learning of all the process from "script to screen" is important for the first few years. How an artist can map the special skills they posses to the area of specialization? I have seen that each and every person wants to become an animator. An animator's requirement is the sense of timing, proportion, acting & composition. A great sculptor must concentrate on becoming a 3D modeler. A good painter can concentrate on texturing skills. A good break-dancer may become a rigging artist…. just joking. A good architect can be a set designer. A good painter with lighting sense can concentrate on becoming a lighting expert and experiment with various lighting tools in the software.We had to concentrate and spend valuable resources within the studio to sharpen these skills so far. Now the training institutes must concentrate on these areas & the studios in the region must send the best talent as a visiting faculty to the institutes to ensure the fine results. At the same time most of the talent is in a hurry to get on to the studios to work. The guidance must be provided at the institute level to do more then one course before getting into the studio. If the doctors have to spend 5 years for MBBS, two years in internship & two years for specialization, even before they start operating on their own. How can we take it so easy in animation to do short cuts in 6-9 months and get into the production? The basics in film making frame by frame, scene composition, acting, lighting, expression, camera & each and every aspect has to be learned before stepping into the studio.The large number of youngsters jumping into the animation sector considering it to be a multimedia and multi-stream opportunity mostly ends up in them spending a lot of money and no jobs. This is my serious concern.
My advice to the parents and young artists inspiring into making a career into animation is that, one must select the right course, complete multiple courses and specialize in the interest areas and then step into the studio. After all, selecting to be a professional in animation is stepping into the serious business of film making with universal appeal. The developing budgets for broadcast quality content per minute can rang from $10,000 low end to $ 40,000 for high end animation from script to screen. For the fully animated feature films its been over one million US dollars per minute. How do you expect that the studio to take a chance by selecting a young artist who is not trained enough to create animation to match these quality and high budgetary content development!
There have been quite a few figures about the size of the Indian animation industry and the potential. What do you make of them?
My background has been in media analysis & space selling and so I respect all the figures that have been put out after a lot of research. These figures were put together in 2002 projecting revenues for the next 5-6 years. We have already lost 3 years discussing and disputing these figures. The time has come that we sit together and talk about how to achieve the figures rather than dispute them. Else we will have to put up with the lower figures and be contented with them.
"The time has come that we sit together and talk about how to achieve the figures rather than dispute them"
It is high time that the top 20 IT companies and top 20 industry houses start looking at investment in animation seriously in some form or the other. It is just about time, for the consolidation within the Indian animation industry. We have already seen a great response from advertising agencies, ad filmmakers and live action producers. In the last few years you must have definitely seen India cinema using a lot more animation, the frequency of animated advertising films has increased on Indian television. An overall appetite and acceptance of animated content has certainly increased in the Asian region.
At the same time, we must encourage the top 10 global TV networks, entertainment companies and gaming companies to have an India strategy and relationships with Indian studios. This will help establish a higher degree of quality standards in the overall system.
I think that this is the most appropriate time for the Indian animation industry to position itself in the global arena. If we get delayed, the global industry will position India differently.


शुक्रवार, 25 मई 2007

Dream Date by Sign




Who's the perfect date according to your stars?



Are you pondering how to get the attention of a hottie who caught your eye? Then do your homework and find out what sign your love interest is before asking them out। Now arm yourself with insight into that sign's perfect date! The stars, can give you a lot of insight about a person's likes and dislikes because, after all, what works for a sultry Scorpio might scare the begeezes out of a home-loving Cancer। Here are some astrologically correct ways to avoid dating disasters and ensure your encounter is a sizzling
Chemistry is a mysterious thing. But with astrology as your guide, understanding your date's sun sign can give you priceless insight into a potential lover. What excites a hedonistic Archer may make a Pisces freeze up like a cold fish. Check out our second installment of Dream Date by Sign, featuring the six remaining signs of the Zodiac, to give you a head-start on romance.


Aries: Rams Like it HotRams are impetuous and fiery creatures। They thrive on excitement. If you're planning a date, consider an activity that involves a little bit of adventure. Break a sweat on a difficult hiking trail, then grab some Ethiopian fare where you get to eat with your hands. By the way, don't worry about being a little sweaty, your Aries won't mind. Oh, and don't forget to play hard to get since most Aries prefer to be the cat rather than the mouse. These types can also come on strong so don't be surprised if they swoop in for a kiss before the date concludes. Yeooowza!



Taurus: Lover of the Finer Things in Life Ruled by Venus, your Taurus will appreciate the finer tastes of life। Bring them flowers and make the bouquet consist of Gerber daisies or Sunflowers rather than cheap carnations or boring roses. For dinner, take them to a fine dining establishment replete with tablecloths, soft (hip) music and romantic lighting. Taurus loves soft, sexy fabrics that feel good against the skin, so leave your favorite jeans in the closet and reach for a silky skirt or shirt instead. Once you're alone, don't be afraid to let your intentions known in a tender, firm manner.


Gemini: Social Butterfly Your Gemini date is verbal, quick-witted and impulsive। They expect you to be the same. The twins don't do boring. Escort them to an underground book reading, energetic concert or poetry slam session. Then walk the streets until you spontaneously find a quaint little bar where you can sip mojitos and engage in mental banter. Always stay on your toes and ask a lot of questions. If you want to really romp later, you'll have to make stimulating mental love first.


Cancer: Domestic BlissTo impress your Cancer and lure them come out of their shell, you must show a nurturing, attentive nature। Bust out a cookbook and invite them over for a candlelit meal. Too much stimulation in a public place can backfire with a sensitive crab. Make sure your place feels cozy and warm. The more you fuss over them, the more they will trust your intentions. Ask: "Are you okay?" or "Is there anything you need?" a lot. Consider yourself warned, Cancers go with their own flow. Meaning, these water signs are moody. So make sure you pay attention to the feelings behind their words and don't come on too strong.


Leo: King of the JungleYou're dealing with the King of the Jungle here। Meaning, your Leo date needs to be wined and dined and taken out in high style. Factor in a little bit of drama for good measure - invite them to a loud concert or theatrical production followed by the hippest new late-night eatery. Be sure to discuss culture, politics and the most recent worldly events. While you're at it, don't forget to pet their mane (read: ego) by dousing them with compliments and making sure they get to speak most of the time. Play with their hair and whisper into their ear to make them purr with pleasure now, and roar for you later.


Virgo: Willing and Wise If you're planning a date with a Virgo make sure you appear fresh and polished! Shower, use Q-tips and iron your shirt or dress। These perfectionists won't tolerate slovenliness। These virgins (who aren't really virgins) are also conscientious about their health, so take them to your gym for a tag-team workout and then to a healthy Vegan restaurant. Over a desert of soy ice cream and goji berries ask if they'd be willing to organize your office or help you draft an important email. That will really get their attention since this service-oriented sign is often attracted to people who need their help. But don't be fooled, they can be sexy beasts in the bedroom.


Libra: Starry-eyed Glamour PussIf you ask a Libra out, elegance and romance should run in your blood। These airy creatures thrive on all things wistful and beautiful. Think a candlelit dinner at your place, with soft, exotic music, rose petals scattered all about and a small gift presented at the door. Spring for something other than flowers - a shiny, tasteful trinket or a box of chocolate covered strawberries, perhaps? Creativity goes a long way here. FYI: Libras don't fare well being single and love being in love. Although, they are good at fooling themselves, which may mean you too. Take things slowly.


Scorpio: Mysterious SexpotYour Scorpio likes secretive, dark places। Go for the unusual like strolling through a cemetery at dusk to get up-close-and-personal with a few gravestones. Then head over to the seediest Italian restaurant you can find, where just the two of you can tell ghost stories and sip red wine at a candlelit table way in the back. Make sure you wear something sexy and splash on an alluring scent. The more mysterious you are, the better. Remember, you're dealing with the sex god of the zodiac here. Try a come-hither look or a mysterious stare on your scorpion. Then, brace yourself for intensity like you've never felt before.


Sagittarius: Nimble Flirt or Sexy Beast?The Archer likes movement, so come up with action-packed date ideas. Consider dancing under the stars, take a power yoga class, go rollerblading along the beach or climb a mountain with bread and wine in your backpack to celebrate at the top. Don't hold back on conversation either. Your Sagittarius can handle it so talk about your wildest dreams and your desired adventures. By the way, this fiery half animal/half human is full of optimism and enthusiasm and they're actually quite the sexy beast. So if they dig you, they'll want to explore you more deeply. In other words, they're probably up for more, if you are.

Capricorn: Straight-up Rambunctious LoverCapricorns love responsible, authentic and intelligent people. So if you want to impress them, show your smarts and don't be a fake. Goats are ruled by Saturn (the planet of structure and authority), meaning they'll appreciate a rundown of your proposed itinerary. Take a trip to the botanical gardens (Cappies are creatures of the earth) followed by a trip to a crystal shop for a perusal. Conclude the evening at a fancy restaurant where reservations are required. Capricorns are a bit reserved, so you may find yourself wondering if they are attracted to you. Be patient, behind that cool exterior lies a rambunctious lover.

Aquarius: Lover of Offbeat SensibilityYour Aquarian is a lover of knowledge with a streak of unpredictability. Dazzle them - take them to a lecture on global warming, to a debate on immigrant reform or ask them to check out the new museum of Neon Signs. They'll be ecstatic! Next, have them escort you to that benefit you've been invited to. Don't expect to get serious right away, these idealistic souls are unconventional and love freedom. However, if your water bearer can openly share their thoughts with you, they'll want to ravish you in bed later.

Pisces: Sensitive and True!Pisceans need to feel safe, cozy and comfortable. Take your fishy date to a spa for tandem foot massages followed by a trip to an aquarium. Then, top the evening off with romantic drinks and nibbles from the sea. Pisceans don't like confrontation so if the date is going sour they may simply excuse themselves to go to the restroom and then swim away. But if there's an attraction, you'll know it - they'll touch you and gush for no reason when your eyes meet. They tend to get caught up in the moment, so if a date is going smoothly they can be very impulsive. Wink. Wink.

सोमवार, 21 मई 2007

एनआरआई बाज़ार ने बदले समीकरण






एनआरआई विषयों पर बनी फ़िल्में विदेशों में ख़ूब पैसा कमाती हैं
दस साल पहले तक शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि हिंदी फ़िल्मों के लिए विदेशों में इतना बड़ा बाज़ार खुल जाएगा कि फ़िल्म की आधी कीमत वहीं से निकल जाएगी.
मगर आज ऐसा हो रहा है. मिसाल के तौर पर करण जौहर की 'कभी अलविदा न कहना' को लीजिए. ये फ़िल्म भले ही पूरे भारत में सिर्फ़ 22 करोड़ का ही व्यवसाय कर पाई लेकिन विदेशों में इसने 32 करोड़ कमाए.
अक्षय कुमार-बॉबी दयोल की 'दोस्त-फ़्रैंड्स फ़ॉरएवर' हो या फिर अमिताभ-रानी-जॉन इब्राहम की बाबुल....ये भारत में फ़्लॉप हो जाती हैं मगर ब्रिटेन में ये दोनों फ़िल्में साल की टॉप पाँच में रहती हैं.
कहने का मतलब है कि अब भारतीय निर्माता,निर्देशक और लेखक ग्लोबल दर्शक को अपने ज़हन से बाहर नहीं कर सकते- अगर उन्हें पैसे कमाने हैं तो.
ये सिलसिला 10-15 साल पहले शुरू हुआ. अब फ़िल्मों का बजट विदेशी मार्केट को ध्यान में रखकर बनाया जाता है. अगर कोई निर्माता 35-40 करोड़ की फ़िल्म बनाता है तो उसे पता है कि विदेशों के मार्केट से करीब 10-12 करोड़ तो वापस आ ही जाएँगे.
हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि हर फ़िल्म जो पैसा कमाती है उसमें विदेशी बाज़ार से कमाए गए पैसा का ही हाथ होता है.
चंद सितारों का क़ब्ज़ा
ब्रिटेन में ब्रिटिश एकैडमी ऑफ़ फ़िल्म और टेलीविज़न आर्टस ने बाफ़्टा वीक मनाया था
चंद फ़िल्मी सितारें हैं जो विदेशों में बहुत चलते हैं और उन्हीं की फ़िल्मों को बड़ी कीमत मिलती है.
इस सूची में सबसा बड़ा नाम आता है शाहरुख़ खान का. उनके अलावा अक्षय कुमार, सलमान खान, ऋतिक रोशन, आमिर खान, काजोल, ऐश्वर्या राय, प्रीति ज़िंटा और रानी मुखर्जी भी विदेशों में काफ़ी मशहूर हैं.
ब्रिटेन में बॉलीवुड की अब तक की 25 टॉप फ़िल्मों में दस फ़िल्में शाहरुख़ खान की हैं- कभी खुशी कभी ग़म, कभी अलविदा न कहना, वीर ज़ारा, देवदास और कुछ-कुछ होता है.
अमिताभ बच्चान अकेले ऐसे कलाकार हैं जो चरित्र भूमिका करते हैं लेकिन इतने लोकप्रिय हैं.
लेकिन ये भी सच है कि अब भी हिंदी फ़िल्मों को क्रॉसओवर दर्शक नहीं मिल पाएँ हैं.
मीरा नायर की 'मॉनसून वैडिंग', गुरिंदर चड्ढा की 'बेंड इट लाइक बेकम' और दीपा मेहता की वाटर विदेशियों को पसंद आई हैं मगर असल में ये भारतीय फ़िल्में नहीं गिनी जा सकती क्योंकि इन्हें बनाने वाले भारत से तो जुड़े हैं पर वे सब भारतीय मूल के लोग हैं.
नए दर्शक, नई कहानी
विदेशों का बाज़ार खुलने से हिंदी फ़िल्मों की कहानियाँ भी बदल गई हैं
विदेशों के बाज़ार खुलने से अब हिंदी फ़िल्मों की कहानियाँ भी वहाँ के दर्शकों को ध्यान में रखकर लिखी जा रही हैं.
अगर 'कल हो न हो' या 'कभी अलविदा न कहना' में किरदार अमरीका में बसे हैं तो सिर्फ़ इसलिए नहीं कि वहाँ शूटिंग के लिए ख़ूबसूरत लोकेशन हैं बल्कि इसलिए भी कि वहाँ रहने वाले लोग फ़िल्म की कहानी को अपनी कहानी से जोड़ सकें.
सलाम नमस्ते के मुख्य किरदार ऑस्ट्रेलिया में इसलिए रहते हुए दिखाए गए हैं क्योंकि भारत के कई दर्शकों को शायद विवाह से पहले बच्चा पैदा करने जैसा विषय रास नहीं आता.
लेकिन अगर किरदार ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं तो लिव-इन और विवाह पूर्व बच्चे जैसा चलन आसानी से मानने में आता है. फिर ऐसे फ़िल्में विदेशों में धंधा भी खूब करती हैं.
चोपड़ा कैंप और करण जौहर जैसे फ़िल्मकारों पर कभी-कभी आरोप लगते हैं कि वे विदेशों में बसे भारतीयों के लिए ही फ़िल्में बनाते हैं. मगर सच ये भी है कि कोई भी व्यक्ति ऐसा ही सोचेगा.
किस्सा पैसे का..
डॉलर और पाउंड रुपए के मुकाबले बहुत मज़बूत हैं. भारत में दस लोगों के देखने से जो कमाई होगी वो लंदन या अमरीका में एक या दो लोगों के देखने से हो जाती है.
ऐसे में क्यों ने कोई निर्माता-निर्देशक विदेशी दर्शकों के बारे में सोचे? आख़िरकर अंत में तो बात पैसों पर ही आकर रुकती है.
जो निर्देशक इस चलन से नाखुश हैं वो ज़्यादातर ऐसे लोग हैं जिन्हें विदेशी दर्शकों को भा जाने वाली कहानियाँ शायद मिलती नहीं हैं.
और यही कारण है कि आज कल बड़े बैनर नए हीरो को इतनी आसानी से मौका नहीं देते.
शाहरुख खान की फ़िल्म सिर्फ़ विदेशों में ही 20-30 करोड़ का व्यापार कर सकती है मगर किसी नए हीरो की फ़िल्म शायद दो-चार करोड़ पर ही रुक जाए.
इतना घाटा कौन सहना चाहेगा? आदित्य चोपड़ा और करण जौहर जैसे फ़िल्मकार तो हरगिज़ नहीं.


साभार : बीबीसी हिंदी

मीडिया और मनोरंजन का बढ़ता कारोबार

मल्टीप्लेक्स सिनेमा के आने के बाद अर्थशास्त्र बदल रहा है
भारत का मीडिया और मनोरंजन जगत नई ऊँचाइयाँ छू रहा है और ऐसा माना जा रहा है कि साल 2011 तक इस क्षेत्र का कारोबार दस हजार करोड़ रूपए का आंकड़ा छू सकता है.
पिछले ही साल मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में 20 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है.
बॉलीवुड के दिग्गज डायरेक्टर और यशराज फिल्म्स के कर्ताधर्ता यश चोपड़ा कहते हैं, '' फिल्म इंडस्ट्री का कार्पोरेटाइजेशन होने की वजह से इसके काम करने के तरीके में काफी बदलाव आया है."
वे कहते हैं, "पहले हम जहाँ किसी फिल्म के 100-50 प्रिंट निकालकर खुश होकर अपनी पीठ थपथपाने लगते थे, आज समय बदल चुका है, अब हम उससे कहीं कम समय में ज्यादा प्रिंट निकाल रहे हैं. डिजिटल सिनेमा के आने से इस क्षेत्र का बहुत तेजी से विकास हो रहा है.''
यश चोपड़ा इंडस्ट्री में कई कार्पोरेट घरानों के आने से भी खुश दिखाई देते हैं. उनका कहना है कि फिल्म इंडस्ट्री में तेजी से कार्पोरेटाइजेशन हो रहा है, जिसकी वजह से यहाँ काम में पारदर्शिता आ रही है और गुणवत्ता भी सुधरी है. साल 2006 में रीलिज हुईं आधी से ज्यादा फिल्में, कार्पोरेट्स ने बनाईं.
फिल्म इंडस्ट्री का कार्पोरेटाइजेशन होने की वजह से इसके काम करने के तरीके में काफी बदलाव आया है

यश चोपड़ा
पिछले कुछ सालों से जिस तरह से कार्पोरेट सेक्टर ने मीडिया और मनोरंजन जगत में तेजी से अपने हाथ आजमाने शुरु किए हैं उससे काफी हद तक तस्वीर बदली है. हाल ही में यूटीवी और मशहूर निर्देशक ओमप्रकाश मेहरा ने एक साथ छह फिल्में बनाने का करार किया है.
यूटीवी के उपाध्यक्ष सिद्धार्थ कपूर भी मानते हैं कि कारपोरेट जगत के इस क्षेत्र में दिलचस्पी की वजह से काफी बदलाव आया है.
वे कहते हैं कि ''ऐसा होने से इंडस्ट्री को काफी फायदा मिल रहा है. कम समय में फिल्मे बन रही हैं, सब कुछ नियमित ढंग से हो रहा है. फिल्म मेकिंग अब एक सीरियस बिजनेस बन चुका है और अब इसमें भी कारपोरेट जगत की ही तरह काम होना शुरु हो गया है जिससे इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की सोच में परिवर्तन हो रहा है.''
इसके अलावा महानगरों में मल्टीप्लेक्स सिनेमा के आने से इस इंडस्ट्री की कमाई पर काफी असर पड़ा है. साथ ही डीजिटल सिनेमा अब लोगों की खास पसंद के तौर पर उभर रहा है. मल्टीप्लेक्स का दायरा बी ग्रेड शहरों से होता हुआ अब कस्बों तक धीरे-धीरे पहुँच रहा है.
फ़िल्म कारोबार पर नज़र रखने वालीं इन्दु मिरानी का कहना है कि '' आज लोगों की पसंद बदल रही है, उन्हें ज्यादा और ज्यादा की चाह है. दर्शक अब अलग-अलग तरह का मनोरंजन पसंद करता है. ऐसे में इस सेक्टर का तेजी से विकास हो रहा है और ये आने वाले समय में और बढ़ेगा. ''
तेजी से विकास
मीडिया में भी तेजी का रुख देखा जा रहा है, बात चाहे टेलीविजन की हो या रेडियो या फिर प्रिंट की तीनों ही क्षेत्रों में तेजी से विकास हो रहा है.
टीवी चैनलों का कारोबार तेज़ी से बढ़ा है
टेलीविजन इंडस्ट्री ने पिछले तीन सालों में नई सफलताएँ हासिल की हैं. टीवी चैनलों की कमाई 2011 तक लगभग दो हज़ार करोड़ रु होने की संभावना है. इस क्षेत्र में अगले पाँच सालों तक 22 फीसदी की बढ़त होने की उम्मीद की जा रही है.
मुंबई में हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक समर हलंकर भी मानते हैं कि ''पिछले दिनों तेजी से आए टीवी चैनलों की वजह से मीडिया में तेजी से बदलाव आया है. अब लोगों के पास ज्यादा मात्रा में चुनने की स्वतंत्रता उपलब्ध है. लोगों के पास समय कम है और लोग अलग-अलग तरह का मनोरंजन चाहते हैं. साथ ही भारत की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था भी एक बड़ी वजह है जिससे कि मीडिया सेक्टर में तेजी से विकास हो रहा है.''
एफ़एम-2 पॉलिसी के आने के बाद रेडियो के क्षेत्र में भी तेजी से विकास हो रहा है. अगले पाँच सालों में इसमें 28 फीसदी की विकास दर रहने की उम्मीद की जा रही है. रेडियो आज भी इस देश में मनोरंजन का सबसे बड़ा और सस्ता साधन है.
साल 2005 में सरकार के विदेशी निवेश के रास्ते खोलने के बाद और एफ़एम-2 रेडियो पॉलिसी के तहत कई बड़ी विदेशी कंपनियों के आने से भी इसमें तेजी का रुख देखने को मिल रहा है.
पिछले तीन सालों में घरेलू मीडिया और मनोरंजन उद्योग में 40 करोड़ रूपए का विदेशी निवेश हुआ है, जिसके भविष्य में और बढ़ने की संभावना है। पिछले साल सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने इस क्षेत्र में 13 नए विदेशी निवेश के प्रस्तावों को मंजूरी दी, जबकि लगभग 22 ऐसे मामलों पर मंजूरी मिलना अभी बाक़ी है.

साभार : बीबीसी हिंदी

मंगलवार, 15 मई 2007

"Naya Daur" (colour) releasing on June 22


Ravi Chopra's tribute to his father



After 50 years of its first theatrical release, B.R.Chopra's evergreen classic "Naya Daur" (1957) will now be released all over India on June 22 in its colour version with (remastered 5:1) Dolby digital surround sound.

"This is a tribute to my father in the fiftieth year," says son Ravi Chopra, " There is an emotional attachment with the film. We have such splendid films in black and white and I want today's audiences to watch them too."

The entire procedure of change in colourisation and background score of the film was done over a period of two and a half years and on a budget of Rs 35 million (Rs 3.5 crore) in a studio in Goa.

Produced and directed by B.R.Chopra under the banner of B.R.Films, the film features Dilip Kumar, Vyjayanthimala, Ajit, Chand Usmani, Johnny Walker, Jeevan, Nazir Hussain, with lilting music by O.P.Nayyar.

COLOUR RESTORATION PROCESS

The 180-minute Indian classic B&W film "Naya Daur" (1957) starring Dilip Kumar, Vyjayanthimala, Ajit, Chand Usmani, Jeevan and Nazir Hussein, directed by B.R.Chopra was colourized using a host of processes and skilled technicians by Westwing Studios at U.S.A.

Restoration of this film was completed in four months by Prasad EFX,Chennai with technicians working 24 hours a day/ 7days a week. The only surviving composite dupe negative had to be physically restored from mis-handling, dirt, dust particles and repaired of frame perforation tears and more.

SYNOPSIS

Naya Daur is the story of two friends. Shankar the tongawala, Krishna the wood-cutter and the happy peaceful village of Karanpur in which they lived. Karanpur, far away in the valley of the hills crowned by timber forests, first stop to the sacred temple of Shiva, twelve miles away, to which came pilgrims every day and journeyed forth in the tongas. A village peopled by robust, rugged, simple men and women who despite the lack of an agricultural economy remained happy because of the money earned by the tonga-walas and the wood-cutters working for Seth Maganlal, the kind hearted Timber factory owner who believed his prosperity was entirely due to the people who worked for him and that he owed it to them to see they remained happy. Into this village comes Kundan, the Seth's city-bred, money greedy son and Rajni, a beautiful young lady. Kundan in his greed for quick profits mechanises the saw mill and brings misery to the once happy village of Karanpur. Rajni with her beauty and her preference for Shankar generates bitterness between the two friends who both loved her. The friends who were ignorant of each other's feelings for Rajni realise this only when Shanker goes to Krishna to propose the marriage of his sister Manju, who secretly loved Krishna; as a way out of the dilemma they decide to leave the decision as to who should marry Rajni to the deity on the hill. A pact is made but Manju who overhears the conversations between the friends, and because she wanted Krishna for herself–puts a spoke in the possibility of the decision being in favour of Krishna–an incident which infuriates him and leads to a bitter enmity between the two inseparable friends. Burning with a rage, Krishna aligns himself with Kundan in his plan to make some quick money and a bus is introduced–resulting in throwing the tonga-walas out of employment. Charged with trying to destroy the villagers by his evil schemes, Kundan takes shelter under the guise of trying to march with the rest of the world that is fast progressing and offers to withdraw his bus if the tonga-walas can take their tongas faster than the bus to the temple. Shankar realising the futility of begging for consideration and kindness from Kundan accepts the challenge. From this bet arises the spirit of Community Effort which Shankar infuses in his fellow-villagers and they en-masse proceed to construct a road that by a short cut would enable Shankar and his tonga to reach the temple as fast as the bus. From these two incidents arise the emotional and economic conflicts that provide the dramatic thrills, emotional upheavals and the story's moral that it is wrong to misuse the immense potentialities of the machine to create prosperity, by making it create money for the sake of a few rich and generate unhappiness and misery for thousands.

Watch the action that unfolds as Shankar unites a divided village, and how he sets about to keep his faith in winning this race between man and machine।


बुधवार, 2 मई 2007

पारिवारिक संबंधों की मीमांसा (?) करता भारतीय मीडिया

पारिवारिक संबंधों की मीमांसा (?) करता भारतीय मीडिया

काफी अंतराल बीत चुका है देश के इलेक्ट्रानिक चैनलों पर पटना के प्रो. मटुकनाथ और उनकी प्रेमिका जूली के प्रेम प्रसंग को महिमामंडित किए हुए, लेकिन जनता के जहन में अब भी उस प्रसंग की याद ताजा है और जब भी सब कुछ भूलने के कगार पर पहुंचता है, किसी न किसी मुद्दे पर फिर से इन दोनों को स्क्रीन पर लाकर उन भूलीबिसरी यादों को ताजा कर दिया जाता है. तमाम टीवी शोज के माध्यम से कहीं न कहीं इस संबंध पर आम सहमति बनाने का प्रयास किया गया और कुछ हद तक मीडिया इसमें सफल भी हुई. मिश्रित प्रतिक्रियाओं का दौर चलता रहा. न तो समाज के रहनुमा ही अपनी बात ठीक से रख पाए और न ही प्रो. मटुकनाथ और जूली को सही तरीके से पेश किया जा सका. शायद यही कारण रहा कि समय बीतने के साथ ही मटुकनाथ लवगुरू के रूप में चचिॆत हो गये.

अब नया मामला

इस विवादित प्रेम प्रसंग का अभी खात्मा भी नहीं हुआ था कि २ मई को इंडिया टीवी और जी-न्यूज चैनल ने एक बार फिर पंजाब के एक ५५ वषीॆय व्यक्ति की उसके बीवी और बहुओं द्वारा की गई पिटाई का लाइव कवरेज परोस दिया। इस लाइव कवरेज के फुटेज में इस व्यक्ति और इसकी कथित प्रेमिका की बेददीॆ से पिटाई की गई और कथित प्रेमिका के कपड़े फाड़ दिये गए. इतना ही नहीं उस कथित प्रेमिका के अंतवॆस्त्रों के दशॆन भी फुटेज में कराए गए. इस विसंगतिपूणॆ कवरेज के बाद भी जब मीडिया का मन नहीं भरा तो मारपीट करने वाली उस व्यक्ति की बीवी और दोनों बहुओं से लाइव साक्षात्कार का सिलसिला शुरू हुआ. इसमें इन औरतों ने जायदाद का आलाप शुरू कर दिया. न तो वह व्यक्ति कहीं दिखाई दिया और न ही उसकी कथित प्रेमिका.

परिवार सलाह केंद्र बना मीडिया

उक्त दोनों घटनाओं के बाद अब लगता है कि हमारे देश का मीडिया एक परिवार सलाह केंद्र की भूमिका भी अदा करने लगा है और वो भी ब्रेकिंग न्यूज के माध्यम से. ऐसा लगता है किसी परिवार के अंतकॆलह को उजागर करना ही अब इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए ब्रेकिंग न्यूज बन गया है. अगर परिवार सलाह केंद्र की भूमिका ही अदा करनी है तो मीडिया को इसके लिए अलग से एक कायॆक्रम बना लेना चाहिए जिसमें विशेषग्यों को शामिल करना चाहिये. मीडिया को यह अधिकार किसने दिया कि वह किसी व्यक्ति को अपराधी करार दे. आरोपी को अपराधी नहीं बनाया जा सकता. लोकतंत्र में यह अधिकार न्यायालय को है कि वह किसी व्यक्ति को अपराधी करार दे. जी न्यूज में इस व्यक्ति को बाकायदा अय्याश, रंगीनमिजाजी बता दिया गया.यह सब क्या इंगित करता है. शायद अपने कुछेक स्ट्रिंग आपरेशन की सफलता ने इलेक्ट्रानिक मीडिया को अहंकार का शिकार बना दिया है. यह ऐसा अहंकार है जो टूटते देर नहीं लगेगी अगर लोकतंत्र के तीन स्तंभ मजबूत बन जाएं. कम से कम अगर ऐसे मामलों पर विधायिका एक हो गई तो इस प्रकार का दुस्साहस करना इनके लिए मुश्किल हो जाएगा.

पत्रकारिता की आत्मा के साथ खिलवाड़

भारत देश विविध संस्कृति, सभ्यता, गौरवपूणॆ इतिहास के साथ ही संवेदनशील पत्रकारिता के लिए भी जाना जाता है. संवेदनशीलता इसकी आत्मा है. हालांकि, बाजारवाद के इस दौर में कई बार हम पत्रकारों को अपने उसूलों से समझौता करना पड़ता है परन्तु यह सच है कि संवेदना प्रदशिॆत करते समय हम किसी भी मिथ्यापन से समझौता नहीं करते. किसी घटना को सामने रखते समय सिफॆ उसके तथ्यों को सामने लाया जाता है. उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने का अलग मंच होता है. मटुकनाथ और अब २ मई के प्रकरण ने तो ऐसा साबित कर दिया कि किसी पुरुष का अपमान करना ही मीडिया का काम है. कहीं न कहीं मीडिया उन ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट की तरह हो गई है जो सिफॆ सनसनी पर विश्वास रखते हैं. क्या सनसनी फैलाना ही एक मात्र उद्देश्य बचा है. इसका समाज पर क्या असर हो रहा है, उस व्यक्ति के मानवाधिकार का किस प्रकार उल्लंघन हो रहा है, यह देखना क्या मीडिया का धमॆ नहीं? क्या सनसनी की आड़ में मीडिया संवेदनहीन हो गई है.

विवाहित जीवन का स्याह पक्ष

बड़े भारी मन से यह कहना पड़ रहा है कि अब तक शोषित, पीड़ित समझी जा रही महिला के पक्ष में ही तमाम कायदेकानून हैं। कुछ दिनों पूवॆ सुप्रीम कोटॆ ने एक निणॆय दिया था जिसमें शारीरिक संबंधों न बनाने को मानसिक प्रताड़ना का अंग माना गया। यह निणॆय क्या हुआ, महिलाओं के कथित ठेकेदारों के तेवर तल्ख हो गए. किसी ने भी इस बात की वकालत नहीं की कि उपेक्षित सेक्स संबंधों के समय पुरुष क्या करे. इन मामलों में मनोचिकित्सक की राय क्यों नहीं ली जाती. सेक्स संबंधों की उपेक्षा का असर किस प्रकार शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, यह इस लेख का मुद्दा नहीं है परन्तु है जगजाहिर. देश में दहेज प्रताड़ना, स्त्री प्रताड़ना से जुड़े कई कानून हैं परन्तु इनका गलत इस्तेमाल करने के लिए कोई कानून नहीं है. स्त्री-पुरुष एकता की बात करते हुए दूसरे पक्ष को क्यों भूला जा रहा है. धारा ४९८ ए का उपयोग कोई भी स्त्री कर सकती है. कई बार पति-पत्नी के अहं का टकराव भी इन धाराओं के इस्तेमाल का कारण बन जाता है.

अंत में

इस प्रकार के प्रसंगों को भविष्य में प्रसारित करते समय मीडिया को दोनों पक्षों का गंभीरता से विचार करना चाहिए. वेस्टनॆ देशों की तजॆ पर मीडिया को सनसनी फैलाने से बचना चाहिए. अन्यथा जनता का जो विश्वास इतने सालों से मीडिया पर बना है, उसे टूटते देर नहीं लगेगी.

बुधवार, 25 अप्रैल 2007

जब जटिलता हो संवाद में

दत्त गुरु गुरु ओम्, दादा ओम् ।।


जब जटिलता हो संवाद में
पारिवारिक और दोस्ताना संबंधों में कई बार ऐसे मामले भी सामने आते हैं जब आप चाह कर भी अपनी बात सामने वाले को नहीं कह सकते. हो सकता है आपका रूममेट आपसे अपनी आदतों के बारे में विचारविमशॆ नहीं करना चाहता. शायद आपकी मां नहीं चाहती हों कि आप उनसे उनके क्लब के बारे में पूछें या फिर आपकी बहन या भाई नहीं चाहता हो कि उससे उसके पुरुष या महिला मित्र के विषय में पूछा जाए. भले ही यह मुद्दा आपके लिये अहिमयत रखता हो या फिर इससे सामने वाले का भला हो, अब सवाल यह उठता है कि ऐसे मुद्दे को किस प्रकार चचाॆ के लिए रखा जाए जिससे सामने वाला आहत भी न हो और आपका मकसद भी हल हो जाए.अपने संपकॆ की योजना बनाएंयदि आप योजनाबद्ध तरीके से शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे तो हो सकता है बात बनने की बजाय बिगड़ जाए. इसलिए यह आवश्यक है कि आप कुछ समय के लिए शांत दिमाग से बैठें और बातचीत के दौरान शब्दों के प्रयोग, मुद्दों को प्रस्तुत करने के तरीके पर विचार करें. यह निधाॆरित करें कि इस वाताॆलाप के पीछे आपका हेतु क्या है और आप सामनेवाले व्यक्ति से किस प्रकार के परिणाम की अपेक्षा रखते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि आपके मकसद के उचित होने का असर सामने वाले पर पड़े, साथ ही सामने वाले की असुरक्षितता, उसके बोलचाल और व्यवहार के तरीके पर भी विचार करें.जरूरी नहीं है कि किसी व्यक्ति के लिए किसी प्रकार का संपकॆ का प्रकार हर परिस्थिति में उचित हो. आपने अगर अपने किसी संबंधी या करीबी को रुपये उधार दिए हैं और उसने २ साल से उधार नहीं चुकाए हैं, साथ ही आप उससे संबंध भी खराब नहीं करना चाहते तो आप उसके साथ अपनी मीटिंग तय कर सकते हैं और फिर शांत दिमाग से इस मुद्दे पर बात कर सकते हैं. आप उसे बता सकते हैं कि इस समय आपको उन रुपयों की कितनी जरूरत है. ऐसा करने से आप अपने आपको सही तरीके से संवाद स्थापित करने का स्वच्छ वातावरण भी प्रदान करते हैं. महत्वपूणॆ है समयसूचकताऐसी परिस्थिति में समयसूचकता काफी महत्वपूणॆ हो जाता है. ऐसे में जबकि वाताॆलाप का विषय काफी कठिन होता है, जरा सी असावधानी काम बना भी सकती है और बनाबनाया काम बिगड़ भी सकता है. यहां कुछ बिंदू आपके लिए लाभदायक हो सकतै हैं-१) बुरे समय या संकटग्रस्त स्थिति में इस प्रकार का संवाद हर संभव टालें.२) ऐसा फुसॆत का समय चुनें जब आप विषय की गहराई में जाकर संवाद स्थापित कर सकें.३) अपनी बात कहने के लिए सही समय का इंतजार करने से बेहतर है कि संवाद कुशलता द्वारा सही पल का निमाॆण कर लिया जाए.आत्मविश्वास बनाए रखेंआपमें यह विश्वास जरूरी है कि आपने भले ही स्वयं करने का गलत तरीका अख्तियार किया हो परन्तु आपकी भावनाएं सही हैं.