भाजपा सरकार (हम अब एनडीए नहीं कहेंगे) के गठन के साथ ही जो सबसे पहला प्रभाव पड़ा, वह खतरनाक संकेत था। फर्स्ट इम्प्रेशन इज लास्ट इम्प्रेशन। कहीं ये मुहावरा सही साबित न हो जाए। पहला प्रभाव पड़ा मंत्रिमंडल के गठन से। आइये जरा इसका विधिवत विश्लेषण कर लें।
मंत्रिमंडल में शामिल किए गए मंत्रियों की योग्यता, मंत्रिमंडल में शामिल किए गए मंत्रियों को जिस क्रम में शपथ ग्रहण के समय प्रस्तुत किया गया, उससे यह साफ है कि न तो मंत्रिमंडल मोडीफाई (मोदीफाइड) हो पाया, और न ही इसके तौर तरीकों से ऐसा ही कुछ संकेत मिला कि ये सरकार कुछ अलवग करने वाली है। हां, सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुला कर मंत्रिमंडल के गठन और उसकी आलोचना से मीडिया का ध्यान बंटाने का पूरा प्रयास किया गया। यह प्रयास कामयाब रहा। ठीक चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरीके से मीडिया तंत्र का उपयोग किया गया, उसी तर्ज पर इस समय भी किया गया।
मंत्रिमंडल में शामिल दर्जनभर मंत्रियों की योग्यता को लेकर तो परेशानी हुई, लेकिन इस पर टिप्पणी करने का यह वक्त नहीं है। इसका आकलन अब साल भर बाद किया जाएगा। सवाल तौरतरीकों का था। मोदी मंत्रिमंडल में सुषमा स्वराज और अरुण जेटली को दो सबसे महत्वपूर्ण विभाग देने से यह संकेत गया कि भाजपा पूरी तरह इन दो नेताओं पर आश्रित है। जिस प्रकार अटल जी के समय प्रमोद महाजन (स्व.) पर हुआ करती थी। यानी जनता के बीच संघर्ष करने का कोई फायदा नहीं। आप दिल्ली के गलियारे में अपने सूत्र मजबूत कीजिए (जैसा दलाल करते हैं) और पाइये मनमाफिक मंत्रालय। भाजपा की यह न तो संस्कृति है और न ही मानसिकता। और न ही जिस भाजपा को जनता ने वोट दिया है, उससे यह अपेक्षित ही है। उम्र दराज नेताओं को अलग रखना तो ठीक लगा लेकिन कुछ उम्र दराज नेताओं को शामिल कर लिया जाना गले के नीचे नहीं उतरा। साथ ही यह संकेत भी गया कि भाजपा की जिस चौकड़ी को संघ खत्म करना चाहता था, उसके बिना भाजपा बेजान है। खैर, अब बात करेंगे २६-११ को और फिर अगले साल २६-५ को। खैर, मुझे मालूम है कि नरेंद्र मोदी नाम का व्यक्ति उतने कमजोर नहीं हैं जितना इस विश्लेषण से लग रहा है। ठीक है आज हो सकता है सत्ता की, दिल्ली की कुछ मजबूरियां हों, लेकिन यह मजबूरी साल भर में दूर हो जाए तो अच्छा है, अन्यथा, फिर सूनामी आने से कोई नहीं रोक सकेगा।
अंततः केजरीवाल के लिए
और भी गम हैं भारत में सत्ता के सिवा। भाई केजरीवाल जी आपने तो बदलाव की राजनीति शुरू की थी। भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ा था। कहां गया वो अभियान.... भ्रष्टाचार के उन आरोपों को भूलिये मत और लगे रहिए। देखते हैं कोल ब्लाक में ये सरकार क्या करती है। राष्ट्रीय दामाद के मुद्दे पर ये सरकार क्या करती है। महंगाई पर क्या करती है। तो अब कुछ दिन मनाली जाइये, आराम कीजिए और फिर आ जाइये मैदान में। पहले संगठन को मजबूत कीजिए। एक्सट्रीम लेफ्टिस्टों के हाथ का खिलौना मत बनिये। कांग्रेस से हमें तब तक कोई उम्मीद नहीं है जब तक उसके नेताओं में अपना स्वाभिमान पैदा नहीं होता।
तो २६-११ तक नमस्कार।