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मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014

मील का पत्थर साबित हुआ विज्ञान प्रदर्शनी 'मंगल महोत्सव'

मंगल ग्रह पर स्थापित भारतीय उपग्रह मंगल यान, उसे ले जाने वाले
रॉकेट पीएसएलवी की प्रतिकृति, इसरो के वैज्ञानिक डा. चौधरी
के साथ प्रदर्शनी का एरियल व्यू।

प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए इसरो के वैज्ञानिक
डा. चौधरी, दर्शन हरदास, सुरेश अग्रवाल व अन्य।
असोसिएशन फॉर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इन बेसिक साइंस एजुकेशन, नागपुर के विज्ञान प्रचारकों ने भव्य विज्ञान प्रदर्शनी मंगल महोत्सव का आयोजन किया। वैसे तो यह आयोजन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के सफल मंगलयान अभियान को अपने अंदाज में मनाने के लिए था, फिर भी आयोजकों की छह माह की प्रदीर्घ तैयारी ने इसे भव्य बना दिया। चार दिवसीय इस महोत्सवनुमा प्रदर्शनी का लगभग चालीस स्कूलों के विद्यार्थियों, युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों ने शिरकत की। भारतीय वैज्ञानिकों के मंगल अभियान की महत्वपूर्ण उपलब्धि को मनाने के लिये इस अनूठे महोत्सव का आयोजन देश भर में पहली बार किया गया। वैज्ञानिक उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने का यह प्रयास मील का पत्थर साबित हुआ।

  
उद्घाटन अवसर का दृश्य।
नागपुर महानगर पालिका के संयुक्त तत्वावधान व राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, नई दिल्ली के मार्गदर्शन व सहयोग से आयोजित इस आयोजन में विश्व भर के अंतरिक्ष अभियानों को सचित्र पोस्टर्स के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। लगभग 200 पोस्टर्स का इस्तेमाल किया गया। सौरमंडल और मंगल ग्रह की विस्तृत जानकारी भी पोस्टर्स और मॉडल्स द्वारा दी गई। आयोजन की संकल्पना असोसिएशन के सचिव सुरेश बाबू अग्रवाल की थी। पोस्टर्स को अंतरिक्ष अवलोकन के इतिहास के बढ़ते क्रम में संयोजित किया गया था। अंतरिक्ष की इस लयात्मक और रोचक प्रस्तुति का आनंद प्रेक्षकों ने उठाया।

 
प्रदर्शनी के आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाने
वालीं नागपुर महानगर पालिका की शिक्षिकाएं।
प्रदर्शनी के अनूठेपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पधारे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) के वरिष्ठ वैज्ञानिक और महाप्रबंधक डॉ. अशोक जोशी ने इसे देश भर में आयोजित करने करने की इच्छा जताई। युवाओं में तकनीकी शिक्षा के बढ़ते रूझान पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने शोधपरक वैज्ञानिक शिक्षा की आवश्यकता पर भी बल दिया। महापौर प्रवीण दटके ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया। पार्षद सुनील अग्रवाल की विशेष उपस्थिति रही।

प्रदर्शनी देखते हुए महापौर प्रवीण दटके।
इंडिया टीवी के योगेंद्र तिवारी कवर करते हुए।

भावी वैज्ञानिक जिया।
देश भर से आए वैज्ञानिकों की उपस्थिति प्रदर्शनी में विशेष आकर्षण का केंद्र रही। इनमें अहमदाबाद प्लैनेटोरियम के निदेशक धनंजय रावल, इसरो के वैज्ञानिक दर्शन हरदास, कर्नाटक से वीएसएस शास्त्री, चिकमट, इलाहाबाद से डॉ. ओ.पी. गुप्ता, भिंड से राजोरिया, नागपुर के प्रमुख शिक्षाविद् डॉ. आप्टे, राजाराम शुक्ल प्रमुख थे।
राशिचक्र समझती हुईं छात्राएं।


शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

दीक्षाभूमि का दशहरा देखा



इस साल दशहरे के दिन दीक्षाभूमि पहुंच गया। आपको बता दें कि नागपुर का दीक्षाभूमि स्मारक ऐतिहासिक स्थल है। यहीं भीमराव डा. बाबासाहब आंबेडकर ने लाखों दलितों को दशहरे के ही दिन बौद्ध धर्म की दीक्षा दिलाई थी। आज ये लोग राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल हो गये हैं।
तो इस साल दशहरे के दिन दीक्षाभूमि पहुंच गया। अनजाने में नहीं गया। होशोहवास में गया था। वहां जाने का निमित्त बना था, दलित सेना द्वारा लगाया गया भोजनदान का स्टॉल। वहां गया। वहां हमारे बड़े भाई सूर्यमणि भिवगड़े जी व्यवस्था संभालते हैं। मुझे प्यार से उन्होंने भोजन कराया। पता नहीं क्या आनंद आया कि, वापस घर कब पहुंच गया, पता ही नहीं चला। ये तो था घटनाक्रम का विवरण। शायद मेरा आब्जर्वेशन मोड शुरू था तो निरीक्षण हो गया। 
जब विश्लेषण शुरू हुआ तो मैं खुद दंग रह गया क्योंकि - 
- पहली बार मैं दीक्षाभूमि गया था दशहरे के दिन।
- इस बार रावण दहन को लेकर मुझमें विरक्ति का भाव था। क्योंकि मुझे यह पौरुष का छद्म अहंकार प्रतीत हुआ।
- मगर दीक्षाभूमि में लाखों की भीड़ में कहीं रावण नहीं दिखा।
- एक संगीत था जीवन का। जीवन में परिवर्तन का। समग्रता को प्राप्त सहजीवन का।
- कहीं जीत-हार का कोलाहल नहीं था।
- न कोई अच्छा था, न कोई बुरा। बस जो था, वो था। यानी न अच्छाई का दंभ था, न बुराई का। बहुत गहरे में, अगर कुछ था तो जीवनदायी समुद्र का संगीत था।
- कहीं कर्ताभाव न था क्योंकि सब कुछ हो रहा था। अकर्ता भी नहीं था क्योंकि सब कोई कुछ न कुछ कर रहे थे।
- लगा कि असंख्य चेतनाओँ की सम्मिलित महाचेतना ने विशाल नदी का रूप धारण कर लिया है और यह नदी स्वयंभू समुद्र की ओर प्रवाहित है।
- डॉ. आंबेडकर के प्रति सहज श्रद्धानत् हो गया।
- दलित सेना के स्टॉल पर पहुंचा तो देखा करीब आधा कि.मी. लम्बी पंक्ति लगी है। लोग आते जा रहे हैं, भोजन पाते जा रहे हैं मगर पंक्ति छोटी नहीं हो रही है।
- स्टॉल के भीतर गया। वहाँ भी भोजन शुरू था। नाम तो था भोजनदान। परन्तु वहां दान का दंभ गायब था सिर्फ भोजन था और उसका वितरण था। सो इसे कुछ निःशुल्क भोजन वितरण सेवाकार्य कहना ज्यादा उचित लगा। 
- एक ओर भोजन बन रहा था। एक ओर बंट रहा था। हर कोई मगन था। कहीं थकावट नहीं, कहीं कर्ता भाव नहीं, सब कुछ सहज था। ईश्वर के वास का सहज, स्वाभाविक संगीत था। बुद्ध का अनात्म भी था, परमात्मा का वास भी था।
- और सूर्यमणि जी....? कर्म संन्यास की कमान संभाले व्यवस्था संभाल रहे थे।

जय हो........................... जय हो....................... जय हो.............।