साप्ताहिक विज्ञापन की दुनिया, नागपुर के १० अप्रैल के अंक में प्रकाशित
पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य हमेशा से भारत की जनता के लिए रहस्य ही रहा है। अब यह रहस्य और गहरा गया है। भारत सरकार सुभाषचंद्र बोस और लालबहादुर शास्त्री जैसे महापुरुषों के जीवन को इतना रहस्यमय क्यों मानती है? क्या इसकी वजह यह है कि अगर रहस्य उजागर कर दिए गए तो देश का इतिहास फिर से लिखना प‹डेगा और शास्त्रीजी और नेताजी उसमें जवाहरलाल नेहरू से भी ब‹डे नायक बन कर उभरेंगे? कांग्रेस को गांधी-नेहरू वंश के बाहर का नायक पसंद नहीं है। वह तो फिरोज गांधी को भी भूल गई है जिनकी पत्नी प्रधानमंत्री बनीं, बेटा प्रधानमंत्री बना और बहू सोनिया गांधी आज की तारीख में देश की सबसे ब‹डी नेताओं में से एक हैें। कांग्रेस ने सदैव अपने आभामंडल के अनुसार ही इतिहास को तो‹डामरो‹डा है। अब लालबहादुर शास्त्री के परिवार के सदस्यों खासकर शास्त्री की बेटी सुमन qसह के बेटे सिद्धार्थ qसह ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत भारत सरकार से मांगी गई जानकारी को यह कहकर नहीं दिए जाने को गंभीरता से लिया है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जु‹डी जानकारी को सार्वजनिक किया जाएगा, तो इसके कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान और देश में ग‹डब‹डी हो सकती है।
१० जनवरी १९६६ ! अहम दिन और ऐतिहासिक तारीख ! पाकिस्तान के नापाक इरादों को हिमालय की बर्फ और थार के रेगिस्तान में दफनाने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने सोवियत संघ की पहल पर एक ऐतिहासिक कारनामे पर अपनी मुहर लगा दी। इसकी चर्चा पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। सच मानें तो दुनियाभर के देश अचम्भित नजरों से देख रहे थे। इस अजीम शख्सियत-भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को! इस सामान्य कद-काठी और दुबली काया वाली शख्सियत में साहस का अटूट माद्दा किस कदर भरा था। इन्होंने देश की बागडोर संभालने में जिस समझदारी और दूरंदेशी वाली सूझ-बूझ का परिचय दिया, वह ऐतिहासिक है। शास्त्रीजी ने अपने जिन फौलादी इरादों से पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी वह पाकिस्तान के लिए कभी न भूलने वाला एक सबक है।शास्त्रीजी की मौत के संबंध में आधिकारिक तौर पर जो जानकारी जनता तक पहुंची है, उसके अनुसार ११ जनवरी, १९६६ को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत दिल का दौरा प‹डने से उस समय हुई थी, जब वह ताशकंद समझौते के लिए रूस गये थे। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है। ताशकंद में भारत-पाक समझौता करने के लिए लगभग बाध्य किए गए भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की वहां के एक होटल में आधी रात को दिल का दौरा प‹डने से हुई मौत को भारत सरकार एक राजकीय रहस्य मान कर चल रही है।दिवंगत प्रधानमंत्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने कहा कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री उनके पिता ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकप्रिय नेता थे। आज भी वह या उनके परिवार के सदस्य कहीं जाते हैं, तो हमसे उनकी मौत के बारे में सवाल पूछे जाते हैं। लोगों के दिमाग में उनकी रहस्यमय मौत के बारे में संदेह है, जिसे स्पष्ट कर दिया जाए तो अच्छा ही होगा।दिवंगत शास्त्री के पोते सिद्धार्थनाथ qसह ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने देश में ग‹डब‹डी की आशंका जताकर, जिस तरह से सूचना देने से इंकार किया है, उससे यह मामला और गंभीर हो गया है। उन्होंने कहा कि हम ही नहीं, बल्कि देश की जनता जानना चाहती है कि आखिर उनकी मौत का सच क्या है। उन्होंने कहा कि यह भी हैरानी की बात है कि जिस ताशकंद समझौते के लिए पूर्व प्रधानमंत्री गए थे, उसकी चर्चा तक क्यों नहीं होती है। उल्लेखनीय है कि सीआईएज आई ऑन साउथ एशिया के लेखक अनुज धर ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत सरकार से स्व. शास्त्री की मौत से जु‹डी जानकारी मांगी थी। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर सूचना सार्वजनिक करने से छूट देने की दलील दी है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जु‹डे दस्तावेज सार्वजनिक किए गए, तो इस कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान, देश में ग‹डब‹डी और संसदीय विशेषाधिकार का हनन हो सकता है। सरकार ने यह स्वीकार किया है कि सोवियत संघ में दिवंगत नेता का कोई पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था, लेकिन उसके पास पूर्व प्रधानमंत्री के निजी डॉक्टर आरएन चुग और रूस के कुछ डॉक्टरों द्वारा की गई चिकित्सकीय जांच की एक रिपोर्ट है।धर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के तहत यह सूचना भी मांगी है कि क्या दिवंगत शास्त्री की मौत के बारे में भारत को सोवियत संघ से कोई सूचना मिली थी। उनको गृह मंत्रालय से भी मांगी गई ये सूचनाएं अभी तक नहीं मिली हैं कि क्या भारत ने दिवंगत शास्त्री का पोस्टमार्टम कराया था और क्या सरकार ने ग‹डब‹डी के आरापों की जांच कराई थी। सूचना के अधिकार के तहत भी इस मौत के कारणों और स्थितियों की जानकारी नहीं दी जा रही। यह नहीं बताया जा रहा कि भारत के प्रधानमंत्री के होटल के कमरे में फोन या घंटी तक क्यों नहीं थी? उनके शरीर पर नीले दाग किस चीज के थे? इस अचानक हुई मौत के बाद शव का पोस्टमार्टम तक क्यों नहीं करवाया गया? क्या समझौते के बाद देश को जय जवान का नारा देने वाले शास्त्री जी ने अपने चश्मे के कवर में एक लाइन का नोट लिख कर रखा था जिसमें लिखा था कि आज का दिन मेरे देश के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है? १९६५ की ल‹डाई में भारत ने पाकिस्तान को निर्णायक रूप से पराजित किया था और बहुत सारी ऐसी जमीन भी छीन ली थी जिस देश पर १९४७ में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि qसह के अनिर्णय का लाभ उठा कर कब्जा कर लिया था। इसमें करगिल भी था। शास्त्री जी को तत्कालीन सोवियत संघ के नेताओं ने लगभग बाध्य किया कि वे यह जमीन वापस कर दें। शास्त्रीजी करगिल कस्बे को जैसे तैसे बचा पाए थे। अपने दस्तखत से शहीद हुए सैनिकों का बलिदान निरस्त करने का दुख उनकी मृत्यु का कारण बना। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है।नेताजी सुभाष चंद बोस के मामले में भी भारत सरकार का रवैया लचर रहा है। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फरार मुजरिम घोषित किया था। कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके और महात्मा गांधी की जिद का आदर करते हुए इस्तीफा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का विश्वास इस बात से खत्म हो गया था कि अqहसा के जरिए अंग्रेजों को भगाया जा सकता है। उन्हें जबलपुर में जहां आज मध्य प्रदेश पर्यटन निगम का होटल कलचुरी है, के पास एक मकान में नजरबंद करके रखा गया था जहां से वे निकल भागे थे और रेलों, बसों और पैदल यात्रा करते हुए अफगानिस्तान के रास्ते रूस जा पहुंचे थे। और जर्मनी में अडोल्फ हिटलर से मुलाकात करने में सफल हुए थे। यह सच है कि हिटलर ने दुश्मन के दुश्मन को दोस्त मानते हुए सुभाष चंद्र बोस को आजाद वृहद् फौज बनाने में मदद की थी और इस फौज के प्रारंभिक सैनिक वे थे जो विश्व युद्ध में चीन के कब्जे में आ गए थे। चीन ने उन्हें रिहा कर आजाद qहद फौज का सिपाही बना दिया। इसके अलावा नेताजी की अपनी एक विश्वासपात्र कमान भी थी। नेताजी एक दिन जापान के ताईपेई हवाई अड्डे से उड़े और उसके बाद क्या हुआ इसके बारे में निर्णायक रूप से किसी को कुछ पता नहीं हैं? दस्तावेज मौजूद है लेकिन वे भारत सरकार के ताले में बंद हैं। सूचना के अधिकार के तहत भी उनकी जानकारी नहीं दी जा सकी। नेताजी के गायब होने के बारे में पहले शाहनवाज कमीशन और फिर हीरेन मुखर्जी कमीशन बिठाया गया मगर उन्हें भी यह दस्तावेज नहीं सौपे गए। सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर दस्तावेज नहीं देने थे तो फिर यह आयोग बिठाए ही क्यों गए थे? लालबहादुर शास्त्री के मामले में भी भारत सरकार का रवैया कुछ अलग सा है। चूंकि शास्त्रीजी के अस्तित्व को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता, भारत-पाक के निर्णायक युद्ध को खारिज नहीं किया जा सकता, इसलिए इतिहास में उनका जिक्र है। बच्चों को स्कूल में प‹ढाया जाता है कि जय जवान, जय किसान का नारा किसने दिया किन्तु स्वतंत्र भारत के निर्माण में उनकी भूमिका नेहरू के मुकाबले गौण ही मानी जाती है।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी
धर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के तहत यह सूचना भी मांगी है कि क्या उनकी मौत के बारे में भारत को तत्कालीन सोवियत संघ से कोई सूचना मिली थी? उनको गृह मंत्रालय से भी मांगी गई ये सूचनाएं अभी तक नहीं मिली हैं कि क्या भारत ने दिवंगत नेता का पोस्टमार्टम कराया था और क्या सरकार ने ग‹डब‹डी के आरापों की जांच कराई थी?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें