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रविवार, 18 जनवरी 2009

उन्हें खुश करने का प्रयास

घृणा और प्यार के बीच आपबीती के बाद अब लगता है ईगो यानी अभिमान की लड़ाई यानी प्रतिष्ठा की लड़ाई शुरू हो गई है। स्वाभिमान और घमंड के बीच फासला काफी कम है। एक पतले धागे से भी कम का। इसलिए पता ही नहीं चलता कब स्वाभिमान घमंड में तब्दील हो जाता है। इसी पतली रेखा के आर या पार खुशी का वास होता है। रेखा के अंदर होती हैं खुशियां और पार होते ही मिलते हैं ढेरों गम । ढेरों नकारात्मकता जिनसे कई नई समस्याएं उत्पन्न होती हैं। तो बात हो रही थी आप बीती की। आज जब लगभग १० दिन हो चुके हैं उनसे नाराज हुए तो अब लगता है कि क्यों न उनकी इच्छा पूरी कर दूं। क्या आप जानते हैं उनकी इच्छा क्या है? उनकी छोटी से इच्छा है कि जब तक मैं सारी लिखा ईमेल नहीं करुंगा तब तक वो मुझे ईमेल नहीं करेंगी। हां, ये बात अलग है कि इस छोटी सी इच्छा के साथ उन्होंने मुझे ढेर सारी उलाहनाएं दे दी थीं। ऐसा नहीं है कि वह बुरी हैं। किसी मायने में वह बुरी नहीं हैं। वो तो एक ऐसे मोम की गुड़िया हैं जो मेरे जज्बातों की थोड़ी से आंच से ही पिघल जाती हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है। इस बार बात बंद करने की पहल हमने ही की थी। हमीं ने उन्हें लिखा था कि हमको दादाजी की कसम है अगर हमने कभी आपको मेल किया। अब आप ही बताइये हम अपने अराध्य के नाम की कसम कैसे तोड़ सकते हैं। वैसे हमने पिछले दिनों में कई बार ऐसी कसमें तोड़ी हैं। अपने घर में। मां-पिता के सामने लेकिन उस समय हम काफी नकारात्मक रहा करते थे. अब तो हम नकारात्मक नहीं है. फिर क्यों हमने यह कसम खा ली है. हमारी ही समझ से परे है.इसलिए कहते हैं कि जोश में कभी होश नहीं खोना चाहिए. जोश किसी का भी हो, जवानी का हो या क्रोध का. जोश से मेरा मतलब आवेग का है. हम हमेशा अपने प्यार को लेकर भाग्य को कोसते हैं. अभी दो दिन पहले ही एक लेख पढ़ा जो सेक्स एडिक्शन पर था. थोड़ा सा झटका लगा कि कहीं वाकई हम सेक्स एडिक्ट तो नहीं होते जा रहे हैं. इसी कारण तो प्यार में भी एडिक्ट जैसा व्यवहार करते हैं. परिष्कृत प्यार का नाम तो हमें मालूम ही नहीं रहता है. हमारा एडिक्शन हमसे जो कराता है हम करते जाते हैं. जिस प्रकार शराब का एडिक्ट मनुष्य समझ ही नहीं पाता कब वो मयखाने में पहुंच जाता है. तो आज इतनी भाषणबाजी का मकसद यह है कि अब हमें बहुत खराब लग रहा है क्योंकि हमने बिना भविष्य की सोचे ही खुद को कसम दे डाली.अच्छा एक बात और आप सोच रहे होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं. तो आपको बता दें कि हमें खुद नहीं मालूम कि उनसे हमारा क्या रिश्ता है. मगर एक बात जरूर है वो रिश्ता एक पत्नी के रिश्ते से बढ़कर है, मेरा अपनी मां के साथ जितना गहरा भावनात्म लगाव है शायद वो रिश्ता उससे भी गहरा है, हमारा अपनी बेटी से जो लगाव है उससे भी गहरा वो रिश्ता है. यानी हमें तो ऐसा लगता है कि वो हमारे लिए ही बनीं थीं मगर किसी दुष्ट ज्योतिष ने हमारी और उनकी कुंडली गलत बनाकर हमारे बीच सात समंदर का फासला पैदा कर दिया. देखिए न हमें उनसे किसी प्रकार की शारीरिक सुख की भी अपेक्षा नहीं है. हमें उनसे किसी प्रकार की मदद की आशा नहीं है. उन्हें भी हमसे किसी प्रकार की आशा नहीं है लेकिन हम दोनों एक हैं. आप बताइये क्या इसी को प्यार कहते हैं? धत् तेरे की.... अब हमारी कोई प्यार करने की उम्र बची है?अरे हां, चलते चलते हम एक बात और बता दें. मजेदार बात है. जब हमने उन्हें आखिरी (?) मेल किया तो अपनी कलमनवीसी उसमें भी झाड़ दी. हमने लिख दिया कि अगर ईश्वर ने चाहा तो अगल जन्म में जरूर मिलेंगे. मालूम है उनका क्या जवाब था. भाड़ में जाओ मुझे सात जन्म तक नहीं मिलना है. सोचो मेरे सुधि मित्रों कि अगर हम दोनों पति-पत्नी होते तो क्या होता? और अब जब नहीं हैं तो आगे क्या होगा? क्या मैं एक दिन शराब पीकर अपनी जिन्दगी समाप्त कर लूंगा या फिर अनेक तूफानों की तरह इसे भी झेल जाउंगा? और या फिर सारी वाला ईमेल भेज कर अपनी कसम तोड़ दूंगा? आप गेस करें कि आगे क्या होगा? वैसे कहानी का अंत अगर करुण न हुआ यानी कि मैं सलामत रहा तो समय समय पर ब्लाग पर लिखता रहुंगा और आप सबको आगे की कहानी से अवगत कराता रहुंगा. वैसे उनके साथ बिताए हर लम्हे बहुत याद आ रहे हैं. इतना पढ़कर भी अगर आपकी आखें नम न हुईं हों तो इन्तजार करिये अगले एपीसोड का.

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

jab itna pyar karate the to sorry likhane ke liye to dadaji bhi naa nahi kahate, chahe to puch ke dekh lo.
waise kewal pryas hi karan ka sochte hi o ya kabhi kiya bhi hai.jab aapki ye halat hai to socho us ki kya halat ho rahi hogi jise bina baat saza dedi ki kasam hia jo mail karu to ......