इस समय नागपुर का मौसम

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

अकेलेपन से एकांत की ओर


कब आएगा समय
मानवीय मूल्यों को
स्थापित करने का
कब आएगा समय
अपने ईश के चरणों
में समर्पित होने का
राह से भटक गया
जो एक बार मैं
कब आएगा समय
फिर ठहराव का
अपनी अस्मिता को
स्वीकार करने का
भोलेनाथ के चरणों में
शांत चित्त निद्रा का
कब आएगा समय उन
बीते पलों में जीने का....
पहले सुना था, कहीं पढ़ा था शेर की ये पंक्तियां कि- भीड़ है कयामत की और हम अकेले हैं... धीरे-धीरे उसी अकेलेपन के आदी हो गए. जमाने भर के संबंधों, दोस्त-यारों के साथ समय व्यतीत करते कब हम अकेले हो गए हमें पता ही नहीं चला. समय का पहिया घूमता रहता है. जब हमें किसी ने कहा कि तुम अकेलेपन और अवसाद का शिकार हो गए हो तो हमने अपने अतीत में झांक कर देखा. साफ तौर पर दो हिस्सों में बंटी जिंदगी का पहला हिस्सा अकेलेपन से भीड़ की ओर था और दूसरा हिस्सा भीड़भाड़ से अकेलेपन की ओर.
एकांत का शाब्दिक अर्थ तो अकेलापन ही है. क्योंकि एकांत शब्द का अर्थ है एक के बाद अंत. यानी सिर्फ एक. जिंदगी के इस दूसरे हिस्से में यह अकेलापन कब एकांत में तब्दील हो गया पता ही नहीं चला. एकांत भाने लगा. वो कोई समारोह हो, किसी होटल में भोज हो या फिर घर का अमूमन बंद कमरा हो, हर जगह एकांत की तलाश शुरू हो गई. भले ही अकेले न रहा मैं, कोई साथ रहे लेकिन एकांत जरूर महसूस किया. अंतर्मन में हरदम एक सवाल उठने लगा कि आखिर एकांत की लालसा बढ़ती क्यों जा रही है. क्यों भाता है एकांत. फिर व्यक्तित्व भी एक तो पहले से ही सबसे जुदा था, भीड़ में भी अलग दिख जाते थे, अब पूरी तरह जुदा होने लगा है. अगर इस सत्य को माना जाए कि जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहियो.... तो अब लगने लगा है कि शायद ईश्वर को यही मंजूर है. नकारात्मक विचारों को सुनना पढ़ना तो दूर, नकारात्मकता से घिरे, आडंबर से घिरे या फिर दोमुंहे लोगों को देख कर ही सिहरन सी हो जाती है. ऐसे में जमाने के साथ चलने की बात तो अब समझ के बाहर होती जा रही है.
कहते हैं कि जब भी हम अकेले होते हैं तब हमारी गति बाह्य न होकर आंतरिक होती है. एकांत के क्षणों में मैं से सामना अपने आप हो जाता है। सच है ये एकांत अब आत्मसाक्षात्कार कराने लगा है. लगभग अधिक से अधिक आधी जिंदगी गुजारने के बाद जब सीनियारिटी के दंभ ने अपना स्थान बना लिया है तब आत्मसाक्षात्कार करना कभी-कभी तनावग्रस्त कर देता है. कहते हैं, भीड़ हमेशा ही निर्माण की भूमिका निभाने की बजाय विनाश ज्यादा करती है, इसलिए भीड़ को मूर्खता का प्रतीक माना जाता है. एकांत के कारण फैसले लेना काफी सुविधाजनक होता है. एकांत जीवन के लिए बहुत आवश्यक होता है. इससे हमें अपने अंर्तमन में झांकने का मौका मिलता है और हम अपना मूल्यांकन खुद ही कर सकते हैं.
विद्वानों का मत है कि अकेलापन और एकांत दो अलग स्थितियां हैं,  कुछ लोग ऐसे होते हैं जो स्वभाव के कारण जानबूझ कर एकांत पसंद करते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो अपने लिए समय निकालने के लिए एकांतवास में जाते हैं. दूसरी किस्म के लोग नैसर्गिक रूप से लोगों के बीच रहना पसंद करते हैं, किंतु मानसिक शांति और आत्मिक सुख के लिए उन्हें एक सुकून का कोना चाहिए होता है. वह कोना बेडरूम,  बाथरूम या स्टडी रूम भी हो सकता है. इस एकांतिक स्वभाव की जड़ें बचपन में गहरी होती हैं, जो वयस्क होने पर विविध रूपों में सामने आती हैं. जिन लोगों का बाल्यकाल भरे-पूरे परिवार के बीच गुजरता है, उनके जीवन में रचनात्मक किस्म के एकांत को लेकर आकर्षण होता है. ऎसे लोग सर्जनात्मक रूप से एकांत का उत्सव मनाते हैं.


मनोचिकित्सक कहते हैं कि जिन लोगों का बचपन एकल परिवार में, खास तौर से एकल परिवार में मां-बाप के बिना हास्टल  में गुजरता है, उनमें अकेलापन बुरी तरह घिरने की संभावना होती है, जो आगे चलकर जीवन को कई बार बेहद दर्दनाक बना देता है। ऎसे व्यक्ति अगर बचपन में दोस्तों के साथ ज्यादा समय गुजारते हैं तो उनमें अकेलेपन के दुष्प्रभाव नहीं होते. हालांकि स्थितियां इसके बिल्कुल उलट भी हो सकती हैं. दरअसल सारा खेल इस बात पर निर्भर करता है कि मनुष्य जिंदगी को किस रूप में लेता है. बचपन के प्रभाव कालांतर में सोहबत से बदल भी जाते हैं और ज्ञात-अज्ञात कारण  एकांत और अकेलेपन को लेकर व्यक्ति के स्वभाव में जबर्दस्त बदलाव ला सकते हैं. जब तेज तूफानी हवाएं चलने लगती हैं तो कुछ लोग दरवाजे बंद कर दीवारों  में कैद होने लगते हैं, वहीं दूसरे लोग पवन चक्कियां लगाने लगते हैं. आध्यात्मिक साधना के लिए एकांतवास तो हमारे देश में सदियों से होता आ रहा है.
विद्वानों का मत है कि आत्मचिंतन के बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन के वास्तविक मकसद को नहीं पा सकता,  इसलिए हर व्यक्ति कभी ना कभी इस प्रक्रिया से गुजरता है, लेकिन सामान्य व्यक्ति के लिए आत्मचिंतन का अर्थ रोजमर्रा के जीवन की समस्याओं और परिवार तथा अपने भविष्य को लेकर ही होता है. किसी भी व्यक्ति के लिए अपने आत्मचिंतन की प्रक्रिया  एकांत से शुरू होती है. आरंभ में यह प्रक्रिया किसी नौसिखिए की तरह सितार बजाना सीखने जैसी होती है. पहले तो सितार का वजन ही ज्यादा लगता हैऊपर से कोमल अंगुलियों के पोर कसे हुए तारों के तीव्र स्पर्श से लहूलुहान होने लगते हैं. इसीलिए अधिकांश लोग अपने आत्मचिंतन के प्रवेश द्वार से ही पलायन कर जाते हैं. मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि यह सब कुछ मैं जानबूझ कर नहीं कर रहा हूं. परिस्थितियां ऐसी बन रही हैं कि मुझे यह सब करना पड़ रहा है. या फिर अनजाने की अकेलेपन से एकांत का प्रवास शुरू हो गया है. नागपुर के बाहर एक संस्थान में जब नौकरी के एवज में मासिक वेतन के संबंध में पूछा गया तो अचानक ही मेरे मुंह से निकल गया कि सबसे पहले जरूरी है मेरे रहने और खाने की व्यवस्था. तो पूछने लगे कि आपको रहने के लिए कैसा घर चाहिए. मैंने कहा कि मुझे घर नहीं सिर्फ एक रुम चाहिए जिसमें शौचालय, स्नानगृह संलग्न हो. बाद में मुझे हंसी भी आई कि ऐसा कहना मेरा व्यावसायिक दृष्टिकोण नहीं था. 
खैर, बात एकांत की ओर प्रवास की हो रही थी. कहते हैं- करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान... यानी अकेलेपन और एकांतप्रियता की प्रक्रिया जब किसी व्यक्ति के जीवन का अहम हिस्सा बन जाती है तब उसे इसमें अपूर्व आनंद आने लगता है और वह समय मिलते ही अपने आत्मिक आनंद की खोज में अपनी मनचाही जगह चल देता है. एकांत में मेरी मनचाही जगह होती है मेरा कमरा और मेरा कम्प्यूटर. कम्प्यूटर पर इंटरनेट की सुविधा अब जरूरत बन गई है. कोई माने या न माने मगर फेसबुक पर देश भर के लोगों के साथ बौद्धिक स्तर पर विचारों का आदान-प्रदान और स्वयं के ब्लाग पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति में जितना आनंद आता है, उतना तो किसी डिस्कोथेक में जाकर भी नहीं आता है.
पश्चिम के देशों में अकेलापन भयावह रूप लेता जा रहा है. मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट वीस के अनुसार अकेलेपन के दो प्रकार होते हैं, भावात्मक या सामाजिक एकाकीपन और सामयिक या घातक अकेलापन. दोनों प्रकार के एकाकीपन के फायदे-नुकसान हैं, लेकिन वीस का कहना है कि व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में अत्यधिक एकाकी नहीं होना चाहिए. इसीलिए रचनात्मक एकांत को वीस जैसे मनोवैज्ञानिक मनुष्य के लिए उपयुक्त मानते हैं. लेकिन इस एकांत की अवधि अधिक ना हो तो बेहतर रहता है, क्योंकि इससे कई किस्म की शारीरिक और मानसिक व्याधियां पनपने लगती हैं. मनोवैज्ञानिक जॉन टीपो ने २००८ में अपनी नई खोज से प्रमाणित किया है कि लंबे समय तक एकाकी रहने से व्यक्ति के सामान्य बोध की चेतना और इच्छा शक्ति पर गहरा असर पड़ता है. दरअसल इसीलिए व्यक्ति के लिए रचनात्मक एकांत का मतलब है, किसी निश्चित काम या अवधि के लिए चिंतन मनन करते हुए अपने मानसिक और रचनात्मक आनंद की खोज करना. अपने मामले में मैंने पाया कि लेखन और दादा नामस्मरण से वाकई रचनात्मक आनंद की प्राप्ति होती है. शायद पत्रकारिता के क्षेत्र में १८ साल से अधिक समय बीत जाने के कारण लेखन का आनंद अंतरात्मा को तृप्त कर देता है. नोबल पुरस्कार से सम्मानित लेखिका नादिन गार्डीमिर कहती हैं कि लिखने के वक्त का एकांत भयानक होता है लगभग पागलपन जैसा. मुझे लगता है कि बचपन का अंतर्मुखी स्वभाव वापस लौट रहा है. एकांत की गहराइयों में यह सब लिखते हुए महसूस कर रहा हूं कि प्रभु भोलेनाथ, दादाजी धूनीवाले की शायद यही इच्छा है और इसी कारण परिस्थितियां विवश कर रही हैं, उस अनंत की ओर प्रवास के लिए, जहां कहा जाता है कि शून्य है... उसके आगे कुछ भी नहीं है. क्योंकि आदमी जब एकान्त में होगा तब वह बिल्कुल अपने साथ होगा और परमात्मा की निकटता मिलने की सम्भावना अधिक प्रबल हो जाएगी.

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

V-Day: 10 Signs of a Good Match

 
Does your current love connection fit?


We all know what it's like to go shopping and try on loads of different clothes to no avail, but when that one item fits like it was made for you, you snatch it up! Dating can seem like an unsuccessful shopping expedition but when you meet that special someone, it just fits and you both know it. Try these ten signs on for size and see if you've met your match.
ChemistryYou can't explain it, but cupid's arrow hit hard and you are mad about this person. They are the most beautiful being you've ever known and you can't wait to learn everything about them. Sparks are flying but you also feel a connection that is comfortable and familiar... almost like you already know them (and maybe you do from a past life). You feel at ease with them and passionate all at once. Cupid gets a raise!
BalanceThough you desire each other endlessly you also have a harmonious relationship in which you find intellectual and emotional stimulation. As the cliché goes, not just your lover but your friend (Pina coladas and getting caught in the rain, anyone?). You, quote, "simply enjoy time together in a myriad of ways". No ruts, couch potatoes or bar flies here of course - TV nights and a drink are fun here and there but you have so many other things to do together, you've had to Tivo the last five episodes of your favorite program.
Respect and compromiseWe all get consumed by the flames of passion, but true love also means mutual respect. Do you respect each other's time? Maybe you have very different careers or interests. Maybe your schedules are night and day but treating each other with respect and taking each other's needs into account is key. Compromise is par for the course but compromise that is respectful to both parties. If you need the United Nations to settle your disagreements, then maybe it's not your ideal match.
TimeSo you respect their time - now do you make time for them and vice versa? It seems like with more ways of communicating these days - the Internet, text, cell, instant messaging - people have a fast food sense of connecting. Your sweetie not only makes time to pick up the phone and have a real conversation but when they see you, they're not sending texts and taking calls the whole time. It takes quality time to make a quality relationship work.
MuseThroughout history... painters, writers and musicians have created masterpieces, written sonnets and symphonies inspired by their muse. Now you don't have to be Picasso or Mozart, but if they make you want to try and rhyme a couple of lines (or at least buy them a card with a poem in it) or sing a romantic tune, then maybe you've found your muse in this inspiring match.
Self-improvementRemember Jack Nicholson's famous line in As Good As It Gets - "You make me want to be a better man"? Does your significant other make you want to grow and be a better person for yourself and for the relationship? True love is also love for ourselves and being our best so we can be fully present with others. If you keep evolving so will your relationship.
EmotionsWhen you've met the right person, you know you can share your vulnerabilities with them. Not only can you laugh together but you can cry with each other and feel at ease. A good match is not just a fair weather date but someone who can handle the ups and downs that inevitably occur. If so, go ahead and break out the tissues for your Saturday night movie!
LaughWhen you see each other, you bring a smile to each other's faces. Even at the end of a bad day, one look from your special someone has you relaxing already. You make each other laugh and you have a good sense of humor about the relationship. Laughter can get you through a lot because even when you're perfect together, life still poses challenges -but if you can deal with them as a couple and still make each other smile, you have better staying power even when Mercury goes retrograde.
Au naturalThat same fox or vixen you saw on the town last night sometimes wears sweat pants and a t-shirt sans deodorant. Does their natural scent make you want to pounce on them or break open the fire hydrant? Scent is a driving force in attraction. Get past the clouds of perfume and cologne and find an even better smell that you'd like to bottle….your nose knows best!
Family and friendsUsually your friends and family know you better than you think they do and often times, they know when they see a good match for you. If your dates are always garnering disapproval but this one has them raving….it's definitely a good sign. Does your match get along with your friends and are they eager to be closer to you by being closer to your network? If your date can break open a beer with your buddies or do brunch with your friends, maybe they'll be calling your parents mom and dad... someday.

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

अब क्या खाक मनेगा वेलेंटाइन डे !!!!



अब तक वेलेंटाइन डे ही मालूम था. इस बार पता चला कि यह तो पूरे हफ्ते का चरणबद्ध कार्यक्रम है. इसकी शुरुआत ७ फरवरी को Rose Day  से हो जाती है. तो जनाब, ७ फरवरी यानी कल हम दिन भर गुलाब का फूल हाथों में लिए दिन भर गुलाबो रानी का इंतजार करते रहे. क्या करें कमबख्त गुलाबो नहीं आई. हम फेसबुक पर लोगों को एक-दूसरे को Rose Day  की बधाइयां देते हुए देखते रहे और अपना खून जलाते रहे. हर मौके हमें एसएमएस भेज कर विश करने वालियां भी नदारद ही रहीं. अब एक गुलाबो का ही सहारा था तो वो भी नदारद.
शाम होते ही गुस्से में हमने उस गुलाब के मुरझा से गए फूल को रौंद डाला और निकल पड़े गम गलत करने. रास्ते का हाल बेहाल था. दिन में गुलाब का फूल लेकर गुलछर्रे उड़ाने के बाद शाम को घर लौट रहे रंगीन मिजाजियों ने शाम को उन्हें जमींदोज कर दिया. साफ है. काम खतम तो काहे का गुलाब. वो तो ऐसे ही दिन भर दुनिया को दिखाने के लिए या फिर १४ फरवरी का माहौल बनाने के लिए एक अदद दिवस मना लिए. वैसे ही जैसे गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं. बांस की पतली छड़ी में लिपटे कागज के तिरंगे को शो-बाजी के लिए दिन भर लेकर घूमते हैं और शाम को उस राष्ट्रीय स्वाभिमान को डस्टबिन में फेंक देते हैं. यहां तक तो ठीक है परन्तु सड़कों पर, सार्वजनिक स्थानों पर इसे इस तरह फेंक दिया जाता है मानो महज अखबार में एक समाचार का टुकड़ा हो. पढ़ने के बाद फेंक दिया. सुबह अपनी महंगी कीमत पर अंदर ही अंदर आंसू बहा रहा गुलाब का फूल शाम होते ही शांत हो गया. उसे लोगों के पैरों तले रौंदा जाना अच्छा लग रहा था. उसे कचरे के ढेर की दुर्गंध अच्छी लग रही थी. एक अजीब सी आत्मशांति थी उसमें क्योंकि वह दिन भर के दिखावेपन से मुक्त हो गया था. वह सदा के लिए इस झूठी-मक्कार दुनिया से जुदा हो रहा था... समाधि लेने वाले संत के चेहरे पर जैसा तेज और शांति छाई रहती है, वही उस मुरझा गए गुलाब में दिखा. क्यों न हो झूठ की महफिल से छुटकारा जो मिल गया था. कांटों के बीच पैदा हुआ, कांटों के बीच खिला... तो फिर किसी भी अपमान या परेशानी से क्या सरोकार.
तो बात गुलाबो रानी की हो रही थी. कमबख्त ने सारा मजा एक हफ्ते पहले ही खराब कर दिया वेलेंटाइन डे का. अब वेलेंटाइन डे के दिन का क्या मजा. क्योंकि वेलेंटाइन डे तो पूरे सात दिनों का चरणबद्ध कार्यक्रम है. ७ को गुलाब का फूल दो. फूल ले लिया तो ८ को उसे प्रपोज कर दो. यानी उसके सामने अपने प्रेम का इजहार अधरों को हिला कर यानी बोलकर या फिर कागज के टुकड़े पर लिख कर या फिर एसमएस, ईमेल आदि का सहारा लेकर कर दो. अगर उसने स्वीकार कर लिया तो फिर चाकलेट डे है न ९ फरवरी को. कहते हैं लड़कियों को चाकलेट बहुत पसंद है. तो ९ को उसे चाकलेट दे दो. अरे भाई ये वो १ रुपए वाली चाकलेट नहीं होती है. यह होती है १५० रुपए वाली महंगी चाकलेट. इसी के ठीक दूसरे दिन यानी १० फरवरी को टेडी डे आ जाता है. यानी अब एक महंगा सा टेडी बियर (बियर शापी वाली बियर नहीं) उसे गिफ्ट करना होगा. गिफ्ट जितना महंगा होगा, आपके प्रपोजल को उतना अधिक जिम्मेदार माना जाएगा. यानी यह गिफ्ट आपके प्रपोजल यानी इजहारे इश्क का पैरामीटर हो जाएगा. अब गिफ्ट मिल गया तो ११ फरवरी को आपको कसम खाना होगा कि आप सात जन्मों तक प्यार करते रहेंगे. यानी प्रामिस डे के दिन यह करना ही होगा. उसके बाद क्या करना है ये देखा जाएगा. साथ जीने मरने की कसमे खाने के बाद १२ फरवरी को आता है किस डे. अच्छा है इस बार रविवार को आ रहा है. यानी छुट्टी का दिन. यानी दिनभर चुंबनों की बौछार का बेहतर अवसर. आशा है आशिक मिजाजी इस बेहतरीन मौके को हाथ से नहीं जाने देंगे. अब जब अधरों से अधर मिल गए.... आजकल कुछ फ्रेंच टाइप का भी सुना है... यानी कुल मिलाकर अधरों ने मनोमस्तिष्क पर कब्जा कर लिया है... तो अब तैयार जाइये गले लगाने के लिए. यानी १३ तारीख को आपको उन्हें अपने सीने से लगा कर यह एहसास दिलाना है कि आपकी बाहों में वो महफूज हैं. यानी Hug Day. जब इतना हो गया तो फिर गुलछर्रे उड़ाने की बारी आ ही जाती है. यानी आ गया वेलेंटाइन डे. जम कर गुलछर्रे उड़ाइये.
यानी जो काम डेट पर जाने वालियों के साथ साढ़े तीन घंटे में हो जाता है, उन सबके लिए पूरे सात दिनों का समय. वह भी उत्सव भरे माहौल में. कोई टोकने वाला नहीं. टोका तो दकियानूसी. पुराने ख्यालों का कहा जाएगा. यह सब लिखते-लिखते आखिर गुलाबो रानी का फोन आ ही गया. बोली, जानू, मैंने सोचा कि ये सात दिनों तक रुपए और समय की बर्बादी करने से अच्छा है कि सीधे वेलेंटाइन डे ही मना लेंगे. वैसे भी तुम अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण सदैव फटेहाल ही रहते हो, इसलिए मैंने निर्णय लिया कि तुमसे इतना भारीभरकम खर्च नहीं करवाना है. अब गुलाब के फूल पर ३० रुपए तो मैं खर्च कर ही चुका था, लेकिन बाकी के ३ हजार बचने की खुशी में मैंने ईश्वर को धन्यवाद भी दिया. वैसे गुलाबो रानी की बातचीत से ऐसा लग रहा था कि उसने जरूर किसी से गुलाब लिया है और आज चाकलेट खाने का वादा भी किया है. अब ये छह दिन जो उस पर हजारों खर्च करेगा क्या वो उसे ऐन मौके पर यानी वेलेंटाइन डे के दिन मेरे पास आने देगा.......????? समझ गये न... क्या खाक मनेगा वेलेंटाइन डे........

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

सीधे दिमाग से सुनने की तैयारी





दिमाग तक कोई शब्द कैसे पहुंचता है वैज्ञानिकों ने इसके रहस्य का पता लगा लिया है. उम्मीद लगाई जा रही है कि इस नई खोज के बाद एक दिन ऐसा भी आएगा जब लकवा या फिर स्ट्रोक के मरीज अपनी बात बिना कहे सुना सकेंगे.


फायदा उन लोगों को भी हो सकता है जो शतरंज खेलते हैं. प्रतिद्वंदी की चाल उनके दिमाग से कब उड़ कर दूसरे के पास पहुंच गई, खिलाड़ी को पता नहीं चलेगा. रिसर्च के दौरान जीवों के दिमाग में इलेक्ट्रोड लगा दिए गए और फिर उन्हें बातचीत सुनने दिया गया. वैज्ञानिकों ने आवाज की फ्रीक्वेंसी दर्ज की और फिर उनके विश्लेषण से पता लगाया कि कौन से शब्द सुने गए हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्कले में हेलेन विल्स न्यूरो साइंस इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर ब्रायन पास्ले भी इस रिसर्च में शामिल हुए. उन्होंने बताया, "हमारा ध्यान था कि दिमाग कही गई बात की आवाज के साथ क्या प्रतिक्रिया करता है. ज्यादातर जानकारियां 1 से 8000 हर्ट्ज की बीच थीं. दिमाग अनिवार्य रूप से अलग आवाज की फ्रीक्वेंसियों का अलग अलग हिस्सों में विश्लेषण करता है."
शरीर के श्रवण तंत्र का मुख्य केंद्र कनपटी की परलिका पर पहुंची ध्वनियों को दिमाग कैसे ग्रहण करता है. इसकी खोज के बाद वैज्ञानिक उन शब्दों का खाका खींचने में कामयाब हो जाएंगे जो दिमाग में सुनाई देता है. इसके बाद इसी तरह के शब्दों को गढ़ा जा सकता है. पास्ले ने बताया, "हम जानते हैं कि दिमाग का कौन सा हिस्सा सक्रिय होता है. यह इससे तय होता है कि मरीज ने दरअसल क्या सुना है. तो हम इस हद तक उसका खाका खींच सकते हैं जितना कि दिमाग की सक्रियता इसका विश्लेषण कर हमारे अनुमान की फ्रीक्वेंसी वाली आवाजें सुन सके."
रिसर्चरों ने एक शब्द, जिसका खाका खींचा वह हैः स्ट्रक्चर. इसमें उच्च फ्रीक्वेंसी वाले एस ने दिमाग में एक खास तरह की आकृति बुनावट दिखाई, जबकि नीची फ्रीक्वेंसी वाले यू ने एक अलग तरह की. पास्ले ने बताया, "आवाज के इन गुणों और उनसे दिमाग में पैदा होने वाली सक्रियता के बीच एक खास तरह की समानता है." दिमाग में इन्हें साथ रख कर शब्दों को दोबारा उत्पन्न किया जा सकता है.
यह खोज नेवले पर हुए रिसर्च के आगे की कड़ी है. तब वैज्ञानिकों ने जंतुओं के दिमाग में होने वाली गतिविधियों को रिकॉर्ड करने में कामयाबी पाई थी. उन्होंने उन शब्दों को भी पकड़ने में कामयाबी हासिल की जिन्हें नेवले के दिमाग ने सुना. हालांकि वो खुद उससे अनजान था और उसके लिए उन शब्दों को समझ पाना मुमकिन नहीं था.
वैज्ञानिकों के लिए अब आगे का लक्ष्य है कि शब्दों को सुनने की प्रक्रिया उनकी कल्पना की प्रक्रिया के कितनी समान हो सकती है. इस जानकारी के आधार पर वैज्ञानिक यह पता लगा सकेंगे कि जो लोग बोल नहीं पा रहे हैं, वो क्या बोलना चाहते हैं. कुछ पुराने रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें काफी समानता है. लेकिन अभी इसके लिए और खोजबीन की जरूरत है. पास्ले कहते हैं, "जिन मरीजों के बोलने की तंत्र में कोई समस्या आ गई है, चाहे वो किसी वजह से हो, उनके लिए यह बहुत काम का साबित होने वाला है. अगर आप दिमाग में चल रही बातचीत को पढ़ सकें, उन्हें समझ सकें, तो इससे हजारों लोगों को फायदा हो सकता है."
रिसर्च में यूनिवर्सिटी ऑफ मेरिलैंड, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्केले और बाल्टीमोर की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने भी हिस्सा लिया. साइंस जर्नल पीएलओएस बायोलॉजी के 31 जनवरी वाले अंक में इसके बारे में विस्तृत रिपोर्ट छपी है.
रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन, संपादनः ए जमाल

पंजाबी संगीत की दुनिया में नया सितारा ‘बाबा हनी’

 
हिंदुस्तान में हर मौसम में, हर धर्म में और हर त्यौहार और हर समय के लिए हम भारतीयों के लिए संगीत का महत्व बहुत है। चाहे जन्मदिन हो, चाहे शादी हो, चाहे बिदाई हो या चाहे सुखदुख हो हर वक्त के लिए कोई ना कोई संगीत बजते ही रहता है। संगीत की कोई भाषा नहीं होती, संगीत का कोई मालिक नहीं होता, या संगीत का कोई समय नहीं होता, जिसे संगीत का शौक हो उसकी कोई उम्र भी तय नहीं होती और खास कर तो हमारे इस भारत देश में मुगल सरकार के समय भी उनके दरबार में जो नवरत्न थे उसमें अकबर बादशाह ने संगीत रत्न तानसेन को भी शामिल कर लिया था। जैसा कि हमने ऊपर लिखा है कि संगीत का समय, उम्र नहीं होती और आज तो जबसे छोटे परदे की दुनिया छा गई है तो इसने साबित कर दिया है कि हिंदुस्तान में सैकड़ो नहीं, हजारो नहीं बल्कि लाखों ऐसे प्रतिभाशाली, गुणी और महत्वाकांक्षी गायक और संगीतकार है जो अपनी प्रतिभा के बलबूते दुनिया पर छा जाना चाहते हैं। इन्हीं लाखों की भीड़ में एक गीतकार-गायक-संगीतकार का उदय हुआ है हिमाचल के हमीरपुर शहर से जिसका नाम है बाबा हनी।
    
हाल ही में इस प्रतिभाशाली संगीतकार और गायक बाबा हनी से हमारी मुलाकात बॉलीवुड के जाने-माने फिल्म प्रचारक राजू कारीया ने उनके अंधेरी स्थित घर पर करवाई। जब हम उनके घर पहुंचे और जब हम बाबा हनी से मिले और उन्होंने अपना अलबम पंजाबी बल्ले के उनके द्वारा संगीतबद्ध और गाए हुए छह गाने हमें सुनाए तो हम चकित रह गए कि इस युवक में कितनी प्रतिभा, कितना योग्यता है। उन्होंने छह में से एक गाने का म्यूजिक वीडियो भी बनाया है, वह भी उन्होंने हमें दिखाया तो हमें लगा कि यह युवक वाकई प्रतिभाशाली है। तभी अचानक उनकी माताजी कविशा कौशल जो इस अलबम की निर्मात्री भी है, आ गई।
 
जब हमने उनसे इस अलबम के निर्माण के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि, हम हिमाचल के एक छोटे से कस्बे हमीरपुर के रहने वाले हैं। मैंने मेरे बेटे बाबा को बचपन से ही नाचते और गाते देखा है। मेरे बेटे का मन हमेशा पढ़ाई-लिखाई के बजाय संगीत की ओर ज्यादा था और मैंने भी जब उसके शौक को देखा तो मैं भी उसके गानों से प्रभावित हो गई और मैंने उसको सहयोग देना शुरु कर दिया। कहते हैं ना पूत के पैर पालने में नजर आते हैं, मेरे बच्चों के साथ मुझे यही महसूस हुआ। मेरे दोनों बच्चे बाबा हनी और बेटी रिषिका का ग्लैमर की दुनिया में आने का शौक अपने भाई की तरह ही देखा तो मैं अपने इन दोनों बच्चों को लेकर ७ साल पहले मुंबई आ गई। मुंबई आने के बाद मेरे बेटे और बेटी ने वह सारी तालीम हासिल कर ली जिनकी उन्हें आवश्यकता थी। आज मेरी बेटी मॉडेलिंग की दुनिया में छाई हुई हैं और बेटे ने संगीत की वह सारी तालीम हासिल कर ली जिसके उसे जरूरत थी और उसके बाद उसका अलबम बल्ले पंजाबीज लेकर हम दर्शकों के सामने आ रहे हैं।
 
     जब बाबा हनी से हमने पूछा कि अब भविष्य में क्या करने का विचार है तो बाबा हनी ने हंसते हुए जबाव दिया कि हम दोनों भाई-बहन को अपनी मां के वह सारे सपने पूरे करने हैं जो उन्होंने हमारे लिए देखे हैं। हमने अपने होम प्रोडक्शन कंपनी भी लांच कर ली है और जिसका नाम है कविश्वा एंटरटेनमेंट। इस बैनर तले हमने अपने नए म्यूजिक अलबम बल्ले पंजाबीज का निर्माण किया है जिसके छह गाने जिसे मैंने ही गाए हैं और मैंने ही संगीत दिया है। इसमें से एक गाने का वीडियो भी हमने तैयार कर लिया है जिसमें मैंने अपनी बहन रिषिका के साथ काम किया है। हम दोनों के अलावा सैकड़ों मॉडेल्स ने भी हमारे साथ इस इस म्यूजिक वीडियो में काम किया है।
इस म्यूजिक वीडियो के नृत्य निर्देशक है राजू वर्गिस। फिल्मी दुनिया के जाने माने और बड़ी फिल्मों के छायाकार दामोदर नायडू भी इस म्यूजिक वीडियो में हमारा साथ दे रहे हैं। हमारे इस वीडियो के निर्देशक हैं काजल नासकर। हमारा यह म्यूजिक अलबम इंटरनेशनल पंजाबी गाने जैसा है जिसे विदेश के पंजाबी लोग बहुत पसंद करेंगे। क्योंकि इस अलबम को हमने इंटरनेशनल लुक दिया है। म्यूजिक वीडियो बनाने के लिए हमने कोई कमी नहीं बरती। खर्च की परवाह नहीं की क्योंकि यह हमारा पहला प्रयास है और कहते हैं ना फर्स्ट इम्प्रेशन इज लास्ट इम्प्रेशन होता है, हम भी हमारे इस पहले अलबम से संगीत प्रेमियों को बता देंगे कि हम भी किसी से कम नहीं है। हमारा यह अलबम अगले महीने पूरी दुनिया में इंटरनेट के माध्यम से रिलीज किया जाएगा। हमें अपने संगीत और संगीतप्रेमियों पर पूरा भरोसा है कि उनके यह हमारा पहला प्रयास बहुत अच्छा लगेगा।
 
     हाल ही में हमने पंजाब के द किंग सिंगर मिका को यह गाने सुनाए तो उन्होंने भी इसकी दिल खोल कर हमारे गानों की प्रशंसा की। हनी बाबा ने बताया कि मेरा प्रेरणास्थान, मेरे गुरु आदरणीय मिका जी है जिनको दूर दूर से देख कर और सुन सन कर मैंने भी संगीत की दुनिया में कदम रखा और आज मेरा यह प्रयास सफल हुआ है और मेरा संगीत का यह प्रथम पुष्प मैं मेरे गुरु मिका को अर्पित करता हूं क्योंकि वह मेरे द्रोणाचार्य हैं और मैं उनका एकलव्य।

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

ACTOR/MODEL KIRAN JANJANI

Name- Kiran janjani

height- 5'11"

languages known-hindi,english,marathi,

work experince

T.V ads-colgate,johnson and johnson baby oil,eureka forbes aquaguard,ujala stiff and shine,l.i.c,M.D.H. masala,kit kat chocolate,pears soap,kamdhenu steel,acro paints,etc

south ads-sunflower gold winner oil,lion dates syrup,vara lakshmi sabu dana,etc

feature film-MY FRIEND GANESHA,
feature film realeasing after 2 months-PAROKSH with rituparna sen gupta,divya dutta,alok nath..
BENNY AND BABLOO with kk menon,rajpal yadav... Television show-Nach Baliye 3 on star plus

budget-Depending upon the project 

"hi..i ll tell u more about myself ..i went to america,for 1 year,with my wife ritu...she did prosthetic make up course .for more details..visit www.ritujanjjani.com .i did my filmmaking course from NEW YORK FILM ACADEMY in LOS ANGELES [HOLLYWOOD]...great learning experience,cause we were allowed to shoot in universal studios as a part of hands on training,so i felt super satisfaction from being an actor to a film maker ...but still in india actor is always a star...not the director...but i m still acting ...of course waiting for a right time to make my own film soon...next month i start shooting for rajev ruia s ZINDAGI 50/50. WITH RIYA SEN..
since last 9 months,i was busy setting up RITU JANJJANI S MAKE UP STUDIO...ANOTHER GOOD NEWS IS..that ritu is pregnant,due next week...so life keeps u busy with lot of responsiblities..not only work ha ha ha ...now that ritu s all set with her film make up work...i ll only concentrate on directing a film...big or small..no idea..but a good sensible..film...technically fantastic,since know all good cinematographers,and technicians...and super make up....all with god s wishes...ganpati bappa morya...i m busy doin ads in chennai and north...my america experience was amazing..as i made short films ...worked free for other filmmakers..to gain knowledge...writing,editing,camera etc...use to travel only by buses and trains...but very happy to do it....then went to new york to know more....met lot of indians...happy to know..they all loved me in MY FRIEND GANESHA film....now i m back to amchi mumbai...would love to make a film in america with my friends there..in los angeles....good team.... well i love my favourite nagpur alot..as i ve had my best celebrations in nagpur.."