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शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

अन्ना इफेक्टः देशमुख फिर मुख्यमंत्री, चव्हाण की पीएमओ वापसी जल्द

राजधानी दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को शीघ्र ही वापस दिल्ली बुलाकर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया जाएगा. इनकी जगह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख को फिर से राज्य के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी.

मालूम हो कि आदर्श सोसाइटी घोटाले में कथित लिप्तता के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को हटा कर दिल्ली से पृथ्वीराज चव्हाण को मुख्यमंत्री पद पर बैठाया गया था. हमेशा केंद्र की राजनीति में सक्रिय पृथ्वीराज चव्हाण अभी तक महाराष्ट्र की राजनीति में स्वयं को असहज ही महसूस करते रहे हैं. उनके निकटवर्ती इस बात की पुष्टि करेंगे कि पृथ्वीराज चव्हाण मुंबई में रम नहीं पा रहे हैं. दूसरी ओर हाल के दिनों में बड़े घोटालों से घिरी केंद्र सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री कार्यालय ऐसे मामलों से निपटने में विफल होता रहा है. पृथ्वीराज चव्हाण महाराष्ट्र जाने के पूर्व केंद्रीय मंत्री के रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े थे. सभी जानते हैं कि चव्हाण न केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के भी विश्वस्त रहे हैं. हालिया घोटालों के कारण प्रधानमंत्री को चव्हाण की कमी खलती रही है. प्रधानमंत्री कार्यालय ऐसे मामलों से निपटने में पूरी तरह विफल रहा है. यह चर्चा अब आम है कि अगर पृथ्वीराज चव्हाण रहते तब प्रधानमंत्री कार्यालय को ऐसी शर्मनाक स्थिति से नहीं गुजरना पड़ता. यही नहीं चव्हाण के मुंबई जाने के बाद प्रधानोमंत्री कार्यालय और १० जनपथ के बीच संबंध भी काफी बिगड़ गए. संवादहीनता की स्थिति ऐसी पैदा हुई कि सत्ता के दोनों केंद्र कभी-कभी परस्पर उल्टी दिशा में चलते दिखे. प्रधानोमंत्त्री मनमोहन सिंह की तरह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी पृथ्वीराज चव्हाण की कमी खलने लगी. हालांकि पृथ्वीराज चव्हाण की दिल्ली वापसी का विरोध करने वालों की भी कमी नहीं है. किन्तु दिल्ली में चव्हाण की प्रमाणित उपयोगिता के मद्दे नजर प्रधानमंत्री और कांग्रेस आध्यक्ष दोनों की इस बात पर सहमति बन गई है कि पृथ्वीराज चव्हाण को दिल्ली वापस प्रधानमंत्री कार्यालय में बुला लिया जाए. दूसरी ओर नए मुख्यमंत्री के लिए विलासराव देशमुख के नाम पर भी सहमति बन गई है. देशमुख भी मुंबई से दिल्ली आकर कभी सहज नहीं हो पाए. महाराष्ट्र की राजनीति में वापसी के लिए वे हमेशा प्रयत्नशील रहे. भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के आंदोलन ने उनके लिए रास्ता खोल दिया. अन्ना हजारे की लोकप्रियता और कांग्रेस विरोधी तेवर से परेशान कांग्रेस नेतृत्व ने विलासराव देशमुख को पुनः मुख्यमंत्री पद सौंपने का निर्णय लिया तो इसलिए कि वे अन्ना हजारे के काफी निकट रहे हैं. रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के अनशन को समाप्त करवाने में विलासराव देशमुख ने केंद्र सरकार की ओर से निर्णायक भूमिका अदा की थी. कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख को वापस भेजे जाने से वे अन्ना हजारे को कांग्रेस विरोधी रवैये से हटाने में सफल हो पाएंगे. अन्ना हजारे ने पूर्व में भी हमेशा विलासराव देशमुख की बातों को वरीयता दी है. कांग्रेस नेतृत्व नहीं चाहता कि अन्ना हजारे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस विरोधी अभियान चलाएं. अगले वर्ष उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस नेतृत्व काफी चिंतित है. चूंकि उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर होगी, कांग्रेस आलाकमान हर संभव कोशिश करेगा कि अन्ना हजारे वहां कांग्रेस के खिलाफ चुनाव प्रचार न करें. इस काम के लिए विलासराव देशमुख से अधिक योग्य व कुशल फिलहाल कांग्रेस में अन्य कोई नहीं है. इसी कारण कांग्रेस नेतृत्व ने महाराष्ट्र की गद्दी पुनः विलासराव देशमुख को सौंपने का फैसला किया है.

शहरी निकायों के चुनाव

इसी के साथ महाराष्ट्र में सात म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के चुनाव भी सर पर हैं. इन्हें देखते हुए भी अन्ना के विरोधी तेवरों को शांत करना कांग्रेस नेतृत्व की मजबूरी है. इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महाराष्ट्र में विपक्ष की महत्वपूर्ण घटक शिवसेना के साथ पहले से ही अन्ना का छत्तीस का आंकड़ा रहा है. हाल के दिनों में शिवसेना जिस तरह से अन्ना के विरोध में मुखरित हुई है, उससे अब प्रदेश में कांग्रेस को लगता है कि वह किसी तरह इस मुखालफत को भुना ले. इससे कम से कम महाराष्ट्र में किसी भी प्रकार की किरकिरी होने से बच जाएगी. वैसे भी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नितिन गड़करी का गृहनगर नागपुर की महानगर पालिका में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं. नागपुर में इस समय भाजपा का शासन है. और अगले लोकसभा चुनाव में गडकरी के यहां से चुनाव लड़ने की पूरी संभावना है. ऐसे में कांग्रेस चाहेगी कि कुछ ऐसा हो जाए जिससे गड़करी का ध्यान देश की राजनीति से भंग हो और वो राज्य में सीमित हो जाएं. वैसे भी अगर नागपुर में भाजपा हार गई तो कांग्रेस को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर हमला बोलने का मौका जरूर मिल जाएगा.

कभी-कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है....



कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
के ज़िन्दगी तेरी जुल्फों
की नरम छांव में गुजर न पाती
तो शादाब हो भी सकती थी
ये तीरगी जो मेरे जीस्त का मुकद्दर है
तेरी नजर की शुआओं में खो भी सकती थी

अजब न था के मैं बेगान-इ-आलम हो कर
तेरे ज़माल की रानाइओ मे खो रहा था
तेरा गुदाज़ बदन तेरे नीम बार आँखे
इन्ही फसानो में मैं खो रहा था

पुकारती मुझे जब तल्खायीं ज़माने की
तेरे लबो से हालावत के घूंट पी लेता
हयात चीखती फिरती बारहना सर, और मैं
घनेरी जुल्फों के साए मे जी लेता

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
के तू नहीं, तेरा गम ,तेरी जुस्तुजू भी नहीं
गुजर रही है कुछ इस तरह ज़िन्दगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं

न कोई राह, न मंजिल ,न रौशनी का सुराग
भटक रही है अंधेरो में ज़िन्दगी मेरी
इन्ही अंधेरो में रह जाऊंगा कभी खोकर
मै जानता हूँ मेरी हम नफस, मगर युहीं
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है,,,,,,,

- साहिर लुधियानवी

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

मुक्ति..




क्यूं है ये मंजर कि एक इंसान
जिंदा लाश बन गया
उसे तो ये भी ना पता कि
किसकी सजा पा गया


उसने जब अपने अंतः को
टटोला, उसे खंगाला
विचित्र सी आवाजें आने लगीं
तब भी न समझ पाया वो
कि कैसी खता हो गई
ऐसी कोई गलती न की थी
जिससे मिले इतना दर्द
सुकूने जिंदगी का वो मर्म
किस गर्भ में खो गया


कब तक खोजता रहे वो
अपने सपने की मंजिल
कब तक चलता रहे सुदूर
और दूर, बहुत दूर
कब तक मिलता रहे उसे
धोखा, अपमान, दिखावा
क्यों कोई अमर्यादित होकर
सीने पर सवार, करे अट्टहास
झेलते गया वो हर वार
हर होनी पर तर्क देता
अब टूट गया उसका स्व
जमीर उसका बिखर गया

है वो हौसले का पक्का इंसान
अब भी थामे है दामन
सच का, इंसानियत का
मगर कब तक, कब तक
सोचता है वो हर वक्त
एक न एक दिन उसकी
आत्मा ही मार दी जाएगी

अच्छा है, वह जन्म-मरण के
खेल से ही मुक्त हो जाएगी....

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

दोस्ती का सिला

आज मेरा मजाक उड़ा ले जीभर
मगर मेरी गुफ्तगूं रुक नहीं सकती

गिला नहीं गर तू गैर से इश्क कर ले
हिकयते खूंचका मिटा नहीं सकती

तू मुझे ख्वाब समझ भुला दे मगर
ख्वाबों से रिश्ता तोड नहीं सकती

हुस्न पे नाज तुझे जरूर है मगर
उसे ताउम्र कायम रख नहीं सकती

खौफ आता है मुझे तकसीर पे 'अंजुम'
मेरी आह सिला-ए-गौश मांग नहीं सकती।

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

प्रेम ज्ञान जरूरी है...

1987 में लिखी कविता.. अब जमाना हाईटेक हो गया है...
मगर प्रेम ज्ञान की जड़ें गहराती जा रही हैं.

प्रेम ज्ञान जरूरी है...

एक शाम कुछ ऐसी गुजरी
मित्र मिलन की इच्छा पनपी
तैयार हो झट पहुंचा घर उसके
वो बैठा था घर की छत पे
कुछ गंभीर कुछ भावविभोर सा
निगाह बिछाए अगले घर पे

मैंने कहा- जनाब, शाम के वक्त
सब टहल रहे हैं
मगर आप घर की छत पर
क्या कर रहे हैं

तभी मुझे सामने मकान से
कर्कश संगीतयुक्त गीत सुनाई दिए

मैंने कहा- कितने निर्लज्ज लोग हैं
अपने संगीत प्रेम का परिचय
कितनी निर्भिकता से दे रहे हैं

मित्र ने कहा- आपके विचार गलत हैं
दरअसल हमारी अबोध नाबालिग प्रेमिका
द्वारा हमें प्रेम संदेश भेजे जा रहे हैं

मैंने कहा- ये आदान-प्रदान
कब से चल रहे हैं

उसने कहा-
जब से फलां फिल्म थियेटर में आई है
हमारी सूरत उसके दिल में उतर आई है
मैंने कहा- क्या शादी का इरादा है

उसने कहा-
क्या वाहियात प्रश्न कर दिया
शाम का मजा ही किरकिरा कर दिया
अगर ऐसा होता तो तुझे
अभी क्यों बताता
सीधे शादी का निमंत्रण
ही न भिजवाता

शायद तुझमें प्रेम ज्ञान की कमी है
खैर मैं तुझे प्रेम ज्ञान का अर्थ
समझाता हूं
तेरे जीवन को यथार्थ में
तब्दील करता हूं

"कि मनुष्य जब युवा होता है
उसे जिंदगी से जूझना होता है
अतः उसका सर्वांगीण विकास होना चाहिए
उसे जिंदगी के हर पक्ष का ज्ञान होना चाहिए

वैसे तो प्रेम रस के कवियों और शायरों ने
इस पर काफी रिसर्च किए हैं
फिर भी प्रैक्टिकलविहीन उनके
रिसर्च अब तक अधूरे हैं
मैं प्रेम ज्ञान का नया अध्याय
शुरू कर रहा हूं
इसे प्रैक्टिकलयुक्त कर नई दिशा
दे रहा हूं

ये घर की छत मेरी प्रयोगशाला है
सामने बैठी कन्या मेरी प्रयोगबाला है
उसने कहा-
तू भी यंग नालेज पर रिसर्च शुरू कर दे
अपनी जिंदगी को संपूर्ण ज्ञान से भर ले
वरना समय बीत गया तो पछताएगा
शादी के बाद बीवी को क्या मुंह दिखाएगा
तेरी बीवी तुझे प्रेम ज्ञान का अर्थ समझाएगी
क्योंकि वो भी कभी किसी की प्रयोगबाला रही होगी"

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

एक मुलाकात


याद गए आज मुझे फिर वो
बीते लम्हे प्यार के
वो यादें, वो शरारतें , किस्से
उनके इंतजार के
मिलने की कसक के साथ
हमारा मीलों दूर जाना
फिर मोबाइल पर हमारी
पल-पल की खबर लेना
हमें भी मिलने की चाहत
ऐसी कि खुद को भूल जाना
फिर मुलाकात के उन क्षणों में
ऐसे खो जाना ऐसे
बिन मौसम बरसात कर
प्रकृति भी रजामंद हो जैसे
फिर कुछ गिलेशिकवों की सौगातें
साथ में कुछ पल फुर्सत के
ऐसे कट जाते हैं मानो
मुलाकात ही ना हुई हो
विदाई का बोझ लिए हो जाना विदा
दोनों के रास्ते एक दूसरे से जुदा
मगर मुलाकात का वो ठहराव
अब भी है वो सुखद एहसास
इसे ही संजोये रखना है
अब उम्र भर हमें
अब रास्ते हो गए जुदा मानो
मुलाकात ही ना हुई हो.....



मां दुर्गा का नवां स्वरूप मां सिद्धिदात्री

।। दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

मां दुर्गा का नवां स्वरूप सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है और वे अपने भक्तों को आठों प्रकार की सिद्धियां देने में सक्षम हैं। देवी प्राण में ऎसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शंकर ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी चार भुजाएं हैं, दाई ओर की दो भुजाओं मे गदा और चक्र और बाई ओर की दो भुजाओं में पद्म और शंख सुशोभित हैं। इनके सिर पर सोने का मुकुट और गले में सफेद फूलों की माला है। ये कमल पर आसीन हैं और केवल मानव ही नहीं बल्कि सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर सभी इनकी आराधना करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्रा के नवें दिन इनकी पूजा की जानी चाहिए।
सिद्ध गन्धर्व यज्ञद्यैर सुरैर मरैरपि |
सेव्यमाना सदा भूयात्‌ सिद्धिदा सिद्धि दायिनी ||
नवरात्र के अंतिम दिन माता सिद्धिदात्री की आराधना इस मंत्र से करना चाहिए। नवरात्र के अंतिम दिन देवी दुर्गा की नवीं शक्ति और भक्तों को सब प्रकार की सिद्धियां प्रदान करनेवाली मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार माता अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ प्रकार की सिद्धियां प्रदान करनेवाली हैं, जिस कारण इनका नाम सिद्धदात्री पड़ा। अपने लौकिक रूप में मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल के पुष्प पर आसीन हैं। आस्थावान भक्तों की मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ माता की उपासना करने से उपासक को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था और इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था, जिस कारण भोलेनाथ अर्द्धनारीश्वर नाम से विख्यात हुए।
अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।

रविवार, 2 अक्टूबर 2011

मां दुर्गा का आठवां स्वरूप

।। दत्त गुरु ओम, दादा गुरु ओम्।।


या देवी सर्वभूतेषु,
शांति रूपेण संस्थिता:,
नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः॥


नवरात्रि के आठवें दिन माँ के आठवें स्वरूप “महागौरी” की पूजा की जाती है, अर्थात “महागौरीति च अष्टमं” .
माँ का वर्ण पूर्णतः गौरवर्ण है.इनके समस्त वस्त्र और आभूषण श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं है। माँ के ऊपर का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाले दाहिने हाथ मी त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू है तथा नीचे का हाथ वरमुद्रा में है। माँ की मुद्रा अत्यंत शांत है और ये वृषभ पर आरूढ़ हैं।

माँ महागौरी की कृपा से साधक को अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सैट की और प्रेरित कर असत का विनाश करती हैं। माँ का ध्यान स्मरण ,पूजन -आराधन भक्तों के लिए सर्वाधिक कल्याणकारी है।

ग्रहस्थों के विशेष मंगलकारी माँ महागौरी की उपासना।

नवरात्र के आठवें दिन मां के आठवें स्वरूप महागौरी की उपासना की जाती है। यही देवी शताक्षी हैं, शकुंभरी हैं, त्रिनेत्री हैं, दुर्गा हैं, मंशा हैं और चंडी हैं। इस दिन साधक विशेष तौर पर साधना में मूलाधर से लेकर सहस्रार चक्र तक विधि पूर्वक सफल हो गये होते हैं। उनकी कुंडलिनी जाग्रत हो चुकी होती हैं तथा अष्टम् दिवस महागौरी की उपासना एवं आराधना उनकी साधना शक्ति को और भी बल प्रदान करती है। मां की चार भुजाएं हैं तथा वे अपने एक हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए हैं, दूसरे हाथ से अभय मुद्रा में हैं, तीसरे हाथ में डमरू सुशोभित है तथा चौथा हाथ वर मुद्रा में है। मां का वाहन वृष है। अपने पूर्व जन्म में मां ने पार्वती रूप में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी तथा शिव जी को पति स्वरूप प्राप्त किया था। मां की उपासना से मन पसंद जीवन साथी एवं शीघ्र विवाह संपन्न होगा। मां कुंवारी कन्याओं से शीघ्र प्रसन्न होकर उन्हें मन चाहा जीवन साथी प्राप्त होने का वरदान देती हैं। इसमें मेरा निजी अनुभव है मैंने अनेक कुंवारी कन्याओं को जिनकी वैवाहिक समस्याएं थी उनसे भगवती गौरी की पूजा-अर्चना करवाकर विवाह संपन्न करवाया है। यदि किसी के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो वह भगवती महागौरी की साधना करें, मनोरथ पूर्ण होगा।

साधना विधान- सर्वप्रथम लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित करें तदुपरांत चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें तथा यंत्र की स्थापना करें। मां सौंदर्य प्रदान करने वाली हैं। हाथ में श्वेत पुष्प लेकर मां का ध्यान करें।

ध्यान मंत्र -

श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभम् दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

ध्यान के बाद मां के श्री चरणों में पुष्प अर्पित करें तथा यंत्र सहित मां भगवती का पंचोपचार विधि से अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें तथा दूध से बने नैवेद्य का भोग लगाएं। तत्पश्चात् ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। मंत्र की तथा साथ में ॐ महा गौरी देव्यै नम: मंत्र की इक्कीस माला जाप करें तथा मनोकामना पूर्ति के लिए मां से प्रार्थना करें। अंत में मां की आरती और कीर्तन करें।

मां दुर्गा का सातवां स्वरूप कालरात्रि

।। दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।।

मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को 'कालरात्रि' कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक होता है, लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं, इसलिए इन्हें 'शुभंकरी' भी कहा जाता है।

ये अपने महाविनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करती हैं। विनाशिका होने के कारण इनका नाम कालरात्रि पड़ा। आकृति और सांसारिक स्वरूप में यह कालिका का अवतार यानि काले रंग-रूप वाली, अपने विशाल केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नज़र आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर और दूसरे हाथ में खड्ग-तलवार से युद्ध स्थल में उनका नाश करने वाली कालरात्रि सचमुच अपने विकट रूप में नज़र आती हैं।

कालरात्रि की सवारी गधर्व यानि गधा है, जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है। वह निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। भक्तों पर कालरात्रि की असीम कृपा रहती है और उन्हें वह हर तरफ से रक्षा प्रदान करती हैं। भक्तों को कालरात्रि से भय नहीं लगना चाहिए। यह रात तो ऐसे दुष्टों और पापियों के लिए है, जिसने अधर्म को ही अपना धर्म बना रखा है।

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहसार' चक्र में स्थित रहता है। इनके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: मां कालरात्रि के रूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं, इससे साधक भयमुक्त हो जाता है।

उपासना मंत्र

एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।

वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

कांग्रेसी मायाजाल में दफ़न शास्त्री की मौत


साप्ताहिक विज्ञापन की दुनिया, नागपुर के १० अप्रैल के अंक में प्रकाशित

पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य हमेशा से भारत की जनता के लिए रहस्य ही रहा है। अब यह रहस्य और गहरा गया है। भारत सरकार सुभाषचंद्र बोस और लालबहादुर शास्त्री जैसे महापुरुषों के जीवन को इतना रहस्यमय क्यों मानती है? क्या इसकी वजह यह है कि अगर रहस्य उजागर कर दिए गए तो देश का इतिहास फिर से लिखना प‹डेगा और शास्त्रीजी और नेताजी उसमें जवाहरलाल नेहरू से भी ब‹डे नायक बन कर उभरेंगे? कांग्रेस को गांधी-नेहरू वंश के बाहर का नायक पसंद नहीं है। वह तो फिरोज गांधी को भी भूल गई है जिनकी पत्नी प्रधानमंत्री बनीं, बेटा प्रधानमंत्री बना और बहू सोनिया गांधी आज की तारीख में देश की सबसे ब‹डी नेताओं में से एक हैें। कांग्रेस ने सदैव अपने आभामंडल के अनुसार ही इतिहास को तो‹डामरो‹डा है। अब लालबहादुर शास्त्री के परिवार के सदस्यों खासकर शास्त्री की बेटी सुमन qसह के बेटे सिद्धार्थ qसह ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत भारत सरकार से मांगी गई जानकारी को यह कहकर नहीं दिए जाने को गंभीरता से लिया है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जु‹डी जानकारी को सार्वजनिक किया जाएगा, तो इसके कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान और देश में ग‹डब‹डी हो सकती है।

१० जनवरी १९६६ ! अहम दिन और ऐतिहासिक तारीख ! पाकिस्तान के नापाक इरादों को हिमालय की बर्फ और थार के रेगिस्तान में दफनाने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने सोवियत संघ की पहल पर एक ऐतिहासिक कारनामे पर अपनी मुहर लगा दी। इसकी चर्चा पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। सच मानें तो दुनियाभर के देश अचम्भित नजरों से देख रहे थे। इस अजीम शख्सियत-भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को! इस सामान्य कद-काठी और दुबली काया वाली शख्सियत में साहस का अटूट माद्दा किस कदर भरा था। इन्होंने देश की बागडोर संभालने में जिस समझदारी और दूरंदेशी वाली सूझ-बूझ का परिचय दिया, वह ऐतिहासिक है। शास्त्रीजी ने अपने जिन फौलादी इरादों से पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी वह पाकिस्तान के लिए कभी न भूलने वाला एक सबक है।शास्त्रीजी की मौत के संबंध में आधिकारिक तौर पर जो जानकारी जनता तक पहुंची है, उसके अनुसार ११ जनवरी, १९६६ को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत दिल का दौरा प‹डने से उस समय हुई थी, जब वह ताशकंद समझौते के लिए रूस गये थे। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है। ताशकंद में भारत-पाक समझौता करने के लिए लगभग बाध्य किए गए भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की वहां के एक होटल में आधी रात को दिल का दौरा प‹डने से हुई मौत को भारत सरकार एक राजकीय रहस्य मान कर चल रही है।दिवंगत प्रधानमंत्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने कहा कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री उनके पिता ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकप्रिय नेता थे। आज भी वह या उनके परिवार के सदस्य कहीं जाते हैं, तो हमसे उनकी मौत के बारे में सवाल पूछे जाते हैं। लोगों के दिमाग में उनकी रहस्यमय मौत के बारे में संदेह है, जिसे स्पष्ट कर दिया जाए तो अच्छा ही होगा।दिवंगत शास्त्री के पोते सिद्धार्थनाथ qसह ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने देश में ग‹डब‹डी की आशंका जताकर, जिस तरह से सूचना देने से इंकार किया है, उससे यह मामला और गंभीर हो गया है। उन्होंने कहा कि हम ही नहीं, बल्कि देश की जनता जानना चाहती है कि आखिर उनकी मौत का सच क्या है। उन्होंने कहा कि यह भी हैरानी की बात है कि जिस ताशकंद समझौते के लिए पूर्व प्रधानमंत्री गए थे, उसकी चर्चा तक क्यों नहीं होती है। उल्लेखनीय है कि सीआईएज आई ऑन साउथ एशिया के लेखक अनुज धर ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत सरकार से स्व. शास्त्री की मौत से जु‹डी जानकारी मांगी थी। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर सूचना सार्वजनिक करने से छूट देने की दलील दी है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जु‹डे दस्तावेज सार्वजनिक किए गए, तो इस कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान, देश में ग‹डब‹डी और संसदीय विशेषाधिकार का हनन हो सकता है। सरकार ने यह स्वीकार किया है कि सोवियत संघ में दिवंगत नेता का कोई पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था, लेकिन उसके पास पूर्व प्रधानमंत्री के निजी डॉक्टर आरएन चुग और रूस के कुछ डॉक्टरों द्वारा की गई चिकित्सकीय जांच की एक रिपोर्ट है।धर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के तहत यह सूचना भी मांगी है कि क्या दिवंगत शास्त्री की मौत के बारे में भारत को सोवियत संघ से कोई सूचना मिली थी। उनको गृह मंत्रालय से भी मांगी गई ये सूचनाएं अभी तक नहीं मिली हैं कि क्या भारत ने दिवंगत शास्त्री का पोस्टमार्टम कराया था और क्या सरकार ने ग‹डब‹डी के आरापों की जांच कराई थी। सूचना के अधिकार के तहत भी इस मौत के कारणों और स्थितियों की जानकारी नहीं दी जा रही। यह नहीं बताया जा रहा कि भारत के प्रधानमंत्री के होटल के कमरे में फोन या घंटी तक क्यों नहीं थी? उनके शरीर पर नीले दाग किस चीज के थे? इस अचानक हुई मौत के बाद शव का पोस्टमार्टम तक क्यों नहीं करवाया गया? क्या समझौते के बाद देश को जय जवान का नारा देने वाले शास्त्री जी ने अपने चश्मे के कवर में एक लाइन का नोट लिख कर रखा था जिसमें लिखा था कि आज का दिन मेरे देश के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है? १९६५ की ल‹डाई में भारत ने पाकिस्तान को निर्णायक रूप से पराजित किया था और बहुत सारी ऐसी जमीन भी छीन ली थी जिस देश पर १९४७ में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि qसह के अनिर्णय का लाभ उठा कर कब्जा कर लिया था। इसमें करगिल भी था। शास्त्री जी को तत्कालीन सोवियत संघ के नेताओं ने लगभग बाध्य किया कि वे यह जमीन वापस कर दें। शास्त्रीजी करगिल कस्बे को जैसे तैसे बचा पाए थे। अपने दस्तखत से शहीद हुए सैनिकों का बलिदान निरस्त करने का दुख उनकी मृत्यु का कारण बना। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है।नेताजी सुभाष चंद बोस के मामले में भी भारत सरकार का रवैया लचर रहा है। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फरार मुजरिम घोषित किया था। कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके और महात्मा गांधी की जिद का आदर करते हुए इस्तीफा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का विश्वास इस बात से खत्म हो गया था कि अqहसा के जरिए अंग्रेजों को भगाया जा सकता है। उन्हें जबलपुर में जहां आज मध्य प्रदेश पर्यटन निगम का होटल कलचुरी है, के पास एक मकान में नजरबंद करके रखा गया था जहां से वे निकल भागे थे और रेलों, बसों और पैदल यात्रा करते हुए अफगानिस्तान के रास्ते रूस जा पहुंचे थे। और जर्मनी में अडोल्फ हिटलर से मुलाकात करने में सफल हुए थे। यह सच है कि हिटलर ने दुश्मन के दुश्मन को दोस्त मानते हुए सुभाष चंद्र बोस को आजाद वृहद् फौज बनाने में मदद की थी और इस फौज के प्रारंभिक सैनिक वे थे जो विश्व युद्ध में चीन के कब्जे में आ गए थे। चीन ने उन्हें रिहा कर आजाद qहद फौज का सिपाही बना दिया। इसके अलावा नेताजी की अपनी एक विश्वासपात्र कमान भी थी। नेताजी एक दिन जापान के ताईपेई हवाई अड्डे से उड़े और उसके बाद क्या हुआ इसके बारे में निर्णायक रूप से किसी को कुछ पता नहीं हैं? दस्तावेज मौजूद है लेकिन वे भारत सरकार के ताले में बंद हैं। सूचना के अधिकार के तहत भी उनकी जानकारी नहीं दी जा सकी। नेताजी के गायब होने के बारे में पहले शाहनवाज कमीशन और फिर हीरेन मुखर्जी कमीशन बिठाया गया मगर उन्हें भी यह दस्तावेज नहीं सौपे गए। सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर दस्तावेज नहीं देने थे तो फिर यह आयोग बिठाए ही क्यों गए थे? लालबहादुर शास्त्री के मामले में भी भारत सरकार का रवैया कुछ अलग सा है। चूंकि शास्त्रीजी के अस्तित्व को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता, भारत-पाक के निर्णायक युद्ध को खारिज नहीं किया जा सकता, इसलिए इतिहास में उनका जिक्र है। बच्चों को स्कूल में प‹ढाया जाता है कि जय जवान, जय किसान का नारा किसने दिया किन्तु स्वतंत्र भारत के निर्माण में उनकी भूमिका नेहरू के मुकाबले गौण ही मानी जाती है।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी
धर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के तहत यह सूचना भी मांगी है कि क्या उनकी मौत के बारे में भारत को तत्कालीन सोवियत संघ से कोई सूचना मिली थी? उनको गृह मंत्रालय से भी मांगी गई ये सूचनाएं अभी तक नहीं मिली हैं कि क्या भारत ने दिवंगत नेता का पोस्टमार्टम कराया था और क्या सरकार ने ग‹डब‹डी के आरापों की जांच कराई थी?

शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

मां दुर्गा का छठवां स्वरूप मां कात्यायिनी

।।दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।।

चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायिनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी

नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

इस देवी को नवरात्रि में छठे दिन पूजा जाता है। कात्य गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो।

मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायिनी कहलाईं। इनका गुण शोध कार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायिनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं।

ये वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं। मां कात्यायिनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।

इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।

मां दुर्गा का पंचम स्वरूप मां स्कंदमाता

।। दत्त गुरु ओम्, दादा गुरु ओम्।।



सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।

पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है।

कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं।

इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।
शास्त्रों में इसका पुष्कल महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है।
सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है।

यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।