बहुत प्यारी है वो, बिल्कुल मेरी छोटी सी गुड़िया जैसी... वो गुस्सा होती है तो प्यार आता है... वो उलाहना देती है तो प्यार आता है.... उसकी तबीयत खराब होती है तो प्यार आता है... लेकिन जब प्यार करती है तो.... पता नहीं क्या हो जाता है.... अरे, उसे नहीं मुझे। जब वो प्यार करती है तो मैं बेचैन हो जाता हूं... शायद इतने प्यार की आदत नहीं है न... शायद कभी जिंदगी में इतना प्यार नहीं मिला न... इसलिए जब वो प्यार करती है तो मैं पचा नहीं पाता हूं. अजीब सी गुड़िया है वो.... मेरी एक बेटी है, नाम है उसका रिका. वो भी मुझे बहुत प्यार करती है लेकिन रिका का प्यार मेरे और अपनी मां के बीच विभाजित है. लेकिन इस छोटी सी गुड़िया का प्यार तो एक दम परिष्कृत, अविभाजित है. वह अपना प्यार किसी के साथ नहीं बांटती. वो जब प्यार करती है तो सिर्फ मुझसे करती है. थोड़ी बेवकूफ भी है... लेकिन मजे की बात ये है कि उसकी बेवकूफी में भी मुझे प्यार आता है... अब देखो ना हर जगह प्यार... ही प्यार है... एक और समस्या, अगर ये बात बेटी यानी रिका को पता चल गई तो फिर एक और महाभारत... वैसे वो अभी छोटी है... मेरा ब्लाग पढ़ने में उसे अभी ५ साल और लगेंगे. इसलिए चिंता की बात नहीं है.
अब फिर उसकी बात. मुझे चिढ़ाने के लिए या फिर झांसी की रानी बनके उसने किसी दूसरे से पींगें लड़ाईं. मैंने पहले तो ध्यान नहीं दिया. लेकिन अब वो कहते हैं न... नहीं रहा गया मुझसे तो लिख दिया कि मुझे जो गिफ्ट दिया है उसकी कीमत बताओ... वापस करना है... बस हो गया... उसका प्यार फिर झलकने लगा... बिफर गई... मेरी क्या कीमत लगाओगे... बताओ मेरी क्या कीमत है बाजार में... मुझे तो मर्दों की आदत पड़ गई है... वगैरह-वगैरह. सच में जब वो ये सब लिख रही थी तो मैं मुस्कुरा रहा था. हम दोनों के बीच संबंध ही ऐसे बन गए हैं कि हमारा एक-दूसरे से मिलना जरूरी नहीं है. बदमाशी थोड़ी मैं ही करता हूं.... कभी कुछ पी ली तो कभी किसी को देख लिया. लेकिन उसने कभी ऐसा नहीं किया. उससे मुझे तभी तकलीफ हुई जब उसने मुझ पर अपना प्यार उड़ेला. बताया न मुझे शायद आदत नहीं है... इतना प्यार पचाने की.
हमारे बीच नजदीकी इतनी है कि एक समय वो क्या कर रही है, या मैं किस मूड में हूं... हम दोनों को मालूम रहता है. जब एक को नींद आती है तो दूसरे को भी आती है. जब एक जागता है तो दूसरा भी जागता है. अब ये भी झगड़े का कारण बनता है. जब हमारे यहां दिन होता है तो उसके यहां रात होती है. तो जब वो दिन में मुझे याद करती है तो मुझे रात में नींद नहीं आती. मैं दिन में काम में इतना व्यस्त हो जाता हूं कि याद करने का समय ही नहीं मिलता... (गुस्सा मत होना भाई ये पढ़ कर)... लेकिन रात में जब वो सोती है तो मुझे दिन में आफिस में नींद आती है.
चलो अब तो झगड़ा हो गया है. अब दूरी ही रहनी है. तो इस दूरी वाले प्यार को अब मैं सहेजूंगा. कम से कम अब प्यार पाने से तकलीफ तो नहीं होगी. चलो अच्छी है ये दूरी...
लेकिन न वो बुरी है और न मैं. इतना प्यार होने के बावजूद न उसने अपना परिवार छोड़ा न मैंने.... तो हैं न. हम स्वार्थी नहीं है. बस एक चकवा-चकवी हैं जो कभी मिल नहीं पाते....
मुझको मालूम है, इश्क मासूम है
दिल से हो जाती हैं गलतियां
सब्र से इश्क महरूम है....
(शेष अगले अंक में)