मौनी गुड़िया का धमाल
एक प्यारी सी बच्ची है। उसका नाम तो गुड़िया है लेकिन कुछ दिनों से वो इतनी गुपचुप रहने लगी है कि लोग (खासकर मैं) उसे मौनी गुड़िया के नाम से पुकारने लगा हूं। अब मेरी तो उम्र हो गई है। यानी कि उम्र काफी हो गई है। वृद्धाश्रम की ओर कदम तो नहीं बढ़े हैं लेकिन इतना जरूर है कि उस आश्रम की आहट मिलने लगी है। इसलिए तो उस गुड़िया को मैं गुड़िया कहता हूं। तो बात उसके मौनी स्वभाव की हो रही थी। वैसे स्वभाव से वो मौनी नहीं है। खूब बोलती है। इतना बोलती है कि बस पूछो मत। हर बात पर क्यों, क्या, कैसे की रट। मानो गुड़िया न हो कोई पत्रकार हो जिसे समाचार लिखते समय इन बातों का ख्याल रखना पड़ता है कि कोई घटना कब हुई, क्यों हुई और कैसे हुई। एक महीने से वो बकबकी गुड़िया मौन हो गई है। इसका कारण यह है कि मैं उसे छोड़कर दूसरे शहर कुछ दिनों के लिए चला गया था। बस हो गई आफत.....। इतना नाराज हुई कि अब पूछो मत। लगता है उसे सदमा लगा। वो सदमा पिक्चर की तरह। इसलिए उसका बोलना बंद हो गया। फिर उसे मनाने के लिए अपनी एक आर्ट फोटो भेजी लेकिन देखिए तो उसके सदमे की गहराई उसने कुछ नहीं बोला। अब भी वो मौन है। हमने कहा डाक्टर को दिखा देते हैं लेकिन कोई फायदा नहीं। अब हम उस फोटो की तरह शून्य में निहारने के अलावा कर ही क्या सकते हैं। तो निहार रहे हैं। वो फोटो मैं आपके लिए भी लोड कर रहा हूं। देख लीजिए भरी दोपहरी। तापमान ४५ पर और एक अच्छा-खासा इन्सान आसमान को घूर रहा है किसी के इंतजार में कि कुछ तो बोलेगी मौनी गुड़िया। चलो बाकी बातें बाद में।