कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
कि कितनी अलग थी जिंदगी जब तक तेरी जुल्फों की छांव ने मेरे चेहरे को आबाद न किया था. कि इस जिंदगी में पहले प्यार के बिना अकेलापन था, अब प्यार के साथ अकेलापन. अब डर है उसे खोने का. पहले कशिश थी उसे पाने की. मैंने सब कुछ पा लिया अब इस जिंदगी में. अब यह भी मलाल नहीं कि सफर कैसे कटेगा. अब तो कट जाएगी जिंदगी उसकी यादों के सहारे. उसकी वह शोख चंचल अदाएं. उसकी झिड़कियां और फिर दूर रहते रहते चैन से आंखें मूंद लेना मेरे कांधे पर सिर रखकर. उसके लरजते लब्जों की फिजां और उसमें डूबा मेरा सब कुछ. जिंदगी में जो भी अनुभव पहली बार होता है, कितना अनोखा होता है न. खुद को भुला चुके थे हम उस अनोखी मुलाकात के बाद. ट्रेन का सफर भी कुछ अजीब सा था. लोग बातें कर रहे थे, मैं भी कर रहा था, फिर आंखें बंद करते ही छलक जाया करती थीं. क्या मिलन दुख देता है. पता नहीं पर मुझसे रहा न गया. अब समझ में आया कि पागलपन की हद तक चाहता हूं उसे और वो कहती है.... जाने दो. उसकी चंचल आंखों में ठहराव दिखा. उसकी मस्ती थम गई. मैं एक बार फिर उसी दार्शनिक की भूमिका में. मानों ये प्यार ना हो, किसी का मार्गदर्शन कर रहा हूं या ये कहें कि किसी आपात स्थिति से जूझने की कोशिश करने लगा. क्या पागलपन है. और उधर से ये आवाज कि मैं पहली गर्लफ्रेंड हूं जो अपने बीएफ को बुला रही हूं.
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि इस रंजोगम की दुनिया में कौन किसका है, ये कौन तय करेगा. सामाजिक संबंधों की मर्यादा या ईश्वर की इच्छा. हमारी बुरी आकांक्षाएं या फिर ईश्वर की लिखी हकीकत. नहीं कह सकते हम तो किसी हालत में नहीं कह सकते. दुनिया में सब कुछ सिमटता जा रहा है. वासुधैव कुटुंबकम की अवधारणा सूचना तकनीक ने सार्थक कर दिया है. एक गम रह गया. बिछुड़ने के समय उसे जी भर के देख न सका. उसे ही जल्दी थी जुदाई की. उफ.
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