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सोमवार, 5 सितंबर 2011

खुद को भूल जाना चाहता हूं.......

खुद को भूल जाना चाहता हूं,
अपने आगोश में समाना चाहता हूं
गर किसी को अपना न बना पाया तो क्या
मदहोशी का संसार पाना चाहता हूं.

खुद को भूल जाना चाहता हूं...........

मदहोशी भी ऐसी कि होश न आए कभी
होश भी ऐसा कि बेहोशी सी रहे
उसे कभी न कहूं, खुद को दोष ना दूं
हर बंधन से दूरी चाहता हूं.

खुद को भूल जाना चाहता हूं...........

रात की रानी रहे हमेशा बाहों में
सुबह का फलसफा न हो जिंदगी में
फिर शबे रोज नाउम्मीद सा
अपनी बेबसी का इम्तहां चाहता हूं.

खुद को भूल जाना चाहता हूं...........

चलता रहूं अपनी ही राह कुछ इस तरह
ना कोई मिले ना कोई पूछे हाल
कमजर्फों से भरे इस बेदर्द जमाने में
सुकून का ठहराव चाहता हूं.

खुद को भूल जाना चाहता हूं...........

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