शाबास, नितिनजी
देर से ही सही परन्तु भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी ने वो कर दिखाया जिसे करने की हिम्मत लोकतंत्र के मंदिर का कोई भी पुजारी नहीं कर पा रहा था। अन्ना हजारे के आंदोलन को सीधा समर्थन देकर गड़करी ने न सिर्फ महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेताओं को समझौते के लिए आगे आने को मजबूर कर दिया बल्कि सत्ता की दलाली कर सिर्फ मीडिया तक अपनी पहचान बनाए रखने वाले भाजपा नेताओं को भी भविष्य के स्पष्ट संकेत दे दिए।
बतौर भाजपा अध्यक्ष नितिन गड़करी के कार्यकाल पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि उन्होंने जब भी बेबाक बयानी की, उन्हें अपने कदम वापस लेने पड़े। राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बाद भी राजधानी दिल्ली के मीडिया माफिया ने उन्हें कभी तरजीह नहीं दी। कम से कम अन्ना हजारे के आंदोलन से देश में लोकतंत्र की मजबूती के संकेत मिले। इसके दो कारण थे। पहला यह कि देश का जनमानस स्वस्फूर्त आंदोलित हुआ। संविधान की दुहाई देने वाले, संसद की व्याख्या करने वाले नेताओं को उनकी जगह बताई कि लोकतंत्र जनता के लिए, जनता के द्वारा लिए है। यहां जनता ही सर्वोपरि है। लगता है कानूनों की आड़ में सरकारी भाषा बोलते हुए यूपीए से कहीं न कहीं चूक हो गई। दूसरा कारण था नितिन गड़करी का खुल कर सामने आना। यह इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि देश का वर्तमान परिदृश्य विकल्पहीनता की स्थिति में है। यूपीए नहीं तो एनडीए। जनता के बीच यही संकेत जा रहा था कि देश में विपक्ष नाम की चीज नहीं है। इसलिए जो हो रहा है, उसे सहते रहो। एक अरसे के बाद पश्चिम बंगाल चुनाव हारने के बाद वाम नेता भी सामने दिखे। सामाजिक कार्यकर्ता भी दिखे। यानी वो सब दिखा जो लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी है। संसद में अन्ना को मिले अभूतपूर्व समर्थन का श्रेय भी नितिन गड़करी के प्रयासों को दिया जाना चाहिए। नहीं तो दिल्ली में बैठी भाजपा की व्हाइट कालर तिकड़ी इस बार फिर सरकार के सामने घुटने टेक देती और अन्ना के आंदोलन का हश्र वही होता जो रामदेव बाबा के आंदोलन का हुआ था।
कांग्रेस के कुछ नेता तो अब भी बेशर्म जैसे मुखर होकर बोल रहे हैं। शशि थरूर कहते हैं जिसने कभी चुनाव नहीं लड़ा वो संविधान की बात कर रहा है। थरूर भूल जाते हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी राज्यसभा के सदस्य हैं। खैर, बात गड़करी की हो रही है। दिल्ली की प्रेस कांफ्रेंस के बाद नागपुर में भी गड़करी ने प्रेस कांफ्रेंस कर साफ संकेत दिया कि दिल्ली में कही गई बात महज औपचारिकता नहीं थी। नागपुर संघ का मुख्यालय है और गड़करी संघ के पुराने कार्यकर्ता। ऐसे में नागपुर से यह संकेत जाना निःसंदेह कांग्रेस सहित भाजपा के आस्तीन के सांपों के लिए एक चुनौती है। गड़करी अगर सिर्फ सशक्त विपक्ष भी देश को दे पाएं तो यह देश के लिए राहत की बात होगी।
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