1987 में लिखी कविता.. अब जमाना हाईटेक हो गया है...
मगर प्रेम ज्ञान की जड़ें गहराती जा रही हैं.
प्रेम ज्ञान जरूरी है...
एक शाम कुछ ऐसी गुजरी
मित्र मिलन की इच्छा पनपी
तैयार हो झट पहुंचा घर उसके
वो बैठा था घर की छत पे
कुछ गंभीर कुछ भावविभोर सा
निगाह बिछाए अगले घर पे
मैंने कहा- जनाब, शाम के वक्त
सब टहल रहे हैं
मगर आप घर की छत पर
क्या कर रहे हैं
तभी मुझे सामने मकान से
कर्कश संगीतयुक्त गीत सुनाई दिए
मैंने कहा- कितने निर्लज्ज लोग हैं
अपने संगीत प्रेम का परिचय
कितनी निर्भिकता से दे रहे हैं
मित्र ने कहा- आपके विचार गलत हैं
दरअसल हमारी अबोध नाबालिग प्रेमिका
द्वारा हमें प्रेम संदेश भेजे जा रहे हैं
मैंने कहा- ये आदान-प्रदान
कब से चल रहे हैं
उसने कहा-
जब से फलां फिल्म थियेटर में आई है
हमारी सूरत उसके दिल में उतर आई है
मैंने कहा- क्या शादी का इरादा है
उसने कहा-
क्या वाहियात प्रश्न कर दिया
शाम का मजा ही किरकिरा कर दिया
अगर ऐसा होता तो तुझे
अभी क्यों बताता
सीधे शादी का निमंत्रण
ही न भिजवाता
शायद तुझमें प्रेम ज्ञान की कमी है
खैर मैं तुझे प्रेम ज्ञान का अर्थ
समझाता हूं
तेरे जीवन को यथार्थ में
तब्दील करता हूं
"कि मनुष्य जब युवा होता है
उसे जिंदगी से जूझना होता है
अतः उसका सर्वांगीण विकास होना चाहिए
उसे जिंदगी के हर पक्ष का ज्ञान होना चाहिए
वैसे तो प्रेम रस के कवियों और शायरों ने
इस पर काफी रिसर्च किए हैं
फिर भी प्रैक्टिकलविहीन उनके
रिसर्च अब तक अधूरे हैं
मैं प्रेम ज्ञान का नया अध्याय
शुरू कर रहा हूं
इसे प्रैक्टिकलयुक्त कर नई दिशा
दे रहा हूं
ये घर की छत मेरी प्रयोगशाला है
सामने बैठी कन्या मेरी प्रयोगबाला है
उसने कहा-
तू भी यंग नालेज पर रिसर्च शुरू कर दे
अपनी जिंदगी को संपूर्ण ज्ञान से भर ले
वरना समय बीत गया तो पछताएगा
शादी के बाद बीवी को क्या मुंह दिखाएगा
तेरी बीवी तुझे प्रेम ज्ञान का अर्थ समझाएगी
क्योंकि वो भी कभी किसी की प्रयोगबाला रही होगी"
मगर प्रेम ज्ञान की जड़ें गहराती जा रही हैं.
प्रेम ज्ञान जरूरी है...
एक शाम कुछ ऐसी गुजरी
मित्र मिलन की इच्छा पनपी
तैयार हो झट पहुंचा घर उसके
वो बैठा था घर की छत पे
कुछ गंभीर कुछ भावविभोर सा
निगाह बिछाए अगले घर पे
मैंने कहा- जनाब, शाम के वक्त
सब टहल रहे हैं
मगर आप घर की छत पर
क्या कर रहे हैं
तभी मुझे सामने मकान से
कर्कश संगीतयुक्त गीत सुनाई दिए
मैंने कहा- कितने निर्लज्ज लोग हैं
अपने संगीत प्रेम का परिचय
कितनी निर्भिकता से दे रहे हैं
मित्र ने कहा- आपके विचार गलत हैं
दरअसल हमारी अबोध नाबालिग प्रेमिका
द्वारा हमें प्रेम संदेश भेजे जा रहे हैं
मैंने कहा- ये आदान-प्रदान
कब से चल रहे हैं
उसने कहा-
जब से फलां फिल्म थियेटर में आई है
हमारी सूरत उसके दिल में उतर आई है
मैंने कहा- क्या शादी का इरादा है
उसने कहा-
क्या वाहियात प्रश्न कर दिया
शाम का मजा ही किरकिरा कर दिया
अगर ऐसा होता तो तुझे
अभी क्यों बताता
सीधे शादी का निमंत्रण
ही न भिजवाता
शायद तुझमें प्रेम ज्ञान की कमी है
खैर मैं तुझे प्रेम ज्ञान का अर्थ
समझाता हूं
तेरे जीवन को यथार्थ में
तब्दील करता हूं
"कि मनुष्य जब युवा होता है
उसे जिंदगी से जूझना होता है
अतः उसका सर्वांगीण विकास होना चाहिए
उसे जिंदगी के हर पक्ष का ज्ञान होना चाहिए
वैसे तो प्रेम रस के कवियों और शायरों ने
इस पर काफी रिसर्च किए हैं
फिर भी प्रैक्टिकलविहीन उनके
रिसर्च अब तक अधूरे हैं
मैं प्रेम ज्ञान का नया अध्याय
शुरू कर रहा हूं
इसे प्रैक्टिकलयुक्त कर नई दिशा
दे रहा हूं
ये घर की छत मेरी प्रयोगशाला है
सामने बैठी कन्या मेरी प्रयोगबाला है
उसने कहा-
तू भी यंग नालेज पर रिसर्च शुरू कर दे
अपनी जिंदगी को संपूर्ण ज्ञान से भर ले
वरना समय बीत गया तो पछताएगा
शादी के बाद बीवी को क्या मुंह दिखाएगा
तेरी बीवी तुझे प्रेम ज्ञान का अर्थ समझाएगी
क्योंकि वो भी कभी किसी की प्रयोगबाला रही होगी"
2 टिप्पणियां:
उस समय के हिसाब से बढिया कविता है अंजीव जी. पर बताएं लिखना क्यों बंद कर दिया. लिखते रहिए. रूकिए मत. आगे और अच्छी इस जमाने की प्रयोग बाला पर कविता की अपेक्षा है.
उस समय के हिसाब से बढिया कविता है अंजीव जी. पर बताएं लिखना क्यों बंद कर दिया. लिखते रहिए. रूकिए मत. आगे और अच्छी इस जमाने की प्रयोग बाला पर कविता की अपेक्षा है.
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