अक्टूबर २०१० में गुड़िया रानी श्रृंखला का आलेख 'बेटी से ज्यादा प्यारी है वो गुड़िया' अब तक सबसे ज्यादा पसंद किया गया पोस्ट है. इस पृष्ठ को २७३ बार देखा गया. मुझे नहीं मालूम कि इस पोस्ट में ऐसा क्या था कि यह सबसे अधिक पसंद किया गया. इसके बाद यह श्रृंखला रुक गई. ब्लाग की विषय वस्तु समसामयिक मुद्दों के विश्लेषण और प्यारी गुड़िया पर ही आधारित कविताओं तक सीमित रह गया.
आज एक बार फिर इच्छा हो गई है इस श्रृंखला को आगे बढ़ाने का. वैसे इन सवा वर्षों में ऐसे कई मोड़ आए. 'इसलिए भाव खाती है नालायक', 'कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है', 'मुक्ति..', 'दोस्ती का सिला' जैसे शीर्षकों के माध्यम से भावनाएं अभिव्यक्त होती रहीं. इन १५ महीनों में 'एक मुलाकात' जैसे क्षण भी आए और एक हवा के झोंके की तरह चले गए. फिर उलाहना कि वो मुलाकात खास नहीं बन पाई. मेरे ठंडे मिजाज ने गर्मजोशी पर पानी फेर दिया. हमारे बीच प्यार नहीं है, अन्यथा मुलाकात खास हो जाती. खैर, जो नहीं होना था, वो नहीं हुआ. मुलाकात औपचारिकता से कुछ ज्यादा और चर्मोत्कर्ष से कम यानी इन दोनों के बीच ही रह गई. लेकिन सच वो मुलाकात मेरे लिए भावनात्मक रूप में कुछ अधिक ही महत्वपूर्ण रही. अर्से के बाद भावनात्मक रूप से मैंने अपने आपको इतना शांत, निर्मोही, अनासक्त (दुनिया से) महसूस किया. यह वो लम्हा था जिसके बाद मैंने कुछ वैसा ही महसूस किया जैसा परमपूज्य संतशिरोमणि दादाजी धूनीवाले के भजन सुनने-गुनने या फिर दादाधाम में हर रविवार की शाम होने वाले सामूहिक नाम स्मरण के बाद महसूस किया करता था. यानी एक विशुद्ध सांसारिक, भौतिक क्षण आध्यात्मिक क्षण में तब्दील हो गया. इसके बाद भी बातचीत का सिलसिला तो जारी रहा लेकिन उनकी उलाहनाओं का मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था.
आज पता नहीं क्यों एक बार फिर उन दिनों की याद आ गई और मैंने उनकी उलाहनाओं का जवाब देने की ठान ली. पता नहीं कैसा प्यार है ये, कैसा आकर्षण है ये, टूटे न टूटता है, जोड़ते न जुड़ता है. सप्ताह के ५ दिन तो मनमुटाव, झगड़े में बीतता है. हमें सुनने को मिलता है कि तुमसे मेरा रिश्ता क्या है. इस रिश्ते ने सिर्फ दुःख ही दुःख दिए हैं. ईश्वर का न्याय देखिये प्यार करने वाले जोड़े प्रेम से बतियाते हैं. हमारी हालत यह है कि जब भी चैट किए या फिर बातचीत, झगड़ा पक्का है. फिर बातचीत बंद.... एक हफ्ता, दो हफ्ता नहीं जी पूरे तीन-तीन हफ्ते. झगड़े का एक सबसे बड़ा कारण होता है कि मैं उससे कहता हूं कि तुमने रात में मुझे याद क्यों किया. मेरी नींद खुल गई. मैं सो नहीं पाया. दूसरे दिन आफिस देरी से पहुंचा. और वो कभी कहती है क्या करुं याद आ गई और मूड खराब हुआ तो कहती है मैं क्यों तुम्हें याद करुंगी. मेरे पास दूसरे काम नहीं हैं क्या? मुझे ये काम है, वो काम है वगैरह-वगैरह.
वैसे ये पोस्ट लिख कर मैं अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहा हूं. वो इस पूरे पोस्ट में वही पढ़ेगी जिससे उसे तू-तू, मैं-मैं करने का मसाला मिले. बाकी बातें गई चूल्हे में. उनसे उन्हें क्या करना है. लेकिन सच कहूं वो गुड़िया है बहुत प्यारी. सच में प्यारी सी, छोटी सी गुड़िया है. जब ज्यादा ही भावुक हो जाती है तो कहती है कि आपने मुझे राधा बना दिया. मैं राधा हूं. मेरे तो किस्मत में आप हो नहीं. बस आपसे प्यार करते-करते मर जाना है. फिर उन्हें समझाना पड़ता है कि भगवान कृष्ण के साथ राधा की ही पूजा होती है. राधे कृष्ण का ही जाप किया जाता है. लेकिन कोई फायदा नहीं. क्योंकि मैं कृष्ण नहीं हूं न लेकिन वो राधा है. अब है तो है. कोई उनका क्या बिगाड़ सकता है.
लेकिन कुछ तो है. वो रिश्ता आध्यात्मिक हो या भौतिक. मगर कुछ खास है. जब उनकी तबीयत खराब होती है तो मेरी भी होती है. जब उन्हें चिड़िचड़ापन होता है तो मुझे भी होता है. जब वो नींद की गोली खाकर सोती हैं तो मुझे भी बहुत नींद आती है. जब वो जागती हैं तो मैं भी जागता हूं. कई बार तो रात २ बजे उलुक महाराज की भांति हालत हो जाती है. गनीमत है कि इंटरनेट है, फेस बुक है, किसी खास विषय पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, सूचनाओं के लिए गूगल देव का सर्च इंजन है. नहीं तो पूरी रात पागल बनाने के लिए काफी होती है. आप खुद ही सोचिये कि रात भर का जगा व्यक्ति दूसरे दिन आफिस में क्या काम करेगा. और फिर काम ऐसा है कि पूरे दिमाग का है. जरा सी चूक हुई नहीं कि राष्ट्रपति की राष्ट्रपिता लिखा जाता है. यानी गुड़ का गोबर हो जाता है. जब मैं अपनी ये मजबूरी उन्हें बताता हूं तो उन्हें असीम आनंद की प्राप्ति होती है और मैं उन पर बरस पड़ता हूं. बस यही सब चलता रहता है. कई बार तो आजमाने के लिए वो हमें रात १.३० बजे ईमेल भेज देती हैं. सच मानिये हमारी नींद खुल जाती है. हम झुंझला कर उठते हैं ये चेक करने के लिए कि कहीं उन्होंने तो नहीं जगाया? जब ईमेल खोलते हैं तो पहला मेल उन्हीं का सामने दिखता है. बस हमारा पारा तो छठे आसमान पर पहुंच जाता है. हम भी उन्हें जितना हो सके, उतना भला-बुरा कह डालते हैं. अब तो हमने उन्हें यह बताना ही छोड़ दिया है कि उनके कारण हम परेशान हुए. ऐसा करके हम चाहते हैं कि उनका ये घमंड चूर करना चाहते हैं कि देखिए, आपके याद करने से भी हम पर कुछ असर नहीं हुआ. लेकिन जब हम ऐसा करते हैं तो फिर ये उलाहना कि लगता है फलां सुंदरी से आजकल ज्यादा ही पट रही है. मुझसे अब तुम्हें प्यार न रहा. फिर एक गाना भेज दिया जाता है- मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं....,
अब हम क्या करें. ऐसे संवेदनशील गाने सुन कर हम भी भावनाओं के अथाह सागर में गोते लगाने लगते हैं. हमें भी लगने लगता है- ये कहां आ गए हम, यूं ही साथ-साथ चलते.... हम भी सोचने लगते हैं- ये रात है, ये तुम्हारी जुल्फें खुली हुई हैं...... ये चांद है या तुम्हारा कंगन..... जबकि मुझको भी ये खबर है कि तुम नहीं हो, कहीं नहीं हो इस जिंदगी. कैसा विचित्र सा सैलाब उमड़ पड़ता है दिल में. हम उनके सामने नतमस्तक हो जाते हैं. कहने लगते है- मजबूर ये हालात इधर भी हैं उधर भी...... तन्हाई की एक रात इधर भी है उधर भी है... क्यूं दिल में सुलगते रहें लोगों को बता दें कि हां, हमें मुहब्बत है, मुहब्बत है.
लेकिन दूसरे ही पल आ जाता है ख्याल सांसारिक रस्मोरिवाज का. अपने कर्तव्यबोध का. उनके साथ हम भी गुनगुनाने लगते हैं- 'इस जमाने में. इस मोहब्बत में. कितने दिल तोड़े कितने दिल टूटे.... जाने क्यों लोग मुहब्बत किया करते हैं.तन्हाई मिलती है, महफिल नहीं मिलती...... दिल टूट जाता है..... नाकाम होता है... उल्फत में लोगों का यही अंजाम होता है'
तो मित्रों, इस महागाथा की यह श्रृंखला यहीं समाप्त करते हैं. क्योंकि अब नींद आ रही है. थोड़ा सो लेते हैं. क्योंकि ये पोस्ट पढ़ते ही उनकी छठी इंद्रीय जागृत हो जाएगी और हमारी नींद खुल जाएगी. फिर पूरी रात बर्बाद. लेकिन आज अगर नींद खुली तो कुछ और लिखेंगे. वैसे अब हमें मालूम है कि उनका ईमेल आ चुका है. .... रुकिये चेक करता हूं..... ये रहा उनका दो मेल है पड़ा है... इसमें एक मेल मेरा ही २० मई २०११ को भेजा हुआ है- उसे बिना काट-छांट के मूल स्वरूप में प्रस्तुत कर रहा हूं-
अजीब रिश्ता ---!
बड़ा अजीब सा रिश्ता हमने तुमसे बनाया है , छुपाकर सभी से तुमको दिल के करीब रखा है ! है शुक्रगुजार तुम्हारा की दोस्ती की तुमने हमसे, मानने लगे खुदा को जिसने मिला दिया हमको तुमसे ! ये दोस्ती क़ा मीठापन यूँ ही बढ़ता रहे उम्र भर , न चाहूँगा किसी को, डोर डाले कितने भी मुझ पर ! न जाना छोड़कर मझधार में मुझे ए दोस्त, अकेला जी ना पाउँगा तुम्हारे बिना मै ए दोस्त ...!!
अब भी कुछ कहना है क्या???????? नहीं न........ मैं तो खामोश हूं मुंह पर टेप लगाकर....
आज एक बार फिर इच्छा हो गई है इस श्रृंखला को आगे बढ़ाने का. वैसे इन सवा वर्षों में ऐसे कई मोड़ आए. 'इसलिए भाव खाती है नालायक', 'कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है', 'मुक्ति..', 'दोस्ती का सिला' जैसे शीर्षकों के माध्यम से भावनाएं अभिव्यक्त होती रहीं. इन १५ महीनों में 'एक मुलाकात' जैसे क्षण भी आए और एक हवा के झोंके की तरह चले गए. फिर उलाहना कि वो मुलाकात खास नहीं बन पाई. मेरे ठंडे मिजाज ने गर्मजोशी पर पानी फेर दिया. हमारे बीच प्यार नहीं है, अन्यथा मुलाकात खास हो जाती. खैर, जो नहीं होना था, वो नहीं हुआ. मुलाकात औपचारिकता से कुछ ज्यादा और चर्मोत्कर्ष से कम यानी इन दोनों के बीच ही रह गई. लेकिन सच वो मुलाकात मेरे लिए भावनात्मक रूप में कुछ अधिक ही महत्वपूर्ण रही. अर्से के बाद भावनात्मक रूप से मैंने अपने आपको इतना शांत, निर्मोही, अनासक्त (दुनिया से) महसूस किया. यह वो लम्हा था जिसके बाद मैंने कुछ वैसा ही महसूस किया जैसा परमपूज्य संतशिरोमणि दादाजी धूनीवाले के भजन सुनने-गुनने या फिर दादाधाम में हर रविवार की शाम होने वाले सामूहिक नाम स्मरण के बाद महसूस किया करता था. यानी एक विशुद्ध सांसारिक, भौतिक क्षण आध्यात्मिक क्षण में तब्दील हो गया. इसके बाद भी बातचीत का सिलसिला तो जारी रहा लेकिन उनकी उलाहनाओं का मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था.
आज पता नहीं क्यों एक बार फिर उन दिनों की याद आ गई और मैंने उनकी उलाहनाओं का जवाब देने की ठान ली. पता नहीं कैसा प्यार है ये, कैसा आकर्षण है ये, टूटे न टूटता है, जोड़ते न जुड़ता है. सप्ताह के ५ दिन तो मनमुटाव, झगड़े में बीतता है. हमें सुनने को मिलता है कि तुमसे मेरा रिश्ता क्या है. इस रिश्ते ने सिर्फ दुःख ही दुःख दिए हैं. ईश्वर का न्याय देखिये प्यार करने वाले जोड़े प्रेम से बतियाते हैं. हमारी हालत यह है कि जब भी चैट किए या फिर बातचीत, झगड़ा पक्का है. फिर बातचीत बंद.... एक हफ्ता, दो हफ्ता नहीं जी पूरे तीन-तीन हफ्ते. झगड़े का एक सबसे बड़ा कारण होता है कि मैं उससे कहता हूं कि तुमने रात में मुझे याद क्यों किया. मेरी नींद खुल गई. मैं सो नहीं पाया. दूसरे दिन आफिस देरी से पहुंचा. और वो कभी कहती है क्या करुं याद आ गई और मूड खराब हुआ तो कहती है मैं क्यों तुम्हें याद करुंगी. मेरे पास दूसरे काम नहीं हैं क्या? मुझे ये काम है, वो काम है वगैरह-वगैरह.
वैसे ये पोस्ट लिख कर मैं अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहा हूं. वो इस पूरे पोस्ट में वही पढ़ेगी जिससे उसे तू-तू, मैं-मैं करने का मसाला मिले. बाकी बातें गई चूल्हे में. उनसे उन्हें क्या करना है. लेकिन सच कहूं वो गुड़िया है बहुत प्यारी. सच में प्यारी सी, छोटी सी गुड़िया है. जब ज्यादा ही भावुक हो जाती है तो कहती है कि आपने मुझे राधा बना दिया. मैं राधा हूं. मेरे तो किस्मत में आप हो नहीं. बस आपसे प्यार करते-करते मर जाना है. फिर उन्हें समझाना पड़ता है कि भगवान कृष्ण के साथ राधा की ही पूजा होती है. राधे कृष्ण का ही जाप किया जाता है. लेकिन कोई फायदा नहीं. क्योंकि मैं कृष्ण नहीं हूं न लेकिन वो राधा है. अब है तो है. कोई उनका क्या बिगाड़ सकता है.
लेकिन कुछ तो है. वो रिश्ता आध्यात्मिक हो या भौतिक. मगर कुछ खास है. जब उनकी तबीयत खराब होती है तो मेरी भी होती है. जब उन्हें चिड़िचड़ापन होता है तो मुझे भी होता है. जब वो नींद की गोली खाकर सोती हैं तो मुझे भी बहुत नींद आती है. जब वो जागती हैं तो मैं भी जागता हूं. कई बार तो रात २ बजे उलुक महाराज की भांति हालत हो जाती है. गनीमत है कि इंटरनेट है, फेस बुक है, किसी खास विषय पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, सूचनाओं के लिए गूगल देव का सर्च इंजन है. नहीं तो पूरी रात पागल बनाने के लिए काफी होती है. आप खुद ही सोचिये कि रात भर का जगा व्यक्ति दूसरे दिन आफिस में क्या काम करेगा. और फिर काम ऐसा है कि पूरे दिमाग का है. जरा सी चूक हुई नहीं कि राष्ट्रपति की राष्ट्रपिता लिखा जाता है. यानी गुड़ का गोबर हो जाता है. जब मैं अपनी ये मजबूरी उन्हें बताता हूं तो उन्हें असीम आनंद की प्राप्ति होती है और मैं उन पर बरस पड़ता हूं. बस यही सब चलता रहता है. कई बार तो आजमाने के लिए वो हमें रात १.३० बजे ईमेल भेज देती हैं. सच मानिये हमारी नींद खुल जाती है. हम झुंझला कर उठते हैं ये चेक करने के लिए कि कहीं उन्होंने तो नहीं जगाया? जब ईमेल खोलते हैं तो पहला मेल उन्हीं का सामने दिखता है. बस हमारा पारा तो छठे आसमान पर पहुंच जाता है. हम भी उन्हें जितना हो सके, उतना भला-बुरा कह डालते हैं. अब तो हमने उन्हें यह बताना ही छोड़ दिया है कि उनके कारण हम परेशान हुए. ऐसा करके हम चाहते हैं कि उनका ये घमंड चूर करना चाहते हैं कि देखिए, आपके याद करने से भी हम पर कुछ असर नहीं हुआ. लेकिन जब हम ऐसा करते हैं तो फिर ये उलाहना कि लगता है फलां सुंदरी से आजकल ज्यादा ही पट रही है. मुझसे अब तुम्हें प्यार न रहा. फिर एक गाना भेज दिया जाता है- मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं....,
अब हम क्या करें. ऐसे संवेदनशील गाने सुन कर हम भी भावनाओं के अथाह सागर में गोते लगाने लगते हैं. हमें भी लगने लगता है- ये कहां आ गए हम, यूं ही साथ-साथ चलते.... हम भी सोचने लगते हैं- ये रात है, ये तुम्हारी जुल्फें खुली हुई हैं...... ये चांद है या तुम्हारा कंगन..... जबकि मुझको भी ये खबर है कि तुम नहीं हो, कहीं नहीं हो इस जिंदगी. कैसा विचित्र सा सैलाब उमड़ पड़ता है दिल में. हम उनके सामने नतमस्तक हो जाते हैं. कहने लगते है- मजबूर ये हालात इधर भी हैं उधर भी...... तन्हाई की एक रात इधर भी है उधर भी है... क्यूं दिल में सुलगते रहें लोगों को बता दें कि हां, हमें मुहब्बत है, मुहब्बत है.
लेकिन दूसरे ही पल आ जाता है ख्याल सांसारिक रस्मोरिवाज का. अपने कर्तव्यबोध का. उनके साथ हम भी गुनगुनाने लगते हैं- 'इस जमाने में. इस मोहब्बत में. कितने दिल तोड़े कितने दिल टूटे.... जाने क्यों लोग मुहब्बत किया करते हैं.तन्हाई मिलती है, महफिल नहीं मिलती...... दिल टूट जाता है..... नाकाम होता है... उल्फत में लोगों का यही अंजाम होता है'
तो मित्रों, इस महागाथा की यह श्रृंखला यहीं समाप्त करते हैं. क्योंकि अब नींद आ रही है. थोड़ा सो लेते हैं. क्योंकि ये पोस्ट पढ़ते ही उनकी छठी इंद्रीय जागृत हो जाएगी और हमारी नींद खुल जाएगी. फिर पूरी रात बर्बाद. लेकिन आज अगर नींद खुली तो कुछ और लिखेंगे. वैसे अब हमें मालूम है कि उनका ईमेल आ चुका है. .... रुकिये चेक करता हूं..... ये रहा उनका दो मेल है पड़ा है... इसमें एक मेल मेरा ही २० मई २०११ को भेजा हुआ है- उसे बिना काट-छांट के मूल स्वरूप में प्रस्तुत कर रहा हूं-
अजीब रिश्ता ---!
बड़ा अजीब सा रिश्ता हमने तुमसे बनाया है , छुपाकर सभी से तुमको दिल के करीब रखा है ! है शुक्रगुजार तुम्हारा की दोस्ती की तुमने हमसे, मानने लगे खुदा को जिसने मिला दिया हमको तुमसे ! ये दोस्ती क़ा मीठापन यूँ ही बढ़ता रहे उम्र भर , न चाहूँगा किसी को, डोर डाले कितने भी मुझ पर ! न जाना छोड़कर मझधार में मुझे ए दोस्त, अकेला जी ना पाउँगा तुम्हारे बिना मै ए दोस्त ...!!
अब भी कुछ कहना है क्या???????? नहीं न........ मैं तो खामोश हूं मुंह पर टेप लगाकर....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें