प्रिय भारतवासियों,
गणतंत्र दिवस एक बार फिर आ गया है. स्वतंत्रता दिवस की अपनी महत्ता है और गणतंत्र दिवस की अपनी. गणतंत्र दिवस हमें संस्कारों में बांधने का दिन है. हमें अपने कर्तव्य, अधिकारों का बोध कराने का दिन है.
हालिया हुई घटनाएं.. साफ-साफ कहें तो २६ जनवरी २०११ से अब तक हमने स्वतंत्रता का उपयोग तो भरपूर कर लिया किन्तु देश को, खुद को संस्कारों में नहीं बांध पाए. पिछला एक साल भष्टाचार और उसके खिलाफ खड़े जनमत के लिए जाना जाएगा. राजनीति की निकृष्टतम नैतिकता इस साल दिखी. सरकारी तंत्र का खुल कर दुरुपयोग इस साल दिखा. दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे जिस तरह से बाबा रामदेव के निहत्थे समर्थकों को आधी रात पीटा गया, उसने जालियांवाला बाग के सूक्ष्म संस्करण की याद दिला दी.
आए दिन किसी न किसी घोटाले का खुलासा होता रहा. पक्ष और विपक्ष दोनों ही आरोप-प्रत्यारोप के अलवा और कुछ भी नहीं कर पाए. राजनीतिक दलों की हरकतों ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या यही लोकतंत्र है.
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद अगर कोई वर्ष राजनीतिक संघर्ष, जनजागृति और बाबा रामदेव के समर्थकों पर लाठीचार्ज के बाद अन्ना हजारे के आह्वान पर उठे देश व्यापी आंदोलन के लिए यह वर्ष याद किया जाएगा.केंद्र सरकार अब भी यह नहीं समझ रही है कि देश में उठा यह तूफान किसी अन्ना हजारे या रामदेव बाबा के कारण नहीं था, वस्तुतः यह देश की जनता केंद्र या राज्य सरकारों की कार्यप्रणाली के खिलाफ स्वस्फूर्त विरोध था. इस वर्ष को स्वस्फूर्त राष्ट्रीय संघर्ष के रूप में याद किया जाएगा. सूचना के अधिकार ने भी इस क्रांति में आग में घी का काम किया. इसके तहत ऐसे-ऐसे तथ्य देश की जनता के समक्ष आए जिन्हें देख कर सभी भौंचक रह गए. यह सूचना के अधिकार का कमाल था.
दूसरी ओर देश भ्रष्टाचार से त्रस्त रहा. सीबीआई ने देश की जनता को यह दिखा दिया कि वो चाहे तो कुछ भी कर सकती है. जनता कुछ नहीं कर सकती. इतना ही नहीं देश की जनता को उसकी औकात समझाने का प्रयास भी राजनेताओं ने किया. संसद को सर्वोच्च बताया गया. लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि संसद की बुनियाद क्या है. संसद की बुनियाद में हैं सांसद और सांसदों की बुनियाद में है जनता. यानी संसद की दशा व दिशा तय करने का काम जनता करती है. फिर किस अधिकार से यह कह दिया गया कि कानून बनाने का काम सांसदों का है ब्लडी सीवीलियन्स का नहीं... अफसोस होता है कि इन राजनेताओं को यही नहीं मालूम है कि हमारा लोकतंत्र जनता के द्वारा, जनता के लिए है. ऐसा नहीं है कि इन्हें मालूम नहीं है. इन्हें सबकुछ मालूम है. तभी तो ६० साल से जनता को बेवकूफ बनाए जा रहे हैं.
आजादी के बाद ये पहला मौका था जब जनता ने भ्रष्टाचार से निजात पाने के लिए जन लोकपाल बिल का मसौदा पेश किया. बदले में मसौदा तैयार करने वालों को कानूनी तरीके से या ये कहें कि सरकारी तरीके से तंग किया जाने लगा. खैर, इसे व्यापक समर्थन मिलने के बाद सरकार ने अपना लोकपाल बिल संसद में पेश कर दिया. उसे मालूम था कि राज्यसभा में इसे पारित कराना मुश्किल है इसलिए मतदान से इतर शर्मनाक तरीके से आधी रात को राज्यसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दी गई. कितने ही मामलों में सरकार बेनकाब हुई परन्तु बेशर्मी का दौर चलता रहा.
गणतंत्र दिवस पर यह सब बातें इसलिए प्रासंगिक हो जाती है क्योंकि राजनीति अब बेलगाम हो चुकी है. देश के नेता स्वयंभू आका की स्थिति में दिखाई देते हैं. दिग्विजय सिंह को कोई भी बयान देने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन जब फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इनका मजाक उड़ाया जाता है तो ये पुलिस रिपोर्ट, साइट ब्लाक करने जैसी धमकी देते हैं. माना कि इसके कुछ कन्टेंट गलत होते हैं लेकिन समूची साइट को ही बंद करने की धमकी यानी जनता की आवाज का गला घोंटना है.
मीडिया तंत्र ने कम से कम जनता की इन भावनाओं को पहचाना और उसे अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता से परे हट कर कर सही रूप में पेश किया. भ्रष्टाचार में जांच के मामलों ने तो कुछ ऐसा किया जिससे जांच एजेंसियों के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिया. न्यायालय को यहां तक कहना पड़ा कि जांच की दिशा इस तरह होनी चाहिए. फिर इन एजेंसियों पर जनता का इतना भारी भरकम पैसा क्यों खर्च किया जा रहा है?
कुछ अवसरों में विपक्ष के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने अच्छा काम किया. बेल्लारी का मामला हो या अन्ना हजारे को खुल कर समर्थन देने का, नितिन ग़ड़करी ने वह सब किया जो उनसे अपेक्षित था. फिर भी अभी जरूरत है और सक्रियता की. अगर विपक्ष सरकार को चैन से जीने देगा तो जनता हलाकान होती रहेगी. सरकार की मस्ती चलती रहेगी. भले ही वो केंद्र हो या राज्य. हर जगह विपक्ष को जागना होगा, तभी लोकतंत्र की रक्षा हो सकेगी.
चूंकि गणतंत्र दिवस हमें सिखाता है कि हम एक संवैधानिक ढांचे से बंधे हुए हैं. और इस ढांचे की कद्र करना हम सभी का कर्तव्य है. इसलिए गणतंत्र दिवस के पूर्व इन विचारों की आवश्यकता आ प़ड़ी. महाभारत में कहा गया है-
यदा-यदा ही धर्मस्य:,ग्लानिर्भवतिभारत:। अभ्युत्थानमअधर्मस्य,तदात्मानमसृजाम्यहम:।।
यानी जब-जब देश में अराजकता, द्वेष फैलता है, तब-तब मैं जन्म लेता हूं.... भाई नेता लोग समझ लो.. अगर भगवान ने फिर से जन्म ले लिया तो आप लोगो की तो मिट्टी पलीत हो जाएगी. इसलिए जाग जाइए और एक हमारे संवैधानिक ढांचे को क्षतिग्रस्त मत कीजिए....
जय हिन्द....... जय भारत....
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