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रविवार, 23 मार्च 2014

लोहियाजी को एक पत्रः हैप्पी बर्थ डे दद्दू


सेवा में,
पूज्य डॉ. राममनोहर लोहिया
भारत की संपूर्ण स्वतंत्रता के प्रणेता

आज आपकी बेहद याद आई दद्दू। तो हमने सोचा कि आपको शुद्ध अंग्रेजी भाषा में हैप्पी बर्थ डे कह दें। नाराज ना होइयेगा कि जिस अंग्रेजी के खिलाफ आपने आंदोलन चलाए, हम उसी भाषा में आपको जन्मदिन की शुभकामनाएं दे रहे हैं। हमें मालूम है कि आप अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं थे। आप अंग्रेजी की आड़ में छिपे भेड़ियों की करामातों के खिलाफ थे। इन भेड़ियों से निपटने के लिए अंग्रेजी का एक माध्यम के रूप में जितना प्रभावी इस्तेमाल आपने और महात्मा गांधी ने किया, उतना किसी और ने नहीं किया। बाकी लोग तो सांप निकलने के बाद लकीर पीटते रहे और हमने समझा कि इस लकीर को पीटने का नाम ही लोहिया है। खैर, हम हैप्पी बर्थ डे का खेल भी बता देते हैं। परिवर्तन के साथ अंग्रेजी युग सत्य की मजबूरी बन गयी है। आपने ही कहा था कि शाश्वत सत्य और युग सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए। सो हमने अंग्रेजी को एक बार फिर माध्यम के रूप में स्वीकार कर लिया है, मगर आपकी कसम उन भेड़ियों को हमने अब तक नहीं स्वीकारा है।

दद्दू तुम्हें याद है न १५ अगस्त १८४७ को अंग्रेजों ने इस देश की सल्तनत हमारे हवाले कर दी थी। तुम्हें तो २९ जनवरी १९४८ का वो दिन भी याद होगा जब नोवाखाली से आने के बाद महात्मा गांधी ने तुमसे लिखाया था कि कांग्रेस मस्ट बी डिजाल्व। महात्माजी ने कितनी दूर की सोची थी न, कि कांग्रेस को डिजाल्व करके नई पार्टी बनानी चाहिए और उसे जनता के दरबार में अपनी नई नीतियों के साथ जाना चाहिए। खैर, दद्दू वैसा तो हुआ नहीं। तुम बोलते रहे, कांग्रेसी सत्ता के मोह में ऐसे मदहोश हुए कि उनमें और शराब पीकर मुजरा सुनने वाले शौकीन में कोई अंतर न रहा। अपने लठैतों के साथ ये लोग जनता को नचाते रहे, चुनाव आने पर नोटों की गड्डियां फेंकते रहे और मदहोशी में अपने स्वार्थ को तुष्ट करते रहे। ये तुम्हारी मजबूरी ही थी दद्दू कि एक स्वाभिमानी भारत, एक स्वावलंबी स्वदेश के लिए तुम्हें अंग्रेजी हटाओ के साथ ही गैर कांग्रेसवाद का नारा बुलंद करना पड़ा। चलो जाने दो दद्दू, आज आपका जन्मदिन है तो आज जली-कटी बात कहकर आपका दिल नहीं दुखाएंगे। आज हम आपको कुछ अच्छी खबरें देते हैं जिसे सुन कर आपका सीना चौड़ा हो जाएगा।

अच्छी खबर यह है कि दद्दू तुम्हें मारने के बाद इन कसाइयों ने दिल्ली के उस अस्पताल का नाम तुम्हारे नाम पर रख दिया। ये बात अलग है कि पीठ पीछे तुम्हारे अनुयायियों को बर्बाद करने अभियान भी छेड़ दिया। सिर्फ अनुयायी ही नहीं, बल्कि तुम्हें आदर्श समझने वालों की पूरी पीढ़ी की पीढ़ी समाप्त करने का कुचक्र रचा। तुम्हारे बुद्धिजीवियों की गैंग में घुस चुके कुछ प्रगतिशील टाइप के लोगों को इन भेड़ियों ने सरकारी एहसानों से लाद दिया। फिर भी जब इंदिरा गांधी की तानाशाही बढ़ी तो जेपी दद्दू ने तुम्हारी चेतना से कंपित जनसमुदाय को एकत्र किया और एक यादगार निःशस्त्र क्रांति इस देश को दी। इस दुनिया से तुम्हारी विदायी के बाद करीब १२ साल तक तो तुम्हारी चेतना का कंपन दिखता रहा। दद्दू, इसके बाद गजब हो गया। गैर कांग्रेसवाद की आड़ में तुम्हारे लोगों की भीड़ में शातिर हिन्दू कट्टरपंथियों ने प्रवेश कर लिया। तुम्हारी चेतना से कंपित लोगों को हिन्दुत्व का नशेड़ी बना दिया। तुम्हारे लोग प्रगतिशील कम्युनिस्टों की पार्टियों में तो नहीं गये परन्तु जीवन की नंगी सच्चाई के सामने झुकते हुए कांग्रेस और भाजपा की ओर भी मुड़ गये। क्या करते दद्दू नेतृत्व देने का माद्दा किसी में नहीं था। हां, उत्तर प्रदेश की जनता ने तुम्हारे प्रतिनिधि के रूप में मुलायम सिंह यादव को भरपूर प्यार दिया। तुम्हारी विरासत को अपने बाप की बपौती समझने वालों ने मुलायम चाचा को भरपूर कोसा। दद्दू तुम्हें जानकर खुशी होगी कि मुलायम चाचा ने किसी की परवाह नहीं की और येन-केन-प्रकारेण उत्तर प्रदेश को कांग्रेसी भेड़ियों और कट्टर धर्मपंथियों से महफूज रखा। दद्दू आज उनकी सरकार है उत्तर प्रदेश में। आज उन्हें तुम्हारे अभियान के लिए कई हथकंडे अपनाने पड़ते हैं। लेकिन आज तुम्हारे चेलों में वही एक मात्र सत्ताधीन राजनेता हैं जो तुम्हारे और तुम्हारे साथ अपना सब कुछ छोड़ चुके लोगों के परिवारजनों के प्रति पूरी कृतज्ञता से समर्पित हैं। बाकी ने तो खुद को ही लोहिया समझ लिया। लेकिन दद्दू तुम्हें जानकर अच्छा लगेगा कि आज केरल, तमिलनाडु, गुजरात, नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल की जनता ने तो कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया है। म.प्र., छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तरांचल, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में तुम्हारे लोग ही इमानदार औऱ विश्वसनीय विकल्प नहीं दे पाये लेकिन यहां भी जनता तुम्हारी चेतना से कंपित है।

दद्दू अब तुम्हें हालिया राजनीति से अवगत कराते हैं। इन दिनों ब़ड़ा मजा आ रहा है। बाजारवाद के एजेंट कांग्रेस और भाजपा दोनों के टेंटुए दबे हुए हैं। आज फिर एक बार तुम्हारी ही क्रांति ने सिर उठाया है। सिर क्या उठाया है, जनता ने दिल खोल कर इस निःशस्त्र क्रांति को अपना समर्थन दे दिया है। अरविंद केजरीवाल नाम के एक क्रांतिकारी के साथ तुम्हारी चेतना से कंपित तीसरी पीढ़ी के लोग मिल गये हैं और लोहिया के नए संस्करण का जन्म हुआ है। दद्दू ये लोग मुझे अच्छे लगते हैं क्योंकि ये तुम्हारे सिद्धांतों की तुम्हारे लोगों की तरह भारीभरकम व्याख्या तो नहीं करते हैं परन्तु इनकी कार्यप्रणाली एकदम तुम्हारे सिद्धांतों से कदमताल कर रही है। मालूम दद्दू, कुछ ही महीने पहले इन लोगों ने एक ही झटके में दिल्ली पर कब्जा कर लिया। तुम्हारी तरह ही ये सब फकीर हैं, औलिया हैं, ये फिलासफी नहीं बघारते, ये तुम्हारी तरह काम करते हैं। तुमने समाजवादी पार्टी बनाई थी, इन्होंने आम आदमी पार्टी बनाई है। तुम्हारी ही तर्ज पर इनकी पार्टी में धर्म, पंथ, जाति, संप्रदाय, भाषा, क्षेत्र, परिवारवाद जैसे शब्दों का अस्तित्व ही नहीं है। यहां तक कि तुम्हारी तर्ज पर यहां स्त्री-पुरुष का लिंगभेद भी नहीं है। तुम्हारे लोगों को खुद को धर्मनिरपेक्ष बताना पड़ा परन्तु इन लोगों को तो इसकी भी जरूरत नहीं है क्योंकि ये सच में हैं। इनका भी तुम्हारी तरह ही चौतरफा विरोध हो रहा है। तुम्हारे जमाने में तो कांग्रेस के भेड़िये मजबूत थे मगर इस समय ये शातिर अपनी मांद में दुबके सही समय पर हमले का इंतजार कर रहे हैं। इन लोगों के चलते भाजपा के कट्टरपंथियों को लग रहा है कि दिल्ली की तर्ज पर देश की हाथ आती सत्ता भी हाथ से न चली जाये। अगर चली गयी न दद्दू तो कसम आपकी ये लोग इस बार ऐसा दंगा करायेंगे जो सदियों तक याद रखा जाएगा। ये दंगा होगा हिन्दू बनाम हिन्दू का। इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है दद्दू। मोदी को सामने कर इन लोगों ने घर-घर में बंटवारे का ऐसा कार्ड खेला है जो कई शतकों में अंग्रेज भी नहीं कर पाये। दद्दू, उस समय का दृश्य सोचकर ही कांप उठता हूं। नोवाखाली का १९४७ का नरसंहार तो याद होगा न दद्दू तुम्हें। महात्मा गांधी के साथ तुम भी तो थे वहां। अगला दंगा उससे भी भयानक हो सकता है। लेकिन ऐसा होना मुझे संभव नहीं दिखता, क्योंकि ये बदलाव की लहर नहीं है, यह संपूर्ण स्वतंत्रता का शंखनाद है, क्योंकि ये लोकतंत्र की परिपक्वता के लिए प्राकृतिक, सहज आंदोलन है। बस एक काम करो दद्दू कि अपने लोगों को कहो कि ज्यादा ज्ञान बघारने की अपेक्षा चुपचाप इस अभियान में शामिल हो जाएं।

दद्दू, आजादी के बाद पूर्ण आजादी का जो शंखनाद तुमने किया था, उसकी क्रांतिकारी ऊर्जा को फिर से परवान चढ़ते देख मैं तो मंत्रमुग्ध हूं। अपने भजन में लीन हूं। बस देख रहा हूं, जिस प्रक्रिया की शुरुआत तुमने की वो कैसे अपने लक्ष्य पर पहुंचती है। बाकी सब ठीक है। तुम्हारे लोग देश के कोने-कोने में ठीकठाक हैं। अपने-अपने भजन में मगन हैं। तुम्हारी याद करते रहते हैं। अगला पत्र पुण्यतिथि पर भेजूंगा दद्दू तब तक के लिए बॉय-बॉय।
 
तुम्हारा प्यारा
 

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