अब तक वेलेंटाइन डे ही मालूम था. इस बार पता चला कि यह तो पूरे हफ्ते का चरणबद्ध कार्यक्रम है. इसकी शुरुआत ७ फरवरी को Rose Day से हो जाती है. तो जनाब, ७ फरवरी यानी कल हम दिन भर गुलाब का फूल हाथों में लिए दिन भर गुलाबो रानी का इंतजार करते रहे. क्या करें कमबख्त गुलाबो नहीं आई. हम फेसबुक पर लोगों को एक-दूसरे को Rose Day की बधाइयां देते हुए देखते रहे और अपना खून जलाते रहे. हर मौके हमें एसएमएस भेज कर विश करने वालियां भी नदारद ही रहीं. अब एक गुलाबो का ही सहारा था तो वो भी नदारद.
शाम होते ही गुस्से में हमने उस गुलाब के मुरझा से गए फूल को रौंद डाला और निकल पड़े गम गलत करने. रास्ते का हाल बेहाल था. दिन में गुलाब का फूल लेकर गुलछर्रे उड़ाने के बाद शाम को घर लौट रहे रंगीन मिजाजियों ने शाम को उन्हें जमींदोज कर दिया. साफ है. काम खतम तो काहे का गुलाब. वो तो ऐसे ही दिन भर दुनिया को दिखाने के लिए या फिर १४ फरवरी का माहौल बनाने के लिए एक अदद दिवस मना लिए. वैसे ही जैसे गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं. बांस की पतली छड़ी में लिपटे कागज के तिरंगे को शो-बाजी के लिए दिन भर लेकर घूमते हैं और शाम को उस राष्ट्रीय स्वाभिमान को डस्टबिन में फेंक देते हैं. यहां तक तो ठीक है परन्तु सड़कों पर, सार्वजनिक स्थानों पर इसे इस तरह फेंक दिया जाता है मानो महज अखबार में एक समाचार का टुकड़ा हो. पढ़ने के बाद फेंक दिया. सुबह अपनी महंगी कीमत पर अंदर ही अंदर आंसू बहा रहा गुलाब का फूल शाम होते ही शांत हो गया. उसे लोगों के पैरों तले रौंदा जाना अच्छा लग रहा था. उसे कचरे के ढेर की दुर्गंध अच्छी लग रही थी. एक अजीब सी आत्मशांति थी उसमें क्योंकि वह दिन भर के दिखावेपन से मुक्त हो गया था. वह सदा के लिए इस झूठी-मक्कार दुनिया से जुदा हो रहा था... समाधि लेने वाले संत के चेहरे पर जैसा तेज और शांति छाई रहती है, वही उस मुरझा गए गुलाब में दिखा. क्यों न हो झूठ की महफिल से छुटकारा जो मिल गया था. कांटों के बीच पैदा हुआ, कांटों के बीच खिला... तो फिर किसी भी अपमान या परेशानी से क्या सरोकार.
तो बात गुलाबो रानी की हो रही थी. कमबख्त ने सारा मजा एक हफ्ते पहले ही खराब कर दिया वेलेंटाइन डे का. अब वेलेंटाइन डे के दिन का क्या मजा. क्योंकि वेलेंटाइन डे तो पूरे सात दिनों का चरणबद्ध कार्यक्रम है. ७ को गुलाब का फूल दो. फूल ले लिया तो ८ को उसे प्रपोज कर दो. यानी उसके सामने अपने प्रेम का इजहार अधरों को हिला कर यानी बोलकर या फिर कागज के टुकड़े पर लिख कर या फिर एसमएस, ईमेल आदि का सहारा लेकर कर दो. अगर उसने स्वीकार कर लिया तो फिर चाकलेट डे है न ९ फरवरी को. कहते हैं लड़कियों को चाकलेट बहुत पसंद है. तो ९ को उसे चाकलेट दे दो. अरे भाई ये वो १ रुपए वाली चाकलेट नहीं होती है. यह होती है १५० रुपए वाली महंगी चाकलेट. इसी के ठीक दूसरे दिन यानी १० फरवरी को टेडी डे आ जाता है. यानी अब एक महंगा सा टेडी बियर (बियर शापी वाली बियर नहीं) उसे गिफ्ट करना होगा. गिफ्ट जितना महंगा होगा, आपके प्रपोजल को उतना अधिक जिम्मेदार माना जाएगा. यानी यह गिफ्ट आपके प्रपोजल यानी इजहारे इश्क का पैरामीटर हो जाएगा. अब गिफ्ट मिल गया तो ११ फरवरी को आपको कसम खाना होगा कि आप सात जन्मों तक प्यार करते रहेंगे. यानी प्रामिस डे के दिन यह करना ही होगा. उसके बाद क्या करना है ये देखा जाएगा. साथ जीने मरने की कसमे खाने के बाद १२ फरवरी को आता है किस डे. अच्छा है इस बार रविवार को आ रहा है. यानी छुट्टी का दिन. यानी दिनभर चुंबनों की बौछार का बेहतर अवसर. आशा है आशिक मिजाजी इस बेहतरीन मौके को हाथ से नहीं जाने देंगे. अब जब अधरों से अधर मिल गए.... आजकल कुछ फ्रेंच टाइप का भी सुना है... यानी कुल मिलाकर अधरों ने मनोमस्तिष्क पर कब्जा कर लिया है... तो अब तैयार जाइये गले लगाने के लिए. यानी १३ तारीख को आपको उन्हें अपने सीने से लगा कर यह एहसास दिलाना है कि आपकी बाहों में वो महफूज हैं. यानी Hug Day. जब इतना हो गया तो फिर गुलछर्रे उड़ाने की बारी आ ही जाती है. यानी आ गया वेलेंटाइन डे. जम कर गुलछर्रे उड़ाइये.
यानी जो काम डेट पर जाने वालियों के साथ साढ़े तीन घंटे में हो जाता है, उन सबके लिए पूरे सात दिनों का समय. वह भी उत्सव भरे माहौल में. कोई टोकने वाला नहीं. टोका तो दकियानूसी. पुराने ख्यालों का कहा जाएगा. यह सब लिखते-लिखते आखिर गुलाबो रानी का फोन आ ही गया. बोली, जानू, मैंने सोचा कि ये सात दिनों तक रुपए और समय की बर्बादी करने से अच्छा है कि सीधे वेलेंटाइन डे ही मना लेंगे. वैसे भी तुम अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण सदैव फटेहाल ही रहते हो, इसलिए मैंने निर्णय लिया कि तुमसे इतना भारीभरकम खर्च नहीं करवाना है. अब गुलाब के फूल पर ३० रुपए तो मैं खर्च कर ही चुका था, लेकिन बाकी के ३ हजार बचने की खुशी में मैंने ईश्वर को धन्यवाद भी दिया. वैसे गुलाबो रानी की बातचीत से ऐसा लग रहा था कि उसने जरूर किसी से गुलाब लिया है और आज चाकलेट खाने का वादा भी किया है. अब ये छह दिन जो उस पर हजारों खर्च करेगा क्या वो उसे ऐन मौके पर यानी वेलेंटाइन डे के दिन मेरे पास आने देगा.......????? समझ गये न... क्या खाक मनेगा वेलेंटाइन डे........
2 टिप्पणियां:
बढिया है अंजीव जी, बढिया.. कलम की यात्रा अनवरत जारी रहे..
शुक्रिया सोनूजी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
एक टिप्पणी भेजें