इस समय नागपुर का मौसम

मंगलवार, 13 मार्च 2012

आधी रात मेघों की प्रणय लीला



अद्भुत.... अविस्मरणीय... आधी रात मेघों की अद्वितीय प्रणय लीला....। यमुना नदी के विराट पाट के एक छोर पर खड़ा मैं इस नजारे का साक्षी बन रहा था। देश के दिल की धड़कन अचानक मंद पड़ गई थी।
१२ और १३ मार्च की दरमियानी रात १२.३० बजे तक सब ठीकठाक था। इस उम्मीद में कि दिन भर के कोलाहल और भीड़भाड़ से अब निजात मिलेगी, मैं निश्चिंत निद्रा की ओर अग्रसर था। तभी लगा मानो कोई बार-बार दरवाजा पीट रहा हो। पहले लगा कि दुकानदार दुकान का शटर गिरा रहे होंगे, परन्तु खिड़की के कांच से बिजली की कड़कड़ाहट शुरू हो गई। तब भी कुछ समझ में नहीं आया। बाहर निकलकर बालकनी में आया तो प्रकृति की अनुपम छटा के दर्शन हुए। हुंह.... दिल्ली और प्रकृति? अब तक की अपनी इस सोच झुंझलाहट भी हुई। क्यों क्या प्रकृति की लीला कांक्रीट में तब्दील हो चुके महानगर में नहीं हो सकती।
खैर, शास्त्री पार्क के अपने अस्थाई निवास की पहली मंजिल पर खड़ा मैं मुग्ध होकर इस दृश्य को देख रहा था। नागपुर तो हरियाली का शहर भी है लेकिन कभी मैंने वहां ऐसा विहंगम नजारा नहीं देखा। पहली मंजिल, जहां मैं खड़ा था, के समानांतर ऊंचाई पर सामने की ओर चौड़ी सड़क है। उसके आगे यमुना नदी का विशाल पाट। यहां इन दिनों नदी के पानी के ज्यादा दर्शन नहीं होते। हां, पानी कम हो जाने से वहां सब्जियां उगाने वालों की झोपड़ी जरूर दिख जाती है। अब तक नदी की दूसरी छोर पर बसी बस्ती लालमट्टी की बत्तियां भी नहीं दिखी थीं। मेघों की प्रणय लीला ने सब कुछ दिखा दिया।
चारों ओर फ्लाई ओवर का जाल और बीच में बना शून्य। जब बादल टकराते, तो वह शून्य बिजली की नील वर्ण चमक से आच्छादित हो जाता था। उसके बाद होती थी मेघों की सिंह गर्जना। स्नातक तक विज्ञान का विद्यार्थी होने के बाद भी प्रकाश व ध्वनि की गति का स्पष्ट अंतर देखने, महसूस करने का यह पहला अवसर था।  समय मानो रुक सा गया था। इसलिए शायद अंतर ज्यादा साफ महसूस हो रहा था। बिजली की हर चमक के साथ यमुना का यह पाट और नील आभा से सुशोभित हो जाता था और अनायास ही कृष्ण मुरारी की याद आ जाती थी। यही वह नदी थी जिसमें हमारे बाल गोपाल ने कालिया नाग का संहार किया था। यही नीली आभा तो उस मुरारी में भी थी।
लो यह क्या... तेज बारिश शुरू हो गई। दिल्ली मानो थम सी गई। याद आ गया, मनोहर का इस संसार में अवतरण। ऐसी ही मेघों की गर्जना.... ऐसी ही बारिश... ऐसा ही अंधकार और बिजली की चमक... और यही यमुना नदी... और रही सही कसर पूरी कर दी हमारे भवन के कॉल बेल ने। दरवाजे पर बटन दबाने से इसमें भजनों की पंक्तियां बजती हैं। अचानक थोड़ी-थोड़ी देर में कॉल बेल से भजन की आवाजें आने लगीं। लोग जाग गए। दरवाजे पर जाकर देखने लगे। कोई नहीं दिखा। मैं समझ गया कि कालबेल की स्विच में पानी चला गया है। लेकिन यह समय तो प्रकृति के अनुपम दृश्य में खुद को भूल जाने का था। मैंने उन्हें समझाया कि कॉलबेल के साथ छेड़छाड़ मत करो। ईश्वर की लीला का आस्वाद लो। इतने में बारिश कम हो गई और भजन बंद हो गए। मेघों की गर्जना समाप्त हो गई। शायद नवजात कृष्ण सुरक्षित स्थान पर पहुंच चुके थे। अब मन में प्रश्न आया कि क्या वाकई देश में बढ़ते अनाचार का नाश करने के लिए भगवान विष्णु ने नया अवतार ले लिया है... ?
मुझे भी गीता का यह श्लोक याद आ गया कि-
यदा-यदा ही धर्मस्य:, ग्लानिर्भवतिभारत:। 
अभ्युत्थानमअधर्मस्य, तदात्मानमसृजाम्यहम:।।
अर्थात् जब-जब इस धरती पर धर्म की हानि होगी, तब-तब मैं जन्म लूंगा।
अब मैं शून्य में था... निद्रा देवी ने आदेश दिया... आओ पुत्र मेरी आगोश में आओ।
(१३ मार्च को सुबह ४ बजे)

2 टिप्‍पणियां:

shree krishanpriya ने कहा…

PRAKRITI OR PRA NITAY JNAMTE HAI......................AHSAS HONA USKI KIRPA HAI..............AAPKE KURUCHETAR KO USANE KOE SANDESH DIYA HAI............KYA AAPKI MHABHARAT KA AAPKO GEETA GYAN MILA???.......USAKE PRAKATAY KE BAD.....??? SREE RADHEY JI

anjeev pandey nagpur ने कहा…

us samay samajh nahi aaya... parantu vakai mahabharat ki ek bitta jameen vali baat ho gayee didiji, ab dhyan ja raha hai kurushetra ke un sandesho pe jo mujhe ab tak samajh nahi aaye the. ab lag rahai hai kyo kanhaiya ki yaad aaye aur kyo aapne aisa likha tha. dhanyawad didiji.