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सोमवार, 12 नवंबर 2012

दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।


दीपावली में दीपों की श्रृंखला से रोशन गली-मोहल्ले, घर। चेतन के सर्वोच्च चेतन की सत्ता का सफर इन्हीं दीपों के मानिन्द हमारे मार्ग को रोशनी से प्रशस्त रखे। हमारे चेतन में, अंतः में, हमारी आत्मा में कहीं भी अंधकार ना रहे।
रोशनी भी कैसी हो... माटी के बने दीपों में तेल के दियों की जो हमें प्रकृति के समीप लाते हैं। हमें अपने वास्तविक घर (परम पिता का घर) की याद दिलाते हैं। ये सहज हैं, सरल हैं क्योंकि इन्हें कुम्हार सहजता और सरलता से बनाता है। हम इनमें तेल-बाती लगाकर सहजता और सरलता से प्रज्ज्वलित करते हैं। यह कीट-पतंगों को अपने पास बुला लेता है और हमें परेशानी से बचाता है। यही है प्रकृति और उसका चक्र।
पूरा मार्ग इन्हीं दीपों की श्रृंखला से दैदीप्यमान रहे। हमारे अंतः का अंधकार मिटाए। हमें प्रकृति पुत्र होने का अस्तित्वबोध कराते रहे। तमोगुणी विचारों से हमारी रक्षा करे। हमें सकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत रखे। हमारा सफर उसी सरलता से पूर्णता की ओर ले जाए जिस सरलता के साथ दीप अपनी भूमिका का निर्वाह करता है। तम से उजाले का सफर चलता रहे। चरैवेति-चरैवेति...।
दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।

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