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मंगलवार, 27 मई 2014

मोदी मंत्रिमंडल का गठन और संभावित खतरे


भाजपा सरकार (हम अब एनडीए नहीं कहेंगे) के गठन के साथ ही जो सबसे पहला प्रभाव पड़ा, वह खतरनाक संकेत था। फर्स्ट इम्प्रेशन इज लास्ट इम्प्रेशन। कहीं ये मुहावरा सही साबित न हो जाए। पहला प्रभाव पड़ा मंत्रिमंडल के गठन से। आइये जरा इसका विधिवत विश्लेषण कर लें।
मंत्रिमंडल में शामिल किए गए मंत्रियों की योग्यता, मंत्रिमंडल में शामिल किए गए मंत्रियों को जिस क्रम में शपथ ग्रहण के समय प्रस्तुत किया गया, उससे यह साफ है कि न तो मंत्रिमंडल मोडीफाई (मोदीफाइड) हो पाया, और न ही इसके तौर तरीकों से ऐसा ही कुछ संकेत मिला कि ये सरकार कुछ अलवग करने वाली है। हां, सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुला कर मंत्रिमंडल के गठन और उसकी आलोचना से मीडिया का ध्यान बंटाने का पूरा प्रयास किया गया। यह प्रयास कामयाब रहा। ठीक चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरीके से मीडिया तंत्र का उपयोग किया गया, उसी तर्ज पर इस समय भी किया गया।
मंत्रिमंडल में शामिल दर्जनभर मंत्रियों की योग्यता को लेकर तो परेशानी हुई, लेकिन इस पर टिप्पणी करने का यह वक्त नहीं है। इसका आकलन अब साल भर बाद किया जाएगा। सवाल तौरतरीकों का था। मोदी मंत्रिमंडल में सुषमा स्वराज और अरुण जेटली को दो सबसे महत्वपूर्ण विभाग देने से यह संकेत गया कि भाजपा पूरी तरह इन दो नेताओं पर आश्रित है। जिस प्रकार अटल जी के समय प्रमोद महाजन (स्व.) पर हुआ करती थी। यानी जनता के बीच संघर्ष करने का कोई फायदा नहीं। आप दिल्ली के गलियारे में अपने सूत्र मजबूत कीजिए (जैसा दलाल करते हैं) और पाइये मनमाफिक मंत्रालय। भाजपा की यह न तो संस्कृति है और न ही मानसिकता। और न ही जिस भाजपा को जनता ने वोट दिया है, उससे यह अपेक्षित ही है। उम्र दराज नेताओं को अलग रखना तो ठीक लगा लेकिन कुछ उम्र दराज नेताओं को शामिल कर लिया जाना गले के नीचे नहीं उतरा। साथ ही यह संकेत भी गया कि भाजपा की जिस चौकड़ी को संघ खत्म करना चाहता था, उसके बिना भाजपा बेजान है। खैर, अब बात करेंगे २६-११ को और फिर अगले साल २६-५ को। खैर, मुझे मालूम है कि नरेंद्र मोदी नाम का व्यक्ति उतने कमजोर नहीं हैं जितना इस विश्लेषण से लग रहा है। ठीक है आज हो सकता है सत्ता की, दिल्ली की कुछ मजबूरियां हों, लेकिन यह मजबूरी साल भर में दूर हो जाए तो अच्छा है, अन्यथा, फिर सूनामी आने से कोई नहीं रोक सकेगा।
अंततः केजरीवाल के लिए
और भी गम हैं भारत में सत्ता के सिवा। भाई केजरीवाल जी आपने तो बदलाव की राजनीति शुरू की थी। भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ा था। कहां गया वो अभियान.... भ्रष्टाचार के उन आरोपों को भूलिये मत और लगे रहिए। देखते हैं कोल ब्लाक में ये सरकार क्या करती है। राष्ट्रीय दामाद के मुद्दे पर ये सरकार क्या करती है। महंगाई पर क्या करती है। तो अब कुछ दिन मनाली जाइये, आराम कीजिए और फिर आ जाइये मैदान में। पहले संगठन को मजबूत कीजिए। एक्सट्रीम लेफ्टिस्टों के हाथ का खिलौना मत बनिये। कांग्रेस से हमें तब तक कोई उम्मीद नहीं है जब तक उसके नेताओं में अपना स्वाभिमान पैदा नहीं होता।
तो २६-११ तक नमस्कार।

रविवार, 18 मई 2014

और भी मायने हैं चुनाव परिणामों के... रुको... देखो.... आगे बढ़ो....



2014 के चुनाव परिणाम न सिर्फ राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं वरन् इन्हें वृहद सामाजिक बदलाव के रूप में भी देखना होगा। साथ ही इस बदलाव में शामिल लोगों का खुले दिल से स्वागत करना होगा। नागपुर का चुनाव परिणाम हमने नजदीक से देखा। यह हुआ है।

देश के बुद्धिजीवी अब भी राजनीति में आए परिवर्तन को नहीं समझ पा रहे हैं। वो इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि परिवर्तन एक प्रक्रिया होती है जिसका कालखंड पूरी तरह उस प्रक्रिया के आकार-प्रकार पर निर्भर करता है।

आज भी इन लोगों को इस बात की अधिक चिंता है कि कांग्रेस क्यों हारी। हमारा समाज, देश विश्व का वर्तमान रूझान, उसका हम पर प्रभाव, जनता की मूल भावना, युवाओं की अपेक्षाएं, युवाओं की सोच जैसे मूलभूत मामलों पर विचार करने की इच्छा शायद किसी को नहीं है। यही कारण है कि देश का मीडिया करोड़ों रूपए खर्च करने के बाद भी युवाओं को अब तक अपना नहीं बना पाया। जब तक प्रिंट मीडिया ने समझना शुरू किया, इलेक्ट्रानिक मीडिया आ गया। जब इलेक्ट्रानिक मीडिया ने समझना शुरू किया, सोशल मीडिया आ गया। जब तक इन लोगों ने फेसबुक को समझा, वाट्स ऐप का ट्रेंड आ गया। अभी तो उम्र का सफल पड़ाव पार कर चुके बुद्धिजीवियों को लैपटाप का मतलब ही नहीं समझा कि युवा वर्ग मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगा।

युवा वर्ग का यह परिवर्तन सिर्फ हिन्दू धर्मावलंबियों में ही हुआ, ऐसा नहीं है। मुस्लिम धर्म के युवाओं में भी वही जोश-खरोश और परिवर्तन की मानसिकता देखने को मिली। आज भी बुद्धिजीविोयं को यह समझ में नहीं आ रहा है कि आम आदमी पार्टी ने देशव्यापी असंतोष को उभारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। असंतोष का यह उफान युवा वर्ग के कारण ही था। लेकिन आम आदमी पार्टी ने भी अतिउत्साह में जिस प्रकार पुरानी सोच के उम्मीदवार उतारे। पुरानी सोच के आधार पर चुनाव लड़ना चाहा, उसे युवा वर्ग ने पूरी तरह नकार दिया। मुस्लिम ही नहीं वरन, हर जाति-सम्प्रदाय के युवाओं ने नई सोच के आधार पर वोट दिया। इसे लहर कहा जाए या एक वृहद समाज की संरचना की आतुरता। देश के युवा वर्ग के इस मर्म को समझना ही होगा। जो नहीं समझेगा, वो इस व्यवस्था के लिए अनुपयोगी हो जाएगा।

अंततः, एक बात दुखद रही है कि मुस्लिम समाज के लोकसभा पहुंचने वाले नुमाइंदों की संख्या इस बार अब तक की न्यूनतम होगी (लगभग 20 य 21)। ऐसे में समाज के प्रबुद्ध वर्ग को इस ओर पहल करना होगा जिससे धर्म आधारित राजनीति को ठुकरा चुके मुस्लिम समुदाय के लोग स्वयं को असुरक्षित या नेग्लेक्टेड महसूस न करें। 

शनिवार, 17 मई 2014

परिवर्तन की शीतल बयार नितिन गडकरी का स्वागत है



आखिरकार जैसा कि पहले से ही अनुमान था, श्री नितिन गडकरी नागपुर से चुनाव जीत गये। सिर्फ जीते ही नहीं वरन अच्छे खासे २.८४ लाख वोटों से जीते। धर्म जाति के आधार पर चुनावों का विश्लेषण करने के आदी लोगों की अकल अब तो कुछ अलग सोचने को मजबूर होगी। मैं पहले ही कहा था नागपुर में दो ही विकल्प है, या तो गडकरी जीतेंगे या फिर भारी बहुमतों से जीतेंगे।

http://anjeevpandey.blogspot.in/2014/03/blog-post.html

१४ मार्च को ही मुझे गडकरी की जीत का अनुमान हो गया था। इस दिन अरविंद केजरीवाल की नागपुर के कस्तूरचंद मैदान पर आम सभा हुई थी। इस सभा को मैंने जनता के स्वस्फूर्त प्रतिसाद के लिए ऐतिहासिक करार दिया था। मगर इसी के साथ यह संभावना जता दी थी कि केजरीवाल की यह सभा कहीं गडकरी की ऐतिहासिक जीत का प्रतीक तो नहीं है।

http://anjeevpandey.blogspot.in/2014/03/blog-post_14.html

गडकरी की जीत इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि देशभर में नागपुर लोकसभा का ही हाईप्रोफाइल चुनाव ऐसा रहा जहां व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप नहीं हुए। आम आदमी पार्टी की अंजलि दमानिया ने जरूर कुछ आरोप लगाने का प्रयास किया लेकिन कांग्रेस के श्री विलास मुत्तेमवार और भाजपा के श्री नितिन गडकरी दोनों ही प्रत्याशियों ने संयमित भाषा के प्रयोग के साथ ही चुनाव प्रचार को अंजाम दिया। टिकट वितरण के पहले ही मुझे इस बात का अनुमान था कि इस चुनाव में कांग्रेस के श्री मुत्तेमवार को ज्यादा वोट मिलें या न मिलें, मगर वो अपना पुराना वोट बैंक कायम रखेंगे। उन्हें मिले ३ लाख वोट इसे साबित करते हैं। मुत्तेमवार जी ने कांग्रेस का वोट बैंक बचाये रखा। ये बात अलग है कि मतदाताओं की संख्या बढ़ने के साथ ही और गडकरी के कार्यों ने उन्हें ५.५ लाख से ज्यादा वोट दिला दिये। बसपा ने भी अपना १.२५ लाख वोटों का बैंक बचाए रखा। आम आदमी पार्टी की अंजलि दमानिया ने जरूर ७० हजार वोट लेकर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। वै मैंने आम आदमी पार्टी को ८० वोट मिलने का अनुमान व्यक्त किया था।
गडकरी की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मतदान के अंतिम दिनों में यह फैलाया गया कि फलानी जाति के इतने वोट हैं, फलाने धर्म के इतने वोट हैं। मगर जो संयमित आचरण श्री गडकरी और श्री मुत्तेमवार ने व्यक्त किया, वही आचरण जनता ने भी व्यक्त किया। धर्म और जाति के नाम पर वोट नहीं पड़े।

http://anjeevpandey.blogspot.in/2014/04/blog-post_8.html


आपको बता दें कि गडकरी सिर्फ लोकसभा जीत के प्रत्याशी ही नहीं हैं, कई और भी मायने हैं गडकरी के। इस संबंध में मेरे पुराने ब्लाग पोस्ट

विजनरी परफार्मर नितिन गडकरी


http://anjeevpandey.blogspot.in/2014/04/1.html

और

गडकरी हैं परिवर्तन की सुहानी बयार

http://anjeevpandey.blogspot.in/2014/04/blog-post.html

जरूर पढ़ें। और भविष्य के नेता को समझें। गडकरी जी को हार्दिक शुभकामनाएँ। बधाई।


बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए को बहुमत के रुझान पर व्यापारी प्रसन्न

देश भर के व्यापारियों के शीर्ष संगठन कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को तेजी सेमिल रहे बहुमत को देश के लिए एक सकारात्मक परिवर्तन बताते हुए देश की अर्थव्यवस्था और भविष्य के लिए एक नए अध्यायकी शुरुआत बताया है !

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खण्डेलवाल ने एन डी  की विजय पर बेहद ख़ुशी जाहिरकरते हुए कहा की इस जीत में देश भर के व्यापारियों का भी बड़ा योगदान है जो इस बात से साफ़ जाहिर होता है की आसाम,पश्चिम बंगाल, अंधत्र प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में भी बीजेपी और एन डी  को जहाँ सीटें भी मिली हैं वहीँ वोटों का शेयर भी बहुतबड़ा है ! देश के व्यापारियिों ने इस चुनाव में खुल कर भाजपा और एन डी  का साथ दिया है !

श्री भरतिया एवं श्री खण्डेलवाल ने आशा व्यक्त की है की श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार  रिटेल ट्रेड को अपनी प्राथमिकतामें रखेगी और बहुप्रतीक्षित सुधारों को गति देगी !



शनिवार, 3 मई 2014

पुस्तक सृष्टि का रहस्य संतुलन का अंश



हमारा शरीर वह तंत्र है जिसके माध्यम से संतुलन का नियम आसानी से समझा जा सकता है। समूचे ब्रह्मांड के संतुलन की प्रक्रिया हमारे शरीर में विद्यमान है। इसलिए तो किसी ने शरीर की कार्यप्रणाली का अध्ययन कर ब्रह्मांड के संबंध में सटीक अनुमान लगाये तो किसी ने समूची सृष्टि का अध्ययन कर शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध कराईं।

मन आत्मा की विक्षुब्ध अवस्था है और आत्मा मन की शांत अवस्था। कितनी आसानी से ओशो ने मन और आत्मा को एक अस्तित्व की दो विभिन्न अवस्थाओं के रूप में समझा दिया।

चेतन, अचेतन, अवचेतन का खेलः मन, चेतना, आत्मा, भौतिकता का मसला सदियों से अनसुलझा है। मनुष्य चेतन और अचेतन नामक मन की दो शक्तियों से कार्य करता है। इसके बीच में किसी ने अवचेतन की अवधारणा रख दी है। मन को उसकी समग्रता से समझने की बजाए हम अवचेतन, चेतन के बीच में ही भटक रहे हैं। कहते हैं कि चेतन मन की शक्ति सीमित है और अचेतन मन की असीमित। अचेतन मन की शक्ति के पीछे एकमात्र कारण यही है कि यही मन की वो अवस्था है जो हमें स्वाभाविक रूप से समूची सृष्टि के साथ जोड़ती है और यही जोड़ योग है, यही योग ईश्वर या समूचे ब्रह्मांड के अस्तित्व के साथ एकाकार कर देता है। चेतन अचेतन अवचेतन के खेल में उलझ कर अब जीवन को और भी असहज बनाया जा रहा है।





मन का संतुलनः मन के संतुलन के लिए सकारात्मक और नकारात्मक सोच या ऊर्जा के बीच संतुलन का तरीका सीखना जरूरी है।
संतुलन का नियम कहता है कि सकारात्मक और नकारात्मकता दोनों सिक्के के दो पहलू हैं। यानी सकारात्मकता भी जरूरी है और नकारात्मकता भी जरूरी है। इस कारण कर लो दुनिया मुट्ठी में, जैसा चाहो वैसा बनो, रहस्य, सकारात्मकता के चमत्कार जैसे सिद्धांतों की अपनी सीमा है।


अच्छाई-बुराई दोनों जरूरी हैः ऐसे ढेर सारे तथ्य हैं, ढेर सारी सचाइयां हैं, जहां अच्छाई व बुराई को परिभाषित करना ही गलत है। दरअसल, अच्छाई व बुराई को परिभाषित करने का आधार हमारी अवधारणाएं होती हैं जो हमें परंपरागत रूप से या फिर किसी अनुभव विशेष या फिर किसी सिद्धांत पर विश्वास करने के कारण जन्म लेती हैं। इसीलिए अच्छाई या बुराई की अपेक्षा सत्य को जानने पर अधिक जोर दिया जाता है। (क्रमशः)