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रविवार, 23 मार्च 2014

लोहियाजी को एक पत्रः हैप्पी बर्थ डे दद्दू


सेवा में,
पूज्य डॉ. राममनोहर लोहिया
भारत की संपूर्ण स्वतंत्रता के प्रणेता

आज आपकी बेहद याद आई दद्दू। तो हमने सोचा कि आपको शुद्ध अंग्रेजी भाषा में हैप्पी बर्थ डे कह दें। नाराज ना होइयेगा कि जिस अंग्रेजी के खिलाफ आपने आंदोलन चलाए, हम उसी भाषा में आपको जन्मदिन की शुभकामनाएं दे रहे हैं। हमें मालूम है कि आप अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं थे। आप अंग्रेजी की आड़ में छिपे भेड़ियों की करामातों के खिलाफ थे। इन भेड़ियों से निपटने के लिए अंग्रेजी का एक माध्यम के रूप में जितना प्रभावी इस्तेमाल आपने और महात्मा गांधी ने किया, उतना किसी और ने नहीं किया। बाकी लोग तो सांप निकलने के बाद लकीर पीटते रहे और हमने समझा कि इस लकीर को पीटने का नाम ही लोहिया है। खैर, हम हैप्पी बर्थ डे का खेल भी बता देते हैं। परिवर्तन के साथ अंग्रेजी युग सत्य की मजबूरी बन गयी है। आपने ही कहा था कि शाश्वत सत्य और युग सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए। सो हमने अंग्रेजी को एक बार फिर माध्यम के रूप में स्वीकार कर लिया है, मगर आपकी कसम उन भेड़ियों को हमने अब तक नहीं स्वीकारा है।

दद्दू तुम्हें याद है न १५ अगस्त १८४७ को अंग्रेजों ने इस देश की सल्तनत हमारे हवाले कर दी थी। तुम्हें तो २९ जनवरी १९४८ का वो दिन भी याद होगा जब नोवाखाली से आने के बाद महात्मा गांधी ने तुमसे लिखाया था कि कांग्रेस मस्ट बी डिजाल्व। महात्माजी ने कितनी दूर की सोची थी न, कि कांग्रेस को डिजाल्व करके नई पार्टी बनानी चाहिए और उसे जनता के दरबार में अपनी नई नीतियों के साथ जाना चाहिए। खैर, दद्दू वैसा तो हुआ नहीं। तुम बोलते रहे, कांग्रेसी सत्ता के मोह में ऐसे मदहोश हुए कि उनमें और शराब पीकर मुजरा सुनने वाले शौकीन में कोई अंतर न रहा। अपने लठैतों के साथ ये लोग जनता को नचाते रहे, चुनाव आने पर नोटों की गड्डियां फेंकते रहे और मदहोशी में अपने स्वार्थ को तुष्ट करते रहे। ये तुम्हारी मजबूरी ही थी दद्दू कि एक स्वाभिमानी भारत, एक स्वावलंबी स्वदेश के लिए तुम्हें अंग्रेजी हटाओ के साथ ही गैर कांग्रेसवाद का नारा बुलंद करना पड़ा। चलो जाने दो दद्दू, आज आपका जन्मदिन है तो आज जली-कटी बात कहकर आपका दिल नहीं दुखाएंगे। आज हम आपको कुछ अच्छी खबरें देते हैं जिसे सुन कर आपका सीना चौड़ा हो जाएगा।

अच्छी खबर यह है कि दद्दू तुम्हें मारने के बाद इन कसाइयों ने दिल्ली के उस अस्पताल का नाम तुम्हारे नाम पर रख दिया। ये बात अलग है कि पीठ पीछे तुम्हारे अनुयायियों को बर्बाद करने अभियान भी छेड़ दिया। सिर्फ अनुयायी ही नहीं, बल्कि तुम्हें आदर्श समझने वालों की पूरी पीढ़ी की पीढ़ी समाप्त करने का कुचक्र रचा। तुम्हारे बुद्धिजीवियों की गैंग में घुस चुके कुछ प्रगतिशील टाइप के लोगों को इन भेड़ियों ने सरकारी एहसानों से लाद दिया। फिर भी जब इंदिरा गांधी की तानाशाही बढ़ी तो जेपी दद्दू ने तुम्हारी चेतना से कंपित जनसमुदाय को एकत्र किया और एक यादगार निःशस्त्र क्रांति इस देश को दी। इस दुनिया से तुम्हारी विदायी के बाद करीब १२ साल तक तो तुम्हारी चेतना का कंपन दिखता रहा। दद्दू, इसके बाद गजब हो गया। गैर कांग्रेसवाद की आड़ में तुम्हारे लोगों की भीड़ में शातिर हिन्दू कट्टरपंथियों ने प्रवेश कर लिया। तुम्हारी चेतना से कंपित लोगों को हिन्दुत्व का नशेड़ी बना दिया। तुम्हारे लोग प्रगतिशील कम्युनिस्टों की पार्टियों में तो नहीं गये परन्तु जीवन की नंगी सच्चाई के सामने झुकते हुए कांग्रेस और भाजपा की ओर भी मुड़ गये। क्या करते दद्दू नेतृत्व देने का माद्दा किसी में नहीं था। हां, उत्तर प्रदेश की जनता ने तुम्हारे प्रतिनिधि के रूप में मुलायम सिंह यादव को भरपूर प्यार दिया। तुम्हारी विरासत को अपने बाप की बपौती समझने वालों ने मुलायम चाचा को भरपूर कोसा। दद्दू तुम्हें जानकर खुशी होगी कि मुलायम चाचा ने किसी की परवाह नहीं की और येन-केन-प्रकारेण उत्तर प्रदेश को कांग्रेसी भेड़ियों और कट्टर धर्मपंथियों से महफूज रखा। दद्दू आज उनकी सरकार है उत्तर प्रदेश में। आज उन्हें तुम्हारे अभियान के लिए कई हथकंडे अपनाने पड़ते हैं। लेकिन आज तुम्हारे चेलों में वही एक मात्र सत्ताधीन राजनेता हैं जो तुम्हारे और तुम्हारे साथ अपना सब कुछ छोड़ चुके लोगों के परिवारजनों के प्रति पूरी कृतज्ञता से समर्पित हैं। बाकी ने तो खुद को ही लोहिया समझ लिया। लेकिन दद्दू तुम्हें जानकर अच्छा लगेगा कि आज केरल, तमिलनाडु, गुजरात, नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल की जनता ने तो कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया है। म.प्र., छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तरांचल, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में तुम्हारे लोग ही इमानदार औऱ विश्वसनीय विकल्प नहीं दे पाये लेकिन यहां भी जनता तुम्हारी चेतना से कंपित है।

दद्दू अब तुम्हें हालिया राजनीति से अवगत कराते हैं। इन दिनों ब़ड़ा मजा आ रहा है। बाजारवाद के एजेंट कांग्रेस और भाजपा दोनों के टेंटुए दबे हुए हैं। आज फिर एक बार तुम्हारी ही क्रांति ने सिर उठाया है। सिर क्या उठाया है, जनता ने दिल खोल कर इस निःशस्त्र क्रांति को अपना समर्थन दे दिया है। अरविंद केजरीवाल नाम के एक क्रांतिकारी के साथ तुम्हारी चेतना से कंपित तीसरी पीढ़ी के लोग मिल गये हैं और लोहिया के नए संस्करण का जन्म हुआ है। दद्दू ये लोग मुझे अच्छे लगते हैं क्योंकि ये तुम्हारे सिद्धांतों की तुम्हारे लोगों की तरह भारीभरकम व्याख्या तो नहीं करते हैं परन्तु इनकी कार्यप्रणाली एकदम तुम्हारे सिद्धांतों से कदमताल कर रही है। मालूम दद्दू, कुछ ही महीने पहले इन लोगों ने एक ही झटके में दिल्ली पर कब्जा कर लिया। तुम्हारी तरह ही ये सब फकीर हैं, औलिया हैं, ये फिलासफी नहीं बघारते, ये तुम्हारी तरह काम करते हैं। तुमने समाजवादी पार्टी बनाई थी, इन्होंने आम आदमी पार्टी बनाई है। तुम्हारी ही तर्ज पर इनकी पार्टी में धर्म, पंथ, जाति, संप्रदाय, भाषा, क्षेत्र, परिवारवाद जैसे शब्दों का अस्तित्व ही नहीं है। यहां तक कि तुम्हारी तर्ज पर यहां स्त्री-पुरुष का लिंगभेद भी नहीं है। तुम्हारे लोगों को खुद को धर्मनिरपेक्ष बताना पड़ा परन्तु इन लोगों को तो इसकी भी जरूरत नहीं है क्योंकि ये सच में हैं। इनका भी तुम्हारी तरह ही चौतरफा विरोध हो रहा है। तुम्हारे जमाने में तो कांग्रेस के भेड़िये मजबूत थे मगर इस समय ये शातिर अपनी मांद में दुबके सही समय पर हमले का इंतजार कर रहे हैं। इन लोगों के चलते भाजपा के कट्टरपंथियों को लग रहा है कि दिल्ली की तर्ज पर देश की हाथ आती सत्ता भी हाथ से न चली जाये। अगर चली गयी न दद्दू तो कसम आपकी ये लोग इस बार ऐसा दंगा करायेंगे जो सदियों तक याद रखा जाएगा। ये दंगा होगा हिन्दू बनाम हिन्दू का। इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है दद्दू। मोदी को सामने कर इन लोगों ने घर-घर में बंटवारे का ऐसा कार्ड खेला है जो कई शतकों में अंग्रेज भी नहीं कर पाये। दद्दू, उस समय का दृश्य सोचकर ही कांप उठता हूं। नोवाखाली का १९४७ का नरसंहार तो याद होगा न दद्दू तुम्हें। महात्मा गांधी के साथ तुम भी तो थे वहां। अगला दंगा उससे भी भयानक हो सकता है। लेकिन ऐसा होना मुझे संभव नहीं दिखता, क्योंकि ये बदलाव की लहर नहीं है, यह संपूर्ण स्वतंत्रता का शंखनाद है, क्योंकि ये लोकतंत्र की परिपक्वता के लिए प्राकृतिक, सहज आंदोलन है। बस एक काम करो दद्दू कि अपने लोगों को कहो कि ज्यादा ज्ञान बघारने की अपेक्षा चुपचाप इस अभियान में शामिल हो जाएं।

दद्दू, आजादी के बाद पूर्ण आजादी का जो शंखनाद तुमने किया था, उसकी क्रांतिकारी ऊर्जा को फिर से परवान चढ़ते देख मैं तो मंत्रमुग्ध हूं। अपने भजन में लीन हूं। बस देख रहा हूं, जिस प्रक्रिया की शुरुआत तुमने की वो कैसे अपने लक्ष्य पर पहुंचती है। बाकी सब ठीक है। तुम्हारे लोग देश के कोने-कोने में ठीकठाक हैं। अपने-अपने भजन में मगन हैं। तुम्हारी याद करते रहते हैं। अगला पत्र पुण्यतिथि पर भेजूंगा दद्दू तब तक के लिए बॉय-बॉय।
 
तुम्हारा प्यारा
 

रविवार, 16 मार्च 2014

चुनाव चिह्न और पार्टियों का स्वभाव



हमारे देश की तीन बड़ी पार्टियां कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के चुनाव चिह्नों पर अनायास ही नजर चली गयी। जरा गंभीरता से विचार किया तो पाया कि इन चुनाव चिह्नों का पार्टी के स्वभाव से खासा संबंध था। लगभग हर पार्टी के मामले में यही स्थिति है। फिलहाल चुनाव चिह्नों के स्वभावगुण के आधार पर पार्टियों के व्यक्तित्व, स्वभाव पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। इसे ज्योतिष शास्त्र की कौन सी विधा कहेंगे ये तो मालूम नहीं परन्तु किसी को बुरा लगे तो भई बुरा न मानो होली है।

आप और झाड़ू



मैं सफाई का स्वच्छता के लिए इस्तेमाल होता हूं। आम तौर पर लोग मुझे काम निकल जाने के बाद घर के किसी ऐसे कोने में फेंक देते हैं जहां किसी की नजर न पड़े। जब गंदगी सर उठाती है तो फिर मेरी आवश्यकता असंदिग्ध हो जाती है। मैं सफाई के लिए घिसता हूं। मगर बिना नानुकुर के सफाई करता हूं। सफाई का महत्वपूर्ण साधन हूं मैं। कुछ लोगों ने वैक्युम क्लीनर भी खरीदे लेकिन घर की सफाई तो मेरे बिना अधूरी है। मैं कुछ लोगों को रोजगार भी देता हूं परन्तु उन्हें भी समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है (सफाई कर्मी)। सृष्टि में, समाज में मेरी उपयोगिता काफी ज्यादा है। परन्तु यह उसी समय समझ में आती है जब गंदगी अपनी सीमा पार कर लेती है। जातिवाद, प्रांतवाद, परिवारवाद, धर्मवाद, राजनीति, समाज, मानसिकता, घर, सड़क, मैदान हर जगह सफाई करेंगे।

भाजपा और कमल



कमल के समान रहेंगे। हमारे कभीकभार ही दर्शन होंगे। हमारे दर्शन के लिए तालाब या कीचड़ तक पहुंचना होगा। हम मां लक्ष्मी (धन-दौलत) के आसन के रूप में हमेशा आपके दिल और दिमाग में रहेंगे। प्रत्यक्षतः हमारी अधिक उपयोगिता आपके लिए नहीं है मगर हम दिखते सुंदर हैं। प्रकृति के लिए उपयोगी हैं। हम अपनी सुंदरता के लिए जाने जाते हैं। हमसे भरे हुए तलैया देखना काफी मनोहारी होता है क्‍योंकि हम तालाब की ऊपरी सतह पर खिलते हैं। भारत में हमें पवित्र माना जाता है और हमारा पुराणों में भी उल्‍लेख है और हमारे बारे में कई कहावतें और धार्मिक मान्‍यताएं भी हैं। हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों में हमारी ख़ासी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता है। इसीलिए हमें भारत का राष्ट्रीय पुष्प होने का गौरव प्राप्त है। ये बात अलग है कि कुछ कमलनुमा दिखने वाले फूलों को फूल बनाकर कमल का दर्जा दे दिया गया है। चूंकि हमारी तरह पानी में खिलने वाले ये फूल आसानी से मिल जाते हैं, इसलिए अब इन्ही का चलन है। लोग इसे ही कमल समझ कर इस्तेमाल में ला रहे हैं।

कांग्रेस का हाथ



मैं हथेली हूं। मुझे हाथ कहा जाता है। मुझे पंजा कहा जाता है। मेरा उपयोग कई मुहावरों, कविताओं में होता है। शरीर मेरे बिना अधूरा है। खाना खाने से लेकर, रिश्वत लेने तक मेरा ही उपयोग किया जाता है। यहां तक कि झाड़ू पकड़ने के लिए मेरा होना जरूरी है। झाड़ू से सफाई के लिए मेरी जरूरत है। अगर मैं ही नहीं रहुंगा तो झाड़ू कैसे लगेगा। मेरे अस्तित्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता। मैं ही एकमात्र ऐसा चिह्न हूं जो दो है। एक बायां, एक दायां। कई खेल मैं बाईं ओर से करता हूं तो कई खेल दायीं ओर से। जब जिसकी जरूरत हो, उसका ही इस्तेमाल करता हूं। मुझमें आदमी के भूत, भविष्य और वर्तमान को दर्शाती लकीरें हैं। मैं शक्तिशाली हूं। मेरे बिना मनुष्य (देश) अधूरा है। मैं पांच और पांच यानी दस उंगलियों का मालिक हूं। हर उंगली का आकार अलग है। परन्तु काड़ीबाजी (राजनीति) करने के लिए इनका इस्तेमाल करना मुझे बखूबी आता है। अगर किसी ने मेरी शान में गुस्ताखी की तो उसे रैपट मारने (झापड़ मारने) का काम भी मेरा है।

(बिना अपनी टिप्पणी के)





शुक्रवार, 14 मार्च 2014

कहीं केजरीवाल की सभा गडकरी की ऐतिहासिक जीत का प्रतीक तो नहीं!


आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की नागपुर में आज शाम हुई आम सभा कई मायनों में ऐतिहासिक रही। सिर्फ नाम की ऐतिहासिक नहीं, बल्कि इसने पुराने सभी रिकार्ड ध्वस्त कर दिये जो कभी इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटलबिहारी वाजपेयी या सोनिया गांधी की सभा में हुआ करती थी। इस स्थिति को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि ये भीड़ वोट में तब्दील हो गई तो यहां भी दिल्ली की स्थिति दोहरा सकती है। यानी कांग्रेस उम्मीदवार के वोटों में खासी गिरावट आ सकती है जबकि भाजपा के वोट भी ५ से १० फीसदी तक प्रभावित हो सकते हैं। और यही समीकरण गडकरी के ऐतिहासिक जीत का कारक भी बन सकता है।
कल देर शाम होटल तुली इंटरनेशनल में केजरीवाल द्वारा १० हजारी डिनर मीटिंग में दिये गये भाषण के कुछ अंश आपत्तिजनक होने के बाद आज सुबह के रोड शो की रेटिंग सामान्य ही रही थी। लगभग ५०० लोगों की भीड़ ही इस रोड शो में दिखी। यानी रोड शो के मामले में केजरीवाल का रंग अनुमान के विपरीत फीका ही दिखा था। अनुमान के विपरीत इसलिए क्योंकि अनुमान था कि आम सभा का यह जज्बा रोड शो में ही दिख जाएगा। खैर, शाम होते तक नागपुर के ऐतिहासिक कस्तूरचंद पार्क मैदान पर लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई जो केजरीवाल के पहुंचते तक ऐतिहासिक तादाद में परिणित हो गयी।
कई मायनों में ऐतिहासिक कहने का मतलब यही था कि यह आजादी के बाद यह पहली ऐसी प्रचार सभा थी जिसमें जनता की स्वस्फूर्त सहभागिता थी। ऐतिहासिक इसलिए भी कि इसमें ९५ फीसदी जनता नागपुर शहर की थी। ग्रामीण जनता या भाड़े पर लाए गए लोगों की संख्या नगण्य थी। यही कारण था कि बस-ट्रक के बेकायदे जमावड़े की दिक्कत नहीं हुई। एक अनुमान के मुताबिक इस सभा में ७० फीसदी ऐसे लोगों की तादाद थी जो आसानी से वोटबैंक में तब्दील हो सकते हैं। कुल संख्या में नए टाइप के वोटरों की संख्या भी काफी दिखी। आम आदमी पार्टी के पार्टी लाइन के लोग तो बामुश्किल २० प्रतिशत से भी कम ही नजर आए।
केजरीवाल की सभा की इस भारी सफलता के बाद अब कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों के कान खड़े हो गए हैं। इसका कारण यह है कि नागपुर से एक ओर भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी चुनाव लड़ रहे हैं। बतौर प्रत्याशी गडकरी का यह पहला लोकसभा चुनाव है। अब तक के अनुमान के मुताबिक गडकरी इस चुनाव में रिकार्ड बहुमतों से जीतेंगे। साथ ही यह भी पुख्ता अनुमान था कि कांग्रेस के वोट चार बार चुनाव जीत चुके कांग्रेस प्रत्याशी विलास मुत्तेमवार को ही मिलेंगे। लेकिन अब इस सभा के बाद नागपुर से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार अंजलि दमानिया को १ लाख से अधिक वोट मिलने का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है। ब्लाग में इस पोस्ट के नीचे के पोस्ट में पिछले चुनावों में भाजपा और कांग्रेस की स्थिति की समीक्षा पहले ही की जा चुकी है।

अब तक अंजलि दमानिया को बामुश्किल ५० हजार वोट ही मिलने का अनुमान था। एक बाहरी व्यक्ति के रूप में दमानिया की व्यक्तिगत छवि को देखते हुए इससे अधिक वोट मिलने की उम्मीद भी बेमानी है। लेकिन यदि वोट आम आदमी पार्टी के नाम पर पड़े यानी परिवर्तन के नाम पर पड़े तो दमानिया को सवा लाख तक वोट मिल सकते हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि इसमें कितने वोट गडकरी के कटते हैं और कितने वोट मुत्तेमवार के। एक अनुमान है कि यदि ये भीड़ वोट में तब्दील हो गई तो यहां भी दिल्ली की स्थिति दोहरायी जा सकती है। यानी कांग्रेस उम्मीदवार के वोटों में खासी गिरावट आ सकती है जबकि भाजपा के वोट भी ५ से १० फीसदी तक प्रभावित हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में मुत्तेमवार को सवा दो लाख तक मत मिल सकते हैं। यदि मतदान का प्रतिशत बढ़ा और साढ़े ९ लाख मत पड़े तो गडकरी के अच्छे बहुमत से जीतने की संभावना और बढ़ जाएगी। आज की सभा के बाद तो यह पक्का कयास लगाया जा रहा है कि इसका नुकसान दिल्ली की तर्ज पर कांग्रेस को ही होगा। ऐसे में गडकरी की जीत ऐतिहासिक हो सकती है। 

शनिवार, 8 मार्च 2014

नागपुर लोकसभा चुनावः गडकरी जीतेंगे या भारी मतों से जीतेंगे

  

नागपुर लोकसभा क्षेत्र इस बार राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण और चर्चित होगा। इसका कारण यह है यहां से भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी मैदान में हैं। कांग्रेस की तरफ से निवर्तमान सांसद श्री विलास मुत्तेमवार की टिकट भी तय मानी जा रही है। आम आदमी पार्टी की अंजलि दमानिया भी दम ठोंक रही हैं। यहां अब मुकाबला दिलचस्प हो चला है। फिर भी अब तक सिर्फ यही कयास लगाये जा रहे हैं कि गडकरी कितने वोटों से जीतते हैं और आम आदमी पार्टी को कितने वोट मिलते हैं।
यह क्षेत्र परंपरागत रूप से कांग्रेस की सीट रही है। यहां से भारतीय जनता पार्टी सिर्फ एक बार ही जीत पायी है। इस बार नितिन गडकरी के मैदान में होने से अब तक उनका जीतना तय माना जा रहा है। लेकिन चौंकाने वाला सर्वेक्षण सामने आया है। कांग्रेस के परंपरागत वोट इस बार भी कांग्रेस के साथ ही दिखाई दे रहे हैं। उस पर अंजलि दमानिया के मैदान में होने से शहरी मध्यम वर्ग के युवाओं के मत प्रभावित होने की पूरी संभावना दिख रही है।

श्री गडकरी की तैयारियां तो पिछले ३ साल से चल रही है। इन तैयारियों के लिए भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्तां के अलावा गडकरी पार्टी के नाम से एक गुप्त लेकिन नया संगठनात्मक ढांचा तैयार किया गया। इसके कार्यकर्ता वे लोग हैं जो भाजपा या संघ से तो अलग हैं लेकिन गडकरी के साथ हैं। ऐसे लोगों की भी लंबी फेहरिस्त है। इसमें कांग्रेस, समाजवादी, वामपंथियों, विभिन्न यूनियन, समाज संघो के लोग शामिल हैं। नियमबद्ध रूप से बिना शोर-शराबा के झोपड़पट्टियों और ऐसे क्षेत्रों में ये दल कार्यरत है जहां परंपरागत रूप से भाजपा को वोट नहीं डाले जाते। ये क्षेत्र कांग्रेस के परंपरागत वोटबैंक होते हैं। इनमें पश्चिम और उत्तर नागपुर की झोपड़पट्टियों में मुख्य रूप से ध्यान दिया गया। विभिन्न स्वास्थ्य और अन्य जन कल्याणकारी कार्य लगातार किये जा रहे हैं। लगभग हर विचारधारा के नेताओं के साथ श्री गडकरी के व्यक्तिगत सबंधों का लाभ भी अब तक गडकरी के पक्ष में ही दिखायी दे रहा है। श्री गडकरी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की उस इमेज को भी तोड़ा जिसके तहत कैडरबेस कार्यकर्ताओं को ही तरजीह दी जाती हो। २००९ के चुनाव में कांग्रेस के श्री विलास मुत्तेमवार को 3 लाख 15 हजार 148 मत मिले थे जो कुल मतदान का 41.72 फीसदी था. इस चुनाव में भाजपा के श्री बनवारीलाल पुरोहित को 38.49 फीसदी यानी 2 लाख 90 हजार 749 मत मिले थे। बहुजन समाज पार्टी के श्री माणिकराव वैद्य को 1 लाख 18 हजार 741 मत मिले थे। यानी मुत्तेमवार महज 24,399 मतों से विजयी हुए थे। इस बार नागपुर लोकसभा में 16 लाख 43 हजार 197 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। अगर ५० से ५५ फीसदी वोट भी डाले गए तो लगभग ८.५ लाख मतदान होना तो तय है। आम आदमी पार्टी की उपस्थिति से पांच फीसदी वोटों का हेरफेर भी चुनावी परिदृश्य को बदलने में सक्षम होगा। यानी अब पूरा दारोमदार गडकरी ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं पर टिक गया है। कांग्रेस ने अब तक टिकट वितरण नहीं किया है। वैसे भी पार्टी मे मुत्तेमवार को हाशिये पर डालने के बाद शहर में कांग्रेस की सक्रियता में कमी आई है। अब विकास ठाकरे को कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने के बाद मुत्तेमवार के साथ भी युवाओं का एक बड़ा वर्ग जुड़ेगा। नए मतदाताओं का रूझान भी महत्वपूर्ण होगा। कुल मिला कर अब तक पक्की मानी जा रही गडकरी की जीत अब उतनी आसान नहीं लग रही है। यानी भाजपा, संघ और गडकरी ब्रिगेड को फिर से नई ताकत के साथ चुनाव मैदान में डटना होगा। वैसे चुनाव प्रबंधन के मामले में गडकरी माहिर माने जाते हैं। दिल्ली में भाजपा की जबरदस्त सफलता में गडकरी के चुनाव प्रबंधन का बड़ा योगदान रहा है। विदर्भ में भी भाजपा को स्थापित करने का श्रेय भी गडकरी को ही जाता है। देखने वाली बात यह होगी कि १९९८ से लगातार जीत रहे मुत्तेमवार इस चुनाव में क्या करते हैं।