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शुक्रवार, 29 जून 2012

अपने प्यार के सपने सच हुए


http://youtu.be/NKdnYLj9QfU
अपने प्यार के सपने सच हुए
होंठों पे गीतों के फूल खिल गए
सारी दुनियाँ छोड़ के मन मीत मिल गए
अपने प्यार के ...

अपने प्यार के सपने सच हुए

पल भर को मिले जो अंखियाँ
देखूँ मैं सुनी हैं जो बतियाँ
पढ़ लूँ मैं तोरे नैनों की पतियाँ

बिना देखे तुम देखो मेरी आँखों से

अपने प्यार के ...

अपने प्यार के ...

काँटों से भरी थी जो गलियाँ
उन में खिली हैं अब कलियाँ
झूमो नाचो मनाओ रंगरेलियाँ

चलो सजना कहें चलके सारे लोगों से

अपने प्यार के ...

अपने प्यार के ...

अब जब मिले जीवन ओ सजना
तुम ही मुझे पहनाओ कंगना

तेरी डोली रुके मेरे अंगना

मेरा घुंघटा तुम खोलो अपने हाथों से

अपने प्यार के सपने सच हुए
होंठों पे गीतों के फूल खिल गए
सारी दुनिया छोड़ के मन मीत मिल गए
अपने प्यार के ...

गुरुवार, 28 जून 2012

इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में जाने के पहले तौलें खुद को




सफल एक्टर, एक्ट्रेस से जानें, क्या है बालीवुड 


0) फ्राइडे टाकीज का निःशुल्क 'माइंड द गैप' सेमिनार


मुंबई के मनोरंजन की दुनिया में कौन जाना नहीं चाहता। ग्लैमर, फेम और धनदौलत से लबरेज मनोरंजन की यह एक अलग ही दुनिया है। ऐसे में मनोरंजन की दुनिया में अपनी जगह बनाने के इच्छुक युवाओं के सामने हमेशा यह प्रश्न खड़ा रहता है कि आखिर मुंबई तक पहुंचा कैसे जाए और पहुंचने के बाद अपनी जगह कैसे बनाई जाए।
बालीवुड में जाने के सपने देखने के पहले टैलेंट्स को यह जानना जरूरी है कि उनमें प्रतिभा है या नहीं। मुंबई में गत ...... वर्षों से कार्यरत विनीत राय और अमित के पाल ने अपनी नई एजेंसी फ्राइडे टाकीज के माध्यम से छोटे शहरों और मनोरंजन की दुनिया के बीच की दूरी पाटने का प्रयास 'माइंड द गैप' के माध्यम से शुरू किया है। जुलाई के अंतिम सप्ताह में यह सेमिनार नागपुर में प्रस्तावित है।
दरअसल, मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों को छोड़ कर बी व सी ग्रेड के नगरों में मनोरंजन की दुनिया के लिए जितना आकर्षण है, उतना ही कम इससे संबंधित जानकारी है। यही कारण है कि प्रतिभाशाली युवाओं, बच्चों को वह मुकाम नहीं मिल पाता है जिनके वे हकदार हैं। इसके लिए काफी हद तक ग्लैमर की चकाचौंध का आकर्षण भी जवाबदार है। नेम, फेम एंड मनी के खेल में माइंड द गैप का कन्सेप्ट ही सामने नहीं आ पाता और ऐसे युवा भी मुंबई का रुख कर लेते हैं जिनमें बालीवुड के लायक प्रतिभा नहीं होती है। मनोरंजन की दुनिया का हर क्षेत्र रचनात्मक (क्रियेटिव) है। यह भी एक हकीकत है कि बालीवुड में अपना करियर बनाने की चाहत दिल में पाल कर रोजाना मुंबई पहुंचने वाले हजारों युवाओं में से ज्यादातर को यह मालूम ही नहीं होता कि उन्हें अभिनय (एक्टिंग) की फील्ड में जाना है या फिर डायरेक्शन की। वे कैमरा थामना चाहते हैं या फिर फिल्म या सीरियल की स्क्रिप्ट लिखना चाहते हैं।
बी ग्रेड के शहरों तक आम तौर पर मुंबई के वही लोग पहुंच पाते हैं जो किसी कारण से मनोरंजन की दुनिया की मुख्यधारा से कट जाते हैं और किसी तरह कुछ साल मुंबई में अपना गुजर-बसर कर लेते हैं। ये लोग मुंबई और अपेक्षाकृत छोटे शहरों के बीच के अंतर को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं और अपने छोटे-छोटे स्वार्थ (सेल्फिशनेस) का फायदा उठाने के लिए शहर की प्रतिभाओं को दिग्भ्रमित (Misguide) करते हैं।

क्या है 'माइंड द गैप'
बालीवुड की मनोरंज
की दुनिया की कड़वी सचाई से अवगत कराने के लिए ही माइंड द गैप सेमिनार का आयोजन देश भर के २० चुनींदा शहरों में करने का लक्ष्य रखा गया है। गैप यानी वह दूरी जो मुंबई और अन्य शहरों के बीच है। गैप यानी वह दूरी जो बालीवुड और व्यवसाय के अन्य क्षेत्रों के बीच है। गैप यानी वह दूरी जो एक इन्स्पायरर (प्रेरक) और एचीवर (मुकाम पाने के लिए प्रयासरत प्रतिभा) के बीच है। गैप यानी वह दूरी जो सफलता के शिखर और सफलता के रास्ते के बीच है।
पहले चरण में महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर और मध्य प्रदेश का मिनी मुंबई के नाम से मशहूर शहर इंदौर का चयन किया गया है। इस सेमिनार में शामिल होने के लिए कोई फीस नहीं है। सेमिनार तो निःशुल्क होगा लेकिन इसमें शामिल होने वाली प्रतिभाओं को कड़ी चयन प्रक्रिया से गुजरना होगा। सेमिनार का सीधा उद्देश्य है बालीवुड और मुंबई से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना। यानी कि चयन के समय ही यह निर्धारित कर लिया जाएगा कि सामने वाले युवा या बच्चे में प्रतिभा है कि नहीं। विनीत कहते हैं कि ऐसे लोगों को सेमिनार में शामिल करने का कोई फायदा नहीं है जिनमें प्रतिभा ही न हो। 

कैसे होगा सेमिनार
एक बार सेमिनार में शामिल होने वाली प्रतिभाओं का चयन हो गया, उसके बाद बालीवुड के विभिन्न क्षेत्रों में अपना स्थान बना चुके अभिनेता, अभिनेत्रियों, डायरेक्टर्स, आर्ट डायरेक्टर्स, राइटर्स की एक टीम बुलाई जाएगी जो न सिर्फ मार्गदर्शन करेंगे, बल्कि सेमिनार के पार्टिसिपेंट्स के सवालों का जवाब भी देंगे। दिन भर चलने वाले इस सेमिनार के बाद उपयुक्त कैंडिडेट्स को भविष्य के लिए उचित दिशानिर्देश दिए जाएंगे।

फ्राइडे टाकीज
फ्राइडे टाकीज एक एजेंसी है जो एडवर्टाइजिंग, फिल्म मेकिंग, कार्पोरेट और डेस्टिनेशन इवेंट के क्षेत्र में काम करती है। इसके सीईओ विनीत राय का यह दूसरा वेंचर है। रेड जिंजर मीडिया एंड इंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड का संचालन काफी पहले से ही विनीत राय कर रहे हैं। इस कंपनी के निदेशक के रूप में अमित के पाल कार्यरत हैं। फिल्म प्रोडक्शन और मार्केटिंग, सेलेब्रिटी मैनेजमेंट, क्रियेटिव ब्रांड सोल्युशन फ्राइडे टाकीज की भावी योजनाओं में शामिल है।

गुरुवार, 21 जून 2012

महाराष्ट्र की बिजली के लिए विदर्भ की बलि


0) 1 लाख एकड़ जमीन, 3600 घन मिमी पानी और रोज 18 लाख टन कोयला
0) आत्महत्या रोकने की बजाए अब विदर्भ की जमीन को बंजर बनाने की साजिश

 वर्धा की लैंको ताप बिजली परियोजना को पर्यावरण स्वीकृति का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है। राजनेताओं से लेकर सरकारी अधिकारियों तक, कोई भी इस बात पर कुछ कहने को तैयार नहीं है कि आखिर इससे कितना फायदा और कितना नुकसान होगा। वैसे भी विदर्भ का नाम अब 'सुसाइड जोनÓ के रूप में लिया जाने लगा है। यहां किसानों की आत्महत्या का ग्राफ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। न तो किसी पैकेज से कोई फायदा हुआ और न ही किसी नेता के दौरे से। ऐसे में विदर्भ में 132 बिजली घरों को मंजूरी देना असमय ही समूचे विदर्भ की भूमि को बंजर बनाने का प्रयास ही है। पीडि़तों का कहना है कि आत्महत्याएं रोक पाने में नाकाम सरकार अब कृषि को ही समाप्त कर देना चाहती है। 
सूत्र बताते हैं कि विदर्भ में स्वीकृत 132 बिजली परियोजनाओं के लिए 1 लाख एकड़ जमीन और 3600 घन मिमी पानी का इस्तेमाल होगा। यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि 3600 घन मिमी पानी से 5.50 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकती है। स्थिति यह है कि सिंचाई बैकलाग के मामले में विदर्भ की हालत पहले ही खराब है। यहां की 80 फीसदी जमीन असिंचित है। यहां सिंचाई की व्यवस्था करने की बजाए सरकार यहां का पानी उद्योगों को दे रही है। जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक बनाए गए जल प्रकल्पों से जून 2009 तक पश्चिम महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 230.22 प्रतिशत, सांगली में 107.35 प्रतिशत, पुणे में 76.99 प्रतिशत, सतारा में 82.57 प्रतिशत और सोलापुर में 66.88 प्रतिशत सिंचाई क्षमता निर्मित की गई। जबकि विदर्भ सिंचाई की अधिकतम संभावनाएं होने के बाद भी आधारभूत संरचना के अभाव में 11 लाख हेक्टेयर का सिंचाई बैकलाग है। 1994 में यह बैकलाग 2.5 लाख हेक्टेयर था। इसे सन 2006 तक समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया था। यह पूरा हो न सका। इसके बाद लक्ष्य 2010 का रखा गया। वह भी बीत गया। अब 2016 तक सिंचाई बैकलाग दूर करने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन इसके भी पूरे होने की संभावना कम ही दिखाई दे रही है। अमरावती संभाग के किसी भी जिले में यह क्षमता 25 फीसदी का आंकड़ा भी नहीं छू सकी है।
यह भी एक कड़वी सचाई है कि विदर्भ में खनिज संपदा की बहुतायत है। राज्य की 97 फीसदी खनिज संपदा यहां है। इसके बावजूद यहां खनिज से संबंधित उद्योग नहीं लग पाए। इस समय जबकि बिजली उत्पादन के मामले में विदर्भ आत्मनिर्भर है, अनावश्यक रूप से यहां निजी बिजली घरों को स्वीकृति दे दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट में भी सोमवार को वर्धा के याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील देते हुए एड. मोनिका गुसाईं ने दलील दी कि इन बिजली घरों को बड़ी मात्रा में पानी लगेगा। साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचेगा। कंपनी के वकील ने यह जब यह दलील दी कि प्रकल्प पर अब तक 29 करोड़ रुपए खर्च किए जा सके हैं तो कोर्ट ने साफ कहा कि आप जितना चाहे, उतना खर्च कर सकते हैं। आप वहां चैरिटी नहीं कर रहे हैं। हमें पर्यावरण के बिन्दु पर विचार करने दीजिए। 

बाक्स........
पानी के खेल में सब 'पानी-पानीÓ
राज्य में पानी के वितरण का अधिकार पहले उच्चाधिकार समिति के पास हुआ करता था। 2005 में इसे महाराष्ट्र जल संपदा नियमन प्राधिकरण को दे दिया गया। पर सरकार की उक्त समिति की दादागिरी जारी रही। जब मामले न्यायालय में पहुंचने लगे और विरोध के स्वर मुखरित होने लगे, तब सरकार ने बाकायदा अध्यादेश लाकर समूचा अधिकार समिति को दे दिया। सिंचाई परियोजनाओं के पानी पर उद्योगों से पहले किसानों का अधिकार होता है। पानी के मामले में विदर्भ और मराठवाड़ा का स्थिति पहले से ही खराब है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर उद्योगों को पानी देने के लिए सरकार किसानों की बलि क्यों लेना चाहती है।

धांधली ही धांधली
राज्य सरकार के पास सिंचाई योजनाओं को पूरा करने के लिए निधि नहीं है। फिर भी सन 2003 से जनवरी 2010 के बीच राज्य की हेटावणे, अंबा, सूर्या, अपर वर्धा, गंगापुर, उजणी मिलाकर 38 सिंचाई परियोजनाओं का 1500 मीलियन क्यूबिक मीटर पानी कृषि के अलावा अन्य कार्यों के लिए दे दिया गया। इससे अनुमान है कि लगभग साढ़े छह लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि की सिंचाई बाधित हुई।

चंद्रपुर से लेना होगा सबक
कोयला खदान और ताप बिजली परियोजना के कारण आज चंद्रपुर की गिनती देश के सबसे प्रदूषित शहरों में है। यही हाल छत्तीसगढ़ के कोरबा और रायगढ़ का भी है। बिजली घरों निकलने वाली राख की चादर बिछ जाती है। वायुमंडल में आरएसपी कणों की मात्रा बढ़ जाती है। इस तथ्य की जानकारी होने के बावजूद सरकार ने पूरे विदर्भ में ताप बिजली परयिोजनाओं का जाल बिछाने का फैसला ले लिया। यानी समूचे विदर्भ को राख की चादर में बदलने का षडय़ंत्र।

रविवार, 3 जून 2012


कुछ: कहते हैं भटक रहे हो
कुछ: कहते हैं बेवफा हो गए हो
कुछ: कहते हैं गायब हो गए हो
कुछ: कहते हैं लाचार हो गए हो
इतनी उपमाएं कैसे संभालूं ए दिल
नहीं मालूम 'अंजुम' कहां खो गए हो....
किस को बसा कर आए हो
किस को उजाड़ आए हो
किससे जुदा हो गए हो
किससे मिलने की आस लगाए हो
कौन अपना कौन पराया
किसे दिल से लगाए हो
किसके चमन में अपना
आशियाना बसाये हो
दुनिया के रिवाजों में
अपना गम भुलाए हो...
जय हो.. जय हो... जय हो...ो