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मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

फेसबुक यानी पुरानी बोतल में नई शराब


 फेसबुक अब काफी लोकप्रिय हो चला है. यहां तक कि कुछ लोगों को तो इसकी लत लगने की बात चिकित्सक करने लगे हैं. इसे सिंड्रोम की संज्ञा दी जाने लगी है. मजे की बात तो यह है कि इसकी लोकप्रियता से घबरा कर केंद्र सरकार भी इस पर लगाम लगाने की बात कह रही है. अब भई कुछ भी करो.... मगर फेस बुक ने एक बार उसी भारतीय संस्कृति का कम्प्यूटरीकरण कर दिया है जिसके लिए सरकारी दफ्तरों के बाबू, बेरोजगार लोग और काफी हाउस संस्कृति में घंटों समय बिताने वाले लोग बदनाम किए जाते थे.
आज से लगभग १५ साल पहले का माहौल याद कीजिए. हर मोहल्ले, नुक्कड़ों में एक पान की टपरी हुआ करती थी. एक चाय की टपरी हुआ करती थी. बड़े शहरों में काफी हाउस हुआ करते थे. ये अभी भी हैं. इनकी बिक्री भी अच्छी है मगर बदलाव भी आया है. पहले लोग इन जगहों पर जमा हुआ करते थे. यहां कई मुद्दों पर चर्चा हुआ करती थी. यहां अखबार होते थे. उन्हें पढ़ कर लोग आपस में अपने विचार व्यक्त किया करते थे. जबलपुर, बिलासपुर (छत्तीसगढ़), नागपुर जैसे कई शहरों में उन दिनों मैंने देखा था कि लोग समूहों में इन स्थानों पर इकट्ठे होते थे. स्कूल के दोस्त अपनी बातें करते थे. राजनीति वाले राजनीति की बातें करते थे. काफी हाउस में ज्यादातर साहित्यिक या गंभीर विषयों की चर्चाएं होती थीं. लोगों का जमावड़ा इन जगहों पर होता था. काफी हाउस में घंटों बैठकर बुद्धिजीवी सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए चर्चाएं करते थे. सरकारी दफ्तरों के बाबू हाजिरी लगाने के बाद पान की टपरी पर घंटों बतियाया करते थे.
फिर दौर आया बदलाव का. देश में राजनितिक परिवर्तन के साथ ही ग्लोबलाइजेशन और स्वतंत्र अर्थ व्यवस्था शुरू हुई. कम्प्यूटर आ गया. लोगों की जिंदगी में भी बदलाव आया. वैश्वीकरण के दौर ने तो सभी को व्यस्त कर दिया. भौतिक सुख-सुविधाओं की अंधी दौड़ में लोग शामिल हो गए. विद्यार्थियों को अच्छी नौकरी की चाह में प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए कड़ी मेहनत शुरू करनी पड़ी. घर में टीवी आ गया. साहित्य का स्थान पत्रकारिता ने लेना शुरू कर दिया. यहां भी प्रतिस्पर्धा ऐसी हुई कि लोगों को कहीं बैठकर सामूहिक चर्चाएं करने के लिए समय ही नहीं बचा. इन सबने नुक्कड़ों में सुबह शाम होने वाले जमावड़े को खत्म कर दिया. हां, इस बीच विदेशी शराब की बार संस्कृति ने भी अपना स्थान बनाना शुरू कर दिया और यह फलता-फूलता गया. मैखाने के शौकीन अब भी घंटों अपना समय बियर बार में व्यतीत करते हैं.
इस बीच आया आर्कुट. आर्कुट के माध्यम से लोग जुड़ने लगे. यह भी लोकप्रिय होने लगा था लेकिन इसी बीच में फेसबुक और ट्विटर ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी. ट्विटर भी ठीक है लेकिन फेसबुक ने अपनी संरचनात्मक खूबियों के कारण आम लोगों के बीच अपना स्थान बना लिया. अब फेसबुक ने उसी पुरानी नुक्कड़ वाली संस्कृति को एक बार फिर जीवित कर दिया है. फेसबुक पर भी अलग-अलग शौक रखने वालों ने अलग-अलग समूह बना लिये हैं. इन समूहों में विषयानुरूप चर्चाएं, नोक-झोंक होती रहती है. दफ्तरों के कर्मचारी भी अपने कार्य के समय पर फेसबुक पर उसी अंदाज में समय व्यतीत करते हैं जैसे पहले सरकारी दफ्तरों के बाबू पान टपरी पर व्यतीत किया करते थे. यही कारण है कि कई निजी कंपनियों के कार्यालयों में फेसबुक, ट्वीटर, आर्कुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. सर्वर से ही उसे ब्लाक कर दिया गया है. हमारे जैसे कुछ अतिउत्साहियों ने तो उसका भी हल खोज निकाला है. कंपनी के सर्वर का कनेक्शन हटाकर अपना रिलायंस या टाटा का डोंगल लगा लिया और फिर शुरू हो गया फेस बुक...
खैर बात यहां फेस बुक की हो रही थी. फेसबुक ने एक और महत्वपूर्ण काम किया है. सामाजिक-आर्थिक रूप से सक्षम एक वर्ग विशेष को इससे जोड़ा है. यानी जो गरीब हैं, उन्हें मालूम है कि वे गरीब हैं. जो अमीर हैं, उन्हें मालूम है कि वे अमीर हैं. मगर मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के लोगों को ये नहीं मालूम कि वे क्या हैं. यानी गरीब हैं कि अमीर हैं. वैश्वीकरण की भेड़चाल में यह वर्ग अपनी खुद की पहचान भूलता जा रहा है. यह वर्ग सीमित साधनों के साथ अति महत्वाकांक्षी है. यही कारण है कि यह वर्ग काफी तनावयुक्त है. कहीं न कहीं इस वर्ग में भौतिक सुख-सुविधाओं की तरफ भागने के अरमान हैं. रातोंरात करोड़पति बनना चाहता है यह वर्ग. देश के करोड़ों लोग इस वर्ग से जुड़े हुए हैं. यह वर्ग फेसबुक पर सबसे ज्यादा सक्रिय है. यही कारण है कि अन्ना हजारे के आंदोलन को समर्थन के लिए रातोंरात करोड़ों लोग तैयार हो जाते हैं. और इसीलिये अब सरकार अरब देशों में सोशल नेटवर्किगं साइट्स जैसे फेसबुक और ब्लॉग आदि के ज़रिये हुयी बग़ावत से डरकर इस पर रोक लगाने को आमादा है. फेसबुक का आलम यह है कि लोग सरकार के खिलाफ भड़ास निकालने के लिए कई तरह की तकनीक का सहारा लेकर कार्टून जैसे चित्र बना डालते हैं. सुपर पीएम सोनिया गांधी के साथ ही आज कल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह, अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, राजा, नीरा राडिया, सुरेश कलमाड़ी, पी चिदंबरम, लालूप्रसाद यादव, प्रणव मुखर्जी आदि आज कल सोशल नेटवर्किंग साइट्स के पसंदीदा कार्टून किरदार बने हुए हैं. दिग्गी राजा के बाद अब तो केंद्र सरकार भी खुलेआम इन साइट्स को प्रतिबंधित करने या फिर फिरकाकसी पर पुलिस केस दर्ज करने की धमकी देने लगी है.
पिछले दिनों दिग्विजय सिंह के खिलाफ जब इंटरनेट पर अन्ना हज़ारे पर कीचड़ उछालने के कारण जमकर टिप्पणियां होने लगी तो उन्होंने लोगों को डराने के लिये दिल्ली के एक थाने में साइबर क्राइम का मामला दर्ज करा दिया था।

वैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स के अपने खतरे भी हैं.... (साभार)


कुछ साइबर विशेषज्ञ फेसबुक से उत्पन्न खतरों के बारे में आगाह करते रहते हैं. चीफ सैक्यूरिटी ऑफिसर ऑनलाइन के वरिष्ठ सम्पादक जॉन गूडचाइल्ड का मानना है कि कम्पनियाँ अपने प्रचार के लिए फेसबुक जैसी साइट का उपयोग करना चाहती है परंतु ये कम्पनियाँ ध्यान नहीं देती कि उनकी गोपनीयता खतरे में है.


सीबीसी न्यूज़ के 'द अर्ली शॉ ऑन सटरडे मोर्निंग' कार्यक्रम के दौरान गूडचाइल्ड ने फेसबुक के 5 ऐसे खतरों के बारे में जानकारी प्रदान की जिससे निजी और गोपनीय जानकारियों की गुप्तता खतरे में पड़ सकती है.

१. डेटा शेयरिंग - पहली बात तो यह कि आपकी जानकारी केवल आप और आपके मित्रों तक ही सीमित नहीं रहती है. वह जानकारी थर्ड पार्टी अप्लिकेशन डेवलपरों तक पहुँच रही है. इसका दुरुपयोग कभी भी ये डेवलपर कर सकते हैं.

२. पॉलिसी बदलाव - फेसबुक की हर रिडिजाइन के बाद उसकी प्राइवेसी सेटिंग बदल जाती है और वह स्वत: डिफाल्ट पर आ जाती है. प्रयोक्ता उसमें बदलाव कर सकते हैं परंतु काफी कम प्रयोक्ता इस ओर ध्यान देते हैं. इससे आपकी प्राइवेसी समाप्त हो जाती है.

३. मॉलवेयर - फेसबुक पर प्रदर्शित विज्ञापन मॉलवेयर हो सकते हैं. उन पर क्लिक करने से पहले विवेक से काम लें.

४. पहचान का गलत उपयोग - आपके मित्र जाने अनजाने आपकी पहचान और आपकी कोई गोपनीय जानकारी दूसरों से साझा कर सकते हैं. इसका फायदा चार सौ बीसी का धंधा करने वाले लोग उठा सकते हैं.

५. फर्जी एकाउंट्स - फेसबुक पर सेलिब्रिटियों को मित्र बनाने से पहले अच्छी तरह से जाँच जरूर कर लें. स्पैमरों द्वारा जाली प्रोफाइल बनाकर लोगों तक पहुँच बनाना काफी सरल है. इसलिए किसी भी फ्रेंड रिक्वेस्ट की भलीभांति जांच कर लें.

६. हैकिंग - कई बार आपका एकाउंट हैक कर लिया जाता है और आपके एकाउंट से अश्लील वीडियो या अन्य सामग्रियां आपके दोस्तों को पोस्ट कर दी जाती हैं.

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

इसलिए भाव खाती है नालायक


हम कहीं नहीं हैं उनकी जिन्दगी में 
हमें तो फुर्सत ही नहीं अपनी जिन्दगी में 
वो हमें तहजीब सिखाती हैं सरे जिन्दगी में
लेकिन वो हैं क्या हमारी जिन्दगी में
हमारी हर सांस है उनकी हमारी जिन्दगी में  
हमारी हर आस है उनकी हमारी जिन्दगी में
वो नहीं कुछ भी नहीं हमारी जिन्दगी में 
उनकी वो मुलाकात है हमारी जिन्दगी में 
वही हैं जिन्दगी हमारी जिन्दगी में 
वो नहीं तो कुछ भी नहीं हमारी जिन्दगी में..... 


इसलिए भाव खाती है नालायाक........